सत्ता समीकरण : पाला बदल खिलाड़ी

सभी लोगों ने चैन की सांस ली है कि चुनावों का शोर कुछ थम गया है। १३ मई को आखिरी मतदान होने के साथ ही, सबकुछ सामान्य सा दिखने लगा। हमे याद आ रहा है कि कानपुर मे एक प्रत्याशी हुआ करते थे (थे नही है भाई) भगवती प्रसाद दीक्षित। लोग इनको घोड़ेवाला दीक्षित कहा करते थे, ये घोड़े पर घूमा करते थे। चुनाव चाहे मोहल्ले का हो, या फिर राष्ट्रपति का, हर जगह नामांकन करते थे। जाहिर है, हर जगह हारते थे, लेकिन इनकी सभाओं मे भीड़ सबसे ज्यादा हुआ करती थी। काफी मजाकिया किस्म के भाषण हुआ करते थे इनके। कानपुर मे ऐसा कोई नही जिसने घोड़े वाले दीक्षित के बारे मे ना सुना हो।

इनके जोश को सलाम है। लोकतंत्र की बहुत अच्छी समझ है इनको। सभी से बड़े प्यार से मिला करते थे। हमसे कुछ विशेष स्नेह था। हमने एक दिन पूछा, अगर चुनाव जीतोगे तो संसद मे घोड़ा लेकर जाओगे। तपाक से बोले,

“जरुर। अगर सवा पाँच सौ गधे संसद मे जा सकते है तो मेरा एक घोड़ा क्यों नही”। – घोड़ेवाला दीक्षित

उनकी बात मे वाकई दम था। एक दिन मूड मे थे, बोले, जिस दिन मै चुनाव जीतूंगा उस दिन सवा 500 गधों साथ मै घोड़े पर, पूरे कानपुर शहर में जलूस निकालूंगा। अब ये बात और है कि उनकी ये इच्छा कभी पूरी ना हो सकी।

चुनाव की सरगर्मियों के तहत विभिन्न पार्टियों ने एक दूसरे पर जो गोबर-कीचड़ मला था, अब सभी एक दूसरे को रुमाल बाँटते दिखेंगे। पिछली कही सुनी को भूल जाने के लिए कहेंगे। कई कई तो घड़ियाली आंसू भी बहाएंगे, कुछ भटक जाने का नाटक करते हुए, घरवापसी की गुहार करेंगे। काहे? अरे यार! किसी को स्पष्ट बहुमत जो नही मिलने वाला।

कांग्रेस अपने बूते पर सरकार बना नही सकती। उनका यूपीए गठबंधन तो चुनाव पूर्व ही छिन्न भिन्न हो गया था। एनडीए भी कोई ज्यादा सुखी नही दिख रही, उनको भी जहाँ जहाँ से उम्मीद थी, वहाँ भी बर्तन उलटे हुए ही दिख रहे है। तीसरा मोर्चा तो कब बना, कब बिगड़ा पता ही नही चला, हालत ये है कि तीसरे मोर्चे की पार्टियां, अब अकेले अकेले डिसीजन लेने की बात करने लगी। रही बात स्वयंभू चौथे मोर्चे की, (ये कौन है? यादव/पासवान मोर्चा यार!) इनकी हालत सबसे पतली है। लालू तो ब्राहमणो चुनाव वाले दिन ही बोले “वोटवा तो नही ना दिए हमको”। तो चौथा मोर्चा तो अस्तित्व मे आने से पहले ही सिमट गया। अब सबकी नजर लगी है, पाला बदल खिलाडियों पर, आइए इन पर कुछ नजर डालते है।

टीआरएस नेता
ये सबसे बड़े पाला बदल है। इनको यही नही पता रहता कि ये सुबह किस पार्टी मे होंगे शाम को किस पार्टी मे। पहले एनडीए मे थे, फिर कांग्रेस मे रहे, फिर तीसरा मोर्चा इनको उठा ले गया। अब फिर वापस एनडीए मे दिख रहे है। इनको आप एक ही समय मे तीन तीन लोगों (माया बहिन जी, सोनिया मैडम और आडवानी) को तारीफ़ करते देखेंगे। इनकी नजर मे तीनो प्रधानमंत्री बन सकते है। किसी को भी पता नही चलेगा कि कब ये एनडीए के हाथ से फिसल कर विपक्षी की झोली मे जाकर गिरते है।

रामबिलास पासवान
पासवान का भी यही हाल है। इनका मूलमंत्र है, जिधर सत्ता, उधर के हम। ये सत्ता से दूर नही रह सकते। चाहे लालू के साथ चौथा मोर्चा बनाना हो या फिर तीसरे मोर्चे वालों की रैली मे जाना हो, इनको परहेज नही। चुनाव के नतीजे आने के पहले, इनको अंदेशा हो गया है कि यूपीए मे घर वापसी मे ही भलाई है। आजकल मे ही आप अखबारों/टीवी पर, इनके घरवापसी के बयान देखेंगे। अब देखते है सत्ता के खेल मे ये किधर की गोटी फिट करते है।

अजीत सिंह
अजीत सिंह, राजनीति विरासत मे पाए रहे, चौधरी चरण सिंह जी ने ताउम्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति मे गुजार दी। सत्ता के गलियार मे वे हमेशा कांग्रेस विरोधी ही कहलाए। लेकिन अजीत सिंह, पिताजी का नाम पूरा मिट्टी मे मिला दिए। ये हर उस डाल पर दिखे, जहाँ सत्ता की हरियाली थी। चाहे एनडीए हो, मुलायम हो, या कांग्रेस, सबको समान भाव से प्यार किया, सत्ता साझी की। लेकिन जहाँ मौका मिला, खिसक लिए। इन्होने चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा है, लेकिन बीजेपी वाले अब तक निश्चित नही कि सोलह तारीख के बाद मे भी अजीत बाबू बीजेपी खेमे मे दिखेंगे या नदारद हो जाएंगे।

बीजू जनता दल के नवीन पटनायक
इनकी स्थिति भी अजीब है। उड़ीसा मे सत्ता मे बीजेपी के साथ है, लेकिन लोकसभा चुनाव तीसरे मोर्चे के साथ मिलकर लड़ा। पिताजी बीजू पटनायक ने पूरी उम्र कांग्रेस विरोधी राजनीति मे गुजार दी, लेकिन नवीन पटनायक को किसी से परहेज नही। इनको उड़ीसा मे राजनीति करनी है तो सरकार तो बचानी ही होगी। लेकिन केंद्र से मांगे/योजनाएं/धन मंजूर भी करवानी होंगी, इसी उधेड़बुन मे लगे हुए है। कांग्रेस को उड़ीसा मे आत्महत्या (यूपी की तरह) करनी है तो बीजू जनता दल के साथ जाएगी। नवीन पटनायक भी सोच रहे है कि अगर ज्यादा सीटे आयी तो मोलभाव करने मे आसानी होगी, नही तो एनडीए में घरवापसी तो तय है।

माया बहिन जी
माया के खेल निराले है। सत्ता के सारे समीकरण इनके आस-पास ही घूम रहे है। लेकिन ये सब तभी है जब बहिन जी के पास ’खाने-कमाने’ लायक सीटे आएं। इन्होने चुनाव तो महाराष्ट्र मे भी लड़ा है, लेकिन जीत सिर्फ़ उत्तर प्रदेश मे ही मिलेगी। अब कितनी ये तो सोलह को खुलासा हो जाएगा। इतना तो तय है कि मुलायम सिंह को अच्छी टक्कर देंगी। ये भी प्रधानमंत्री बनने की फिराक मे है, लेकिन कोई इनको बनने नही देगा। नही प्रधानमंत्री पद के साथ ये रक्षा,वित्त,गृह और रेल विभाग भी खुद सम्भालेंगी और कौनो कुछ उखाड़ नही पाएगा। वैसे माना जाता है कि गठबंधन की राजनीति मे ये कच्ची है, ये ढेर सारे दलों को साथ लेकर नही चल पाएंगी। लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा ये कहना मुश्किल है, सभी को सोलह मई का इंतजार है।

मुलायम सिंह यादव
अब बहिन माया की बात करें और मुलायम को छोड़ दे ऐसा कैसे हो सकते है। बहिन जी इनको माननीय मुलायम कहकर पुकारती है। शायद माननीय कहने के बाद किसी को भी गालियां देना आसान होता है। है ना बहिन जी? लेकिन ये बेचारे अपने घर के झगड़े निबटाएं, तब तो बाहर की सोचें। आजम खां ने नाक मे दम कर रखा है, ऊपर से अमर सिंह लगातार हॉटलाइन पर बने हुए है,आजम खां की करतूतों की रनिंग कमेन्ट्री करते हुए। दोनो तरफ़ से बयानबाजी जारी है। सुना तो ये है कि जया प्रदा (झगड़े की जड़ यही मोहतरमा की रामपुर सीट है) अगर चुनाव हार जाती है तो आत्महत्या कर लेंगी और अमर सिंह राजनीति से सन्यास ले लेंगे। वैसे मेरे विचार मे उल्टा होता तो ज्यादा अच्छा होता। खैर नेताओं के वादे, किसी ने कभी निभाए है क्या? आप टेंशन मत लो। मुलायम सिंह कभी तीसरे तो कभी चौथे मोर्चे मे दिखते है, इनको ना तो कांग्रेस से हमदर्दी है ना बीजेपी से प्यार। इनको तो बस ये देखना है कि मायावती किस खेमे मे है, उसके विरोधी खेमे मे रहेंगे, माननीय मुलायम।

चंद्रबाबू नायडू
ये भी सत्ता से दूर नही रहना चाहते, क्योंकि आंध्रा मे इनके विरोधी कांग्रेस वाले, इनकी नाक मे दम किए है। ये भी केंद्र मे आकर, नकेल का इंतजाम करना चाहते है। कांग्रेस के साथ तो ये जाने से रहे। तीसरा मोर्चा ध्वस्त होने के बाद एनडीए ही आखिरी सहारा है इनके लिए। लेकिन इनकी पूछ तभी बढेगी जब ये कुछ अच्छी संख्या मे सीटें जीते। नही तो इनका हाल और बुरा होना है।

जया ललिता
तमिलनाडू की ये सबसे चालाक, राजनीति की माहिर खिलाड़ी अभी अपने पत्ते नही खोल रही। तमिलनाडू मे वैसे भी सत्ताधारी पार्टी कभी भी अच्छा प्रदर्शन नही करती, इसलिए उम्मीद है इनकी पार्टी एआईएडीएमके अच्छा प्रदर्शन करेंगी। इनके साथ परेशानी ये है कि समर्थन के साथ ये ढेर सारी शर्ते भी रखेंगी। जिसमे विरोधी डीएमके को परेशान करना प्रमुख रहेगा। इनको भी प्रधानमंत्री बनने की चाह है, इसलिए सोलह के बाद ही कुछ बोलेंगी। तब तक मैडम और उनके सहयोगियों ने चुप्पी साध रखी है। वैसे इनकी मजबूरी है कि ये डीएमके विरोधी खेमे मे ही रहें।

ममता बनर्जी
इस बार पश्चिम बंगाल मे लेफ़्ट को काफी नुकसान होना है। यदि लेफ़्ट वहाँ पर पिछड़ता है तो ममता का ही फायदा होना है। ममता के पास अच्छी संख्या मे सीटे आने के बाद इनकी पूछ बढ जाएगी। पहले ये एनडीए मे थी, इस बार चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा। तुनकमिजाज तो ये है ही, कभी भी कंही उखड़ जाती है, इसलिए लोग इनको उकसाने मे लगे हुए है। वैसे भी कांग्रेस यदि लेफ़्ट के साथ मिलकर सरकार बनाने की सोचती है तो ममता एनडीए की तरफ़ रुख करने मे देर नही करेंगी।

देवगौड़ा/कुमारस्वामी
ये भी बहुत महान प्राणी है, पिताजी कांग्रेस पार्टी को खरीखोटी सुनाते है, लेकिन बेटा फटाफट जाकर कांग्रेस मे गोटियां फिट कर आता है। किसी को (शायद इनको भी) नही पता कि ये किधर बैठेंगे। ये सभी के साथ बैठ चुके है, अब बस सोलह का इंतजार है।

नितीश कुमार
इन चुनाव मे सबकी नजर इन पर रहेगी। अभी तो ये एनडीए के साथ दिखते है, लेकिन कब (सत्ता समीकरण देखते हुए) पाला बदल ले, पता नही चलेगा। बेचारे जॉर्ज फर्नांडिस तो कब के किनारे लग चुके है। अब नितीश बाबू की ही चलनी है। बिहार मे इस बार नितीश सबसे ज्यादा सीटे जीतने जा रहे है। सभी लोग इनका गुणगान करना शुरु भी कर चुके है।

वामपंथी
ये बेचारे इस चुनाव मे पूरी तरह से घिर गए है। वैसे कांग्रेस की सरकार गिराकर, लोगों की नजरों मे दोषी तो ये पहले से ही बन गए थे। पश्चिम बंगाल मे इनकी सीटे कम होना तय है। वामपंथी बड़े शान से तीसरा मोर्चा बनाए थे| लम्बे लम्बे पोस्टर लगाए थे, जिसमे हर क्षेत्रीय नेता का अलग अलग चित्र था। अब उस पोस्टर मे से एक एक करके नेता खिसकते जा रहे है। हालत ये है कि तीसरे मोर्चे में सभी को साथ रखना टेढी खीर साबित हो रही है। खीर तो बाद मे बनेगी, पहले लकड़ियां तो इकट्ठा कर लें। कांग्रेस विरोधी रुख हमेशा रहा, अभी कुछ दिनो पहले तक लगातार कहासुनी भी होती रही। दो दिनो से रुख मे थोड़ी नर्मी दिखाई दे रही है। लेकिन सोलह तक कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन एक बात तो तय है, वामपंथियों के रुतबे मे तो कमी जरुर आएगी।

इसके अलावा भी कई और छोटी छोटी पार्टियां है, जिनका रुख अभी स्पष्ट होना है। लेकिन इतना तय है, पूरा खेल ऊपर वाली पार्टियां ही तय करेंगी। कांग्रेस और बीजेपी सबसे ज्यादा सीटे लेकर भी सिर्फ़ तमाशीय बनेंगी, यही इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा मजाक है। एक और संभावना है, मुश्किल जरुर है, लेकिन असंभव नही, आइए इसका भी आकलन करते चलें।

कांग्रेस बीजेपी गठबंधन
वैसे तो दोनो पार्टीयां इसके लिए तैयार नही होंगी। लेकिन ऐसा सम्भव है। दोनो पार्टियां बड़े बड़े गठबंधन चला चुकी है, सत्ता आने पर, दोनो पार्टियों के नेताओं की नींद, क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं की ब्लैकमेलिंग के कारण हराम हो चुकी है। ये लोग इनसे परेशान हो चुके है। हो सकता है एक सरकार बनाए और दूसरी अनुपस्थित रहकर, सरकार बचाए। या फिर हो सकता है दोनो पार्टियां अपनी अपनी विचारधारा को दरकिनार करके, एक राष्ट्रीय सरकार का फार्मूला बना ले, मै फिर कहता हूँ, ये मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन कतई नही। देखते है, सोलह को क्या होता है, तब तक इंतजार करिए और मजे लूटिए। आपका क्या सोचना है इस बारे मे बताना मत भूलिएगा। आते रहिए पढते रहिए, आपका पसंदीदा ब्लॉग मेरा पन्ना।

11 Responses to “सत्ता समीकरण : पाला बदल खिलाड़ी”

  1. waha ji wah sir kya baat hae. bahut hi accha likha hae.

    irsahdsir’s last blog post..हिन्दी ब्लॉगिंग में अब तक के सबसे बड़े 25 सच

  2. राजनीति के इन बडे खिलाडियों से परिचय कराने के लिए शुक्रिया

    आपने सभी का सही परिचय कराया

  3. आपने तो होमवर्क करके दे दिया पार्टीयों को… पाला बदल खिलाड़ी ्कि readymade list..:)

    रंजन’s last blog post..चित्र देखों कहानी बुनों

  4. कॉग्रेस-भाजप की सरकार दूर की कौड़ी सही मगर मैं शर्त लगा सकता हूँ, देश की जनता स्वागत करेगी.

    बाकी सरकार इन दो पार्टीयों के आसपास ही बननी है. देखें किसे ज्यादा सीट मिलती है.

    संजय बेंगाणी’s last blog post..नायक भी किसी की नकल कर सकते है

  5. यह लास्ट वाला तो हमारा पसंदीदा है!

    ज्ञानदत्त पाण्डेय’s last blog post..हिन्दी तो मती सिखाओ जी!

  6. बहुत अच्‍छा लिखा आपने .. वैसे कांग्रेस बीजेपी गठबंधन ही हमें छुटभैए नेताओं और उनके खरीद फरोख्‍त से छुटकारा दिला सकता है।

    संगीता पुरी’s last blog post..क्‍या 17 – 18 मई के बृहस्‍पति चंद्र युति का विशेष प्रभाव आपपर भी पडेगा ??????

  7. कांग्रेस और भाजपा की सरकार नहीं बनने वाली, इनमे से एक बनाएगी यह तो तय है लेकिन दोनो साथ-२ कहीं खड़े नहीं दिखाई देते। अब यह तो है कि ये दोनो साथ आ गए तो छुट-पुट नेताओं और उनकी ब्लैकमेलिंग से दोनों को ही राहत मिलेगी, लेकिन ऐसा होना नहीं है, कम से कम आजकल के माहौल में, 20-25 साल बाद हो तो कह नहीं सकते! 😉

    बाकी हम का कहें, हमे तो समझ अधिक है नहीं, देखते हैं कल शनिवार को क्या होता है!

    amit’s last blog post..नया समझ लूट लये…..

  8. बहुत ही रोचक चर्चा बन पड़ी है. राजनीति में रूचि न रखने वाला भी पढ़े तो बोर नहीं होगा. पर एक बात तो आपकी इस चर्चा से एकदम साफ़ है, कि अगर आज के राजनितिक हालत को व्यंग कि नजर से देखें तो ठीक वरना अगर कोई सीरियस होके सोचेगा तो ये सब सोच के, जान के बहुत ही दुखी होगा

    मैं जब छोटा था, तो मैंने उमा भारती को राम मंदिर के लिए जब लड़ते देखा था, तो बड़ा प्रभाव पड़ता था, कि देखो.. निश्छल भाव है. पर वाह! रे मेरी कच्ची उम्र की नादानी.. — आज देखो.. साता के लिए !!!

    फिर मैंने अपने शहर में कल्याण सिंह का एक भाषण सुना था…. वो मुख्यमंत्री थे, फिर मैं छोटा था पर राम मंदिर आन्दोलन के समाया की उनकी भूमिका को नहीं भूल सकता – उसी तरह से जिस तरह मुलायम ने राम मंदिर आन्दोलन के वक़्त गोली चलवाई थी …. तब मैं सोचा करता था (मैं उल्लू था ) – कि चाहे जो भी हो जाए मुलायम और कल्याण तो कभी एक साथ नहीं आयेंगे.. पर हाय रे मेरी नादानी!!!

    कांग्रेस और बीजेपी गठबंधन – बुढौती के पहले एक बार देख लूं… तो निश्चिंत ही जाऊँगा… चित्त शांत हो जाएगा… राजनीति में थोडा बहुत है रूचि , वो भी ख़तम हो जाएगा… आराम से सोऊंगा… कोई इतनी अटकलें नहीं करेगा..

    Neeraj Singh’s last blog post..धैर्य

  9. राजनीति में कुछ भी सम्भव है । सही विश्लेषण है ।

  10. अब आगे की कहानी लिखो! 🙂

    अनूप शुक्ल’s last blog post..हंसती, खिलखिलाती, बतियाती हुई लड़कियां

  11. Muje bhi yad hai
    “HAY HAY NA KICHKICH’
    GHORE VALA DIXIT”