कैफी आजमी साहब के कलाम

मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दवा क्या करूं
दिल भी तू है जां भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूं

ख़ुद को खोकर तुझको पा कर क्या क्या मिला क्या कहूं
तेरा होके जीने में क्या क्या आया मज़ा क्या कहूं
कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फ़िज़ा क्या कहूं
मेरी होके तूने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूं
मेरे पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूं
दिल भी तू है जां भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूं

है ये दुनिया दिल की दुनिया मिलके रहेंगे यहां
लूटेंगे हम ख़ुशियां हर पल दुख न सहेंगे यहां
अरमानों के चंचल धारे ऐसे बहेंगे यहां
ये तो सपनों की जन्नत है सब ही कहेंगे यहां
ये दुनिया मेरे दिल में बसी है दिल से जुदा क्या करूं
दिल भी तू है जां भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूं
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झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं

तू अपने दिल की जवां धड़कनों को गिन के बता
मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है कि नहीं

वो पल कि जिस में मुहब्बत जवान होती है
उस एक पल का तुझे इन्तज़ार है कि नहीं

तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूं दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं

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अज़ा में बहते थे आंसू यहां, लहू तो नहीं
ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं

यहां तो चलती हैं छुरियां ज़ुबां से पहले
ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं

चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के
बगौ़र देखो ये इसलाम का लहू तो नहीं

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