चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाए

चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाएं
ना तुम याद आओ ना हम याद आएं

सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
किसे याद रखें किसे भूल जाएं

उन्हें क्या ख़बर हो आनेवाला ना आया
बरसती रहीं रात भर ये घटाएं
-सरदार अन्जुम

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6 Responses to “चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाए”

  1. जीतू भैया ,

    कविता अच्छी लगी , पर ” उन्हें क्या ख़बर हो आनेवाला ना आया ”
    में “हो” के कारण प्रवाह मे कमी आती सी लग रही है । क्या यहाँ “हो” सचमुच जरूरी है ?

    इसके अलावा ” ना ” की जगह पर ” न ” मुझे ज्यादा अच्छा प्रतीत हो रहा है ।

    अनुनाद

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