अब जब रीठेल का मौसम चल ही रहा है तो हमने भी बहती गंगा मे हाथ धोना सही समझा। लीजिए पेश है, चार साल पूर्व (नवम्बर 2004) लिखा हुआ मेरे एक लेख का रीठेल। अब आप इसे मौके की नजाकत कहिए या समय की मांग, बढते ब्लॉगरों और घटते ब्लॉगिंग समय के कारण, अब रीठेल जरुरी हो गया है। तो जनाब आज हम आपको रुबरु कराने जा रहे है, हम अपने मोहल्ले के एक प्रेम प्रसंग से। ऐसे प्रेम प्रसंग हर मोहल्ले मे होते है, लेकिन हर मोहल्ले मे हमारे जैसे शैतान बच्चे नही हुआ करते थे। आप भी देखिए और पढिए हमारे बचपन की शैतानियों से भरे इस मोहल्ले के प्रेम प्रसंग को। वैसे तो इस प्रेम प्रसंग के सभी पात्र वास्तविक है, अलबत्ता हमने उनके नाम बदल दिए है, ताकि हमे जूते ना पड़े, फिर भी आप इसे मस्ती के लिए पढिए, इवेस्टीगेशन के लिए नही।