रीठेल : मोहल्ले का प्रेम प्रसंग

अब जब रीठेल का मौसम चल ही रहा है तो हमने भी बहती गंगा मे हाथ धोना सही समझा। लीजिए पेश है, चार साल पूर्व (नवम्बर 2004) लिखा हुआ मेरे एक लेख का रीठेल। अब आप इसे मौके की नजाकत कहिए या समय की मांग, बढते ब्लॉगरों और घटते ब्लॉगिंग समय के कारण, अब रीठेल जरुरी हो गया है। तो जनाब आज हम आपको रुबरु कराने जा रहे है, हम अपने मोहल्ले के एक प्रेम प्रसंग से। ऐसे प्रेम प्रसंग हर मोहल्ले मे होते है, लेकिन हर मोहल्ले मे हमारे जैसे शैतान बच्चे नही हुआ करते थे। आप भी देखिए और पढिए हमारे बचपन की शैतानियों से भरे इस मोहल्ले के प्रेम प्रसंग को। वैसे तो इस प्रेम प्रसंग के सभी पात्र वास्तविक है, अलबत्ता हमने उनके नाम बदल दिए है, ताकि हमे जूते ना पड़े, फिर भी आप इसे मस्ती के लिए पढिए, इवेस्टीगेशन के लिए नही। आपकी टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

अब जब मित्रो ने इतना इसरार किया है तो हमने सोचा कि चलो वर्मा जी की फैमिली की दास्तान लिख दी जाय. अब यहाँ पर ऐसे कई अनकहे किस्से बयां होंगे और ऐसे कई खुलासे होंगे जिससे वर्मा जी नाराज हो सकते है, अब वर्माजी नाराज होते है तो होते रहें, लेकिन हम अपने पाठको को थोड़े ही नाराज कर सकते है.

हाँ तो जनाब, हमारे मोहल्ले मे रहता था वर्माजी का परिवार, परिवार मे कुल जमा पाँच लोग थे, वर्माजी, वर्माइन,बड़की वर्माजी की बड़ी लड़की, छुटकी वर्मा जी की छोटी बिटिया और वर्माजी का साला…….. नाम मेरे को याद नही.साले साहब(अभी रिफ्ररेन्स के लिये इनका नाम हम बउवा रख देते है,आगे कभी सही नाम पता चलेगा तो करैक्ट कर लेंगे), पूरे मोहल्ले मे साले साहब के नाम से ही मशहूर थे,क्यो? अब मेरे से क्यों पूछते हो, मोहल्ले के रामआधार हलवाई से पूछो, या फिर नत्थू पनवाड़ी से, या फिर किराने वाले गुप्ताजी से जहाँ से साले साहब माफ कीजियेगा बउवा, सामान तो ले आते थे, पैसे देने के नाम पर वर्मा जी का नाम टिकाए आते थे. बउवा की हरकतों से वर्माजी तो बहुत परेशान थे मगर रिश्ता ऐसा था कि कुछ कहते नही बनता था.

साले साहब के मशहूर होने के और भी कई कारण थे….एक घटना हुई की पूरा का पूरा मोहल्ला साले साहब को नही भूल पाया……..

बउवा शहर आने से पहले तक गांव मे ही टंगे हुए थे, वहाँ पर भी वो कोई तीर नही मार रहे थे. बाकायदा गाँव की लड़कियो को छेड़ा करते थे, कई बार पिट चुके थे, गाँव वालो ने अपनी बहू बेटियों को सख्त हिदायत दे रखी थी, कि इस बन्दे के आसपास भी ना फटके……अगर ये बंदा उनके रास्ते मे आए, तो रास्ता ही बदल दें…….और तो और गांव वालो ने बउवा की हरकतों के कारण इनके परिवार का हुक्का पानी बन्द कर रखा था, तो परिवार वालो ने सोचा कि अब इन्हे कहाँ ठिकाने लगाया जाय, सो खूब सोच विचार कर वर्माइन को चिट्ठी लिखी गयी, वर्माइन जो जैसा कि अक्सर होता है, अपने गांव मे पहले ही ढेर सारी ढींगे हाँक चुकी थी, कि शहर मे हमारा ये है, वो है वगैरहा वगैरहा. जब उनको चिटठी मिली तो एकदम सकपका गयी, वो अपने भाई की हरकते जानती थी, और जानती थी, अगर बउवा शहर मे आ गया तो अखबार मे नाम छपना तो तय है.

लेकिन अब करें क्या वर्मा जी को कैसे पटाया जाय. आखिर उनको आइडिया मिल ही गया.शाम भयी, वर्मा साहब किसी तरह से अपने खटारा लम्ब्रेटा को खींचते खांचते या कहो धकियाते हुए घर पहुँचे, वर्माइन ने मिल कर स्कूटर चबूतरे पर चढवायी, चाय का पानी रखा, और वर्माजी को मोहल्ले की अधपकी खबरें सुनाना शुरू कर दी, कुछ सच्ची कुछ मसाला मारकर………जैसे इसका चक्कर उससे, इसका आना जाना उसके घर वगैरहा वगैरहा.कुल मिलाकर सार ये था कि जमाना खराब है, लड़किया जवान हो रही है, आप दिन भर आफिस मे रहते हो , मै अपने काम काज मे, लड़कियों की देखभाल करने वाला कोई नही वगैरहा वगैरहा. वर्माजी समझ तो गये ही थे, दाल मे कुछ काला जरूर है, फिर भी अनजान बने रहने का ढोंग करते रहे, वर्माइन ने बात आगे बढायी और क्यो ना मै अपने भाई बउवा को शहर बुलवा लें.

बउवा का नाम सुनते ही वर्मासाहब की त्योरियां चढ गयी, दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया, बोले यह नामुमकिन है, वो नालायक….वर्माजी बउवा को इसी नाम से पुकारते थे.. यहाँ नही रह सकता…….गांव मे क्या कम बदनाम है जो यहाँ बुलाकर अपनी भद पिटवायी जाय… लेकिन वर्माइन थी कि अड़ गयी तो अड़ गयी…….. .अब औरतजात के आगे हम अबला मर्दो की कहाँ चलती है, दो चार दिन मे ही वर्माजी को हथियार ड़ाल देने पड़ गये. सो बऊवा शहर पधारे.अब आप कहेंगे कि इतनी सारी कथा करने की क्या जरूरत थी, ये बात तो दो लाइनो मे कही जा सकती थी. नही समझे ना? अरे भइया अगर ये बात अगर हमे दो लाइनो मे कह देते तो फिर अगला पूरा पैराग्राफ बऊवा के चरित्र चित्रण मे ना झिलाते? उस से तो आप बच गये ना. अब बचने बचाने की छोड़ो, आगे पढो

अब जब बउवा कानपुर पधारे तो सबसे पहले उनका सामना हमीं से ही हुआ, हुआ यूँ कि हमे मोहल्ले के सारे लड़के सड़क पर खेल रहे थे, हमने देखा गांव के एक जनाब जो कि रात के समय भी काला चश्मा पहने, बालों मे चमेली का तेल, कोई घटिया सा इत्र लगाये, रंग बिरंगी शर्ट, ऊपर से अंगोछा लपेटे, बिना मैचिंग का बैलबाटम,हाथ मे टिन की अटैची लिये, हमारे ग्रुप से वर्मा जी पता पूछने लगे, वैसे वर्माजी के रिलेशन मोहल्ले मे सबसे अच्छे थे लेकिन वो वानर सेना वाला किस्सा होने के बाद, हम मोहल्ले के लड़को मे उनकी रेप्यूटेशन कोई खास अच्छी नही थी, हमने सोचा चलो, वर्मा ना सही,उसका साला सही, बैठे बिठाये मौका मिल गया,कुछ तो हिसाब किताब चुकता किया जाय, हमने इन जनाब से पूरी कहानी समझी,वर्मा परिवार से बऊवा की रिलेशनशिप समझी,शहर आने का अभिप्राय समझा और फिर तुरत फुरत बनी योजना अनुसार इनको मोहल्ले के कल्लू पहलवान के घर का पता बता दिया……….कल्लू पहलवान की भी कुछ अजीब दास्तां है.

कल्लू की पहली पत्नी स्वर्ग सिधार गयी थी, तो कल्लू ने दूसरी शादी की, अपने से आधी से भी कम उम्र की लड़की से, अच्छे घर की लड़की तो मिली नही, पता नही कहाँ से उठा लाया था……….लेकिन आइटम सालिड था….लैटेस्ट माडल था……लेकिन शादी बेमेल थी…….सुना था लड़की ने शादी घरवालो के दबाव मे आकर की है. लड़की,लड़की को कल्लू कतई पसन्द नही था,कल्लू के सामने तो उसकी बेटी जैसी दिखती थी……..लड़की चुलबुली थी, मन नटखट और दिल शरारती….ऊपर से जवान खून……लड़की का सारा टाइम खिड़की पर ही बीतता… घन्टो घन्टो वहीं खड़ी रहती, और हर आने जाने वालो को हसरत भरी निगाहो से देखती,अब हम लोग क्यो कहे कि चरित्रहीन थी कि नही…….. लेकिन मार पड़े इन मोहल्लेवाले को जो कहते थे कि लड़की का चालचलन कुछ ठीक नही था……हम तो बस आप लोगो को स्टोरी सुना रहे है, किसी का चरित्रहनन थोड़े ही कर रहे है………

खैर जनाब लोगो को तो जैसे मनोरंजन का साधन मिल गया, हमारे मोहल्ले मे दूसरे मोहल्लो के लोगो की आवाजाही बढ गयी, बात कल्लू तक पहुँची,खूब मार कुटाई, हुई, रोना धोना हुआ, आखिरकार साल्यूशन के रूप मे कल्लू ने खिड़की चुनवा दी.

अब वो इश्क ही क्या जो दीवारो मे चुनवाया जा सकें, अब जब रोक लगी तो बात हद से पार होने लगी, कुछ मनचले,जिनकी सैटिंग खिड़की बन्द होने से पहले ही हो चुकी थी………कल्लू की बीबी का दीदार पाने के लिये, हिम्मत करके कल्लू के घर तक मे घुसे……. लोगो मे रोजाना चर्चा रहती थी कि, आज कौन कल्लू के घर कौन घुसा, और कितनी देर रहा.

अब मे यहाँ कल्लू पुराण तो लिखने बैठा नही हूँ, सो कल्लू वाला किस्सा जल्दी समेटते है, तो जनाब एक बार कल्लू ने एक बन्दे को अपने घर मे रंगे हाथो (….मुझे आज तक इस मुहावरे का सही अर्थ नही समझ मे आया… ये जरुरी काम काज के बीच मे रंगाई पुताई कहाँ से आ गयी) पकड़ लिया और फिर क्या था, वो बन्दा,कल्लू और उसका लट्ठ,कल्लू ने अपने तेल पिलाये लट्ठ को दे दना दे दना दन इस्तेमाल किया… तब से कल्लू बड़ा सावधान रहने लगा, और अपने घर की पूरी तरह से रखवाली रखता है.अपने घर मे घुसने वाले बन्दे को बख्शता नही है.शाम का वक्त था…कल्लू कुछ सामान लेने गुप्ता जी की दुकान पर गया हुआ था, तभी हमने बउवा को तुरत फुरत बनी योजनानुसार कल्लू के घर का पता बताया था.

अब बउवा बेचारा,गाँव का भोला भाला जवान, नासमझ(?#*%), वर्मा के दुश्मनो की साजिश मे फंस गया….. उसे क्या पता कि मुसीबत उसका इन्तजार कर रही है, वो तो बेचारा अपनी बहन का घर सोच कर अन्दर दाखिल हुआ, अटैची नीचे जमीन पर रखी, उसको खोला, बहन के लिये लायी साड़ी निकाली, शायद मन मे बहन को सरप्राइज देने की सोची होगी…….और देसी इत्र का फाहा अपने कानो के पीछे लगाया और काफी सारा अपने कपड़ो पर उड़ेला,ताकि पसीने की बदबू किसी को ना आये और दरवाजा खटखटा दिया….सामने थी कल्लू पहलवान की बीबी…दोनो की नजरे मिली, दोनो ने एक दूसरे को देखा…..लव एट फर्स्ट साइट, बउवा समझा कि जीजी ने कौनो किरायेदार रखा है,सो अन्दर दाखिल हो गया… कल्लू की बीबी पर तो इत्र ने पहले से ही जादू कर रखा था…ऊपर से साड़ी हाथ मे लिये बांका गबरू जवान , सोची खुद चलकर आया है….चलो ये ही ठीक है…..जब तक कल्लू नही आता इसी को समझा जाय……..वैसे भी कल्लू के जल्दी आने की उम्मीद नही थी………. इधर वानर सेना ने गुप्ताजी की दुकान पर जहाँ कल्लू खड़ा था, उड़ती उड़ती खबर पहुचा दी कि कल्लू के घर आधे घन्टे पहले कोई घुसा है.

बस फिर क्या था…आगे आगे आगबबूला कल्लू, पीछे पीछे पूरी वानर सेना……रास्ते भर हम लोग कल्लू को अन्दर घुसने वाले व्यक्ति के कद काठी और वेषभूषा के बारे मे पूरी तरह से बता दिये…………………….. अब कल्लू अपने घर के दरवाजे पहुँच गया था… हम लोग भी किसी विस्फोटक घटना का इन्तजार कर रहे थे……….अन्दर का हाल भी सुन लीजिये……अब तक दोनो ही समझ चुके थे कि रांग नम्बर डायल हो चुका है, लेकिन दोनो ही अपनी अपनी आदत से मजबूर थे…. चोर चोरी से जाय हेराफेरी से ना जाय…..बउवा सोचे कि गांव की तरह शहर मे भी लाटरी लग गयी उसकी और कल्लू की बीबी भी सोची दिखने मे गंवार है तो क्या हुआ…..कोई जरूरी थोड़ी है कि हर चीज मे गंवार हो……….. अभी कुछ होने ही वाला था कि बाहर खड़े कल्लू ने दरवाजा भड़भड़ाया……भड़भड़ाने की आवाज से ही कल्लू की बीबी समझ चुकी थी…….. ये कल्लू ही है, उसने बउवा की ओर देखा…वो भी समझ गया.. खाया पिया कुछ नही गिलास तोड़ा बारह आना …………. लेकिन अब करे तो क्या करे….कल्लू की बीबी ने कुछ समझदारी दिखायी और बउवा को अन्धेरी कोठरिया मे रखे बिस्तरों के पीछे छुपा दिया,अब कहते है ना कि विनाशकाले विपरीत बुद्दि…दरअसल कल्लू का लट्ठ भी बिस्तरों के पीछे ही रहता था.. और फिर अपना आंचल सम्भालकर, घबराते हुए दरवाजा खोला………. दरवाजा खोलकर देखा तो बाहर आगबबूला कल्लू पहलवान साथ मे वानर सेना…कल्लू ने पूछा….कहाँ छुपा रखा है अपने चाहने x#$%!%& वाले को………………कुछ नही बोली………………. कमरे मे इत्र की सुगन्ध और टेबिल पर रखी साड़ी, पूरी बात बयां कर रही थी……………………कल्लू ने इधर उधर ढूंढना शूरू कर दिया……..कल्लू की बीबी को मानो सांप सूंघ गया……समझ गयी, कि बचना मुश्किल है, दिमाग लड़ाया और तुरन्त फुरन्त पाला बदला, फूट फूट कर रोने लगी और कल्लू के गले से लिपट गयी…….. कल्लू ने गरजकर फिर पूछा “कहाँ है वो?” तो उसने सिसकते हुए अन्धेरी कोठरिया मे रखे बिस्तरो की और इशारा कर दिया.

इधर बउवा का हाल पूछा तो ……….बउवा की हालत तो उस बकरे की तरह से थी जिसको अभी थोड़ी ही देर मे हलाल होना था.कल्लू ने सबसे पहले अपने लट्ठ को ढूंढा और अपने कब्जे मे किया… फिर बिस्तरो को हटाना शुरू कर दिया …………….तो पाया कि अपने बउवा सिमटे से, सहमे से खड़े है, कल्लू ने फिर गिना नही दे दनी दन, दे दनी दन…. वो पिटाई की बउवा की, कि हम क्या बतायें……….. बउवा जब तक अपना परिचय देता, तब तक तो अनगिनत लट्ठ पड़ ही चुके थे….उसके बाद भी, वो इत्र और साड़ी का एक्सप्लेनेशन नही दे पा रहा था… …….पहले तो कल्लू ने उसे खूब कूटा उसके बाद वानर सेना भी इस नेक काम मे पीछे नही रही………हमने भी पूरी तरह से समाज सेवा की…..बात अब तक मोहल्ले मे पहुँच चुकी थी… कि कोई एक बन्दा जम के कूटा जा रहा है, कल्लू पहलवान के घर……..

पूरे मोहल्ले मे हाहाकार मच गया…….जिसके हाथ जो लगा, उठाकर पीटने निकल पड़ा . वर्माजी भी अपने मित्र के साथ देखने चले आये……..क्यो? अरे कोई मनाही थोड़ी थी… दुनिया जा रही थी तो वर्माजी क्यों पीछे रहते…..मोहल्ले वालो के साथ साथ वर्मा ने भी दो चार हाथ मारकर अपना पड़ोसी धर्म निभाया……..अब तक बउवा पिट पिटकर अधमरे हो चुके थे……फिर पकड़कर बउवा को रोशनी मे ले जाया गया….ताकि पहचान तो हो सके…………..रोशनी मे बउवा ने अपने जीजा और जीजा ने अपने साले को पहचान लिया……पूरा भरत मिलाप हुआ…….

वैसे वर्माजी मन ही मन खुशी हुई कि बउवा को पीटकर अपनी बरसों पुरानी इच्छा को पूरा भी कर लिया था और इल्जाम भी नही लगा………जो लोग बउवा को मार रहे थे, अब उसके कपड़े ठीक करने लगे…. कुछ लोग थू थू कर अपने घर को लौट गये…….बाकी लोगो को कल्लू और वर्मा ने मिलकर विदा किया या कहो भगाया…….. … …बउवा से पूरी कहानी सुनी…….. समझ गये कि मोहल्ले के लड़को ने चिकायीबाजी की है, खैर अब क्या हो सकता था… कल्लू ने बउवा से माफी मांगी….बउवा के जख्मो पर मलहम लगायी……..बउवा और कल्लू की बीबी की पहली मुलाकात सटीक रही…, दोनो के मन मे कुछ कुछ होने लगा था, दोनो पहली मुलाकात मे एक दूसरे को दिल दे बैठे…………

बउवा अपने जख्मो को सहला सहलाकर सिसक रहा था, पहलवान शर्मिन्दा था…. उसकी बीबी मन ही मन मुस्करा रही थी.. कि मोहल्ले मे ही सैटिंग हो गयी, और वर्मा जी, वो क्या करते बेचारे, बउवा को हाथ पकड़, या कहो सहारा देकर अपने घर की ओर प्रस्थान कर गये….. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बउवा और पहलवान की बीबी एक दूसरे को कनखियो से देखे जा रहे थे. और वानर सेना? आप क्या समझते है, हमे लोग पिटने के लिये मोहल्ले मे रहते….हम भी निकल लिये पतली गली से…………हमारा बदला तो पूरा हो ही चुका था.

जनाब ये तो थी, मोहल्ले के प्रेम प्रसंग का पहला भाग। अब इस लेख को लिखने के बाद से पाठकों ने हम पर दबाव बनाया और जानना चाहा कि
बऊवा की फिर पिटाई हुई कि नही?
बऊवा के प्रेम प्रसंग का क्या हुआ?
क्या वर्माजी पूरी बात जानने के बाद चुप बैठे?

आपके इन्ही सभी सवालों को जानने के लिए लेख का अगला भाग बऊआ पुराण के नाम से लिखा गया है। उसको भी जरुर देखें। आपको ये लेख कैसा लगा, मजा आया कि नही, टिप्पणी मे लिखना मत भूलिएगा।

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18 Responses to “रीठेल : मोहल्ले का प्रेम प्रसंग”

  1. शानदार। लेखकों की किताबों के हर साल नये संस्करण आ जाते हैं इस लिहाज से चार में रिठेल का पूरा हक है जी आपको।
    लेकिन भैया वर्माजी की बिटिया की शादी अब करा दो भाई।

    अनूप शुक्ल’s last blog post..शंकरजी अंग्रेजी सीख रहे हैं

  2. अच्छा है ! रीठेल ही सही कभी कभी पुरानी यादों को भी ताजा कर लेना चाहीये ।

    अनिल’s last blog post..पिछौला लैक

  3. yaar itna bada wakya hai, ki padhne ka man hi nahi kiya, parts me likha karo taki suspense bhi bana rahe

  4. हमने तो पहली बार पढ़ा ! और रिठेलें… हमें तो बड़ा मजा आया इस किस्से को पढ़कर. और वर्माजी की लड़कियों की चर्चा ही नहीं की आपने. हमें तो लगा था की कुछ उधर भी किस्सा जाएगा 🙂

    Abhishek’s last blog post..और भी गिफ्ट है ज़माने में इक डायरी के सिवा !

  5. साढ़े चार साल हो गया – अब तो बउआ और कल्लुआइन प्रकरण का अपडेट आ जाना चाहिये। कल्लू के कितने बच्चे हुये और नएन-नक्श किससे मिलते हैं?
    (आप कानपुर में न रहते हों तो सुकुल जी से पता करवायें!)

    ज्ञानदत्त पाण्डेय’s last blog post..ट्रक परिवहन

  6. रीठेल ही सही..अनूपजी का कहा मानो…वर्मा-बिटीया का ब्याह करवा ही दो 🙂

    संजय बेंगाणी’s last blog post..मटका बनाम मशीन

  7. ही ही ही….. ही ही ही!! 😀
    मज़ा आ गया!!

    ज्ञान जी की बात मानें और इसका सीक्वल भी अब छाप दें, सिनेमा वालों की तरह सिर्फ़ पुरानी फिल्म दोबारा न दिखाएँ। ऐसा नहीं है कि क्लॉसिक्स का मज़ा नहीं है लेकिन नया माल भी आना चाहिए दोबारा! 🙂

    amit’s last blog post..एक्सक्लूसिविटी का चक्कर …..

  8. अन्तर सोहिल on मई 29th, 2009 at 3:04 pm

    बहुत-बहुत मजा आया। आज से आपकी पुरानी चिट्ठियां पढनी शुरु कर दी हैं।

  9. हमने तो चार साल पहले इसे नहीं पढ़ा था तो हमारे लिये तो फ्रेश ही हुआ.. मजेदार रहा ये प्रसंग..

    रंजन’s last blog post..पों पों.. आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा..

  10. very interesting and absorbing episode!Now I am reading your other posts also.

    Deepa’s last blog post..सिंह इज किंग

  11. रोचक प्रसंग है। पर इसे थोडा शार्ट किया जा सकता था।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  12. firefox or opera browser mein hindi theek nahi dikhayee deti please help

    Kasim’s last blog post..कॉमिक्स यात्रा-2

  13. मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है

    Kasim’s last blog post..आजकल

  14. wah maza aa gaya padh ke..
    .-= Abhinav Varshney´s last blog ..Large File Upload =-.

  15. मस्‍त मस्‍त

  16. aapke lekh ne bachpn yad dila diya

  17. sharad joshi;harishankar parsai ka naya avtaran; swagat hai sir aapka; bas lage rahe isi tarah

  18. maza aa gaya