असम कांड की मूल समस्या

पिछले लेख से आगे…

असम मै गैर असमियों को निशाना बनाया जा रहा है, सरकार का कहना है कि यह उल्फ़ा आतंकवादियों का काम है। कल को कोई और एजेन्सी कल आकर कहेगी कि इसमे पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी का हाथ है। सीमा पार से आतंकवादी आ रहे है और आकर ये काम कर रहे है। लेकिन एक सवाल कौंधता है, कैसे कोई सीमा-पार से अचानक आकर, बिना स्थानीय मदद के ऐसे कान्ड को अंजाम दे सकता है। कंही ना कंही असमियों के बीच मे गैर असमियों के होने से नाराजगी तो नही?

अभी आज ही मै बीबीसी हिन्दी द्वारा आयोजित चर्चा “क्या क्षेत्रीय असहिष्णुता बढ़ रही है?” पर लोगों के विचार पढ रहा था। कुछ लोग इसे क्षेत्रीय राजनीति को दोष दे रहे है, कंही कुछ लोग इसमे बिहारियों को ही दोष दे रहे है, कोई इसे सरकार की अक्षमता तो कोई इसे चरमपंथ से नरमी दिखाने का परिणाम बता रहा है। उत्तर पूर्व के राज्यों के साथ भेदभाव वाला रवैया होता है, यह बात किसी से लिकी छिपी नही है। केन्द्र सरकार से लाखों करोड़ो रुपये की सहायता वहाँ तक पहुँच ही नही पाती, परिणाम, उत्तर-पूर्व के राज्यों मे बेरोजगारी, गरीबी और वे सभी कारण पैदा होते है, जो लोगो मे केन्द्र के प्रति नाराजगी फैलाते है। असम के लोगों की नाराजगी का एक बहुत बड़ा कारण और भी है, बांग्लादेश से आने वाला शरणार्थियों का काफ़िला। बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों के आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ये भारत के अतिथि देवो भवो: वाले नारे को पढकर, तहमद उठाकर भारत की ओर निकल पड़ते है। कोलकाता की सड़कों पर देख लीजिए, या बड़े शहरों की छुग्गी झोपड़ियों मे, किसी राजनीतिक पार्टी के संरक्षण मे कोई कमेटी बनाकर और उसका बोर्ड लगाकर, ये लोग प्राइम लोकेशन मे झुग्गी झोपड़ियाँ बनाते है।

असम मे सबसे ज्यादा अवैध बांग्लादेशी है, जो रोजी-रोटी की तलाश मे बांग्लादेश से भारत का रुख किए है। समय समय पर क्षेत्रीय/राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियां इन शरणार्थियों का वोटबैंक के रुप मे इस्तेमाल करती है, उन्हे राशनकार्ड वगैरहा देकर भारतीय नागरिक का दर्जा देती है। अगर ये पार्टियाँ सत्ता मे होती है तो ये सब काम करती है, अन्यथा क्षेत्रीय अस्मिता का सवाल उठाकर लोगो की भावनाओं को भड़काते है। लेकिन यदि सत्ता परिवर्तन होने की बाद ये लोग सरकार बनाते है तो ये भी वही खेला शुरु कर देते है, अतिथि देवो भव: । देखा जाए ये तो वही बात हुई, घर मे खाने को नही और पड़ोसी को डिनर पर बुलाने जैसा मामला है। और पड़ोसी को भी जब यहाँ छदम धर्मनि्रपेक्षिता के नाम पर सर आँखो पर बिठाया जाए, तो काहे नही आएगा दौड़ कर आएगा। बांग्लादेशी तो तहमद उठाएगा और बोर्डर पार करके, पहुँच जाएगा, असम की झुग्गी झोपडियों मे जहाँ उस राजनैतिक पार्टियाँ खुद ढूंढ लेंगी और अपने वोट बैंक मे बदल लेंगी। रही बात भारतवासियों की चिन्ता, उसके लिए नेता ही अकेले है क्या? वो अपने वोट बैंक की चिन्ता करेंगे या देश की?

इस तरह की घुसपैठ से क्षेत्रीय असंतुलन होता है, जिससे स्थानीय लोगों के पास रोजगार के अवसर और कम हो जाते है। असम मे और दूसरे उत्तर पूर्व के राज्यों मे फैले इस असंतोष को देश के दुश्मन चिंगारी देकर आतंकवाद का चोला पहना देते है। सरकार वस्तुस्थिति को जानते समझते हुए भी अनजान बनने का ढोंग करती या पिछली सरकारो के मत्थे जड़ देती है। इधर इन बेरोजगार युवाओं को विदेशी एजेन्सियां पैसा और हथियार मुहैया कराती है, जिससे धीरे धीरे ये समस्या उग्र होती जाती है। कई हिंसक प्रदर्शनों के बाद भी सरकार नही चेतती, शुतुरमुर्ग की तरह पानी मे मुँह डालकर सोचती है कि समस्या अपने आप सुलझ जाएगी। जब हर तरफ होहल्ला मचने लगता है तो फ़िर सरकार इन उग्र संगठनो के साथ बातचीत का नाटक करती है, जो कई कई सालों तक चलता है। सरकार समझती है कि यही समस्या सुलझाने का सही तरीका है, जबकि इससे नफ़रत के शोले और भड़कते है। तो आखिर इस समस्या के मूल कारण है क्या? मेरे विचार से तो :

  1. बेरोजगारी
  2. गरीबी
  3. औद्योगिक ढांचे का अभाव
  4. क्षेत्र की उपेक्षा
  5. केन्द्र द्वारा मूल समस्या समाधान मे उदासीनता
  6. सहायता राशि (ग्रान्ट) का रास्ते मे खा-पी जाना।
  7. सीमा-पर घुसपैठ रोकने मे नाकामी
  8. राष्ट्र की मुख्य धारा मे ला पाने की अक्षमता
  9. क्षेत्रीय मुद्दों को सुलझाने मे देरी
  10. भ्रष्टाचार

क्या आपको भी कुछ और कारण पता है, यदि हाँ चुप मत बैठिए, लिख दीजिए, टिप्पणी में।

4 Responses to “असम कांड की मूल समस्या”

  1. मै चार-पाँच साल असम में रहा हूँ, उल्फा को पनपते, फिर मिटते फिर उभरते देखा है. कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन्हे दूर बैठ कर नहीं देखा जा सकता. एक अलग पोस्ट लिखनी पड़ेगी…

  2. भईया,

    मैं इंटरनेट पर खूमते खूमते एक नागालैंड के एक फोरम में पहुंच गया था.

    अगर इन लोगों की बाते पढ लेते तो आपके तन मन में आग ही लग जाती.

    फोरम के कुछ पोस्ट पढने से तो यही पता चला की उस फोरम के लोग अपने आप को भारतीय भी नहीं कहलाना चाहते.

    एक बन्दा तो बस ईसा मसीह का गुण गान किये जा रहा था, और एक नागालैंड फौर क्राइस्ट नाम के एक स्वतंत्र देश की मांग किये जा रहा था.

    और फोरम में अधिकांश लोग उस व्यक्ति का समर्थन कर रहे थे.

    क्योकी नागालैंड , असम आदि में समाचार चैनल ध्यान नहीं देते हैं, इसलिये हमें इन लोगों के मन की कङुवाहट के बारे में पता ही नहीं चल पाता है.

    अभी भारत इस्लामिक आतंवादियों से जूझ रहा था, अब इसाई आतंकवादियों के हाथ पिसेगा …

    सोच सोच कर सिर दुखने लगता है …इसलिये मैने तो अब सोचना ही बन्द कर दिया है.

  3. जीतू भाई,

    हमारे राजनीतिक दल का यह विचार है कि ‘अवैध’ रूप से आये घुसपैठिये यदि हमें अपना ‘वैध’ मत दे कर निर्वाचित करते हैं तो हम उनका बांहें फैला कर स्वागत करेंगे. यदि आप इसका विरोध करेंगे तो हम आप पर धार्मिक अहिष्णुता फैलाने का आरोप लगा कर आपके विरोध में जन आंदोलन का आह्वाहन करेंगे. हम शांति (ध्यान से पढ़ने पर ‘शांति’ के स्थान पर ‘सत्ता’ दिखाई देगा) के पुजारी हैं और देश, धर्म, जाति जैसी भावनाओं से ऊपर उठ कर सोचते हैं.

  4. क्षेत्रीय असहिष्णुता बस इसी की कमी थी। धर्मवाद, जातिवाद तो पहले से ही थे अब ये भी पैर पसारने लगा है