फिल्म समीक्षा :डोर

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कल ही फिल्म डोर देखने को मिली। मेरी शाम अच्छी कटी। काश हर फिल्म इतनी अच्छी तरह से कहानी कहती। नागेश ने फिर से दिखा दिया कि वे एक बहुत ही सुलझे हुए डायरेक्टर है। सीन बाई सीन कहानी कहने की क्षमता है इनमे। कहानी हिमांचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों और राजस्थान की सुनहरी रेत पर फिल्माई गयी है।फोटोग्राफी कमाल की है, राजस्थान इससे खूबसूरत किसी भी फिल्म में नही दिखा।

सचमुच बहुत सुन्दर फिल्म है। नागेश कुकनूर की यह फिल्म दो महिलाओं के जीवन पर आधारित है। जीनत (गुल पनाग) का पति सऊदी अरब मे नौकरी करने जाता है, जहाँ एक हादसे मे उसके रूम पार्टनर राजस्थान के शंकर सिंह की हत्या हो जाती है और उसे फांसी की सजा सुनाई जाती है। सऊदी कानून के मुताबिक यदि मृतक की पत्नी, हत्यारें के माफीनामे पर हस्ताक्षर कर दें तो उसकी सजा माफ हो सकती है। मजबूत इरादों वाली जीनत, अपने पति को बचाने के लिए, राजस्थान के लिए निकल पड़ती है……. ना. ना, बाकी की कहानी नही सुनाऊंगा, आप फिल्म देखिए। फिल्म मे कई सारे सीन इतने अच्छे बन पड़े है मजा आ गया। मुझे सबसे अच्छा सीन कज़रारे कज़रारे… वाला डांस लगा।

ayeshatakiaडायरेक्शन बहुत कमाल का है, नागेश कुकनूर ने भी एक छोटी सी भूमिका निभाई है। फिल्म का सबसे सशक्त पक्ष है खूबसूरत फोटोग्राफी, शानदार अभिनय, मजबूत पटकथा, माकूल बैकग्राउन्ड म्यूजिक और सलीम सुलेमान का गुनगुनाने लायक संगीत। मेरे अजी़ज पाकिस्तानी गायक शफाकत अमानत अली खां (मितवा…फेम ) का गया हुआ ये हौंसला सभी गानों पर भारी पड़ा है। कलाकारों मे गुल पनाग, आएशा टाकिया और बहरूपिए के किरदार में श्रीयस तलपाडे (इकबाल वाला) का अभिनय बहुत शानदार है। आएशा टाकिया, दूसरों पर भारी पड़ी है। मासूम सी मीरा के रोल मे उसने सभी रंग दिखा दिए, उसकी आँखे बोलती है, इस अदाकारा मे अपार सम्भावनाएं है। उसने दिखा दिया है कि अगर डायरेक्टर अच्छा हो तो उससे बहुत शानदार अभिनय करवाया जा सकता है। श्रीयस तलपाडे का भी अभिनय गज़ब का है। तरह तरह की वेशभूषा मे बहुत अच्छा लगा है, डॉयलाग डिलीवरी भी जबरदस्त है। अगर आपको फिल्म देखने को मिले तो जरुर देखिएगा, ऐसी फिल्मे छोड़नी नही चाहिए। मै तो इसे अपने कलैक्शन मे रख रहा हूँ।

कहते है कि कहानी ओरिजनल नही है, एक मलयालम फिल्म की हूबहू नकल है, अब मैने वो मलयालम फिल्म नही देखी, इसलिए कुछ टिप्पणी नही कर सकता, लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि कहानी को अच्छी तरह फिल्माना भी एक कला है और नागेश इस काम के महारथी है। तो आप देखिए इस फिल्म का ट्रेलर मै तो चला, नागेश की बाकी फिल्मों की डीवीडी लेने।

फिल्म : डोर
आफिशल साइट : ढूंढे नही मिली
संगीत : यहाँ पर सुनिए ( मेरी पसंद, “ये हौंसला कैसे झुके“, दोनो वर्जन)
दूसरी समीक्षाएं : यहाँ, और यहाँ देखिए|

8 Responses to “फिल्म समीक्षा :डोर”

  1. ज़रूर देखेंगे फ़िलम। सुना है गुल पनाग भी इसमें उनका काम कैसा लगा आपको?

  2. जीतू भाई इतनी तारीफ़ कर दी अब तो फ़िल्म देखनी ही पड़ेगी

  3. फिल्म का अंत मुझे अखरा। बहुरूपये को अचानक ही गायब कर दिया गया. वो तो इतना सशक्त किरदार था, उसका गायब हो जाना बडी चुक थी।

    मैं कथा का अंत कुछ और करता। आयशा ट्रेन के पीछे भागती है, यह दृश्य अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है। कैसा रहता वो गिर जाती और ट्रेन छुट जाती…..

  4. यह फिल्म देखने की सिफारीश तो मैं भी करूंगा, हो सके तो जरूर देखें.
    हालाकी पसन्द अपनी अपनी. मुझे मुन्नाभाई मार्का फिल्मे पसन्द नहीं आती.
    फिल्म मैंने पंकज के साथ ही देखी थी, मेरा मत भी वही हैं जो पंकज ने लिखा हैं, पर एक आध बात जो अखरी वह यह हैं की गुलपनाग को राजस्थान के एक एक घर तलाशने की क्या जरूरत थी. अखबार आदी में मृतक के बारे में कुछ तो छपा होगा. दुतावास भी मदद करता तो होगा ही.
    दुसरी बात नागेश जिस तरह ससुर से बहु का सौदा करता हैं, बड़े से बड़ा बेशर्म इंसान भी इतना खुलकर क्या बोल पाता होगा?
    फिल्म में नाटकियता अनिवार्य है, इसलिए चलता हैं.
    अभिनय सबका अच्छा हैं. आयशा प्यारी लगती है. नागेश अभिनय क्यों करते हैं, पता नहीं.

  5. हुं.. यह फ़िल्म अपन ज़रूर देखेंगे. अब आपने कहा है तो अच्छी होगी. लेकिन भैये. टिप्पणी में फ़िल्म का अंत भी बता दिया गया जो अच्छी बात नहीं है. पाठकों से अनुरोध है कि ऐसा कर बेचारे नागेश की मेहनत का सत्यानाश ना करें.
    जीतू भैया सच सच बताओ.. पीकर देखे थे क्या?? इतनी तारीफ़ सुनकर ऐसा लगा कि करेले पर चाशनी लपेट ली हो. बड़ी मुश्किल से करते हो आप तारीफ़. अब कर ही डाली है तो मैं शनिवार को ही देखूंगा.

  6. जीतू भाई ये हौसला मैंने भी सुना है और वाकई वो गीत अच्छा बन पड़ा है । पहले भी इंडिया टुडे में इसकी बड़ाई पढ़ी थी । फिल्म तो लगता है देखनी पड़ेगी ।
    आपकी नैना वाली पोस्ट पर टिप्पणी की थी । पर आज दिख ही नहीं रही है !

  7. बहुत खूबसूरत फ़िल्म है । मैनें भी इस के बारे में लिखनें की कोशिश की है :
    http://anoopkeepasand.blogspot.com/2006/11/blog-post_22.html
    मुझे ‘गुल पनाग’ का अभिनय ज़्यादा अच्छा लगा था ।

  8. Thanx jitu ji.. me too was looking forward to watch this movie.. n after urs brilliant analysis will definately watch this..