दो मोबाइल का चक्कर….

आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
आप सभी लोगों से बहुत दिनों बाद मुखातिब हुआ हूँ, क्या करूँ, रोजी रोटी से टाइम मिले तो ही कुछ लिखा जाए। खैर ये सब गिले शिकवे तो चलते ही रहेंगे। चलिये कुछ बात की जाए हमारे आपके बारे में। मै अक्सर दो अपने साथ रखता हूँ, एक मेरा सैमसंग गलक्सी एस2 और दूसरा मेरा प्यारा नोकिया ई71। मेरे से अक्सर लोग पूछते है कि ये दो दो मोबाइल का चक्कर क्या है। मै बस मुस्करा कर रह जाता हूँ। लेकिन पिछले दिनों मिर्जा पीछे ही पड़ गया, बोला तुमको आज बताना ही पड़ेगा कि दो दो मोबाइल, वो भी एक नयी तकनीक वाला और दूसरा पुराना, चक्कर क्या है। तो आप लोग भी मिर्जा के साथ साथ सुनिए।

हे मिर्जा, पुराने जमाने में हमारे मोहल्ले में वर्मा जी रहते थे, (यहाँ वर्मा जी का नाम सिर्फ रिफ्रेन्स के लिए लिया गया है, बाकी के शर्मा,शुक्ल,मिश्रा, वगैरह ना फैले और किसी भी प्रकार की पसढ़ न मचाएँ।) तो बात वर्मा जी की हो रही थी उनके चार बेटे थे। जब भी कोई उनके घर जाता तो शान से अपने सारे बेटों के बारे में बताते थे। एक दिन हम उनके घर गए तो उन्होने हमे अपने बेटो से मिलवाया।

ये मेरा सबसे छोटा बेटा है, डॉक्टर है।
ये मेरा तीसरे नंबर का बेटा है, इंजीनयर है।
ये मेरा दूसरे नंबर वाला बेटा है, वकील है।
और ये मेरा सबसे बड़ा बेटा है, ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाया, इसलिए नाई की दुकान चलता है।
हम बमक गए, बोले वर्मा जी, आपने अपने सारे बच्चों को इतना अच्छा पढ़ाया लिखाया और कैरियर मे सेट किया, लेकिन आपका बड़ा बेटा टाट में पैबंद की तरह दिख रहा है, इसको आप अपने दूसरे बेटों के साथ परिचय में शामिल नहीं किया करो। अच्छा नहीं लगता। वर्मा जी धीरे से बोले, “मियां धीरे बोलो, मेरा बड़ा बेटा ही तो घर का खर्च चला रहा है। उसी पर तो पूरे घर का दारोमदार है। उसका परिचय नहीं कराएंगे तो कैसे चलेगा।”

तो हे मिर्जा, उसी तरह मेरे पास भी दो मोबाइल है, एक नयी तकनीक वाला और दूसरा नोकिया वाला, लेकिन आवाज आज भी पुराने वाले मोबाइल से ही अच्छी आती है। नया वाला तो सिर्फ
एप्लिकेशन प्रयोग करने और मन बहलाने के लिए है। सुबह से दिन तक, नए वाले फोन की बैटरी चुक जाती है, नोकिया वाला फोन न हो, लोगों से बात करना मुहाल हो जाये। इसलिए ये नोकिया वाला फोन मेरे घर का नाई वाला बेटा है, उसके बिना सब कुछ सूना सूना सा है। उम्मीद है आप लोगों को भी मिर्जा के साथ साथ मेरे दो दो मोबाइल रखने का मकसद समझ में आ गया होगा। तो फिर इसी के साथ विदा लेते है, मिलते है, अगले कुछ दिनों में।

अपडेट : छोटी बेटी के स्कूल की छुट्टियाँ थी, इसलिए बेगम साहिबा अपने मायके भारत तशरीफ ले गयी है, हम अपनी तशरीफ यहीं पर रखे हुए हैं, क्योंकि कंपनी का कहना है, अभी आप तशरीफ का टोकरा नहीं हटा सकते, सिस्टम हिल जाएगा। इसलिए यहीं बने रहें। अब बेगम साहिबा के बिना जीवन कितना सुखमय/दुखमय चल रहा है, इस बारे में जल्द ही लिखा जाएगा।

9 Responses to “दो मोबाइल का चक्कर….”

  1. अपन तो अब भी वही पुराना वाला ई ६३ से काम चला रहे हैं ।

  2. हमने तो नया भी वही पुराने टैप का लिया है नोकिया 114 !

  3. हमने तो नया भी वही पुराने टाइप का लिया है नोकिया 114 !

  4. अपना गैलेक्सी एस२ तो बढ़िया चल रहा है, आवाज़ मस्त आती है (कान सही हैं बुढ़ापा नहीं आया है अभी)। रही बैट्री की बात तो दिन भर आराम से चल जाती है बिना दिक्कत, समस्या तभी आती है जब दिल्ली से बाहर कहीं सफ़र पर हों तो ऐसे समय के लिए पोर्टेबल मोबाइल चार्जर ले रखा है जो कि मोबाइल के ही आकार का होता है तथा यूएसबी द्वारा मोबाइल को ३ बार पूरा चार्ज कर सकता है, ज्यादा है तो उससे टैबलेट भी चार्ज किया जा सकता है। इसलिए दो मोबाइल लेकर चलने का झंझट अपने को नहीं है! 😉

  5. पुरानी पहचान में आवाज़ सदा ही अच्छी आती है।

  6. क्या बात है। दोनों मोबाइल सलामत रहें।

  7. अपना भी यही हाल है एक एन्ड्रायड और एक सादा डबल सिम

  8. मशीनों के अपने अपने लोच्चे हैं

  9. वाह, दो फोन का फंडा समझाने के लिये सटीक उदाहरण दिया आपने। ये प्रसंग पहले भी सुना था पर आपने इसको फोन के साथ बहुत अच्छा फिट किया।

    अपना नोकिया ५८०० वैसे तो लगभग पूरा दिन निकाल लेता है लेकिन सफर में नेट या गाने चलाकर बैठ जाओ तो तीन-चार घंटे में बोल जाता है।