होली का हुड़दंग

आज होली है, इंटरनेट और फ़ेसबूक पर सभी दोस्त यार एक दूसरे को होली की शुभकामनाएँ दे रहे है। लेकिन हमारी स्थिति अजीब है, हम ऑफिस में बैठे हुए अभी भी उन ऊलजुलूल सॉफ्टवेयर और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट  में व्यस्त है, हमारे यहाँ कुवैत में सारे त्योहार वीकेंड यानि शुक्रवार/शनिवार को शिफ्ट कर दिये जाते है, वो भले ही होली/दिवाली हो या किसी भी महानुभाव का जन्मदिन, बंदा ऊपर बैठे बैठ गुजारिश करता है कि भाई मेरा जन्मदिन आज है आज ही मना  लो, मेरी आत्मा को शांति मिलेगी, लेकिन ना, यहाँ वाले कुछ नहीं सुनते, बोलते हैं मनाएंगे तो वीकेंड में ही, खैर हमे क्या, हमे तो जब मनाने को बोलोगे तब मना लेंगे। खैर बात हो रही थी, होली की।

हम वैसे तो अपने मोहल्ले की होली को विस्तार से लिख चुके हैं, अगर आपने ना पढ़ी हो तो हमारे ये दोनों लेख जरूर पढ़ लें, ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। मजा आए तो टिप्पणी जरूर करिएगा।
फाल्गुन आयो रे भाग एक
फाल्गुन आयो रे भाग दो

तो जनाब सबसे पहले तो आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। होली का नाम सुनते ही लोगो में जोश भर जाता है, हालांकि अब वो पहले जैसी बात नहीं रही। हमारे जमाने में होली की तैयारियां तो लगभग एक महीने पहले से करी जाती थी। वो वानर सेना की मीटिंग, होली मनाने के तरीके, झगड़े, पंगे, कमीज फटाई, मार कुटाई, लगभग पूरी संसद जैसा माहौल था। निर्णय वही होता था, जो हम चाहते थे, लेकिन बिना ये सब किए मजा नहीं आता था, इसलिए होली का पहला आइटम यही होता था। अब जब निर्णय हो चुका हो तो अगला काम होता था, एक कमेटी बनाना जो होली के पूरे आयोजन की देखरेख करेगी। फिर चंदे के लिए बड़े बकरों माफ करिएगा चंदा दानदाताओं की पहचान करी जाती थी, फिर उनसे निवेदन (?#$#@ करके ) किया जाता था कि भई होली है, आप भी थोड़ा लोड उठाओ। अगर हम आपको ये नहीं बताते कि हम होली का चंदा इकट्ठा कर रहे है, आप समझते कि हम राष्ट्रीय चुनाव कि बात कर रहे है। चंदे का खेल ऐसा ही होता है, होली का चंदा हो या राष्ट्रीय चुनाव। अब हम चंदे कि पूरी प्रक्रिया पिछले लेख में बता चुके हैं, इसलिए हम दोबारा नहीं लिखेंगे।

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होली वाले दिन पूरा हुड़दंग होता था, लाउडस्पीकर का शोर, वही घिसे पिटे पुराने होली गीत से शुरू होते होते, हेलन (भई हमारे जमाने में सिर्फ वही आइटम नंबर करती थी, हीरोइने तो सिर्फ नखरे ही दिखाती थी ) के गीतों तक पहुंचा जाता था। कभी कभी कुछ बाजारू भोजपुरी गीतों को भी चलाया जाता था, लेकिन किसी के ठीक से  समझ में आने पहले ही हटा लिया जाता था। ये सब हम कुछ पुराने ठरकी बुजुर्गो की विशेष फरमाइश पर चलाते थे, जिनकी जोशे जवानी तो एक्सपायर हो चुकी थी, लेकिन उमंगे अभी भी जवान थी। ये सब मुफ्त में नहीं होता था, इसके लिए बकायदा विशेष चंदा वसूला जाता था।

शुकुल की विशेष मांग पर चमचम रेडियो वाले की बात लिखी जा रही है। चमचम रेडियो वाले के दो ही शौंक थे, भांग खाना और नवाबी शौंक। अब नवाबी शौंक क्या होता है, हम यहाँ पर नहीं लिख सकते, शुकुल से पूछा जाए। होली पर भांग का विशेष इंतेजाम किया जाता था, इसके लिए चंदे के पैसों में पूरा प्रोविज़न रखा जाता। चमचम रेडियो वाला (हम उसका नाम भैयाजी रख लेते हैं), तो भैयाजी भांग बहुत खाते थे, हमेशा आँखें चढ़ी चढ़ी रहती थी। मोहल्ले में पूरी तरह से बदनाम था, अक्सर अपने में ही खोया रहता था, पूछो कुछ तो जवाब कुछ और देता था, लेकिन अपने काम में माहिर था। अब मोहल्ले में लाउडस्पीकर किराए पर देने वाली भी इकलौती दुकान थी, इसलिए भैयाजी के अलावा हमारे पास कोई और जुगाड़ भी नहीं था। फिर ऊपर से हमे भैयाजी के अलावा उधार भी कौन देता, हमारी कौन सी  अच्छी साख थी? तो फिर लाउडस्पीकर के लिए भैयाजी फ़ाइनल। अब भैयाजी की वर्माजी कि मँझली बिटिया से सेटिंग थी।  अब ये कैसे हुई, अरे भई, हम मोहल्ले में लाउडस्पीकर लगवाने के लिए जगह का सर्वे कर रहे थे, तब वर्माजी की बिटिया खिड़की से झांक रही थी, बस वहीं भैयाजी और वर्माजी की बिटिया के बीच आखें दो और पौने चार हुई। अब पौने चार कैसे, यार भैयाजी की बायीं आँख थोड़ी कम खुलती है ना इसलिए। तो फिर जनाब, भैयाजी अटक गए, बोले सेटिंग हो गयी है, लाउडस्पीकर तो वर्माजी के घर में ही लगेगा, सबने समझाया लेकिन भैयाजी नहीं माने. हम भी ताड़ गए थे, कि माजरा क्या है, खैर हमने शर्त रख थी, जगह का चुनाव  भैयाजी का, लेकिन पेमेंट कितना और कब मिलेगा, वो  हमारी मर्जी। कहते हैं प्यार में आदमी (सिर्फ आदमी, औरत क्यों नहीं?) अंधा हो जाता है, अब भैयाजी के प्यार के अंधेपन का हम लोगों ने  फायदा ना उठाया तो फिर क्या किया।  तो फिर डील हो गयी, डिसाइड हो गया लाउडस्पीकर वर्माजी के द्वारे ही लगेगा। बिजली के बिल का पंगा था ही नहीं, उस जमाने में कटिया लगाना भी एक शौंक था। फिर मोहल्ले के त्योहार और कटिया न लगे, ऐसे कैसे हो सकता था?  इसलिए फ्री में लाउडस्पीकर घर के बाहर लगे, तो वर्माजी को काहे की परेशानी।

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खैर वर्माजी खुश, भैयाजी खुश, वर्माजी की बिटिया खुश तो हम और आप काहे को चिंता करें। हम भी खुशी खुशी होली मनाएँ। भैयाजी को लाउडस्पीकर के बहाने वर्माजी के घर में एंट्री मिल गयी। वो हर पाँच दस मिनट में लड़की के इशारे होते ही, घर में अंदर हो जाता और फिर तभी बाहर निकलता जब घर के किसी बड़े बुजुर्ग को उसके होने का आभास होता या फिर बाहर वानर सेना वाला  भैयाजी को गालियों से नहीं नवाजता। ये अंदर बाहर ,बाहर अंदर सब कुछ सही चल रहा था, हम डील के हाथों बंधे थे, वानर सेना को पूरी स्थिति की जानकारी नहीं थी, वर्माजी अपने आप में बिजी थे, वरमाइन पकवान बनाने में। लेकिन वो कहते है न, इश्क़ और मुश्क (ये मुश्क क्या होता है?) छिपाए नहीं छिपते, इसलिए बैरी जमाने को भैयाजी के इस प्रेम प्रसंग की खबर लग गयी। हुआ यूं की भैयाजी भांग की पिनक में वर्माजी के घर होली मिलने चले गए और काफी देर घर के अंदर ही रहे, नहीं भाई, होली मिलन कोई गुनाह थोड़े ही है, लेकिन अगर आप होली के दो महीने बाद होली मिलने जा रहे हो तो पक्का पंगा है। वही हुआ, भैयाजी रंगे हाथों (ये मुहावरा गलत है, रंगे हाथों का मतलब आज तक समझ में नहीं आया ) पकड़े गए, फिर जैसा होता है, वही हुआ, लड़की मुकर गयी, इसलिए सिर्फ डांट पड़ी, लेकिन भैया जी, भैयाजी की तो जमकर सुताई हुई। शोर सुनकर मोहल्ले वाले भी हाथ बटाने पहुँच गए।  वर्माजी और मोहल्ले वाले , जब मार मार कर थक गए तो उन्होने पिटाई का काम वानर सेना को आउटसोर्स कर दिया। हम लोग भी पूरे मजे ले लेकर भैयाजी को मारे, हर ऐसी वैसी जगह पर मारा गया, जहां से उनके नवाबी शौंक परवान चढ़ते  थे।  अब चूंकि  भैयाजी ने हमारी वानर सेना के एक वानर को भी अपने नवाबी शौंक का शिकार बनाया था, इसलिए उस वानर ने भी अपनी जमकर भड़ास निकली। इस तरह से भैयाजी को उनके किए (या बिना किए ) की सजा मिली।

खैर हम मुद्दे से न भटके, बात होली की हो रही थी, ये तो भैयाजी को शुकुल पकड़ कर ले आए बीच में। अब होली का जिक्र हो और धरतीधकेल नेताजी (मोहल्ले के छुट भैया नेता, आजकल बहुत नाम और नामा  कमा रहे हैं, नहीं भई, हम उनका नाम नहीं लेंगे, डील है) की बात न हो। हमारे नेताजी का कहना था, कि वो जमीन से जुड़े हुए नेता है। हम लोग इसका नमूना हर होली में, नेताजी को जमीन पर लोटते हुए देखते थे,इसलिए हम भी इस बात की ताकीद करते है कि वो सचमुच जमीन से जुड़े हुए नेता हैं। नेताजी का भाषण, मोहल्ले, शहर, प्रदेश और देश/विदेश की समस्याओं से शुरू होता था, (फिर भांग के पकोड़ों की वजह से ) नॉन वेज चुटकुलों में जाकर भी नहीं थमता था। नेताजी हमारे होली दिवस के सबसे सॉलिड आइटम थे। भंग के पकोड़ो और ठंडाई के बात उनका खुद पर कंट्रोल खतम हो जाता था, जहां इनका कंट्रोल खतम हुआ, वानर सेना ने कमान संभाल ली, फिर नेताजी को कैसे और किस रूप में नाचना है, ये वानर सेना डिसाइड करती थी। नेताजी मधुबाला से शुरू होते थे और हेलेन के कैबरे पर जाकर रुकते थे, अब मोहल्ले वालों  विशेषकर भैयाजी का  बस चलता तो वो उनको सनी लियोने बना देते, लेकिन सड़क का मामला था और फिर भैयाजी भी अभी पिछले पैराग्राफ में पिटा  था, इसलिए उनके इरादों पर पानी फेरा गया। नेताजी को किसी और दिन भैयाजी के हवाले करेंगे।

होली का हुड़दंग शाम तक चलता था, अलबत्ता 12 बजे के बाद हम लोग मोहल्ले के हर घर में होली खेलने जाते थे। ये वाला प्रोग्राम हमारा सबसे सफल प्रोग्राम हुआ करता था, लोग पूरा साल इंतज़ार करते, दूर दूर से ही अपने माशूक़ को देखते रहते, लेकिन घरों में होली खेलने वाले प्रोग्राम में शामिल हो जाते, क्यों? अरे भाई माशूक़ के घर एंट्री मिल गयी थी, वो भी बिना नाम बदनाम हुए। अक्सर उस घर में ज्यादा लोग जाते जहां पर जवान कन्याएँ रहती थी, अब जितने  अंदर जाते, बाहर उतने नहीं निकलते थे, अक्सर गिनती में कमी हो जाती थी। अब जैसे जैसे बंदे कम होते जाते, हम लोग भी होली खेलते खेलते अपने अपने घरों को निकल जाते। वो भी क्या दिन थे? पूरा मोहल्ला एक परिवार की तरह होता था, आपस में गिले शिकवे भी होते थे, लेकिन आपस में प्यार बहुत था। अपने घर का लोग खयाल भले न रखे, पड़ोसी के घर का जरूर रखते थे। यही सब लोगों को जोड़े रखता था। अब कहाँ वो खयाल,  वो किस्से कहानिया, वो होली की मस्तियाँ  , वो त्योहार, वो अपनापन , सब कुछ जैसे यादों में ही सिमट कर रह गया है। खैर होली तो होली ही है, चलो इसी दिन आप लोग सब कुछ भूलकर पड़ोसी के साथ होली मना लें। ध्यान रहे, पड़ोसी से ही मनाएँ, पड़ोसिन से पंगे न लें। आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।  इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये, नहीं तो कंपनी मेरे को भैया जी बना देगी। आते रहिए पढ़ते रहे आपका पसंदीदा ब्लॉग।

6 Responses to “होली का हुड़दंग”

  1. होली का तो ऐसा है कि वीकेंड को इधर घसीट लेना चाहिये दो-तीन के लिये। सुना गया है कि अकेले हो और पौने चार कर रहे हो! नबाबी शौक वाला खुलासा न करेंगे हम।

    ये अच्छी बात है देर से लिखे लेकिन आज लिख दिये। होली मुबारक हो!

  2. होली का हुड़दंग

    machayen

    nat-khat bachhe sang

    holinam.

  3. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    क्या आप कुवैत में हैं.मैं भी अबुधाबी से.

  4. होली की शुभकामनाएं. हमे तो मुर्खसम्मेलन याद है. हमारे बचपन मे होलीके दिन हास्य कवी सम्मेलन हुवा करता था, जिसमे एक कवीको मूर्ख शिरोमणी की पदवीसे नवाजा जाता था. 🙂

  5. यादों में उतराने का उत्सव है होली।

  6. Thanks for such a nice blog. Amazing to see huge & varied Hindi musings on internet. Surprisingly, each blog has its own identity. मुझे उम्मीद नहीं थी की लोग-बाग़ इतना सुंदर तथा स्पष्ट भी लिख लेते हैं. पर लगता है की इंटर्नेट पर बार बार आना ही पडेगा.