आओ वैब पर अपना घरौंदा बनाएं : 1

हमारे मिर्जा साहिब अक्सर हमे इंटरनैट पर बिजी रहने के लिए गरिआते रहते है। इनका कहना है कि ये चौधरी साहिब पता नही इंटरनैट पर किन किन छोकरिआओं के साथ गपिआता है, इसी चक्कर मे शतरंज खेलने भी नही आता। अभी पिछले दिनो ही छुट्टन मियां के एक डीवीडी मित्र (मिर्जा, छुट्टन,और उसके डीवीडी मित्रों के बारे मे विस्तार से आप इधर देख सकते है) ने हमसे वैब साइट बनाने के लिए सम्पर्क किया। ये डीवीडी वाला, मिर्जा का भी काफी मुंहलगा था, मतलब कि मिर्जा से इसका गाली गलौच का रिश्ता था। अब ये हमारी बदकिस्मती कहो या किस्मत, मीटिंग मिर्जा साहब के दीवानखाने पर तय हुई।

शुरुवाती बातचीत के बाद जब मीटिंग शुरु हुई तो हमने वैब साइट सम्बंधी तकनीकी बातचीत शुरु करी। बस यहीं पर मिर्जा उखड़ गए (वैसे उखड़ना उनकी आदतों मे शुमार है, आप टेंशन मत लें) बोले, ये तकनीकी गिटपिट रखो अपने पास, हमको तो सीधी साफ जुबान मे वैबसाइट बनाने के बारे मे बता सकते हो तो बताओ, वरना तुम्हारी ये जानकारी तुम अपने पास ही रखो। हम मिर्जा का पैंतरा समझ गए। मिर्जा अक्सर हमे ऐसे ही उकसाता है, ताकि हम एक और तकनीकी लेख को सीधी सरल भाषा मे बता सके। बताना भी ऐसा कि मिर्जा जैसा अकलमंद (??) भी बात तो पहली ही बार मे समझ जाए। तो जनाब ये तो थी लेख की प्रस्तावना। वैबसाइट सम्बंधी बातचीत को हम कई कड़ियों मे समेटेंगे, एक बार मे एक टॉपिक ताकि बाकी साथी भी बात को आसानी से समझ सकें। तो आइए वैब पर अपना घरौंदा बनाएं।

सबसे पहले तो आइए जानते है कि वैब साइट होती क्या है। जैसा कि हम सभी जानते है कि इंटरनैट ने दुनिया को एक छोटे से गाँव मे तब्दील कर दिया है। इंटरनैट पर विभिन्न व्यक्तियों, सरकारों, कम्पनियों और संस्थाओं की दुकाने आफिस ही वैबसाइट कहलाती है। इन वैबसाइट मे उन संस्थाओं/व्यक्तियों के बारे मे ढेर सारी जानकारी होती है। वैबसाइट भी कई तरह की होती है, व्यापारिक,व्यक्तिगत, ब्लॉग या ढेर सारे अन्य तरह की वैबसाइट। हम यहाँ पर अपना फोकस व्यापारिक वैबसाइट बनाने पर ही रखते है। व्यापारिक वैबसाइट के ढेर सारे फायदे है जैसे न्यूयार्क मे शापिंग मॉल का दुकानदार माइकल, अपनी दुकान पर बैठे बैठे, छुमरी तलौया के अंगोछा व्यापारी गमछू की वैबसाइट पर जाकर अंगोछो और तौलियों के बारे मे जानकारी और खरीद फरोख्त कर सकता है। ये सब इंटरनैट के द्वारा ही सम्भव हुआ, नही तो कहाँ माइकल और कहाँ गमछू। अब अगर अंगोछा बेचने वाला गमछू अपनी वैबसाइट बना सकता है तो आप क्यों नही? आपका तो लुंगी का कारोबार है, जाहिर है लुंगी, अंगोछे से काफी बड़ी होती है। अब जो लुंगी है वो…….ठहरिए, हम यहाँ लुंगी और गमछों की बात तो करने बैठे नही, इसलिए वापस अपना फोकस वैबसाइट पर लाते है। तो जनाब अब आपके पास वैबसाइट बनाने के लिए सबसे जरुरी चीज है, वो है इच्छाशक्ति। किसी भी काम को करने के लिए सबसे जरुरी चीज इच्छा-शक्ति होती है।

चलिए जनाब सबसे पहले तो हम उन चीजों की लिस्ट बना लें जो आपको वैबसाइट बनाने से पहले चाहिए होंगी:

  • इच्छाशक्ति : (जो आपने अभी अभी गमछू को देखकर हासिल की है।)
  • वैबसाइट की जरुरत : क्या आपको सचमुच वैबसाइट की जरुरत है, आज आपका जवाब हो सकता है, शायद। लेकिन भविष्य मे, निश्चित ही आपका जवाब हाँ मे ही होगा। इसलिए कबीरदास जी की बात को मानते हुए काल करे सो आज कर। आज करे तो अब…..
  • कंटेन्ट यानि मसाला : आप अपनी वैबसाइट पर क्या क्या दिखाना चाहते है? उसके बारे मे थोड़ी तैयारी की जरुरत है। ज्यादा जानकारी ना हो तो प्रतिद्वंदियों की वैबसाइट पर खंगालिए, थोड़ा इधर उधर नजर दौड़ाइए, मसाला अपने आप मिल जाएगा।
  • वैबसाइट टाइप : आपकी वैबसाइट सिर्फ़ जानकारी देगी अथवा आप उसके द्वारा ऑनलाइन व्यापार भी करना चाहते है। यह एक जरुरी सवाल है, इसके जवाब से ही आपके के खर्चे का अंदाजा लग सकेगा।
  • आपका बजट, भैया! बिन पैसा सब सून, थोड़ा पैसा तो खर्च करना ही होगा। अब ब्लॉग तो है नही कि फ्री मे बन जाए, थोड़ा सा पैसा तो लगेगा ही। आखिर आप अपनी व्यापारिक वैबसाइट बनाने जा रहे है। हम कोशिश करेंगे कि आपके कम से कम पैसे खर्च हो, बदले मे आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
  • समय : अब समय तो निकालना ही पड़ेगा, पहले मेरा ब्लॉग पढने का, फिर वैबसाइट डिजाइन करने का। अगर समय ना हो, तो पैसा तो होगा ही ना, कोई भी तकनीकी बंधु, पैसे लेकर समय निकाल लेगा, अगर पैसे भी नही, तो भैया, ब्लॉग ही पढ लो, जाने कब वैबसाइट बनाने की जरुरत पड़ जाए।

अब आपके पास इच्छाशक्ति है, जरुरत है, मसाला है, बजट है और समय भी है। तो फिर देर किस बात की है, शुरु हो जाते है। लेकिन रुकिए, वैबसाइट से सम्बंधित कुछ तकनीकी जानकारी, सरल भाषा मे जान लेते है।

डोमेन : इंटरनैट पर आपका पता : इंटरनैट पर आपका एक अलग से आफिस/दुकान/घर। आपका पता आपका अपना है, मतलब आपके पते पर कोई और घर/आफिस/दुकान नही हो सकता। इसके लिए सबसे पहले आपको अपने पते का चुनाव करना होता है। आपका अनूठा पता डोमेन कहलाता है। डोमेन? ये क्या होता है? भई बताया तो पूरी दुनिया मे आपका पता (वैब एड्रेस फलाना डाट कॉम, डिमकाना डाट नैट ) ही आपका डोमेन होता है। अब आपके मन मे ढेर सारे सवाल होंगे जैसे:

  • अब ये डोमेन क्या होता है?
  • डोमेन की जरुरत क्यों है?
  • ये डोमेन  कितने तरह का होता?
  • ये डोमेन मिलता कैसे है?
  • ये डोमेन कहाँ से मिलता है?
  • कितने रुपल्ली लगते है?
  • खरीदना पड़ता है कि किराए पर भी मिल सकता है?

सवाल तो कई है, लेकिन जवाब के लिए इंतजार कीजिए अगले लेख का। इस सीरीज के अगले लेख मे हम बात करेंगे डोमेन की। डोमेन के बारे पूरी जानकारी एक ही लेख मे समेटने की कोशिश की जाएगी।आपको ये लेख कैसा लगा, मुझे जरुर लिखिए। आपकी टिप्पणियों, सुझावो और आलोचनाओं से मुझे लेखों को इम्प्रूव करने मे काफी मदद मिलेगी। तो फिर आते रहिए और पढते रहिए, आपका पसंदीदा ब्लॉग मेरा पन्ना।

13 Responses to “आओ वैब पर अपना घरौंदा बनाएं : 1”

  1. खूब वक्त की जरूरत को पकड़ा है। लोग बाग ढेर सी लिस्ट दे देते हैं, ये ये ये सब के सब डोमेन देते हैं।

    अब पाठक बेचारा एक-एक को जाकर परखे!

    सीधे से खुद ही देख भाल कर हिन्दी वालों को सीधे से बता दें कि भाया यो घणी चंगी सै। ईब तू इसी पर सूधे हाथ चल्ले चला जा।

  2. अगली कड़ियों का इन्तजार है, तब तक पैसे और इच्छा शक्ति इकट्ठे कर लें।
    धन्यवाद

  3. भई, हमे तो अच्छी लग रही है पोस्ट। दिक्कत ये है कि आप जैसे जानकारों का यह काम हमारे किसी काम नहीं आ पाता। क्यों कि तकनीकी निरक्षरता आगे नहीं बढ़ने देती। मगर फिर भी लगे हुए हैं। अगली का इंतजार है। शुक्रिया …..

  4. जीतू भाई, आपका प्रयास निः:संदेह सराहनीय है. बस मैं एक बात कहूँगा कि अभी भी न जाने कितने लोग इन्टरनेट का इ भी नहीं जानते हैं.

    मैं तो कहूँगा कि आप अपने लेख में ब्लॉग कैसे बनाएं – कैसे उसे सँवारे इसके बारे में बताएं. अगर कुछ भी लिखना है, या कुछ बेचना भी है तो आज ब्लॉग सही मध्यम है. वेबसाइट में बहुत ही तकनीकी ज्ञान की जरूरत है. वहीं आप ब्लॉग के जरिये वो सारे काम आसानी से कर सकते हैं.

    बस यूँ ही विचार आया, लिख दिया.. और हाँ आप अपने लेखों की विशेष शैली से कोई समजौता मत करें.. बस रसीली बातें रसीले अंदाज में बताते रहें.

  5. सार्थक लेख।

  6. अच्छी बात कही है.

    वैसे नीरज जी से कहना चाँहूगा कि ब्लॉग इत्यादि कैसे बनाएँ इसको लेकर तो आपको सैंकडो लेख मिल जाएँगे , थोडा खंगालिए तो सही.

    ब्लोग कैसे बनाएँ को लेकर शैलेष भारतवासीजी भी काफी मेहनत कर रहे हैं, उन्हे साधुवाद.

    बाकी रवि रतलामीजी, और देबु दादा का कार्य भी सराहनीय है.

    आपके द्वारा इस श्रृंखला मे लिखे जाने वाले आगे के लेख भविष्य मे काफी काम आएँगे

  7. बहुत काम की जानकारी। अगली कड़ी की प्रतीक्षा।

  8. चलिए पंकज बाबू आपकी बात से सहमत हो जाता हूँ जनहित को ध्यान में रखते हुए..

    तो दोस्तों, मेरा भी एक बार बहुत मन किया था वेबसाइट बनाने का 🙂

    http://toneeraj.googlepages.com/
    http://jeetu3k.googlepages.com/

    ये उपर्युक्त लिंक्स हैं उनके.. एक चिरकुट लिंक मेरा है, और एक मेरे दोस्त का…बस यूँ ही टाइम पास और टेस्ट करने के लिए.. मैंने गूगल पेजेस का उपयोग किया था.. आप भी ट्राई करें. फ्री हैं. और अपनी वेबसाइट बनाना भी आसान. गूगल के साथ उसकी विश्वसनीयता भी है ही…

    गुड लक ,

    नीरज

  9. http://sites.google.com/?pli=1 ये लीजिये गूगल की नई पेशकश.. बहुत ही जबरदस्त सुविधा दी है, चवन्नी खर्च किए बिना ही कोई भी साधारण आदमी अपनी वेबसाइट बना सकता है.. जीतू भाई.. अपनी अगली कड़ी में इसकी भी चर्चा जरूर करें..

  10. बहुत अच्छा लिखते हो मियां , लगे रहो……………
    गधा भी आपका लेख पढ़कर वेबसाइट बनाने लगेगा (अरे भैया !! आप मत लग जाना वेबसाइट बनाने )
    बहुत अच्छा

    बहुत बहुत साधुवाद !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

  11. बहुत अच्छा लिखते हो मियां , लगे रहो……………
    गधा भी आपका लेख पढ़कर वेबसाइट बनाने लगेगा (अरे भैया !! आप मत लग जाना वेबसाइट बनाने )
    बहुत अच्छा

    बहुत बहुत साधुवाद !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

    “”यो बड़ा तगड़ा काम करा से की एक बार कमेन्ट पे आंगली मारते बेरा ना के के बतावे से यो…………………..””

  12. भाई ब्लॉग भी बहुत भड़िया से ,

    रे इनने नु और बता दिए की इस ते पैएसा भी कमाया जावे से, इन पागलां ते मंनेए बतानी पड़ेगी……………..

  13. bahut..badhiya blog likha hai…sanrachnao pe jada dhyan de blog ka nam..HINDU BLLOG’omparwat”