दिल ढूंढता है…फुर्सत के रात दिन

आजकल इस भागदौड़ भरी जिंदगी मे थकना मना है, नही नही भाई मै कोई प्रोडक्ट बेचने की कोशिश नही कर रहा हूँ, बस इस भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर कुछ पल आराम से गुजारने की सलाह दे रहा हूँ। आजकल हम लोग दिन भर ऑफिस/दुकान पर काम करते है, और शाम होते ही इस बोझ पर अपने कंधो पर उठाकर अपने घर ले जाते है। जिसका कारण है बढती हुई प्रतियोगिता या कहें गला काट प्रतियोगिता। लेकिन क्या ये बोझ घर ले जाना जरुरी है? हम क्यों ऑफिस की टेंशन घर ले जाते है?

अभी पिछले दिनो भारत यात्रा के दौरान मैने देखा, मेरे पुराने मित्र, नयी जीवनशैली मे रंग चुके है। उनकी जीवनशैली मे अप्रत्याशित तेजी आ चुकी है, ऑफिस मे काम का भारी दबाव है, पति पत्नी अगर दोनो काम करते है तो एक दूसरे के लिए समय निकालना काफी मुश्किल हो रहा है। इसका नकारात्मक प्रभाव उनकी पारिवारिक जिंदगी पर हो रहा है। पहले ऐसा नही था, आस पास के कुछ वर्षो मे ही ये बदलाव देखने के मिला है। लैपटाप मोबाइल के आने से यह बोझ बढता ही जा रहा है। जिंदगी तनाव मे गुजर रही है जिससे स्वभाव मे चिड़चिड़ापन बढ रहा है और ढेर सारी बीमारियां जैसे इस शरीर मे प्रवेश करने के लिए तैयार बैठी दिख रही है।

लेकिन क्या यह तनाव जरुरी है? विदेशो मे भी लोग काम करते है, शायद इससे ज्यादा ही करते होंगे, लेकिन मैने उनको तनावग्रस्त कम ही देखा है। शायद वे जितना मेहनत करने मे विश्वास रखते है, उतना ही अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को जीने मे भी रखते है। मैने वीकेंड पर शायद ही किसी अंग्रेज को आफिस जाते या काम करते देखा है। वीकेंड को वे लोग पूरी मस्ती से जीते है, अपने परिवार के साथ। इसका मतलब ये कतई नही कि भारतीय वीकेंड पर मस्ती नही करते, लेकिन मैने उनको वीकेंड पर भी परिवार से ज्यादा अपने काम से जुड़ा पाया। हो सकता है कि भारत मे अभी परिस्थियां कुछ अलग हो। शायद मेरे कुछ भारतीय ब्लॉगर साथी इस पर कुछ प्रकाश डाल सकें।

Fursat

जहाँ तक कुवैत का सवाल है मेरी दिनचर्या कुछ इस तरह है। मै सुबह लगभग पाँच बजे उठता हूँ, थोड़ी देर योगा करता हूँ, चाय पीने के बाद आधे घंटे की वॉक जरुर करता हूँ, सम्भव हो सका तो पास के गार्डन मे और छुट्टी वाले दिन तो पक्का समुंद्र के किनारे जाता हूँ। लौट कर नहाना और ऑफिस के लिए तैयार होना। सात से तीन बजे तक ऑफिस, फिर चार बजे तक घर वापसी। वैसे तो मेरी कम्पनी मेरे को घर पर परेशान नही करती लेकिन जब भी जरुरत होती है, मै उपलब्ध रहता हूँ। मेरे सारे एप्लीकेशन ठीक से चल रहे है कि नही, उनका लेखा जोखा मेरे इमेल पर आता रहता है, अगर जरुरत पड़ती है तो मै कंही से भी उनको देख/ठीक कर सकता हूँ। घर पहुँचकर लंच के बाद एक घंटे की नींद फिर शाम की दिनचर्या, कुछ देर परिवार,टेनिस, टीवी, दोस्तों मे निकलता है, फिर रात की वॉक। डिनर तो मै करता नही, कुछ फल/दूध लेकर कुछ पढते हुए, बिस्तर की तरफ़ बढ लेते है। इस तरह दिन पूरा निकल जाता है। हाँ इस बीच बीबीजी की शॉपिंग और ब्लॉगिंग के लिए भी समय चुराया जाता है। वीकेंड पर रुटीन एकदम अलग है। वीकेंड पर पूरा समय सिर्फ़ परिवार को ही दिया जाता है, अक्सर मोबाइल को साइलेंट रखकर, गैरजरुरी इमेल वगैरहा को वीकडे पर टालते हुए सिर्फ़ और सिर्फ़ परिवार के साथ पूरा समय बिताने की कोशिश करता हूँ। हाँ इस बीच कभी कभी सामाजिक कार्यों (जैसे उपकार संस्था) अथवा ब्लॉगिंग के लिए भी समय निकाला जाता है। आपकी क्या दिनचर्या है?

सवाल ये है कि हम इस भागदौड़ भरी जिंदगी मे अपने परिवार को कितना समय देते है? देते भी है कि नही? क्या ऐसा तो नही इस भागदौड़ मे हम अपने परिवार को भुला ही बैठे है? आपका क्या कहना है इस बारे में?

2 Responses to “दिल ढूंढता है…फुर्सत के रात दिन”

  1. यहां तो पुराने तरीके से जी रहे हैं, फिर भी समय कम है, थकान बहुत है! 🙂
    ये नीचे टैग देर आये दुरुस्त आये बोल रहा है। कौन देरी कर दी टिप्पणी करने में?!
    .-= Gyan Dutt Pandey´s last blog ..देर आये, दुरुस्त आये?! =-.

  2. बिलकुल सही बात कही है आपने जीतू जी। तनाव तो जैसे हम लोगो के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। आपकी अनुशासित दिनचर्या से बहुत प्रभावित हुआ। काश मैं भी ये सब कर पाता।

    सोमेश
    शब्द साधना