बिन गुरु ज्ञान नही

शिक्षक दिवस पर विशेष

Teachers Day

आज पाँच सितम्बर है, यानि शिक्षक दिवस, मै आज की यह प्रविष्ठि समर्पित करता हूँ, उन गुरुओ के नाम जिन्होने अपने शिष्यों को ज्ञान दिया, अच्छा बुरा पहचानने की शक्ति दी, जीवन मे संघर्ष करने के लिये प्रोत्साहित किया. मै उन सभी गुरुओ को शत शत नमन करता हूँ.

जहाँ तक मुझे याद है मै स्कूल मे हमेशा ही टीचरों का लाडला रहा था, यकीनन मै सबसे शैतान बच्चा था, लेकिन पढाई मे भी अव्वल था, इसलिये मेरी शैतानियो को हमेशा नजरअन्दाज कर दिया जाता. मेरी पहली टीचर थी, विद्या मैडम, हम उन्हे प्यार से विद्या दीदी कहा करते, बहुत कड़क और खूंखार थी. सारे बच्चे उनसे डरते थे. लेकिन मेरे विचार से वे नारियल की तरह थी, बाहर से कड़क, लेकिन अन्दर से बहुत ही कोमल और मीठी. मुझसे उनका विशेष स्नेह था, लेकिन करीब होने के खामियाजे भी मुझे ही भुगतने होते, जब वे गुस्से मे होती तो सबसे पहले मेरी ही क्लास लगाती, बाकियों का नम्बर तो बाद मे आता. हर टीचर्स डे पर हम उन्हे उपहार देते और वे हम सबके लिये कुछ ना कुछ मीठा लाती, कितने अच्छे दिन थे वे.

जैसे जैसे ज़िन्दगी मे आगे बढे, जीवन मे क‍ई कई शिक्षक मिले, जिन्होने समय समय पर सहायता की. मै सबका उल्लेख तो नही कर सकता, लेकिन एक टीचर के बारे मे जरूर कहना चाहूँगा वे थे, हमारे बीबीएल शर्मा जी, शर्मा जी वे हमारे पीटी टीचर हुआ करते थे, हमेशा हाथ मे एक रूल(डन्डा) लिये रहते, उनके बारे मे मशहूर था कि उनकी जुबान से ज्यादा उनका डन्डा चलता है.एक बार मै उनके हत्थे चढ गया, फ़िर क्या था, उन्होने बेहिसाब मारा, लेकिन मैने गिना, पूरे के पूरे इककीस डन्डे मारे, यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ हर जगह पड़े, शरीर का कोई हिस्सा नही छोड़ा था, मेरा कसूर क़्या था? अरे यार! मत पूछो, मै लड़को को उनकी एक्टिंग करके बता रहा था, अब मुझे क्या पता था कि वे पीछे खड़े खड़े पूरा तमाशा देख रहे थे. बस तब का दिन है और आज का दिन है, किसी भी टीचर की नकल करने की हिम्मत नही पड़ी. फ़िर भी वे मेरे आदर्श टीचर है.

एक और टीचर थे एयरफ़ोर्स से आये एक आफ़िसर मल्होत्रा सर!, मै एनसीसी की एयर विंग मे था, मल्होत्रा सर, हमे ग्लाइडर और माइक़्रोलाइट उड़ाना सिखाते थे, उन्हे मेरे हिप्पीकट बालो से विशेष स्नेह था, हमेशा पीछे से आकर बालो की खींचते थे(आह! कितना दुखता था यार!) और ताकीद करते कि अगली क्लास मे आने से पहले बाल छोटे छोटे होने चाहिये, और हमेशा की तरह मै अनसुना कर देता. क़्यो? अरे भ‍ई छोटे बाल फ़ैशन मे नही थे. मै कभी नही भूल सकता कि मल्होत्रा सर ने मेरे को जमीन से सैकड़ो फ़िट ऊपर जाकर (फ़्लाइट के दौरान) मारा था. मेरे ख्याल से कभी किसी के टीचर ने किसी शिष्य को इतनी ऊँचाई पर जाकर नही मारा होगा.

अब अन्त मे, मै पुन: अपने सारे गुरुओ को सादर नमन करता हूँ, क्योकि उनके बिना मै इस लायक ना होता कि यह ब्लाग लिख सकूँ.

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2 Responses to “बिन गुरु ज्ञान नही”

  1. सही कहते हो.सभी गुरुऒ को सादर नमन

  2. बढिया ,गुरु अगर देख रहे होते तो आज भी हड़काते कि हमारे जन्मदिन पर भी हमारी बुराइयां भी याद कर रहे हो.शर्माजी अपना पुराना रिकार्ड सुधार देते.