ब्लैक फ्राइडे

Black Friday

कल ही ब्लैक फ्राइडे, देखने का मौका मिला. यह फिल्म 1993 मे बम्बई ब्लास्ट पर बनी है, सबसे सच्ची फिल्म दिखती है. ब्लास्ट के पहले और बाद की सही तस्वीर को दिखाती है. निःसन्देह ही इसका बहुत कुछ श्रेय जाता है, निर्देशन अनुराग कश्यप को. यह फिल्म हुसैन जैदी की किताब पर आधारित है. इसमे काम करने वाले प्रमुख कलाकार है के.के.मैनन( पुलिस कमिशनर की भूमिका मे ),आदित्य श्रीवास्तव ( बादशाह खान की भूमिका मे)और पवन मल्होत्रा( टाइगर मैनन की भूमिका में). तीनो ही टीवी और स्टेज के मंझे हुए कलाकार है. इन सबके शानदार अभिनय मे इस फिल्म को और शानदार बना दिया है.

फोटोग्राफी विश्वस्तरीय है,फिल्म को गति देता है, इसका बेहतरीन बैकग्राउन्ड म्यूजिक, हाँ गाने वगैरहा इतना प्रभावित नही करते. स्क्रीन प्ले और संवादो पर काफी काम किया गया है, बस एक कमी खलती है वो है एडीटिंग मे काफी सीन काट लिये गये है, जिसकी वजह से कई बार दृश्यों की निरन्तरता मे अभाव आ जाता है. ये भारत की तरफ से लोकार्नो फिल्म फेस्टीवल मे अकेली प्रविष्टि है.

यदि आपको मौका लगे तो जरूर देखियेगा.
फिल्म की आफिशयल वैबसाइट देखें
गाने यहाँ सुने जा सकते है
और विस्तृत समीक्षा यहाँ देखी जा सकती है

3 Responses to “ब्लैक फ्राइडे”

  1. अगर विचारोत्तेजक कथन-सामग्री को छोड़ भी दें तो सिर्फ़ सिने-तकनीक की दृष्टि से भी इस फ़िल्म को आसानी से हाल की हिन्दी फ़िल्मों में मैं सबसे ऊपर रखूँगा। कई स्तरों पर और कई वजहों से यह फ़िल्म सत्या (अनुराग जिसके सह-लेखक थे) की याद दिलाती है। इसके अलावा फ़िल्म में असली घटनाओं के साथ-साथ चरित्रों के असली नामों का प्रयोग किया गया है, जो कि इस विधा की फ़िल्मों में नया और बोल्ड प्रयोग है। और शायद यही इस फ़िल्म की बेनामी का कारण भी है। सुना है कि ऐसी ही कुछ वजहों से भारत में फ़िल्म का प्रदर्शन रोक दिया गया। दुर्भाग्य, अच्छे सिनेमा का और दर्शकों का।

  2. ब्लैक फ़्राइडे यक़ीनन उम्दा फ़िल्म है. इस फ़िल्म को शुरूआत में सेंसर बोर्ड और कोर्ट में काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी. वजह यह भी थी इसमें बम ब्लास्ट के आरोपियों को उनके असली नामों के साथ ही फ़िल्म में दिखाया गया था. हुसैन ज़ैदी की बम ब्लास्ट इन्वेस्टीगेशन पर लिखी किताब के कई प्रसंग इस फ़िल्म की पटकथा में शामिल हैं. अनुराग कश्यप ख़ुद सिद्धहस्त लेखक हैं, ने पहले रामू फ़ैक्ट्री की सत्या, कौन की पटकथा भी लिखी थी. मणिरत्नम की युवा और ई. निवास की शूल तो आपको याद ही होगी- इन फ़िल्मों में भी संवाद अनुराग ने ही लिखे थे. अरे भाई अभी हालिया रिलीज़ ‘मैं ऐसा ही हूं’ में भी तो उन्होंने ही संवाद लिखे थे. बात फिर ब्लैक फ़्राइडे की करें तो यही कहेंगे कि इतनी बड़ी घटना जिसके मुक़द्दमें न्यायालय में विचाराधीन हो- पर फ़िल्म बनाना भी साहस का काम है. फ़िल्म रिलीज़ होने के पहले हमारे स्टूडियो में आए अनुराग कश्यप ने साफ़ कहा था कि वे आम फ़िल्मकारों की तरह वे वातानुकूलित माहौल में बैठकर हक़ीक़त से परे फ़िल्में बनाने के बारे में सोच भी नहीं सकते. कश्यप के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म ‘पांच’ को अभी तक सिनेमाघर नसीब नहीं हुए हैं. इसे क्या कहा जाए? आपको यह भी बताता चलूं कि २००४ के लोकार्नो फ़िल्म समारोह में यह अकेली भारतीय प्रविष्टी थी किंतु इस साल के इसी महीने हुए लोकार्नो फ़िल्म फ़ेस्टीवल में द राइज़िंग- मंगल पाण्डेय, अंतरमहल और विलेज फ़ुटबॉल कुल जमा तीन भारतीय प्रविष्टियां थीं.

  3. […] पहले पन्ने पर पता चला कि ब्लैक फ़ाइडे भारत मे रिलीज हो रही है, यह फिल्म मै लगभग डेढ साल पहले देख चुका हूँ, इसकी विस्तृत समीक्षा यहाँ पर उपलब्ध है। मै सिर्फ़ इतना ही कहूंगा कि एक बेहतरीन फिल्म है इसे देखना मत भूलिएगा। […]