छिछोरी हरकत

पिछले एक हफ्ते से मिर्जा साहब मेरे को ढूँढ रहे थे, क्यों अरे भाई विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद से मिर्जा अपनी प्रतिक्रिया देने के लिये कुलबुला रहे थे. और मै था कि मिर्जा के हत्थे ही नही चढ रहा था, आखिरकार मिर्जा साक्षात हमारे घर पधारे और मै मरता क्या ना करता,मेरी बदकिस्मती कि मैने ही दरवाजा खोला. छूटते ही बोले, “क्या मिंया, माशूकों की तरह से भाव खाते हो, एक हफ्ते से फोन कर रहा हूँ, कालबैक ही नही देते. मोबाइल बेच खाया है क्या? या फिर बिल भरने के लिये पैसे नही है. क्या मिंया दोस्तो के साथ ऐसा व्यवहार….चलो प्यासा ही कुँए के पास आयेगा” हम समझ गये कि मिर्जा आज ना रूकने वाले.हमने मुस्कराते हुए उन्हे आदर से बिठाया और चाय पानी पूछा. और मिर्जा शुरु……. (अब अकेले मै ही क्यों झेलूँ आप भी सुनिये )

अब लो भई कांग्रेस फिर से अपनी छिछोरी हरकतों पर लौट आयी है, बहुत दिनो तक सोचा था कि राजनीतिक विषयों पर चुप रहेंगे लेकिन का करे, इ कांग्रेस वाले छेड़ने का कौनो मौका ही नही चूकते. कांग्रेस का हमेशा से ही शगल रहा है कि विपक्ष शासित राज्यों मे राजभवन से समानान्तर सरकार चलायी जाय. और इनका यह प्रयोग काफी सफल भी रहा है, और विपक्षी दलों पर दबाव की राजनीति काफी कारगर साबित होती है. लेकिन आज के गठबन्धन के युग मे भी कांग्रेस की ये दकियानूसी पैंतरेबाजी, बात कुछ समझ मे नही आती.

अब गोवा को ही लें, अच्छी खासी मनोहर पारिकर की सरकार चल रही थी, लेकिन नही….. गोवा के कांग्रेसी विधायकों ने पंगा लिया और मनोहर पारिकर सरकार के कुछ लोगो को तोड़ लिया और फिर शुरु हो गयी जोड़तोड़ की राजनीति. चलो ये तो चलता ही रहता है, फिर शुरु हुआ रस्साकशी का खेल और राज्यपाल ने बिना सोचे समझे ही अपने पत्ते खेल दिये, अब भद्द पिट रही है, तो पिटती रही, किसे परवाह है.वैसे भी कांग्रेस के भेजे राज्यपाल, राज्यपाल कम, और कांग्रेस के राज्य प्रभारी की तरह से ज्यादा व्यवहार करते है. धन्य हो कांग्रेस माता. सोनिया जी आप सुन रही है ना?

लगभग वैसा ही खेल दोहराया गया, अपने झारखन्ड मे. अब चुनाव के नतीजों का पता किसे नही है, सारा खेल राज्यपाल के पास ही खेला जाना था. और राज्यपाल महोदय को बीजेपी और जनतादल यू को निर्दलीय विधायकों का समर्थन नही दिखायी पड़ा, पता नही किस नम्बर का चश्मा लगाते है, अलबत्ता उनको झारखन्ड मुक्ति मोर्चा ‌‌और कांग्रेस के गठबन्धन का फार्मूला दिखायी देने लगा.और तपाक से शिबू सोरन को मुख्यमन्त्री बना दिया, दुनिया चाहे जो कुछ कहे.अब शिबू सोरेन को बीस दिन का समय दिया गया है बहुमत सिद्द करने के लिये. अब बहुमत सिद्द करने के लिये या खरीद फरोख्त करने के लिये? ये कहाँ जा रहा है लोकतन्त्र

अब बिहार की बात भी कर ली जाये. वहाँ पर रामबिलास पासवान अड़ गयें है कि वो ना तो बीजेपी के साथ जायेंगे और ना जनतादल के साथ. लोग कह रहे है बड़े आदर्शवादी है, अरे काहे का आदर्शवाद? बस मोलभाव कर रहे है.अभी रेल मन्त्रालय टिका दो हाथ मे तो लार टपकाते हुए दिखेंगे. लेकिन ये बात वो भी जानते है कि अगर इस बार बीजेपी के साथ चले गये, तो मुसलमान उनको भुला देंगे और अगर लालू का हाथ थाम लिया तो लालू ही उनका सारा जनाधार साफ कर देंगे. इसलिये अभी प्रोफेसरों की तरह से फार्मूले सुझा रहे है जो ना तो तार्किक है और ना ही प्रेक्टिकल. अब पासवान को कौन समझाये, बेचारे छब्बे बनने चले थे, दुबे बनकर रह गये.

मिर्जा तो अपनी बात कह गये, लेकिन मै भी सोच रहा था कि
लोकतन्त्र किधर जा रहा है?
क्या ऐसी सरकारे स्थायित्व दे पायेंगी?
अब सोनिया गाँधी के आदर्श कहाँ है?
क्यों नही राष्ट्रपति जी हस्तक्षेप करके नयी परम्परायें डालते?

सवाल तो कई है? लेकिन जवाब शायद जनता के पास है. हम क्यों ऐसा फ्रेक्चर मेनडेट देते है? कब बदलेंगे हम? क्यों हम राजनेताओ को मनमानी करने का मौका देते है? कब तक हम राजनेताओ के हाथो की कठपुतली बनते रहेंगे?
कब तक?
क्या भारत का लोकतन्त्र भ्रष्ट राजनेताओ के यहाँ गिरवी पड़ा है?
क्या है कोई आपके पास जवाब?

7 Responses to “छिछोरी हरकत”

  1. जबाब मुश्किल है जीतू भाई, जिस देश में लोगों की प्राथमिकतायें बटी हुई हों, जहां आदमी हर छोटे से मुद्दे पर अलग हो जाता है, ब।ट जाता है, वहां ये संभव है। बिना लोगों को शिक्षित किये और बिना आर्थिक उत्थान के तो ये मुश्किल लगता है और लोग इन गन्दे राजनेताओं के हाथ का खिलौना बनते रहेंगे।

  2. पेलवानजी,
    कर लिये निठल्ला चिंतन, इधर एक उल्टी कर के मन हल्का हो गया होगा! भारत मे चुनाव हों और आप ३-४ समन्दर पार चिंतित ना हों?
    इधर बोलते हैं, We get the leaders we deserve! ये यथा राजा तथा प्रजा वाली बात नही है – पूरा उल्टा मामला है.
    दादाजी बोलते थे “बेटा कहीं राजशाही कहीं जनशाही हमारे देश मे धक्केशाही” तो हे परेशान आत्मा ये धक्केशही के हिचकोले हैं – डिज्नी लेंड की राईड समझ के खुश हो चाहे सर चकराए और उल्टी आए – छपास का मसाला मिलता रहेगा!

  3. बात तो ब्िलकुल सही कर रिये हौ मिया, नेताओं के साथ अपने को भी ३६ का ही आंकड़ा पसन्द है ॥

  4. Bhaiya bole bade bhadaste sur main aap per dadda hona jaana kuch haiye nahi. Khali peeli kyon kilas rahe ho, kuwait main mast raho.

  5. parts for suzuki

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  6. ranitidine hcl

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  7. राम विलास पासवान साहब दलित नेता कैसे हो सकतें हैं. ये अगर नेता हैं भी दलितों के तब यह कहना बिलकुल यथार्थ होगा की दलितों के पीठ पर चलते हुए इनको सिर्फ चाहिए राज सिंघासन वह भी या तो रेल मिनिस्टर या फिर उर्वरक और रसायन मंत्रालय के बादशाह बन कर |ये इतने बड़े देश भक्त और भारतीय किसानों के हमदर्द हैं की अपने पिछले कार्यकाल में जब उर्वरक और रशायन मंत्रालय इनके पास था तब किसानों के हितार्थ इन्होने उर्वरक पर अनुदान की हरेक पूर्व सीमा को लांघ दिया और उर्वरक अनुदान का आयाम १ लाख करोड पर पहुंचा दिया |हुआ यह की सभी उर्वरक याने यूरिया, डी.ए. पी. ,एन.पी.के. मिक्सचर ,पोटाश आदि की कीमत ३००/- रुपैया प्रति बोरा(५० की. ग्राम) से लेकर ५००/- प्रति बोरा हो गयी |लेकिन इसी दौर में हरेक रासायनिक उर्वरकों की घोर काला बाजारी हुई और देश भर में जितने भी उर्वरक के थोक विक्रेता थे रातों रात या यह कहिये की चंद दिनों में ही कम से कम दस करोड से लेकर १०० करोड की पूंजी वाले बन गए |इनके साथ साथ जितने भी कृषि पदाधिकारी राज्य स्तर के थे कम से कम ३ और ऊपर ४, ५ फ्लेट का स्वामित्व प्राप्त करने का सुअवसर मिला |थोक विक्रेताओं और इन कृषि पदाधिकारियों के घरों में डंके बजने लगे और इनके महिला वर्ग ने रोज नए तरह का चन्दन, भगवान के मंदिरों में जरूरत से ज्यादा चढावा प्रदान किया , इन लोंगों के घर का नज़ारा ऐसा था मानों धोनी साहब ताबड तोड़ मैच पर मैच जीत कर घर आ रहे हैं और सभी माताओं बहनों ने अलग अलग थाल में राज तिलक करने की तैयारी कर रखी हो . कितना बड़ा रण जीत कर मानों आ रहे हों .
    राम विलास साहब को कितना क्या मिला नहीं मालूम , पर किसानों को जब जरूरत होती थी तब २५०/- रुपियों की यूरिया ४००/- में ही खरीदना पड़ता था ,डी.ए.पी. ५००/ रुपैया वाली ७००/- ८००/- में ही मिलती थी. कहने का तात्पर्य यह है की सरकार के तिजोरी से लाखों करोड़ों रुपैया किसानों को देने के लिए तो निकल लिए गए ,लेकिन यह रुपैया आधे रास्ते थोक उर्वरक विक्रेता और कृषि पदाधिकारियों के जेब में चला गया .
    मुझे याद है राज्य सभा में श्री अमर सिंह जी ने यह सवाल उठाया था लेकिन शायद कोई भी कार्यवाही नहीं हुई . अपने यहाँ अनुदान का यही किस्सा है . Targeted population को कभी भी औदान का फायदा नहीं मिलता है . सारा अनुदान अफसर, मंत्री, संतरी ,और बिचौलियो के पास ही रह जाता है .
    कहने के लिए राम विलास जी देर नहीं लगते की अनुदान की सही राशि सही समय पर लोगों को मिले ,यह जिमा राज्य सरकार का हैं, उनका नहीं .And like this he is bailed out of all the sins that he has committed till now by holding one position of power or the other .
    मेहनत के दीं अब उनसे बहुत दूर हो गए हैं , अब तो अपने बेटे का जन्म दिन हो या अपनी शादी की साल-गिरह , ये मनाएंगे शिकागो में ही. लेकिन भाई साहब दलित नेता यही हैं .इनको सत् सत् नमस्कार !