स्लमडॉग को ऑस्कर, अच्छा क्यों?

कल ही पता चला कि स्लमडॉग को ऑस्कर पुरस्कार मिले है, वो भी एक दो नही पूरे पूरे आठ। हमको तो पूरी फिल्म देखने के बाद भी समझ मे नही आया कि इसमे ऑस्कर के लायक क्या था। यदि हिन्दुस्तान की गरीबी ही फिल्म की गुणवत्ता को मापने का पैमाना है तो ठीक है, वरना फिल्म औसत से भी नीचे दर्जे की फिल्म है।

रहमान साहब को ऑस्कर मिला, अच्छी बात है, हमे खुशी है, लेकिन क्या रहमान साहब अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकेंगे कि यही संगीत उनका सबसे अच्छा संगीत है। यदि नही तो उस फिल्म को नामांकित क्यों नही किया गया और इस फिल्म को पुरस्कार कैसे मिला?

कुछ भी कह लो, अंग्रेजो की मानसिकता नही बदली अभी तक। हिन्दुस्तान की गरीबी पर बनी फिल्म उनको आसानी से समझ मे आती है, पिछले सालों मे एक से बढकर एक नामांकित फिल्मे उनको समझ मे नही आती। खैर….आजकल तो सभी पुरस्कार ऐसे ही दिए जाते है। अपना क्या…

आपका क्या कहना है इस पर?

12 Responses to “स्लमडॉग को ऑस्कर, अच्छा क्यों?”

  1. बिल्कुल सही। मैंने भी ऐसा ही कुछ कहा है, यहाँ पर

    रमण कौल’s last blog post..चक्कर चार सौ बीस का

  2. What I get is that to a number of westerners (who obviously don’t know jack about India), India is still a land of tribals & cavemen, a land of illiterate & snake charmers, etc!! Roaming around internet, I’ve come across a few in some forums & other websites who do think that way!

    amit’s last blog post..कॉमिक्स से उपन्यास तक…..

  3. अगर कोई बाहर का आदमी औकात दिखा दे तो पचता नही. अगर कोई भारतीय इसको बनाता तो सब कुद्ते.

    फिल्म ठीक है.
    रहमान इससे बढीया संगीत दे सकते थे. (लेकिन english movie में गानो …..)
    बुरा ना मानो होली है.

    कासिम’s last blog post..नया साल मुबारक हो

  4. नीरज दीवान on फरवरी 27th, 2009 at 5:58 pm

    बढ़िया फ़िल्म है. घोर मंदी के इस दौर में अमेरिका मे आशावाद की झलक दिखलाती फ़िल्म तो चलनी ही थी.
    डैनी बोयेल अंग्रेज़ हैं तो ज़ाहिर है कि पीआर अच्छा होता है.
    एक दौर था जब कोक-पेप्सी अपने यहां आई थी..साथ में कई बड़ी कंपनियां भी आई थीं.. तब उन्हें विज्ञापन के लिए सुंदर कन्याएं चाहिए थीं. उन्होंने चुनी और बना दिया उन्हें विश्व सुंदरी. स्वप्न सुंदर वगैरह.. कन्याओं को प्रमाणपत्र मिला और कंपनियों को सोनपत्र.
    दो-एक साल से टेवन्टीथ सेंचुरी फ़ॉक्स, वार्नर ब्रदर्स, कोलंबिया, सोनी पिक्चर्स वगैरह ने यहां पैसा लगाना शुरू कर दिया है. ऑस्कर देने से लोग खींचे आएँगे. वो दिन दूर नहीं जब फिरंगी डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हमें मसालेदार फ़िल्में बनाकर देंगे. धंधा है भई.

  5. हम तो दिखबै न किये ई सिनेमा!

    अनूप शुक्ल’s last blog post..हमका अईसा वईसा न समझो…

  6. पुर्व को देखो तो पश्चिम के चशमे से.. पता नहीं आस्कर क्यों पैमाना है.. भारतीय फिल्मों के लिये..

    Ranjan’s last blog post..अब मैं इससे डरता नहीं हूँ!

  7. हमने देखने की ज़रूरत ही नहीं समझी 🙂

  8. होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली – हैप्पी होली !!!

    होली की शुभकामनाओं सहित!!!

    प्राइमरी का मास्टर
    फतेहपुर

    प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर’s last blog post..होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली – हैप्पी होली !!!

  9. फिल्म जैसी भी हो किन्तु यदि ऑस्कर देने का पैमाना ही यही है तो हम भारतीय किसी तरह इसको स्वीकार कर लेगें . किन्तु कोई फिल्मनिर्माता विदेशों में जो १३ वर्ष का लड़का बाप बन जाता है ,इस थीम पर फिल्म बना कर ऑस्कर क्यों नहीं प्राप्त करता ? क्या अपने घर की सच्चाई दिखाने में शर्म आती है ,जो भारत की गरीबी दिखाकर ऑस्कर प्राप्त कर रहें हैं ?

  10. ji main bhi wahi soch raha hoon ki is film main aisa kya tha?

    vivadon ki baat nahi kar rah hoon balki stur or direction ki baat kar raha hoon…

    …isse acchi (balki kahi acchi ) to traffic signal thi.
    Sir, yakeen maniye aise films ya isse acchi mumbai (bollywood nahi kahoonga) main har doosre shukrvaar release hoti hai.

    agar 1 se 10 ke scale main kaha jaiye to main ise just passing marks doonga…

    4/10

    (wo bhi with grace)

  11. फिल्म मे क्या है मुझे भी समज नहीं आत्ता लेकिन क्या कहे वापर मे सब कुछ जायज है

  12. Suru se hee oscar un filmon ko mila hai jinho ne marketing pe kaafi kharch kiya hai.Agar aapko aachi cinema dekhni hain to european cinema dekhen.Hollywood aur bollywood masala movies banate hain jaki european movies dil ko chooti hain.