मौत का तमाशा

कुछ खबरें स्वतन्त्रता दिवस की नेताओं के भाषणों मे दबकर रह जाती है। आइये आपको एक सच्ची खबर से रुबरु करवाए, जिसके बारे मे सुनकर हमारा सिर शर्म से झुक जाना चाहिए।

यह दु:खद खबर स्वतन्त्रता दिवस के दिन घटित हुई। कल स्वतन्त्रता दिवस के दिन जब प्रधानमन्त्री लाल किले की प्राचीर से गरीबी और आतंकवाद के विरुद्द लड़ाई छेड़ने का आह्वान कर रहे थे, लगभग उसी समय बिहार के गया जिले मे मनोज मिश्र नाम का यह व्यक्ति, सरकारी डेयरी मे अपना बकाया ना मिलने की वजह से आत्मदाह कर रहा था। अस्पताल मे डाक्टरों ने उसको मृत घोषित कर दिया। गया के एसपी अमित कुमार जैन ने बताया कि मनोज एक ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था। उसका आरोप था कि बिहार सरकार की ‘सुधा डेयरी’ पर उसके दो लाख रुपये से अधिक बकाया हैं। जो उसे नहीं दिए जा रहे। यही नहीं, डेयरी के अधिकारियों ने दूध और अन्य उत्पादों को लाने ले जाने के लिए उसके बजाय किसी अन्य ट्रांसपोर्टर को नियुक्त कर दिया। ऐसे हालात ने उसे कर्जदार बना दिया और परिवार के सामने भुखमरी के हालात उत्पन्न हो गए। और उसके सामने सुधा डेयरी के सामने आत्मदाह की कोशिश करने के अलावा और कोई चारा नही बचा था।

लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस व्यक्ति को आत्मदाह करने के लिये उकसाने वाले टेलीविजन मीडिया के लोग थे। किसलिए? अपने घटिया स्वार्थों के खातिर। वहाँ पर मौजूद मीडिया के लोगों ने इस जलते हुए व्यक्ति के हर एंगिल से फोटो खींचे और वीडियो बनायी, लेकिन किसी भी व्यक्ति मे इतना साहस नही था कि इस व्यक्ति को बचाएं। लगभग हर न्यूज चैनल वाला घटना स्थल पर मौजूद था, लेकिन उसे किसी ने क्यों नही रोका?हम पूछते हैं कि ये कि ये ख़बर-ख़बर चिल्लाने वाले , रोज़ सनसनीखेज़ ख़बरों का भोपूं बजाने वाले शिखंडी क्यों मौन रहे एक युवक को जलता देखकर?

मैंने देखा था मनोज ने माचिस की तीली जलाई और आग पकड़ने में तीन से चार मिनट का वक़्त लगा.. तब तक उछलकर पकड़ लेना था..जब वो जल गया और ज़मीन पर लोटने लगा तो आवाज़ सुनाई दे रही थी कि पानी लाओ..पानी लाओ, पहले क्यों नही कोई आगे बढा? उनके हाथों मे मेहंदी लगी थी, या उनके कदम स्टूडियो मे बैठे उनके आकाओं के रोक रखे थे या फिर वे भी मौत के तमाशे को दुनिया को दिखाकर अपनी टीआरपी बढाना चाहते थे। जब वो बंदा पूरी तरह से जल गया तो पुलिस की आमद देखते ही मीडिया वाले भाग खड़े हुए। ये कैसी पत्रकारिता है?

दूसरी तरफ़ कुछ टीवी चैनलो ने चतुराई दिखाई, इससे पहले कि कोई और सवाल उठाए, उन्होने खुद ही अपने को पाकसाफ़ बचाते हुए दूसरे चैनलों के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया। अरे तुम्हारे बन्दे भी तो वहाँ पर थे? वो क्या तेल बेच रहे थे? या भांग खाकर सोए हुए थे? या उनके पैरों मे बेड़िया बंधी थी या तुमने खुद उनको ब्रेकिंग न्यूज की खातिर उनको मना कर रखा था? इसी जगह अगर कोई दूसरा पत्रकार इस तरह जल रहा होता तो क्या नही बचाते? तुम्हारे घर परिवार का सद्स्य होता तो क्या नही बचाते? क्या पुलिस, एम्बुलेन्स को फोन नही करते? लेकिन नही, इनके मीडिया रिपोर्टरों ने पुलिस को फोन करने के बजाय स्टूडियो मे बैठे अपने आकाओं को फोन किया कि ब्रेकिंग न्यूज बन रही है बताओ किस किस एंगिल से शूट करना है। क्या यही है पत्रकारिता धर्म? कहाँ गयी इन्सानियत?

पत्रकार राष्ट्र के पहरी होते है,सूचना देना इनका कर्तव्य होता है, लेकिन संवेदनहीनता की हदे पार कर गए है ये लोग।मीडिया मे होने से पहले ये इन्सान है, ये लोग इन्सानियत का पाठ कैसे भूल गए? अगर ये इनमे इन्सानियत नही बची तो पत्रकारिता जैसे गरिमामय पेशे मे इनका कोई स्थान नही होना चाहिए।ऐसे लोगो को तुरन्त दन्डित किया जाना चाहिए। वे तमाम मीडिया कर्मी जिन्होंने मिश्रा को उकसाया और जलने में मदद पहुंचाई, उन्हें तुरन्त नौकरी से निकाल देना चाहिए। पुलिस की कार्रवाई अलग से हो। अब देखते है हाथों मे चूडि़या पहने और हाथ पर हाथ धरकर बैठने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया के आकाओं का इस मसले पर क्या रवैया रहता है।दूसरी तरफ़ पुलिस भी निष्पक्ष होकर काम नही कर रही। पुलिस क्यों डर रही है मीडिया पर हाथ डालने से? नामजद रपट क्यों दर्ज नहीं की गई? जबकि दुनिया ने देखा कि कैसे स्टार, एनडीटीवी और ज़ी और सहारा पर फुटेज दिखाए गए थे. ये सीन कहां से आ गए? इन सभी चैनलों को नोटिस भेजा जाना चाहिए।
हमारा कहना है :

१.मनोज मिश्रा के परिवार को ये चैनल वाले आर्थिक मदद देकर अपने पाप का प्रायश्चित करें।
२.मौत का नंगा नाच देखते हुए खामोश रहने वाले तथाकथित पत्रकारों को नौकरी से निकाला जाए।
३.पुलिस प्रशासन इनके ख़िलाफ़ नामजद रपट दर्ज करे और आगे की क़ानूनी कार्रवाई करे।
४. सरकार मिश्रा के परिवार को बकाया रकम का भुगतान तुरंत करें।

मुझे पता है आपको इस खबर को अखबारों मे ढूंढने मे परेशानी होगी, इसलिए सारे लिंक यहाँ दे रहा हूँ

टाइम्स आफ इन्डिया :
PatnaDaily
अमर उजाला
राष्टीय सहारा

आखिरी खबर मिलने तक :धारा ३०६ के अंतर्गत उकसावे के लिए अज्ञात मीडियाकरों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया गया है. लेकिन अनाम के ख़िलाफ़ रपट दर्ज क्यों हुई है? जबकि पुलिस और लोगों को साफ़ पता है कि वहां कौन कौन मौजूद था. फिर क्यों नाम नहीं डाले गए प्रथम सूचना रपट में?जबकि एसपी अमित जैन का कहना है कि मीडिया कर्मी मनोज के साथ ही पहले से मौजूद थे और उन्होंने ही जलने के लिए डीज़ल का जुगाड़ कराया था।

इन पत्रकारों के ख़िलाफ़ कौन-सा दंड तय किया जाना चाहिए ये जनता तय करे। आप अपने विचार टिप्पणी मे अथवा अपने ब्लॉग पर लिखें।

9 Responses to “मौत का तमाशा”

  1. वाकई बेहद शर्मनाक है यह घटना.

    बजाय इसके कि वे मीडिया कर्मी ‘मनोज’ को ‘कवर’ करते, अगर उन्होनें उन सरकारी लोगों को ‘कवर’ किया होता और ‘जीवित’ मनोज की दास्तान मय सबूतों के अपने चैनल पर दिखाई होती तो हो सकता था कि अभी हालात कुछ और होते – वह बेचारा भी अपने परिवार के साथ स्वाधीन भारत के ६०वें वर्ष में साँस लेता और -गुनहगारों के सामने एक और सबक आता कि भ्रष्टाचार से अब तो तौबा कर लें.

    मगर ये खबर पढ कर तो लगता है कि आजकल जिंदा आदमी के बजाय मरता हुआ और मरा हुआ आदमी ज्यादा मायने रखने लगा है.

  2. अरे भाई टीवी चैनेल वालों के लिये जिंदा-मुर्दा आदमी से ज्यादा जरूरी है सनसनाती खबर! वो दे दी उनलोगों ने।

  3. मन विशाद से भर गया. मुझे इस खबर का पता नहीं था. केबल हैं नहीं और समाचारपत्र आज आए नहीं.
    कल मैने लिखा था 15 अगस्त का अवसर ऐसा हैं की आज जश्न मनाओ. अब शर्म आ रही हैं.

  4. कई बार ऐसा होता है कि कहने को कुछ शब्द नहीं मिलते बस यह लेख पढ़ने के बाद यही हाल है, पत्रकारिता का यह सबसे घटिया स्तर है। डेयरी वाले भी कम दॊषी नहीं , कार्यवाही उन पर भी होनी चाहिये।
    १५ अगस्त का सारा उत्साह ठंडा हो गया।

  5. मामला तो बड़ा ही दर्दनाक और शर्मनाक है। हालाँकि मैं किसी के किसी भी कारणवश आत्मदाह समर्थन नही करता, पत्रकारों की ये हरकत की जितनी घृणा की जाये कम है। मानवाधिकार संगठन को तुरंत ही इनके खिलाफ बदनामी का प्रचार और मुकदमा चलाना चाहिये। अपने स्तर पे मैं इसे अपने मित्रों को भेजूँगा।

  6. काम करते करते संवेदनहीन मशीन बन जाने को आजकल प्रोफेशनलिज्म का नाम दिया जाता है साहब। मीडिया में प्रोफेशनलिज्म(?) आ गया है मैच्योरिटी आने में टाईम लगेगा।

  7. इस बात की जितनी भी निंदा की जाये, कम है. मिडिया के व्यवसायीकरण का यह एक नमूना मात्र है कि व्यवसाय की इस जंग मे सही गलत का भेद भूला बैठे हैं.

    अति शर्मनाक…

  8. इस खबर का पता आपके लेख से ही चला।
    पीत पत्रकारिता के नित नये आयामों को छूता भारतीय मीडिया किस हद तक और कहां तक गिर सकता है, इससे बडी मिसाल नही मिलेगी। उन चैनलों को और लोगों को सजा तो मिलनी ही होगी।
    मुझे लगता है, भारतीय मीडिया पूरी तरह घटिया और गिरे हुए लोगों से भर गया है। नीरज भैया या शशि जैसा शायद ही कोई ईमान वाला बचा हो वहां। जितनी भर्त्सना की जाय कम ही है।

  9. भारतीय मीडिया में कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो चहुंओर गंदगी का साम्राज्य है. कोई लगाम लगाने वाला है ही नहीं, क्योंकि जो लगाम लगा सकते हैं, वो ख़ुद भ्रष्टाचार से बजबजा रहे हैं.

    कैसे-कैसे भ्रष्ट पत्रकार हैं?…एक बार दिल्ली में रिज़र्व बैंक के पीछे स्थित आईएनएस(इंडियन न्यूज़पेपर्स एसोसिएशन) के आसपास घंटा-दो घंटा बिता कर देखें, पता चल जाएगा. ये तो पुराने ढर्रे के पत्रकार हुए यानि कागज़ वाले.

    नए ढर्रे के पत्रकार यानि टीवी वाले कैसे हैं, एक झलक warfornews नामक ब्लॉग पर जाकर देखें. ख़ासकर ब्लॉग पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं को पढ़ें. बताता चलूँ, कि पत्रकारों, ख़ासकर दिल्ली के पत्रकारों में ये ब्लॉग बेहद लोकप्रिय है.