यदि आप ये ना होते तो क्या होते?

चलिये आज कुछ बात करते है, आपके अपने प्रॉफ़ेशन की। यदि आप अपने इस कैरियर में न होते तो क्या होते? वैसे तो मैंने पहले भी इस बारे में बात लिखी है, पिछली बाते ताज़ा करने के लिए ये वाला लेख देखिये। तो जनाब शुरू करते है। यदि मैं अपने इस कम्प्युटर सॉफ्टवेर वाले पेशे में न होता तो कहाँ होता?

चार्टर्ड अकाउंटेंट  : जी हाँ, घर वालों ने मेरे बारे में यही सोचा था। मेरी पढ़ाई भी उसी दिशा में चल रही थी, ये तो मार पड़े कम्प्युटर के कीड़े को, जो काट गया और ऐसा काट गया कि, अच्छा खासे उदीयमान चार्टर्ड अकाउंट की वाट लग गयी और हम कूद पड़े कम्प्युटर सॉफ्टवेर के पेशे में। अब ये सब हुआ कैसे? हमने कॉमर्स  की पढ़ाई शुरू करी, बात उस समय की है, जब हम इंटरमीडिएट (12वी कक्षा) मे हुआ करते थे, हम शुरू से ही अलमस्त टाइप के थे, दिन कहाँ गुजरा पता नहीं, अलबत्ता रात को पढ़ाई जरूर करते थे। हमारे कुछ मित्रों के बड़े भाई IIT कानपुर में पढ़ते थे, हम अक्सर साइकल उठाकर उनसे मिलने IIT कानपुर चले जाया करते, उनकी लैब में जकर टाँक झांक करते, उनकी लाइब्ररी मे बैठ जाते, लोग समझते थे, कि हम लाइब्ररी मे पढ़ने जाते थे, ये गलत था, ऐसा ओछा इल्ज़ाम आप हम पर नहीं लगा सकते।इधर आईआईटी वालों ने अपनी 25वी सालगिरह पर अपनी सारी प्रयोगशालाएँ पब्लिक के लिए खोल दी थी। हम तो वहाँ के रेगुलर आउट-साइडर थे ही, हम भी हर गतिविधि जैसे क्विज़ वगैरह में भाग लिए, और भगवान जाने किसकी गलती से हम एक दो क्विज़ में प्रथम स्थान पर आ गए, एक प्रोफेसर ने ताड़ लिया, बोले आओ बैठो, समझते हैं। उन्होने हमसे पूछा क्या पढ़ते हो, हम बोले कॉमर्स, प्रोफेसूर ने बोला, तुम्हारा लॉजिकल रीज़निंग अच्छा है, तुम कम्प्युटर मे शिफ्ट काहे नहीं हो जाते। अब इनको कौन समझाता कि , ये डिसिजन हमारे हाथ में नहीं था, प्रोफेसर साहब ने हमे रोजाना कम्प्युटर पर काम करने के लिए बुलाया, जिसके लिए हम तुरंत तैयार हो गए। अब शाम हम उनके साथ ही बिताते थे। खैर अब कम्प्युटर का कीड़ा तो हमको काट ही चुका था, अब कॉमर्स में किसको इंटरेस्ट होता?

गायक : मेरे को गायकी का कीड़ा बहुत पहले ही काट चुका था, माशा-अल्ला उस समय आवाज़ भी काफी अच्छी थी, शहर में एक बार रोटरी क्लब वालों ने एक प्रतियोगिता आयोजित कारवाई थी,  बड़े जतन और लगन से उसमे भाग लिया था।  उस समय संगीत और सुरों का कोई विधिवत ज्ञान न होते हुए भी, मेरे को एक (सांत्वना) पुरस्कार मिला था। फिर प्यार-श्यार के चक्कर में बंदा गायक बन ही जाता है, नहीं नहीं, में अता-तुल्लाखान तो नहीं बना, लेकिन दर्द भरे नगमे गाने में मेरी महारत थी। कई बार सोचा कि संगीत की विधिवत शिक्षा लूँ, लेकिन रोजी रोटी के चक्कर में सब धरा का धरा रह गया।  लेकिन समय रहते रहते गायकी का भूत भी उतार गया, या कहो घर वालों ने उतार दिया। इस तरह से एक अच्छे खासे उभरते गायक की प्रतिभा को दबा दिया गया। अभी भी कभी कभी गुनगुना लेता हूँ, आप लोगों कि हिम्मत हो तो आप (अपने रिस्क पर) मुझे मेरे संगीत  ब्लोग्स में  सुन सकते है।

मास्टर शेफ : जी हाँ, आपने सही सुना। मेरे को खाने का बड़ा शौंक है, स्वाद के बारे में काफी कुछ बता सकता हूँ।  आज भी श्रीमति जी, मेरे स्वाद कि समझ को दाद देती है। मेरा पूरा पक्का विश्वास है, मैं भारतीय ही नहीं, दुनिया भर से व्यंजन बहुत आसानी से पका सकता हूँ। अब चूंकि मेरा किचन में जाना बीबी जी ने बैन कर रखा है, इसलिए मेरी इस प्रतिभा को भी उभरने नहीं दिया गया। अब घर में दो मास्टर शेफ तो हो नहीं सकते, इसलिए शादी बचाने के लिए इस शौंक का त्याग करना पड़ा। अब  कूक तो बना नहीं, लेकिन अभी भी  मास्टर शेफ वाले पूरे गुण है।

 चित्र सौजन्य से 

ट्रैवल ब्लॉगर : मेरे को घूमने का बहुत शौंक है। भारत के लगभग हर हिस्से को कई कई बार देखा है। इतनी यात्राएं की है, मेरी हसरत थी कि, मै एक दो डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाऊँ, लेकिन क्या करें, कोई विडियो शूट करने वाला पार्टनर नहीं मिला, चाहे कुछ भी हो, कभी न कभी मै एक विडियो डॉक्युमेंट्री जरूर बनाऊँगा। देखते है ये हसरत कब पूरी होती है।

उपन्यासकार :  बचपन में जासूसी नॉवेल बहुत पढे थे, राजन-इकबाल, राम-रहीम से बढ़ते हुए, विक्रांत, विजय-विकास और केशव पंडित तक को पढ़ा। मेरे पसंदीदा उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा थे, एक बार उनसे मेरठ जाकर मुलाकात भी कर आया था। बचपन में काफी आधी अधूरी कहानिया लिखी थी, जिनमे मौलिक कम कॉपी ज्यादा थी। लिखने का शौंक तो था, लेकिन उपन्यास लिखने का साहस कभी नहीं जुटा सका। इसलिए समय रहते ये शौंक भी जाता रहा।

शतरंज के खिलाड़ी :  मेरा एक और शौंक था, शतरंज खेलना। बचपन में, मैंने स्कूल/कॉलेज और युनिवेर्सिटी स्तर पर खेला था, लेकिन उसके बाद कभी भी इसको पेशे के तौर पर नहीं अपना पाया। समय  रहते बाकी के सारे शौंक तो खतम हो गए, लेकिन ये शौंक अभी भी बरकरार है। आज भी आप मुझे विभिन्न ऑनलाइन चेस साइट पर खेलते हुए पाएंगे। फिर माशा अल्ला मेरी रेटिंग भी काफी अच्छी है। तो फिर आइए कभी खेलते है ऑनलाइन।

धर्मगुरु : आप कहेंगे का भी कोई प्रॉफ़ेशन होता है, हाँ जी होता है, ये पेशा ही सबसे अच्छा पेशा है। भले ही हमारे 36 करोड़ देवी देवता है, उसके बाद भी हमारे यहाँ लाखो धर्म गुरुओं का बिज़नस बे रोक टोक, शान से चल रहा है। बस आपको लोगों को प्रभावित करने आना चाहिए, गूढ गूढ बाते करिए, बाकी चेले चपाटी, संभाल लेंगे। बाकी गुण तो मेरे में है, लेकिन कभी भी इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचा, सोचता हूँ अब बुढ़ापे में इस बारे में भी सोचा जाये, हो सकता है काम बन जाये। आप क्या कहते हो?

चलिये मैंने तो अपनी बता दी, आप भी कुछ अपने बारे में लिख डालिए। मेरे बचपन के और ढेर सारे खुराफाती शौंक के बारे में जानने लिए यहाँ देखें। तो फिर आते रहिए और पढ़ते रहिए|

 

 

3 Responses to “यदि आप ये ना होते तो क्या होते?”

  1. पढ के मजा आया. अगर हमसे कोई पुंछे, तो हम कहते:-
    हम तो भाई, चूडीवाले बनना चाहते थे, इसी बहाने लडकीयोंको चूडी तो पहनाते. इसी बहाने…

    हमारा दुसरा चॉइस था , लेडीज टेलर बनना, अब, क्युं बनना चाहते ये हमसे ना पुछो तो ही बेहतर !

    तीसरा चॉइस था, लडकीयोंके कॉलेज मे लेक्चरर बनना.

    चौथा चॉइस था, हमारी एक वनसाईडेड मेहबुबा थी, उसके घरके सामने सायकल पंचर का दुकान लगाने के बारेमे भी हम सोच चुके थे…

    जाने दो भाई, नहीं तो यहीं हमारा भी एक आर्टिकल तैय्यार हो जाएगा.

  2. क्या न हुये, सब क्यों न हुये..

  3. सभी इसी प्रकार के रास्तों से गुज़रते हैं 🙂