खुला खत अविनाश के नाम

अपने मोहल्ला के अविनाश बाबू सुर्खियों और विवादों मे रहने का कोई मौका नही चूकते। अभी पिछले दिनो जनसत्ता वाला मसला हुआ इनके साथ, लीजिए एक और फ़ड्डा कर दिया इन्होने। इन्होने एक ब्लॉग बनाया था, बेटियों का ब्लॉग, अब चूंकि हम भी बेटियों वाले है, इसलिए हमने भी इसमे यथासम्भव योगदान करने का प्रयास किया। आज अविनाश बाबू की एक इमेल (संपादकों की टाइप की) आयी है, लीजिए आपके समर्थ पेश है:

बेटियों के ब्‍लॉग से आपकी सदस्‍यता ख़त्‍म की जाती है। शायद इस ब्‍लॉग के लिए आपलोगों के पास ज़्यादा बातें नहीं हैं। अगर कभी अपनी बेटियों की बातें साझा करना चाहें – फिर दुबारे सदस्‍यता बहाल कर दी जाएगी।
अविनाश

इसके जवाब मे मैने यह पत्र अविनाश बाबू को लिखा है, आपके समर्थ प्रस्तुत है:

प्रिय अविनाश,
 
बेटियों के ब्लॉग से मेरी सदस्यता भंग करने के लिए धन्यवाद। उम्मीद है इससे आपके मन को थोड़ी शांति मिल गयी होगी। मै आपकी वर्तमान मनोदशा समझ सकता हूँ, लेकिन मुझे आपके साथ कतई कोई सहानुभूति नही है। अब चूंकि क्योंकि इस ब्लॉग के आप ही कर्ता धर्ता है, इसलिए आपकी ही मनमर्जी चलेगी। लेकिन आपसे निवेदन है कि जब भी आप किसी ग्रुप ब्लॉग मे,  किसी को सदस्य बनाएं, तो सदस्यता के नियम जरुर बता दें, कि हफ़्ते मे कितनी पोस्ट लिखनी होगी, और आप कब अपने मूड के अनुसार किसी की सदस्यता बर्खास्त/बहाल कर सकते है। इन नियमों को सभी सदस्यों के साथ उसको शेयर जरुर करें। एक ग्रुप ब्लॉग के कर्ताधर्ता होने के नाते, आपका यह फर्ज बनता है कि आप असक्रिय सदस्यों के साथ संवाद कायम करे और उन्हे सक्रिय करने की दिशा मे कार्य करें। यूं एकतरफ़ा फरमान जारी करने से बचें, आपकी वैसे भी काफी भद पिट चुकी है, इससे और पिटेगी। इस एकतरफ़ा कार्य को करने के बाद आप जनसत्ता वाले मुद्दे पर रोने गाने, पब्लिसिटी और सहानूभूति पाने का अधिकार खो चुके है। इसे नसीहत माने या सलाह, सम्भाल कर रखे या कूड़े मे डाले, यह आप पर निर्भर है।
 
मै आपका यह पत्र और उसका जवाब सार्वजनिक कर रहा हूँ।
 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
-जीतू

अब आप ही सोचे कि अविनाश बाबू कितने दोहरे मापदंडो वाले व्यक्ति है। एक तरफ़ तो वो जनसत्ता के एकतरफ़ा वाली बात के लिए रोते गाते फिरते है, दूसरी तरफ़ ये खुद वैसा व्यवहार करते है तो ये इनकी नजर मे एकदम सही है। बहुत सही, आप महान है अविनाश बाबू।

पाठक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते है, लेकिन भाषा की मर्यादा का ख्याल रखिएगा, अन्यथा टिप्पणी मिटा दी जाएगी।

 

 

15 Responses to “खुला खत अविनाश के नाम”

  1. देखिये हमने कल मदान जी को भी इस बारे मे ज्ञान दान दिया था,लगता है आपने नही पढा,वरना आप भी ये चिट्ठी सार्वजनिक ना करते , देखिये आप यहा गलत है बडे लोग जो करते है उस पर ध्यान नही दिया जाता ,बडे लोग जो कहते है उस पर ध्यान दिया जाता है ,(अगर उन्होने आपका लिखा एडिट किया या आपको बिना पूछे बाहर कर दिया तो यह उनका हक था,और अगर थानवी जी ने उनका लिखा एडिट किया तो यह उनकी बदतमीजी,आप अभी इस तरह की बाते समझने मे छोटे है :),शायद शौकत थानवी भी नही जानते कि ये उनसे भी बडे संम्पादक कई बार रह चुके है,आपको याद नही इन्होने बाबा की कविता छापने वालो को आडे हाथो लिया था :))अगर बडे आपसे कहते है कि सिगरेट पीना बुरी बात है ,तो आपको पलट कर यह नही कहना चाहिये जी आप भी तो पीते है,इस तरह की बातो से आप बडे का अपमान करते है,आशा करता हू आप आज के पाठ को समझ गये होगे बाकी किसी दिन बाबा फ़रीदी के आश्रम मे आईये ..:)
    छ्मा सरल को चाहिये,खोटन को उतपात
    सगारे काम निकस गये,अब काहे करे वो बात

  2. मधुसूदन चौधरी on अप्रैल 17th, 2008 at 10:09 am

    बेटियों का ब्लॉग था. बेटियों को सदस्यता ख़त्म करनी चाहिए थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि ये निर्णय बेटी का है? भाई, बेटियों के ब्लॉग की बड़ी चर्चा थी. जनसत्ता से लेकर मनसत्ता तक. किसी की बेटी किसी को हंसना सिखा रही थी, किसी की बेटी किसी को भाषा सिखा रही थी. ब्लॉग बनने के दस दिन के अन्दर ही इस ब्लॉग की गिनती भारतवर्ष के सबसे अच्छे ब्लॉग में होती थी (अखबार वालों की रपट के अनुसार). फिर अचानक क्या हो गया कि सदस्यता ख़त्म होने लग गई.

    बेटी को मत बताईयेगा. उसे दुःख हो सकता है.

  3. AAPNE बेटियों का ब्लॉग KA LINK NAHI DIYA!

  4. प्रकृति के साथ नियति का जुडाव होता है. आप दोनों इस बात को बेहतर समझते होंगे

  5. कारण बताओं नोटिस दिए बगैर सदस्‍यता खत्‍म करना उचित नहीं है। हर पक्ष को अपनी बात रखने का हक है। अविनाश यदि आपसे बात कर लेते और पक्ष सुनते तो अच्‍छा रहता। वैसे मेरी राय में साझा ब्‍लॉग जल्‍दी की ब्‍लॉक हो जाते हैं। अपने अपने ब्‍लॉग चलाइएं काहे साझे माझे में पडते हैं। पार्टनरशिप टूटने के लिए ही बनती है। अपनी अपनी ढफली और अपने अपने राग बजाते चलिए। जीतू भाई आपका मेरा पन्‍ना और जुगाड़ी वाला ब्‍लॉग काफी अच्‍छे हैं उन्‍हें और समृद्ध बनाएं…क्‍योंकि बेटी, पत्‍नी, बेटा, गली, शहर, चूल्‍हा, हडडी, पशु आदि आदि ब्‍लॉगों के मेम्‍बर बन रहे हैं और मेम्‍बरशिप जाने पर प्रतिक्रिया जता रहे हैं। अपने अपने ब्‍लॉग के लिए लिख लें यही कम है। ब्‍लॉग दूसरे का और काम अपना, छोडि़ए। अविनाश को सुर्खियों में रहने का मसाला चाहिए हमेशा जो वे जुगाड़ ही लेते हैं। हिंदी के ब्‍लॉगरों की यह मचमच तब तक चलती रहेगी जब तक हिंदी है हम शांति से रह ही नहीं सकते। जय हिंदी

  6. अगर आप बेटिया से प्रेम करते है तो (कौन बाप नहीं करता? यह अलग बात है) उसे खास ब्लोग पर जताएं यह जरूरी है क्या?

    जिन्हे नारीवादी, धर्मनिरपेक्ष, अगला-पिछड़ा हितैषी दिखना है (होना अलग बात है) वे ऐसे चौचले करते रहते है.

    यह बात यहाँ रखी तो पता चली. अब हाथ झाड़िये और मस्त पोस्ट की तैयारी करें.

    ना हो तो नया ब्लॉग बानाईये “बेटी-बेटा एक समान” ताकि हम भी लिख सके 🙂

  7. प्रमोद सिंह on अप्रैल 17th, 2008 at 12:02 pm

    बेटी को आइसक्रीम खिलाने ले जाइए, महाराज, आप भी कहां की हे-हे, ले-ले में लटक लिये?

  8. भद्रजन की भव्यता और आभामण्डल/मर्यादा का लिहाज करना चाहिये।

  9. मैं स्माइली भूल गया लगाना।

  10. जीतू भाई,
    कहाँ आप इन झोला छाप लोगों के बीच फ़ंस गये हैं, आप के साथ ज्यादती हुयी ये बात आपको कचोट सकती है लेकिन उन लोगों को तो ये सब एक गेम लगता है. क्योंकि वो खुद अपनी मर्यादा और सीमाओं का पालन नहीं करते, उन्हें प्रसिद्धि चाहिये लेकिन वो इन सबके बीच में धरातल की ओर नहीं देखते जो उनके पैरों के बीच से निकल चुका होता है.

    आप को जितने हिट एक घंटे में मिलते है उतने तो उनको कई दिन में मिलते हैं अतः निवेदन है कि इन संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों से दूरी बनाये रखें क्योंकि ये लोग प्रोफ़ेनलिज्म के नाम पर इस देश को बेचने की कुव्वत रखते हैं.

    बाकी आप खुद समझदार हैं

    आपका
    कमलेश मदान

    एक चीज और कहना चाहूँगा जरा गौर फ़रमायें
    “विनाशकाले विपरीत बुध्दि”
    अर्थात मनुष्य के विनाश काल के समय बुध्दि विपरीत हो जाती है

  11. जीतू भाई,

    आपके खुले पत्र का दर्द समझ सकता हूँ, इस ब्‍लाग संसार में कुछ तत्‍व ऐसे विद्यमान है तो अपनी रोटी सेंकने से बात नही आते है। मो‍हल्‍लानीत ब्‍लाग और उनके स्‍वामित्‍व की यहीं क्रियाकलाप है। भाई जी मुझे लगता है कि आपने व्‍यक्ति पहचाने में गलती कर दी, क्‍योकि जो व्‍यक्ति धर्म और देव का न हुआ उससे आप व्‍यक्ति‍निष्‍ठा की बात करते है।

    जहॉं तक सदस्‍यता की बात है तो मै भी महाशक्ति समूह नाम के ब्‍लाग को संचालित करता हूँ, किन्‍तु अनावाश्‍यक नियम मैने कभी नही थोपे जो व्‍यक्ति जिस प्रकर लिख सकता है उसे हमेशा प्रेरित किया। आज महाशक्ति समूह में करीब 25-30 सक्रिय असक्रिय ब्‍लागर है। किन्‍तु मुश्किल से 5 या 7 ही नियमित पोष्‍ट कर पाते है और कभी वो भी नही। इसका मतलब ये तो नही कि जो नही लिख रहे है उन्‍हे निकाल दूँ।

    एक बात तो तय है कि आप बेटियों के ब्‍लॉग के ब्‍लाग की सदस्‍यता लेकर खुद गलत काम किया। कुछ धन्‍धेबाज किस्‍म के लोग सामूहिक ब्‍लागिंग के नाम पर एडसेंस से धन्‍धा करने का जरिया बना रखा है। जिससे मेहनत करे कोई मलाई खाये कोई । इसलिये किसी भी एडसेंस वाले सामूहिक ब्‍लाग की सदस्‍यता लेने से पहले सोचे जरूर।

    मैने सामूहिक ब्‍लाग के मानदण्‍ड अपनाये है कि कभी खुद के लिये उसका इस्‍तेमाल नही करूँगा। और हमारा महाशक्ति समूह उसका प्रत्‍यक्ष उदाहरण है। आज मै डालरों में कमा रहा हूँ किन्‍तु महाशक्ति समूह पर एक भी विज्ञापन नही लगाया। 🙂

  12. बोधिसत्व on अप्रैल 17th, 2008 at 6:57 pm

    मैं अपनी बोटी को प्यार करता हूँ…मुझे किसी से प्रमाण पत्र नहीं चाहिए….

  13. किसी भी विमर्श को समझने के लिए तर्क से अधिक कहानियां काम आती हैं। ???????
    ये मोहल्ला वाले अविनाश जी ही हैं क्या ?

  14. जीतू भाई आपका नाराज होना स्वाभाविक है, लेकिन आपको यह समझना चाहिये कि जब आप कीचड़ में किसी से उलझते हैं तो जीत उसी की होती है, जो कीचड़ में रहने का आदी हो… मैं समझ सकता हूँ कि आपको इस तरह से धकियाने से आप पर क्या गुजरी होगी, लेकिन इन महान पत्रकारों के जो न जाने कहाँ का मोहल्ला, हाशिया, कस्बा आदि चलाते रहते हैं के फ़ंदे में फ़ँसोगे तो यही हश्र होगा… बहरहाल आपसे सहानुभूति के साथ… आपका शुभाकांक्षी… और वैसे भी उसने अपनी मर्यादा छोड़ दी तो क्या हुआ, आपको कोई व्यक्तिगत मेल सार्वजनिक नहीं करना चाहिये था…

  15. अरे भैया, कहां चक्कर में पड़ गये। अपनी बिटिया के बारे में अपने ब्लाग में लिखो। कहां चक्कर में पड़ गये महापुरुषों के। जीतेंन्द्र चौधरी की अपनी पहचान मेरा पन्ना से है न कि किसी और ब्लाग से। इतना लिखा बहुत हुआ। अब जरा कुछ मोहल्ले वाली पोस्ट लिखी जायें। 🙂