अनुगूँज १६: (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?

Akshargram Anugunj
अनुगूँज १६: (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?
(इस लेख मे कुछ कड़वे शब्द होंगे, कृप्या पढने मे सावधानी बरतें)
सबसे पहले तो अपने ईस्वामी जी का धन्यवाद, इस बार की अनुगूँज के आयोजन का और इतने सुन्दर विषय के लिये।
बचपन मे हमे कई बाते सिखाई जाती है जैसे झूठ बोलना पाप है , किसी को गलत बात नही बोलनी चाहिये, घूस लेना अनैतिक है, वगैरहा वगैरहा। ये हमे क्यों सिखाई जाती है, क्योंकि हमारे पिताजी को भी उनके पिताश्री ने सिखाई थी, ये तो परम्परा चली आ रही है, या फ़िर पड़ोस वाले शर्मा जी का बच्चा हमारे बच्चे से ज्यादा संस्कारी ना निकले इसलिये। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि हम इन थोथले संस्कारों की शिक्षा अपने बच्चों को देते है, उनका जीवन मे कुछ उपयोग है भी कि नही। जैसे उदाहरण के लिये एक रविवार को पिता ने बच्चे को शिक्षा दी कि झूठ नही बोलना चाहिये ये गलत है, लेकिन थोड़ी देर बाद आफ़िस से फ़ोन आ जाता है और बच्चा फ़ोन उठाता है तो वही पिता बोलता है कि फ़ोन करने वाले से बोलो, कि पापा घर पर नही है? ये तो विरोधाभास हुआ ना। बच्चे का कोमल मन, जो अभी अभी सीखा है कि झूठ नही बोलना चाहिये, आनन फ़ानन मे एक नया पाठ सीखता है कि कभी कभी बोलना चाहिये।यानि कि पिता की पहली शिक्षा गयी तेल लेने।

अब पिताजी का भी अपना एक राग है, वो बोलते है कि दुनियादारी मे बहुत प्रेक्टिकल होना चाहिये, इसलिये कभी कभी झूठ बोला जा सकता है। अमां तो फ़िर बच्चे को कन्फ़्यूजियाते क्यों हो, सीधे सीधे एक शिक्षा क्यों नही देते कि झूठ बोलो लेकिन पकड़े ना जाओ। आप भी खुश बच्चा भी खुश, लेकिन नही, वो शिक्षा नही देंगे, क्योंकि पड़ोस वाले शर्मा जी……………. यानि कहानी जहाँ से शुरु हुई वही पहुँच गयी कि संस्कार भी हम देखा देखी मे ही प्रदान करते है।

अब जैसा कि रवि भाई बता चुके है, बच्चे को बताया जाता है कि नकल और छल कपट नही करना चाहिये, लेकिन बच्चा देखता है कि धन्ना सेठ का अंगूठाटेक लड़का, क्लास मे टाप करता है तो बच्चा फ़िर सोचता है, कि मां बाप के उपदेश गलत है या फ़िर कंही कुछ और गड़बड़ है, यानि की क्वेशन मार्क तो लग ही गया ना। दरअसल हम बच्चे को वो माहौल ही नही दे पाते, या फ़िर आजकल की जिन्दगी मे घिसे पिटे, रटे रटाये संस्कारों की कोई वैल्यू ही नही है।

इसी तरह हमे सिखाया जाता है कि घूस नही लेनी/देनी चाहिये, लेकिन हमारा बच्चा घूस वाले डिपार्टमेन्ट मे काम कर और माल कमाये, ये सभी माता पिता की इच्छा रहती है, तो भई, खुल कर क्यों नही बोलते, संस्कार और शिक्षाये सिर्फ़ किताबो तक सीमित रखो। दरअसल हम बच्चों को नैतिक पाठ तो सिखा देते है लेकिन उसके लायक माहौल नही दे पाते,यही समस्या की जड़ है।

सुबह पिताजी बच्चे को शिक्षा देते है कि दारु नही पीना चाहिये, वंही पिताजी शाम को मित्र के साथ बैठकर दारूबाजी करते है क्यों वही दुनियादारी, प्रक्टिकल होने की वजह से। बच्चा फ़िर कन्फ़्यूज, देखा देखी मे वो भी शुरु कर देता है, पूछे जाने पर बोलता है आप भी तो पीते हो, बेचारे पिता के पास एक ही हथियार होता है, पिटाई। उससे समस्या सुलझे ना सुलझे, एक बात तो तय हो ही जाती है कि पिताजी के उपदेशों मे दोहरापन है और वे थोथले है।बात सुनने मे कड़वी जरुर लगती है, लेकिन सच्चाई यही है, कई घिसे पिटे उपदेशों का जीवन मे कोई मूल्य नही है। अगर पूरा पूरा पालन करो, तो संघर्ष मे ही जीवन काट दोगे और शायद मय्यत मे इक्के दुक्के लोग ही दिखेंगे और आपके जाने के बाद लोग आपको सिर्फ़ बेचारा ही सम्बोधित करेंगे।

हमारे एक गुज्जू मित्र है (भाईजी माफ़ करना) १०० प्रतिशत निरामिष| मांसाहार की तरफ़ देखते भी नही, कभी अगर किसी पार्टी मे मांसाहार दिख जाय तो राम रमैया करके ही वापस लौट जायेंगे।लेकिन पनीर के बड़े शौकीन, अब मिल्क प्रोडक्ट यूरोप मे नान वेज की श्रेणी मे आते है। एक दिन किसी ने खबर उड़ा दी कि “अनारी चीज” (ये उनका पसंदीदा पनीर है) मे तो चर्बी होती है, वे सन्न रह गये। सारा चीज घर से बाहर फ़ेंक दिया,फ़्रिज धोई वगैरहा, अबे फ़्रिज तो धुल जायेगी, लेकिन तन और मन का क्या करोगे? हर दूध मे चर्बी होती है, तो क्या मां का दूध नही पिया था? बचपन मे गाय का दूध नही पिया था? क्या चाय नही पीते हो? अगर हाँ तो इस चीज मे क्या खराबी थी। लेकिन नही, संस्कार ऐसे नही है ना। दोहरे मापदन्ड, मतलब जो संस्कार अपने मन मुताबिक हो वो सही, और जो नही वो गये तेल लेने। ये क्या माजरा है भई।

अब खुशबू का मसला ही ले लें। फ़िल्म एक्ट्रेस खुशबू के दक्षिण भारत मे मन्दिर तक है, लोग बाग बाकायदा पूजा करते है, एक दिन एक इन्टरव्यू मे कह दिया कि विवाह पूर्व सेक्स सम्बंध एक सच्चाई है, इसलिये लोग बाग अपनी बीबी से वर्जिनिटी की उम्मीद ना रखें। एक दम सही कहा था, ये सच्चाई है। लेकिन नही, लोग बमक गये, क्यो? क्योंकि लोग आईना नही देखना चाहते। उसका बायकाट तक कर दिया।तमिलनाड़ु में कई लोगों को लगा कि ख़ुशबू नौजवानों को ग़लत राह दिखा रही हैं, विरोध यहीं तक सीमित नहीं रहा, लोगों ने एक के बाद एक 25 जनहित याचिकाएँ तक दायर कर दी।

एक और मसला है सेक्स। बच्चों को सेक्स शिक्षा देने के नाम पर लोग बाग बोलते कि ये संस्कार मे शामिल नही है, बच्चे बिगड़ जायेंगे।अबे ये बताओ, हिन्दुस्तान मे गली गली मोहल्ले मोहल्ले मे मस्तराम डाइजेस्ट मिलती है उसको रोक सके हो? नही ना, जब गलत तरीके से दी जाने वाली शिक्षा नही रोक सके हो तो अच्छी तरीके से सेक्स शिक्षा देने मे क्या परेशानी है? पौराणिक काल मे हिन्दुस्तान मे बाकायदा सेक्स शिक्षा दी जाती थी, कामसूत्र, और खजुराहो के मन्दिर इसका सजीव उदाहरण है। ये तो मुगलों के बाद पर्दा प्रथा शुरु हुई जो आजतक जारी है, मतलब पर्दे के अन्दर कुछ भी करो, लेकिन बाहर पाक साफ़ रहो। निरा दोगलापन।

लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख भी है, सारे संस्कार, शिक्षा थोथले नही होते, लेकिन आज बात सिर्फ़ उन्ही संस्कारो की हुई है जो सिखाये तो कुछ जाते है, लेकिन जीवन मे उनकी प्रासंगकिता नही होती। मेरा तो सिर्फ़ इतना ही कहना है कि बच्चों को सोचने समझने के लायक बनायें, उन्हे संस्कार अपनाने की स्वतन्त्रता दें, उनपर कुछ थोपे नही। और अगर बच्चों को कुछ शिक्षा संस्कार दिये है तो खुद भी पालन करें, अन्यथा ये संस्कार और शिक्षा, किताबो और कहानियों तक ही सीमित रह जाने है।आशा है मै अपनी बात सरल शब्दों मे आपके समक्ष रख सका। आप भी अपने विचार प्रकट करने मे कंजूसी ना करें।

4 Responses to “अनुगूँज १६: (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?”

  1. इसलिये लोग बाग अपनी बीबी से वर्जिनिटी की उम्मीद ना रखें। एक दम सही कहा था, ये सच्चाई है। ये सच्चाई कबसे लागू हो गई?

  2. अनूप भाई,
    गुस्ताखी माफ़, लेकिन जमाना बदल गया है, आजकल सिर्फ़ लड़के ही मौज मस्ती नही चाहते, लड़कियों मे भी ये चलन सरे आम है।जगह ना मिले तो इन्टरनैट कैफ़े भी धड़ल्ले से प्रयोग किये जाते है। शादी पूर्व सम्बंध, आप माने या ना माने, जीवन की सच्चाई है। आप बुजुर्ग हो, इसलिये मै ज्यादा बहस मे ना जाकर, आपसे खुद इस मसले पर इन्वेशटीगेट करने को कहूँगा।

    बकिया चकाचक।

  3. बहुत सही लिखा है और मूड बना के लिखा है. कथनी और करनी मे फ़र्क होगा तो बच्चे सही अर्थो‍ मे संस्कारित नही होंगे.

  4. जबरदस्त
    बेबाक सच्चाई