गजल की पैरोडी

अब जब गजलों की बात चल ही रही है, तो हम भी अपनी बात रख दे
तो हुआ जनाब यों कि आज इन्टरनेट पर ब्लाग पढते पढते हमने भी एक गजल की पैरोडी पढी, एक भाई के अंग्रेजी ब्लाग पर. आपने जगजीत सिंह की यह गजल तो सुनी ही होगी…
ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो

तो लीजिये अब पढिये इसकी पैरोडी

ये डिग्री भी ले लो, ये नौकरी भी ले लो
भले छीन लो मुझसे यू एस की वीजा
मगर मुझको लौटा दो, कालेज की कैन्टीन
वो कम चाय का पानी वो तीखा समोसा
कालेज की कैन्टीन मे हम सब थे राजा

वो कड़ी धूप मे अपने घर से निकलना
वो प्रोजेक्ट की खातिर शहर भर भटकना
वो लैक्चर मे दोस्तो की प्रोक्सी लगाना
वो सर को चिढाना, एयरोप्लेन बनाना
वो सबमिशन की रातो को जगना, जगाना,
वो ओरल्स की कहानी वो लैबों का किस्सा

वो दूसरों के एसाइन्टमेन्ट को अपना बनाना
वो सेमिनार के दिन पैरो का छटपटाना
वो वर्कशाप मे दिन रात पसीना बहाना
वो एक्जाम के दिन का बैचेन माहौल
पर वो माँ का विश्वास टीचर का भरोसा
कालेज की वो लम्बी सी रातें.
वो दोस्तों से ठेले से प्यारी सी बातें
वो गैदरिंग के दिन का लड़ना झगड़ना
वो लड़कियों का यूँ ही हमेशा अकड़ना,
भुलाये नही भूल सकता है कोई
जीवन का अटूट हिस्सा
वो कालेज की यादें वो कालेज के दिन
कोई तो लौटा दे मेरे कालेज के दिन.

इसका अंग्रेजी संस्करण यहाँ मौजूद है.

और यदि जगजीत सिंह द्वारा गायी गजल सुनना चाहते है तो यहाँ पर मौजूद है.

7 Responses to “गजल की पैरोडी”

  1. ट्रक्क्बक्क के लियए धन्यवाद. उमीद रख्तए है के आप हमरए ब्लोग पे दूबरा ज़रूर आयएगए!

  2. जीतू भाई, कर दी न वही बात.. रात भर पढ़ी रामायण, सुबह पूछते हैं “सीता किस का बाप था?”। जगजीत सिंह ने गाई है इसलिए थोड़े ही ग़ज़ल हो गई? याद नही, दो-दो लाइनों वाले शे’रों का समूह, जिसमें पहले वाले शे’र की दोनों लाइनें (और बाक़ी सब अश’आर की दूसरी लाइन) आपस में rhyming हों, वही ग़ज़ल होती है। 😉

    बाक़ी है पैरोडी बहुत बढ़िया।

  3. अरे टीचरजी,
    माफ कर दीजिये, नये नये स्टूडेन्ट है, कभी कभी गलती से मिस्टेक हो जाती है.

    हमे याद है स्कूल के दिनो मे कहा करते थे,

    हिस्ट्री ज्योग्रफी बड़ी बेवफा, रात को याद की सुबह सफा

    वही हाल दिख्खे है मने.

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