वो फ़ुर्सत मे छतियाना – 2

गतांक से आगे

चिट्ठी तो हम दे दिए, लेकिन दिल धक धक कर रहा था, पता नही वो क्या सोचेगी? पता नही क्या होगा। रह रहकर हमे चाचाजी के गुस्से का ध्यान आ रहा था, रात भर नींद नही आयी, आयी भी तो सपना बड़ा भयंकर देखा, हमने देखा चाचाजी हमको पंखे के हुक से उल्टा लटकाकर बेंत से मार रहे हैं और मै चिल्ला रहा हूँ, मत मारो, मत मारो… अचानक नींद खुली तो पता चला सुबह से पाँच बज चुके थे (मैं उन दिनो छत पर ही सोता था) और सामने वाली छत पर वो खड़ी हुई हमे निहार रही थी।शायद वो हमारे उठने का इन्तजार कर रही थी, पता नही कब से वो खड़ी थी, शायद उसे भी नींद नही आयी सारी रात। हमने उनके चेहरे को पढने (दूर से ही यार) की कोशिश की तो हमने पाया कि उनके होठों पर मुस्कान सी तैर रही है, हमारी जान मे जान आयी।हमे लगा कि अब चाचाजी के कोप का कोई डर नही। फिर भी हमे महेन्द्र बाबू की बात याद आयी कि

औरत जात का कोई भरोसा नही, ध्यान से कदम बढाना, कंही कोई फ़सन्ती हो गयी तो सब कुछ तुम्हारे ऊपर डाल देगी। (यहाँ ये नोट किया जाए कि ये महेन्द्र बाबू के विचार है, इसलिये कोई लानत वगैरहा उन्हे ही भेजिएगा, हमे नही)

हम भी चेहरे पर मुस्कान डालते हुए मुंडेर पर आ गए।गुड मार्निंग के बाद हमने डरते डरते पूछा कि कल आपको नोट्स मिल गये थे? उन्होने लजाते और मुस्काराते हुए जवाब दिया हाँ।उनका वो लजाना और शरमाना, उनके प्रेम का इजहार कर रहा था। उनकी इस हाँ में हमे इकरार की झलक दिख रही थी।हमारी तो बांछे ही खिल गयी, लगा जैसे हमने किला फ़तह कर लिया हो। दिल बल्लियों उछलने लगा और हमे महसूस हुआ कि हम सातवें आसमान पर है।इस तरह से हमारे प्रेम का इजहार हुआ, वो भी छत पर (शुकुल ये प्वाइन्ट नोट किया जाय)। उसका बात करने का अन्दाज, वो खनकती हुई आवाज, आज भी मेरे कानों मे जैसे शहद घोलती है, ये कोई फिल्मी डायलॉग नही है, जिसने प्यार किया सिर्फ़ वो ही महसूस कर सकता है।इशारे ही इशारे मे उन्होने हमे समझा दिया कि यहाँ बात करना खतरे से खाली नही है इसलिये बात करते समय ध्यान रखें।

बस फिर क्या था, हमारी प्रेम कहानी की गाड़ी चल पड़ी, दिन हो या रात, हम छत पर टँगे रहते, पढाई तो गयी तेल लेने, प्यार मोहब्बत चालू।चिट्ठी पत्री चालू, इधर महेन्द्र बाबू की सोहबत का असर कहें या दीवानापन, हमने भी धीरे धीरे प्रेम पत्र लिखने मे महारत हासिल कर ली। महेन्द्र बाबू के ‘गाइडेन्स’ पर चवन्नी चवन्नी इकट्ठी करके हम शेरो शायरी की किताब खरीद लाए (शुकुल नोट करें ये गोपाल टाकीज के पास नुक्कड़ पर एक दढियल बेचता था, साले ने सवा रुपये वाली किताब डेढ रुपये मे टिकाई थी, पूरा पूरा चवन्नी का लॉस, खैर इश्क पर सब कुछ कुर्बान) अब तो हम दिन रात शेरो शायरी मे डूबे रहते। हमे लगता सारी की सारी शायरी हमारे लिये लिखी गयी है। सारे दीवानो को एक जैसी फ़ीलिंग कैसे हो जाती है? खाने पीने मे मन नही लगता था, इधर घर वालों ने ताड़ लिया कि लड़का किसी लड़की के चक्कर वगैरहा मे पड़ गया।टिल्लू को हमारी जासूसी के लिये लगाया गया। टिल्लू कौन? अमां टिल्लू को नही जानते? टिल्लू……हमारा चचेरा भाई, जिन्दगी मे इसने जितने भी गलत काम किए, उसकी सजा हमे मिली, कभी कभी हमने भी उसका ये अहसान चुकाया , टिल्लू के बाकी किस्से यहाँ देखियेगा।

खैर टिल्लू भी हमारे साथ, छत पर पढने का नाटक करने लगा।टिल्लू लगातार हम पर नजर रखे था, इत्ती कि हम भुलकर भी सर उठाकर सामने वाली छत की तरफ़ भी नही देख सकते।टिल्लू था तो हम उम्र ही लेकिन लिहाज करते हुए हमे “दादा” कहकर सम्बोधित करता था।लेकिन हम लोग हर तरह की बातें कर लेते थे, वो वाली भी। टिल्लू ने बातचीत को शुरु करते हुए, उनकी तरफ़ इशारा करते हुए कहा, बहुत पढाकू दिखती है, है ना दादा। अब दादा क्या जवाब देते, ना हाँ कहते बना और ना।टिल्लू ने फिर उसके मुत्तालिक बात करने की कोशिश की तो हम इग्नोर मारे और हमने टिल्लू को हड़का दिया, कि दूसरे की बहू बेटियों के लिये ऐसा नही सोचते( यहाँ ये सीख टिल्लू के लिये थे, हमारे लिये नही।) टिल्लू ने उसकी थोड़ी तारीफ़ कर दी, हम मन मसोसकर रह गये, एक बार तो मन हुआ कि सबकुछ टिल्लू को बता दें फिर हम जानते थे, टिल्लू को कान्फ़ीडेन्स मे लेने का मतलब होगा, पूरे मोहल्ले को कान्फ़ीडेन्स मे लेना| इसलिये टिल्लू को हड़काकर रखने मे ही हमे समझदारी दिखाई दी।टिल्लू अपनी इन्कवायरी मे लगा रहा, उसे ना कुछ पता चलना था, ना हुआ हमने उसकी पूरी जाँच पड़ताल मे पूरा पूरा सहयोग दिया, उसे कुछ भी हाथ नही लगा, एकदम सीबीआई इन्कवायरी की तरह। टिल्लू ने अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट मे हमारे किसी भी प्रेम प्रसंग की बात को सिरे से खारिज कर दिया।

इधर हमारा प्रेम परवान चढने लगा था।उसके घरवालों ने भी मेरी देखादेखी, उसे छत पर एक शेड डलवाकर दे दिया था, हमारा इश्क दिनोदिन आगे बढता गया, चिट्ठी पत्री भी खूब हुई (सारी बातें यहाँ नही लिखेंगे)। अब हम एक दूसरे के घर पर भी आने जाने लगे थे ताकि एक दूसरे के घरवालों को भी ठीक से समझ सकें। खाली समय मे हम लोग कैरम बोर्ड भी खेलते थे, कैरम बोर्ड तो सिर्फ़ बहाना होता था, एक दूसरे के साथ बात करने का इससे अच्छा जरिया नही होता।लेकिन कहते है प्रेम कहानी वही सफ़ल कहलाती है जिसका अंजाम अच्छा नही होता।हम गर्व के साथ कह सकते है हमारा पहला प्यार सफ़ल था। भले ही ये प्रेम कहानी अपने अंजाम तक नही पहुँची लेकिन हमे काफ़ी कुछ सिखा गयी। पहला प्यार जिन्दगी का एक खुशनुमा अहसास होता है, जिसने इस अहसास को नही महसूस किया, वह जिन्दगी मे बहुत सी चीजों से मरहूम रहा। जिन्दगी यूं ही चलती रहती है।उसकी शादी कंही और हो गयी (शुकुल यहाँ नोट करें कि तम्बू कनात लगवाने मे हमने हैल्प नही की) इस तरह हम दोनो अपनी अपनी राहों पर आगे बढ चले।एक दूसरे से बिछड़ने का गम तो था ही लेकिन क्या करें?
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूं मैं
लेकिन ये सोचता हूं कि अब तेरा क्या हूं मैं

आखिरी मुलाकात मे हमने अलग होने का फ़ैसला लिया और यह डिसाइड हुआ कि आगे कभी एक दूसरे से मिलंगे तो अच्छे दोस्तों की तरह (शुकुल नोट करो, वो बच्चों को हमसे,मामा कहकर नही मिलवायेगी)
उस शाम वो रुख़सत का समां याद रहेगा
वो शहर वो कूचा वो मकां याद रहेगा
वो टीस कि उभरी थी इधर याद रहेगी
वो दर्द कि उठा था यहां याद रहेगा
हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
तू याद रहेगा हमें हां याद रहेगा

अब लोग बाग पूछेंगे क्या कभी आपको उनसे दोबारा मिलने की इच्छा नही हुई, क्यों नही हुई जनाब, लेकिन क्या करें,वक्त ने ऐसा जुदा किया कि फिर कभी दोबारा मुलाकात ही नही हुई। पता नही कहाँ होगी वो, हमने पता करने की कोशिश नही की(ये डील मे शामिल था) वो जहाँ भी कंही होगी मेरा ब्लॉग पढती भी होगी कि नही।बस दिल से यही आवाज आती है कि वो जहाँ कंही भी रहे खुश रहे।उस से मिलने कि बहुत इच्छा है, लेकिन अपने रवि रतलामी जी है कि ढूंढते ही नही।हम मन को मसोसकर, बस कतील शिफ़ाई की ये गजल गुनगुनाकर रह जाते हैं।

मेरी पसन्द :
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझ को भूल के ज़िन्दा रहूं ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
‘कतील’ जान से जाए पर इल्तजा न करे
-कतील शिफ़ाई

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9 Responses to “वो फ़ुर्सत मे छतियाना – 2”

  1. शुक्र हैं कि वो आपको मिठ्ठी यादों के सहारे छोङ गई.
    हमे तो ऐसी यादों का सहारा भी नसीब न हो सका. जिन से पहला प्रेम किया उनसे ही शादी कर बैठे.
    (दुःखांत पर हमारी हार्दीक संवेदनाएं)

  2. वाह जीतू भाई क्या छक्का मारा है! आपकी रोचक लेखन शैली का भी ज़वाब नहीं। भैया छत पर ‘पढ़ने’ का वो ज़माना मुझे भी याद है! छ्तें वाक़ई हमारे बचपन का कितना इम्पार्टैंट अंग रही हैं। अब तो हमें छतें ही नहीं नसीब हैं।

  3. :
    :
    ये सबकी लव स्टोरी एक जैसी सी क्यूँ लगती है?
    कहानी अपनी ही लिखो पर हमारी सी क्यूँ लगती है?
    कुछ रातों को सारी दुनियाँ ही संग हमारे क्यूँ जगती है?
    ये सबकी लव स्टोरी एक जैसी सी क्यूँ लगती है?
    :
    :

  4. और हां, ये शेर कहाँ से टोपो किये?

  5. बहुत बढिया वर्णित कियें हैं, व्यथा कथा.

  6. आपकी प्रेम कहानी रोचक लगी. भगवान करे, उनकी नज़र आपके इस ब्लॉग पोस्ट पर पड़े.

  7. तमाम बातें जो छिपा गये वे भी बताने में कोई हर्जा नहीं था। जब तुम सबेरे-सबेरे टकटकी लगा के ताक रहे थे तो वो प्राइमरी की कविता दोहरा रही थी –
    उठो लाल अब आंखे खोलो,पानी लाई हूं मुंह धो लो।
    हाथों में हाथ लेकर रोने-धोने वाला किस्सा जो जग जाहिर है वो काहे छिपारहे हो नये लोगों से!गोपाल टाकीज के पास से किताब वाले से किताबें खरीद के पढ़ने की बजाय किराये पर लेकर
    पढ़ने से किसी डाक्टर ने रोका था क्या?

  8. अच्छा लिखते हो भैया और बहुत ईमानदारी से लिखा है भगवान आपको और आपके प्रियतमा को सलामत रखे। आमीन।

  9. wells I m really feeling very sad 4 you.

    eisa kyon hota hai, ki jab dono ek – doosre ko itna yar karte hai t atlast unko alag hona padta hai !!!

    ek gana yaad aa raha hai ..

    Zindgi me kabhi koi aaye na rabba
    aaye to kabhi phir jaaye na rabbba
    dene ho gar tujhe bad me aansooooo
    to pahe ko hansaaye na rabbaaa

    bhagwan plz kisi bhi pyar karne wale ko alag na karna