सरहद के पार दिल के पास : २

पिछली बार हमने बात की थी कुछ गज़ल गायकों की। कुछ लोगों को लगा कि मैने लेख जल्दी मे लिखा है, तीन बड़े फनकारों को एक छोटे से लेख मे समेट दिया। दरअसल, मेरा ऐसा कोई इरादा नही था। मै तो हरेक कलाकार पर एक पूरा लेख लिखना चाहता था, लेकिन यदि ऐसा करता तो यह एक सीरीज ही बन जाती। खैर, अब आप लोगों ने कहा है तो जरुर, इसको पूरी सीरीज के तौर पर लिखा जाएगा। तो जनाब आज पेश है इस सीरीज का दूसरा भाग। नोश़ फरमाइए।

सूफी संगीत और सिंध का रिश्ता चोली दामन का रिश्ता जैसा है। हमारे घर मे भी सिन्धी सूफी संगीत बहुत बजा करता था। पहले मुझे सूफी संगीत पसन्द नही आता था, क्योंकि अव्वल तो आधा ऊपर से निकलता था, दूसरा सूफी गायक एक एक शेर/कलाम को इतना खींचते थे कि चिढ मचने लगती थी। फिर ऊपर से पूरी रात का प्रोग्राम हुआ करता था।बचपन मे दादाजी और चाचाजी, मुझे मेरी मर्जी के खिलाफ ऐसे कई जलसों मे ले जाया करते थे। लेकिन जिस दिन मेरा झुकाव इस तरफ होने लगा तो सूफी संगीत से बहुत लगाव और अपनापन सा महसूस होने लगा। मै सूफ़ी कलामों और सूफी संगीत से काफी नजदीक का रिश्ता रखता हूँ। चलिए वापस बात करते है सरहद पार के फनकारों की।

लेकिन जनाब हमारे पसंदीदा फनकारों मे सिर्फ़ गायक ही नही है,हमारी पसंद मे पाकिस्तानी गायिकाएं भी है। दर असल सूफ़ी संगीत पैदा और पनपा था सिंध प्रदेश की सूफी दरगाहों में। रात रात भर, कई कई कलाकार सूफी संगीत पेश करते थे, जिन्हे सिन्धी भी “भग़त” कहते थे। ऐसे ही सूफी संगीत की महारत हासिल है बहुत ही मशहूर गायिका आबिदा परवीन को। आबिदा आपा किसी परिचय की मोहताज नही है। सूफी गायिकी मे इनका विशेष स्थान है। आबिदा जी का गायन खालिस सूफियाना अलमस्त अन्दाज का है।

aabidaसाठ के दशक मे एक सूफी संगीत के एक मशहूर फनकार हुआ करते थे, नाम था हैदर शाह जी, अक्सर सक्खर और लारकाना के सूफी दरगाहों पर पाए जाते थे। इनका सूफी संगीत बहुत पापुलर था।लोग इनको दूर दूर से सुनने आया करते थे। इनके साथ इनका साथ देती थी, इनकी आठ साल की छोटी बच्ची जिसे आज हम आबिदा परवीन के नाम से जानते है। धीरे धीरे बच्ची की आवाज लोगों को भा गयी। इनकी आवाज सुनकर हैदराबाद सिंध के एक प्रोड्यूसर शेख गुलाम हुसैन को इनसे सूफी अन्दाज मे कलाम रिकार्ड करवाने का विचार आया। आइडिया बहुत अच्छा था, और इसके साथ ही आबिदा आपा का पहला एलबम “शाह जो रिसालो” दुनिया के सामने आया। उसके बाद से आबिदा ने फिर कभी पीछे पलट कर नही देखा। सूफी संगीत थोड़ा अलग किस्म का होता है, इसको समझने के लिये थोड़ा अलग टेस्ट चाहिए होता है। अमीर खुसरो, बुल्ले शाह, सचल सरमस्त, कबीर, वारिस शाह ने के लिखे सूफी कलामों को आबिदा आपा की आवाज मे सुनने का अलग ही लुत्फ़ आता है। यदि आपने कभी भी आबिदा को नही सुना है तो मेरी गुजारिश है कि आप जरुर सुनिए, शुरुवात के लिए आप कुछ आसान से कलामों को सुन सकते है। धीरे धीरे जैसे जैसे आप इस रस मे डूबने लगेंगे तो हर तरह के गीत आपको पसन्द आने लगेंगे। ऐसा नही है कि आबिदा ने सिर्फ़ सूफी कलाम गाए है, गज़लो और नज़मों को भी उतना ही खूबसूरती से गाया है। गज़लों पर भी उनके काफी सारे एलबम मिल जाएंगे। यदि आपको आबिदा जी के लाइव प्रोग्राम की सीडी मिल जाए तो जरुर सुनिएगा।

जाते जाते कुछ लिंक दे रहा हूँ, उम्मीद है आपको पसन्द आएंगे।

अगले लेख मे बात करेंगे कुछ पाकिस्तानी पॉप सिंगर्स की।

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