होली के रूप अनेक:लट्ठमार होली

सभी को पता है कि भारत मे होली मार्च के महीने मे मनाई जाती है, लेकिन क्या आपको पता है पूरे देश मे अलग अलग प्रान्तो(यहाँ प्रदेश पढे) में होली को अलग अलग नामों से जाना जाता है। आइये एक नजर डालते है, होली के विभिन्न रूपों पर :

  1. बरसाना की लट्ठमार होली
  2. हरियाणा की धुलन्डी
  3. महाराष्ट्र की रंग पंचमी
  4. बंगाल का बसन्तोत्सव
  5. पंजाब का होला मोहल्ला
  6. कोंकण का शिमगो
  7. तमिलनाडु की कमन पोडिगई
  8. बिहार की फागु पूर्णिमा

चलिये आज बात करते है ब्रज के बरसाना की लट्ठमार होली की।
बरसाना की लट्ठमार होली
barsanaअब जब होली की बात हो और ब्रज का नाम ना आए, ऐसा तो हो ही नही सकता। होली शुरु होते ही सबसे पहले तो ब्रज रंगों मे डूब जाता है।सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली।बरसाना, भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा का जन्मस्थान। उत्तरप्रदेश मे मथुरा के पास बरसाना मे होली की धूम, होली के कुछ दिनो पहले ही शुरु हो जाती है और हो भी क्यों ना, यहाँ राधा रानी जो पली बढी थी। यहाँ की लट्ठमार होली बहुत प्रसिद्द है। इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ मे रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों(गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते है उन्हे महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है, महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मार मार कर लहुलुहान कर देती है। गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की आज्ञा नही होती, उन्हे तो बस गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है।अगर वे पकड़े जाते है तो उनकी जमकर पिटाई होती है या उन्हे महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके नचाया जाता है।माना जाता है कि पौराणिक काल मे श्रीकृष्ण भी गोप बने थे और उन्हे भी बरसाना की गोपियों ने नचाया था।दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है।एक बात और यहाँ पर रंग और गुलाल जो प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है।

अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव मे, वहाँ की गोपियां, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।कहते है इस दिन सभी महिलाओं मे राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस हँस कर लाठिया खाते है और होली को पारम्परिक तरीके से मनाते है।आपसी वार्तालाप के लिये ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।इस होली को देखने के लिये देश विदेश से हजारो सैलानी बरसाना पहुँचते है। तो आप आ रहे है ना इस बार बरसाना में, होली खेलने?

आप इन्हे भी पसंद करेंगे

2 Responses to “होली के रूप अनेक:लट्ठमार होली”

  1. मैने सुना है इस बारे मे, सचमुच रोमांचकारी समारोह है. जब कभी लाठीयाँ खाने को जी करेगा जरूर जाउँगा यँहा

  2. मुझे लगता है कि आपको शायद कोई ग़लतफ़हमी है। गोपों के पास एक ढाल जैसी चीज़ होती है और बरसाने की गोपियाँ जानबूझ कर उस पर ही लट्ठ मारती हैं, न कि उन गोपों को मार-मार के लहूलुहान कर देती हैं। मैंने तो ऐसा ही देखा है।