दशहरा और अतीत की यादें

आज शुकुल गूगल चैट पर प्रकट हुए और आदेश किया की भई कल दशहरा है, तुमने कुछ लिखा भी है कि नहीं, हम बोले यार नून तेल लकड़ी से फुर्सत मिले तब तो दशहरे का सोचें, फिर विदेश मे ईद दशहरा दिवाली सब एक दिन जैसे ही दिखते हैं। कम से कम कुवैत मे तो ऐसा ही है। यहाँ पर सभी त्योहार अक्सर सप्ताहांत यानि शुक्रवार और शनिवार को ही मनाए जाते जाते है। चाहे वो त्योहार हो या जन्मदिन, अब बंदा पैदा हो मंगलवार को लेकिन नहीं जी, हम तो उसका जन्मदिन शुक्रवार को ही मनाएंगे। अब क्या करें, यहाँ के हिसाब से ही चलना है। खैर ये सब तो चलता ही रहेगा। तो भैया पाठकों कि बेहद मांग पर पेश हैं दशहरे पर विशेष मेरे दो पुराने लेख :

इन दोनों लेखो को लिखकर जितना मजा  हमे आया था उतना ही मजा हमारे पाठकों को पढ़कर आया। विशेषकर हमारे आप्रवासी मित्रो को, जो बेचारे देसी त्योहारों के दिन भी ऑफिस में बैठकर मेरे लेख पढ़कर ही त्योहार मना लेते हैं। ये दोनों पोस्ट मैंने ब्लॉग्स्पॉट पर लिखी थी, इसलिए टिप्पणियाँ आपको यहाँ पर नहीं मिलेंगी, फिर भी अगर आप दोबारा पढ़ रहे हैं तो टिप्पणी करना मत भूलिएगा। जाते जाते आपको नवरात्रि, दुर्गापूजा और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ।

चलते चलते : दुर्गापूजा पर एक चुटकुला याद आ गया, मुलाहिजा फरमाएँ :

हमारे शादीशुदा एक मित्र अक्सर कहा करते हैं “मै शादी के पहले भी शेर था अब भी हूँ।
हमने बोला कि ये तो असंभव है, उन्होने स्पष्ट किया :
“मै शादी के पहले भी शेर था और अब भी हूँ , अलबत्ता अब दुर्गा माता शेर के ऊपर बैठी हुई हैं।”
(उनकी पत्नी का नाम दुर्गा है)

 

 


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4 Responses to “दशहरा और अतीत की यादें”

  1. वाह, समय समय की बात है।

  2. I AM NEW TO BLOGGING

    SO PLEASE GUIDE ME ABOUT BLOGGING

    THANKS IN ADVANCE

  3. HI

  4. जीतू जी आज कल आपने लिखना छोड़ दिया क्या ?????????????

    बड़े दिनों में कुछ देखने को मिलता है …………..