यूपीए जीती लेकिन लोकतंत्र हारा

कल संसद मे पेश किए गए, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पेश किए विश्वास प्रस्ताव मे सत्ताधारी यूपीए सरकार की जीत हुई। उसके पक्ष मे 275 वोट पड़े और विपक्ष मे 256 वोट पड़े। इस तरह 19 वोटों से यूपीए की जीत हुई।इसके पहले सदन मे हुई बहस मे कल स्टार स्पीकर रहे लालू प्रसाद यादव, जिन्होने अपने स्टाइल मे जमकर सभी की खिंचाई की।लालू उवाच:

वामदलों पर : “जब वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो लोग मुझसे पूछ रहे थे कि अब मैं क्या करूंगा? मैंने उनसे कहा कि चार साल पहले हमें उनसे (गठबंधन से) प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा”। भई, चार साल से जिस डाल पर बैठे हो, उसी को काटने की क्या जरूरत है”।

आडवानी पर: “आडवाणी जी ने कल बहस के दौरान एक भी बार परमाणु करार का विरोध नहीं किया, सिर्फ सरकार का विरोध करते रहे”।

मायावती पर : “सब प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, मायावती जी से मेरे अच्छे संबंध हैं…वे प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं, मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं…अरे भई, मैं भी तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं…यहां बैठे सभी सदस्य प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन ऐसे ही थोड़े कोई प्रधानमंत्री बन जाता है। लेकिन मै मायावती की तरह, हड़बड़ी मे नही हूँ।"

लालू ने कहा जब राहुल ‘कलावती…कलावती’ कह रहे थे तो विपक्ष के लोग हंस रहे थे, उन्होंने कहा, “कलावती हमारे गांवों में बहू/बेटियों  का नाम होता है, आप ‘हम्पी…डम्पी’ जैसे नाम रखने वाले लोग यह क्या जानें”।

लेकिन कल भारतीय संसद मे कुछ ऐसा भी कुछ हुआ जिससे लोकतंत्र शर्मसार हुआ। तीन बीजेपी सांसदों ने सदन मे एक करोड़ के नोट लहराते हुए कहा कि यह पैसा उन्हे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं की ओर से, वोट प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहने के लिए मिला था। संसद सदस्यों के बारे मे पैसा लेने और भ्रष्टाचार की बात तो हमेशा से ही कही जाती रही है, लेकिन संसद की जो गरिमा कल तक हुई थी, उन्हे इन सांसदों ने तार तार कर दिया। इस प्रकरण से कई सवाल उठते है:

  • यदि बीजेपी सांसदों को पैसा मिला था तो नेता विपक्ष(लाल कृष्ण आडवानी) ने लोकसभा स्पीकर अथवा उप स्पीकर को पहले विश्वास मे क्यों नही लिया?
  • बीजेपी सांसदों ने ना तो पुलिस मे रिपोर्ट की और ना ही मीडिया को इस बारे मे बताया। यदि वे पाक साफ़ थे तो उन्हे मीडिया को बुलाकर पैसे देने वालों को बेनकाब कर देना चाहिए था।
  • चूंकि पैसा सुबह सुबह ही दिया था, इसलिए इसकी जानकारी सदन की कार्यवाही शुरु होते ही, अथवा पैसा मिलते ही स्पीकर को बता दी जानी चाहिए थी।
  • एक करोड़ रुपए की धनराशि, संसद के अंदर आयी कैसे? क्या सांसद अपने बैग मे कुछ भी रखकर ला सकते है? क्या सुरक्षाकर्मी सो रहे थे? ये सांसद इतने बड़े नामी सांसद नही है जो इनकी तलाशी ना ली जा सके।
  • आपको याद होगा, पिछले स्टिंग आपरेशन मे, यही वे बीजेपी के सांसद थे जो साठ साठ हजार रुपए के लिए बिक गए थे और मीडिया ने इनको बेनकाब किया था। इनकी पार्टी ने भी इनको निलम्बित किया हुआ था। जो सांसद फकत साठ हजार के लिए बिक गया, वो तीन करोड़ रुपए के लिए ईमानदारी दिखाए….बात कुछ हजम नही हुई।

कुछ भी हो, इससे लोकंत्रत की गरिमा और बीजेपी की साख को धक्का जरुर लगा है। लेकिन बीजेपी ने कुछ खोया है तो कुछ पाया भी है, इन्होने मायावती के अरमानों पर पानी फेर दिया है और दोबारा वापस लाइमलाइट मे आ गए है।आपका क्या सोचना है इस बारे में?

4 Responses to “यूपीए जीती लेकिन लोकतंत्र हारा”

  1. पैसे खाने का खेल मीडिया के सहयोग से स्टींग ऑपरेशन के माध्यम से हुआ, अतः कह नहीं सकते कि मीडिया को बुलाकर पैसे देने वालों को बेनकाब कर देना चाहिए था. वैसे खेल लम्बा था, कई सांसद बिक गए, ये तीनो पकड़े गए इसलिए शरीफ बने.
    नरसिंहराव होते तो वो भी दाद देते, कहाँ कहाँ से सांसद फोड़ लिये.

  2. जगदीश भाटिया on जुलाई 23rd, 2008 at 11:36 am

    जीतू भाई, यह एड्स कैसे नजर आ रही हैँ अपन को भी इसका जुगाड़ बताइये ना।

  3. जो हुआ; अच्छा हुआ। बहुत अच्छा।
    एक राउण्ड शो और मांगता!

  4. जगदीश भाई, क्या आप एड्स (AIDS) की बात कर रहे हो? अब हमे तो कंही नही दिखा। आपकी दूरदृष्टि मे कैसे दिख गया, हमे भी दिखाओ।

    यदि आप विज्ञापन की बात कर रहे हो तो गूगल से विज्ञापन कुछ कम जरुर हुए है, लेकिन एकदम बन्द नही हुए है। मेरा एडसेंस की कमाई की दूसरी किस्त का चैक रास्ते मे है।

    दरअसल गूगल अभी हिन्दी एडसेंस की टेस्टिंग कर रहा है, इसलिए जोर शोर से विज्ञापन नही आ रहे है। जिस दिन उसने हिन्दी वाला एडसेंस लॉंच कर दिया उस दिन विज्ञापनों की बरसात हो जाएगी।