एन.आर नारायणमूर्ति:एक परिचय

भारत में साफ्टवेयर उद्योग की बात होते ही नारायणमूर्ति और उनकी कम्पनी इनफोसिस का जिक्र अपने आप आता है। नारायणमूर्ति भारतीय साफ़्टवेयर उद्योग के प्रणेता ही नही वरन विदेशों मे भारतीय कम्पनियों का झन्डा ऊँचा करने के प्रेरणा स्त्रोत भी है। नारायणमूर्ति ने दुनिया को दिखा दिया है यदि आप मे आत्मविश्वास है, कुछ कर गुजरने की क्षमता है, तो सफ़लता हमेशा आपके कदम चूमेगी। उन्होने अपनी प्रतिभा और मेहनत की बदौलत अपनी कम्पनी इन्फ़ोसिस को उन गिनी चुनी कम्पनियों के समकक्ष खड़ा कर दिया है जिन के बारे मे सोचने के लिये भी लोग जिन्दगी गुजार देते है। नारायणमूर्ति ने सफलता की नयी परिभाषाएं गढते हुए भारतीय कम्पनियों को बताया कि पूरी दुनिया के दरवाजे हमारे लिए खुले हुए है। आज श्रीनारायणमूर्ति का जन्मदिवस है और आज ही यानि २० अगस्त, २००६ को श्री नारायणमूर्ति सेवानिवृत हो रहे है। यह भी संयोग ही है कि आज के ही दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी का भी जन्मदिन है जिन्होंने भारत में कम्प्यूटर क्रान्ति की भूमिका बनाई ।

नारायणमूर्ति का जन्म २० अगस्त, १९४६ को कर्नाटक के मैसूर मे हुआ। नारायणमूर्ति शुरु से ही प्रतिभाशाली थे, जहाँ दूसरे छात्रों को प्रश्नपत्र हल करने मे घन्टों लगते वही नारायणमूर्ति चुटकियों मे उसे सुलझा लेते। नारायणमूर्ति को हमेशा से ही आई आई टी मे पढने का शौक था। इसी खातिर वो मैसूर से बैंगलौर आए। जहाँ पर १९६७ मे इन्होने मैसूर यूनीवर्सिटी से बैचलर आफ इन्जीनियरिंग और १९६९ में मास्टर आफ टैक्नोलाजी (M.Tech) आई आई टी कानपुर से की।
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कैरियर :
अपने कैरियर की शुरुवात इन्होने पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स (PCS) , पुणे से की। PCS मे काम करते हुए नारायणमूर्ति ने कई उपलब्धियां हासिल की । पूना में ही इनकी मुलाकात सुधा से हुई जो उस समय टाटा में काम करतीं थी तथा आज इनकी धर्मपत्नी है। नारायण मूर्ति अपनी खुद् की कंपनी शुरू करना चाहते थे लेकिन ऊंची सोच वाले मूर्तिजी के पास पैसे की तंगी थी।बाद में अपनी पत्नी से १०,००० रुपये उधार लेकर हिस्से के शेयर के पैसे लगाकर अपने ६ और साथियों के साथ १९८१ मे नारायणमूर्ति ने इन्फ़ोसिस कम्पनी की स्थापना की।मुम्बई के एक अपार्टमेंट में शुरू हुयी क्म्पनी की प्रगति की कहानी आज दुनिया जानती है। सभी साथियों की कड़ी मेहनत रंग लाई और १९९१ मे इन्फ़ोसिस पब्लिक लिमिटेड कम्पनी मे तब्दील हुई। १९९९ मे कम्पनी को उत्कृष्टा और
गुणवत्ता का प्रतीक SEI-CMM हासिल किया। १९९९ मे वो स्वर्णिम अवसर आया, और इन्फोसिस ने इतिहार रचा, जब कम्पनी के शेयर अमरीकी शेयर बाजार NASDAQ मे रजिस्टर हुए। इन्फोसिस ऐसा कर दिखाने वाली पहली भारतीय कम्पनी थी।

नारायणमूर्ति १९८१ से लेकर २००२ तक कम्पनी मुख्य कार्यकारी निदेशक रहे। २००२ मे उन्होने कमान अपने साथी नन्दन नीलेकनी को थमा दी, लेकिन फिर भी इन्फोसिस कम्पनी के साथ वे मार्गदर्शक के दौर पर जुड़े रहे। नारायणमूर्ति १९९२ से १९९४ तक नास्काम के भी अध्यक्ष रहे। बहुत कम लोग जानते हैं कि नारायणमूर्ति जेल की भी हवा खा चुके हैं। उन्हीं के शब्दों में:-

हम लोग १९७४ में बुल्गारिया में थे।एक ल़डकी मुझसे फ़्रेंच में बात करने लगी। ट्रेन में एक नौजवान इस बात से झुंझला गया क्योंकि वह उससे बात न करके मुझसे बात कर रही थी। अगली घटना यही हुयी कि मैं तीन दिन के लिये जेल में ठूंस दिया गया ।एक अजनबी धरती पर तीन दिन बहुत लम्बा समय होता है। पहले दिन के बाद ही हालत खराब होने लगती है यह सोचकर कि कभी निकलना भी हो पायेगा क्या !लेकिन मैंने कभी आशा नहीं छोडी।

नारायण मूर्ति को २००० में भारत सरकार द्वारा उनकी उपलब्धियों के लिये पद्मश्री पुरुस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा तकनीकी क्षेत्र में तमाम पुरस्कार समय-समय पर मिलते रहे।सन २००५ में नारायण मूर्ति को विश्व का आठवां सबसे बेहतरीन प्रबंधक चुना गया। इस सूची में शामिल अन्य नाम थे-बिल गेट्स,स्टीव जाब्स तथा वारेन वैफ़े ।

हालांकि नारायण मूर्ति आज अवकाश ग्रहण कर रहे हैं लेकिन वे इन्फ़ोसिस के मानद चेयरमैन बने रहेंगे । श्री नारायण मूर्ति ने असम्भव को सम्भव कर दिखाया। भारत के इतिहास मे नारायण मूर्ति का नाम हमेशा लिया जाएगा। भारत के ऐसे लाल को हमारा शत शत नमन। नारायण मूर्ति के दीर्घ ,सक्रिय,स्वस्थ जीवन के लिये मंगलकामनायें।

4 Responses to “एन.आर नारायणमूर्ति:एक परिचय”

  1. बहुत बढ़िया! अब इसे धीरे से हिंदी विकिपीडिया में भी डाल दो। जो लोग इनफोसिस में काम कर चुके हैं उनके यदि कोई अनुभव हों तो वे भी लिखें।

  2. जून में बंगलौर से लौटते वक्त प्लेन में हमारी बराबर वाली सीट पर नारायण मूर्ति जी बैठे थे। शाम को प्रधान-मन्त्री से मिलने के बाद रात की फ्लाइट से वह अमरीका जा रहे थे शायद इसलिए अधिकतर समय वह सोते रहे। मन था कि उनसे कुछ बातचीत की जाए और मैं उनके जगने के इन्तज़ार में थी। परन्तु जब वे उठे तो उनके हाव भाव में इतनी बड़ी कम्पनी के संसथापक के ठोस आत्मविश्वास की जगह मैने बच्चों सा उतावला पन पाया बल्कि यह शक होने लगा कि वे कोई और है। दिल्ली लैंड करने के १५ मिनिट पहले उनसे बात हुई और समझ में आया कि शायद उनकी सफलता का राज़ अत्याधिक जिज्ञासा और शांत न बैठ कर कुछ न कुछ करने का उतावला पन है। मेरी ओर से उन्हें बधाई।

  3. हमारी तरफ़ से भी बहुत बधाई और शुभकामनायें भारत के इस सपूत को.

  4. आपकी ये वाली पोस्ट यहां डाली है। आशा है कि आपको अच्छा लगेगा।