Tweet अभी कल ही किसी भड़ासी ब्लॉगर ने एक भूली बिसरी गज़ल की फरमाइश कर दी। उन्होने ये गज़ल कभी लखनऊ रेडियो पर सुनी थी। बड़े बैचेन थे बेचारे, फिर इन्होने रेडियो, और लखनऊ स्टेशन का नाम लेकर हमको सेंटी कर दिया और गुजरे जमाने की यादें, ताजा कर दी। तब हम भी रेडियो के […]
अप्रैल 13th, 2008 | Posted in विविध | 8 Comments
Tweet मुझसे कई लोग पूछते है कि क्या बात है आपने आजकल शेरो शायरी वाली पोस्ट करना एकदम बन्द कर दिया है। पहले तो लगातार गज़ल वगैरहा छापते थे, क्या बात है मशीन खराब पड़ गयी क्या? भई क्या करें, आजकल थोड़ा समय ही कम है, गज़ल वगैरहा तो बहुत सुनते है लेकिन उस मुद्दे […]
अगस्त 29th, 2007 | Posted in Uncategorized | 7 Comments
Tweet अब इसे ही ले, निशा जी ने दिल्ली से कुछ गड़बड़झाला शायरी भेजी है। अब मै अकेले क्यों झेलूँ, आप भी झेलिये: तुमको देखा तो ये ख्याल आया पागलों के स्टाक में नया माल आया अब इसे भी मुलाहिजा फ़रमाइये इधर खुदा है, उधर खुदा है जिधर देखो, उधर खुदा है इधर उधर बस […]
अक्तुबर 20th, 2005 | Posted in Uncategorized | 26 Comments
Tweet हमारे एक संवेदनशील पाठक है, हमारे नामाराशी है, “जितेन्द्र प्रताप सिंह राही”, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ से है. पेशे से वैब डिजाइनर है. अभी अभी आसपास ही इन्होने इश्क मे धोखा खाया है. कहते है इश्क मे नाकामयाबी इन्सान को कामयाब शायर बना देती है. इन्होने मुझे कुछ गज़ले भेजीं थी, और उन्हे मेरा […]
अगस्त 14th, 2005 | Posted in Uncategorized | 3 Comments
Tweet उस ने रूख़ से हटा के बालों को रास्ता दे दिया उजालों को जाते जाते जो मुड़ के देख लिया और उलझा दिया ख़यालों को एक हल्की सी मुस्कुराहट से उस ने हल कर दिया सवालों को मर गए हम तो देख लेना ‘शफ़क़’ याद आएंगे हुस्न वालों को -सय्यैद शफ़क़ शाह चिश्ती
जुलाई 26th, 2005 | Posted in विविध | Comments Off on उस ने रूख़ से हटा के बालों को
Tweet आप से गिला आप की क़सम सोचते रहें कर न सके हम उस की क्या ख़ता लदवा है गम़ क्यूं गिला करें चारागर से हम ये नवाज़िशें और ये करम फ़र्त-व-शौक़ से मर न जाएं हम खेंचते रहे उम्र भर मुझे एक तरफ़ ख़ुदा एक तरफ़ सनम ये अगर नहीं यार की गली चलते […]
जुलाई 24th, 2005 | Posted in Uncategorized | 1 Comment
Tweet शमा जलाए रखना जब तक कि मैं न आऊं ख़ुद को बचाए रखना जब तक कि मैं न आऊं ये वक़्त-ए-इम्तेहां है सब्र-ओ-क़रार-ओ-दिल का आंसू छुपाए रखना जब तक कि मैं न आऊं हम तुम मिलेंगे ऐसे जैसे जुदा नहीं थे सांसे बचाए रखना जब तक कि मैं न आऊं -सईद राही
जुलाई 22nd, 2005 | Posted in विविध | 1 Comment
Tweet आज फिर उन का सामना होगा क्या पता उस के बाद क्या होगा आस्मां रो रहा है दो दिन से आप ने कुछ कहा सुना होगा दो क़दम पर सही तेरा कूचा ये भी सदियों का फ़ासला होगा घर जलता है रौशनी के लिए कोई मुझसा भी दिल जला होगा -सबा सिकरी
जुलाई 20th, 2005 | Posted in विविध | 1 Comment
Tweet वो अंजुमन में रात बड़ी शान से गए इमान चीज़ क्या थी कई जान से गए मैं तो छुपा हुआ था हज़ारों नक़ाब में लेकिन अकेले देख के पहचान से गए वो शमा बन के ख़ुद ही अकेले जला किया परवाने कल की रात परेशान से गए आया तेरा सलाम न आया है ख़त […]
जुलाई 17th, 2005 | Posted in विविध | 1 Comment
Tweet ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों में तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों में तुम से सदियों की वफ़ाआें का कोई नाता न था तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों में तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में अब न […]
जुलाई 15th, 2005 | Posted in Uncategorized | 1 Comment