हमारा छोटा सा आशियाना

साथियों,
कुछ समय पहले मैने आपसे अपने भोपाल के नए आशियाने के लिए नाम सुझाने को कहा था। हमारा नया आशियाना बन कर तैयार है, इस बार की भारत यात्रा, इस मकान के लिए ही की गयी थी। लीजिए पेश है इसकी कुछ तस्वीरें।

(यदि आप स्लाइड-शो नही देख पा रहे है तो तस्वीरों के लिए यहाँ पर क्लिक करिए )

भोपाल मे मकान लेने की एक अलग कहानी है, उस बारे मे फिर कभी। बस आप इतना समझ लीजिए, ये वाला घर, भविष्य की योजनाओं को ध्यान मे रखकर लिया गया है (बुढापे में देबू दा के साथ शतरंज खेलने के लिए)
अब हम कानपुर के साथ, भोपाल वाले भी हो गए है।

26 Responses to “हमारा छोटा सा आशियाना”

  1. भोपाल शहर खूबसूरत है और आपका बंगला भी।

  2. बहुत शानदार है जी!

  3. बहुत खूब। बधाई!

  4. बहुत बहुत बधाई!
    बहुत अच्छा हॆ

  5. इस स्‍लाइड शो में आपकी बेटी दिखाई दे रही है. मेरे ख्‍याल में घर का नाम उसी के नाम पर रखें तो बेहतर रहेगा।

    नये आशियाने की बधाईयां.

  6. हमारी भी बधाई रख लो, दावत में तो बुलाये नहीं. 🙂

  7. जीतु जी,
    ये तेरा घर. ये मेरा घर .किसी को भी देखना हो अगर .तो पहले माँग ले तेरी नजर मेरी नजर, घर देख कर ये गानी याद आ गया. सुन्दर घर.

  8. बधाई हो. सुन्दर जगह पर सुन्दर-से मकान (बंगला) के लिए. दावत बाकि है भूलना नहीं.

  9. भोपाल अपने बचपन का शहर । ढेरों ठिकाने हैं वहां अपने ।
    सोचते हैं कि बुढ़ापा वहीं काटेंगे ।

    आपकी तरह ।
    हां तब तक आप कुछ ज्‍यादा बूढ़े होंगे ब्रदर
    हे हे हे ।

  10. जीतू भाई मैं मुंबई से भोपाल शिफट हो रहा हूं, घर का कुछ हिस्‍सा किराए पर देना हो तो बताइएगा, मैं इंतजार कर रहा हूं आपके जवाब का

  11. बढ़िया है.. बहुत बहुत बधाई।

  12. यह छोटा आशियाना है तो बड़ा बंगला क्या होता चौधरी जी.
    फोटो में बिटिया प्रसन्न है नये आशियाने पर.

  13. मस्त है आशियाना आपका, बिटिया रानी भी प्रफुल्लित है!!
    बधाई!!
    पाल्टी बनती है!!

  14. “,,,भोपाल वाले भी हो गए है।…”

    तब तो हम भी भोपाल में बसने की सोचेंगे. और, आपके बंगले का नाम नारद से दूसरा कोई अच्छा हो सकता है भला? वैसे अगले साल तक मैं भी संभवतः भोपाल पहुँचूं. तो आशीष जी को आधा व शेष आधा मुझे किराए पर दे दीजिएगा…

    सुंदर बंगले की बधाई!

  15. मुबारक हो।

  16. शानदार :D!

  17. Congratulations!! Very nice, having a home in your own motherland is a great joy.

  18. दावत में तो बुलाये नहीं

    समीर जी यही शिकायत तो अपने को भी है, दावत दिए बिना कट लिए पतली गली से जीतू भाई!! लेकिन अपन भी छोड़ेंगे नहीं, जबरन निकलवा ही लेंगे, ही ही ही!! 😀

  19. सभी साथियों की शुभकामनाओं का धन्यवाद। इस बार तो भई, आंधी की तरह आए और तूफान की तरह लौट गए। घर की पूजा भी बहुत लो प्रोफ़ाइल की गयी, गृह प्रवेश पर सभी को न्योता दिया जाएगा। फिलहाल पार्टी उधार रही।

    आशीष जी, फिलहाल घर को किराए पर देने का कोई विचार नही। जब भी कभी ऐसा प्लान बना, आपको जरुर याद रखेंगे।

    उड़नतश्तरी जी, आपसे फोन पर बात ना हो सकी, उसका अफ़सोस रहेगा, लेकिन क्या करें, हमे पूरे महीने की ट्रिप एक हफ़्ते (पाँच दिनो) मे सलटानी थी, इसलिए भागदौड़ ज्यादा रही।

  20. बहुत-२ बधाई !!! लखनऊ मे बसने की सोच रहे थे आप और भोपाल के हो गये 🙂 कुछ mystery लगती है [:o] किसी अच्छॆ जासूस की जरुरत पडॆगी [8)]

  21. ashish ko aapne pahle hi mana kar diya… mai bhi aisa hi prastav pesh karne vali thi….. panch din pahle hi bhopal shift hui hun aur kiraye ka makan khoj-khojkar halkan hui ja rahi hun…. aaki post dekhkar kuch ummed jagi jarur thi…. kahir….. phir bhi ashish ke sath apne kirayedaron ke ummedvaron ki list me mera bhi nam shumar kar lijiye…….
    Manisha Pandey

  22. बधाई हो… घर का तो नहीं, आपका नया नाम ज़रूर सूझता है – जीतू भोपाली 🙂

  23. बधाई! बहुतै जमताऊ घर है जी . वैसे गेस्टरूम किस तरफ़ है ? उसमें सब कुछ अटैच्ड है न . छत पर कवि-गोष्ठी और गप्प-गोष्ठी के लिए उपयुक्त व्यवस्था है तो ?

    वैसे मनीषा पांडेय अभी-अभी भोपाल पहुंची हैं दैनिक भास्कर में फ़ीचर एडीटर होकर और सर छुपाने की जगह ढूंढ रही हैं . दोनों जन सहूलियत देख लो .

  24. ब्लॉग जगत के सूरमा तो थे ही अब सूरमा भूपाली हो गए हो .

  25. मुबारक हो नए बंगले के लिये!!

  26. महोदय मैंने कुछ साहित्य पढने दी गरज से यह साईड=मेरा आशियाना =शब्द से लगा कोई साहित्यिक रचना होगी परन्तु यह तो दूसरी ही रचना निकली बंगला बहुत प्यारा है =आपका ब्लॉग खोला =आत्मीयता =लगा जैसे आप साहित्यकार है और रचनाये लिख कर लेखक और पाठक से जुड़ना चाहते है =इस संसार में आत्मीयता तो समाप्त प्राय है साहित्य हे एक ऐसा जरिया है जिससे लोग आपस में जुड़ सकते है मगर आप तो टेक्नीकल लाइन वाले है मगर साहित्य तो भाबों और ज्ञान का भण्डार है ज्ञान राशी का संचित कोष है मानव कल्याणकारी भाव से लिखा जाए तो सुंदर होता है और मधुर भी वरना साहित्य कर्कश और कराल भे हो जाता है =धन्यवाद आपका कोई आर्तिक्ले प्रकाशित होगा तो अवश्य पढूंगा