जीवन, काँच की बरनी और दो कप चाय

अभी कुछ दिन पहले एक पुराने मित्र का फोन आया, मुझसे हालचाल पूछा, मैने बोला यार बहुत व्यस्त हूँ, मित्र ने उस समय तो कुछ ज्यादा नही कहा, लेकिन थोड़ी देर मे ही उसने एक इमेल फारवर्ड की, जिसको मै आपके साथ शेयर कर रहा हूँ, इस इमेल को पढकर मुझे जीवन को समझने का एक अलग नजरिया मिला। ( नोट: इस इमेल पर मेरा कोई कॉपीराइट नही है।)

काँच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की   बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ … आवाज आई … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई   है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

  • इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….
  • टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
  • छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
  • रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में   सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी …

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है …. यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा … मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने   बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ … टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है … पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच   ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये.

आपका क्या सोचना है इस बारे में?

12 Responses to “जीवन, काँच की बरनी और दो कप चाय”

  1. सुपर्ब!

  2. सहमत !!

  3. टेबल टेनिस तो वैसे भी स्‍वास्‍थ्‍यकर है जी…अच्‍छा लगा

  4. कहानी पहले से जानता था पर आपका प्रस्तुतीकरण बहुत बढ़िया था और खासकर यह की दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये.

  5. इस कहानी को तो अपने प्रबंधन संस्थान की पढ़ाई के दौरान पहले भी सुना था पर उसमें यह संदेश नहीं था ना ही इतने रोचक ढंग से उसे प्रस्तुत किया गया था। आपने तो गंभीरत से सोचने के लिये एक विषय ही दे दिया।

  6. It has always been refreshing to read your blogs when one is occupied with work and have a break in between. Great thoughts penned down.

  7. बढिया है बालक! बहुत खूब!
    वैसे दो कप चाय का मौका भी है और दस्तूर भी। तुम्हारे भी छह साल हो गये ब्लॉगिंग करते-करते। बधाई हो।
    इस मौके पर अगली पोस्ट फ़िर से लिखो और ब्लॉगिंग में आये परिवर्तन के बारे में लिख डालो।

    फ़िर से बधाई। 🙂

  8. kanch ki brni ke baare men aapki smjhaaysh thik trh se smjh men aa gyi lekin aek kaanch ki brni or do kp bhut naa insaafi he thaaku. akhtar khan akela kota rajsthan

  9. प्रवीण पाण्डेय on सितम्बर 7th, 2010 at 8:44 pm

    बहुत सुन्दर।

  10. सहमत!

  11. chhhamaaaa. chahunga …..prawasi ji apne naukari ko second step me rakha mere hisab se karm pahle sthan par rahana chahiye.

  12. choudheri sahab
    sach
    ankh se ansu chalak aye
    dhanyaad
    bhuli bisri yadoon se dil ko sahlane ka liye
    prabhu aapko swasth aur khushal rahkae