Logic of 111 | १११ का फंडा

Do u know the logic of 111 ? 11 – 1 – 11 ✓ Take ure birth year (last 2 digits) + current age +1 = 111. Its amazing !!

क्या आपको १११ का फंडा पता है? नही तो पढिए
आप अपने जन्म का साल लीजिए, आखिरी के दो अंक (उदाहरण : 68)
उसमे अपनी उम्र जोड़ दीजिए (उदाहरण : 42)
उसमे 1 अंक को जोड़ दीजिए (68+42+1)
आपका उत्तर 111 ही आएगा।

चाहे तो आप स्वयं ट्राई कर लीजिए। है ना मजेदार?

मोबाइल समीक्षा : सैमसंग गैलेक्सी एस

जैसा कि मैने अपनी पिछली पोस्ट मे आपको बताया कि दो दिन पहले ही मैने सैमसंग गैलेक्सी एस (GT 19000M) खरीदा है। यह फोन गूगल के एंड्राइड 2.1 आपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है। वादे के मुताबिक पेश है मोबाइल की विस्तृत समीक्षा।

स्क्रीन
फोन की सबसे बड़ी खासियत है इसकी स्क्रीन। इसकी 4″ की सुपर एमोलेड स्क्रीन इसको खूबसूरत बनाती है। मैने आईफोन 4 की स्क्रीन भी देखी है, लेकिन मुझे गैलेक्सी एस की स्क्रीन ने अधिक प्रभावित किया। इस पर हाई डैफनीशन वीडियो देखने का आनंद ही कुछ और है। स्क्रीन का रिसोल्यूशन 480 x 800 pixels , 16 777 216 कलर्स का है। इसकी स्क्रीन मल्टी टच सपोर्ट करती है। इस फोन मे डाइवएक्स (Divx) सपोर्ट भी है, जिससे लगभग सभी प्रकार के वीडियो इस पर चल सकते है।

Image Courtesy :louisvolant Caroline et Louis VOLANT (at Flickr)

साइज और वजन
इसका साइज 4.82 x 2.53 x 0.39 122.4 x 64.2 x 9.9 mm है और वजन 118g है।

बैटरी
इसकी बैटरी 1500mAH की है, जिसका टॉक टाइम लगभग 13.4 घंटे का और स्टैंडबाइ टाइम 750 घंटे का है। 3G नैटवर्क पर टॉकटाइम (6.55 घंटे) और स्टैंडबाइ टाइम (576 घंटे) का है।

प्रोसेसर और मेमोरी
गैलेक्सी एस 1 GHz के प्रोसेसर पर चलता है। इसमे अंतर्निहित (Built in) मेमोरी 512 एमबी की है और इसके 8GB और 16GB के मॉडल उपलब्ध है। आप मेमोरी 32GB के माइक्रोएसडी मेमोरी कार्ड के द्वारा बढा भी सकते है। लेकिन मेरे विचार से 32GB बहुत होती है, बशर्ते आप कोई बहुत ही मैमोरी भुख्खड़ गेम ना खेल रहे हो। यह गूगल के एंड्राइड 2.1 ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलता है। एंड्राइड के 2.2 संस्करण के उपलब्ध होने के बावजूद इन्होने 2.1 का ही संस्करण क्यों चुना ये मेरी समझ से परे है।

कैमरा
सैमसंग गैलेक्सी एस की जान है इसका शानदार 5 मेगापिक्सल कैमरा। फोटो बहुत ही शानदार दिखते है। आप इससे पैनोरैमिक फोटो भी खींच सकते है। इसके अतिरिक्त आप इस फोन द्वारा हाई डैफनिशन वीडियो भी रिकार्ड कर सकते है। इसके अन्य फीचर्स मे आटो फोकर, स्माइल डिटेंक्शन, डिजीटल जूम, मल्टी शॉट, सैल्फ टाइमर, और आईएसओ कंट्रोल प्रमुख है। आप 30 fps की दर से हाई डैफीनिशन 1280×720 (720p HD) वीडियो खींच सकते है।

टचस्क्रीन
इसकी टचस्क्रीन काफी स्मूथ है, मैने आईफोन4 मे भी ऐसी स्मूथनैस देखी। किसी भी आप्शन को बहुत हल्का सा प्रेस करने पर तुरंत प्रतिक्रिया होती है। इसकी स्क्रीन मल्टीटच सपोर्ट करती है।

कनैक्टीविटी
इसमे ब्लूटूथ 3.0, यूएसबी 2.0 और वाईफाई 802.11b, 802.11g, 802.11n उपलब्ध है। इसमे जीपीएस (A-GPS) सेवा भी उपलब्ध है। इंटरनैट ब्राउजिंग के लिए इसमे क्रोमलाइट प्रदान किया गया है। इसमे जीमेल और गूगल की अन्य सेवाएं अंतर्निहित है। यदि आप गूगल की सेवाएं प्रयोग करते है तो यह फोन आपके लिए वरदान साबित हो सकता है।

एप्लीकेशन
किसी भी स्मार्टफोन की जान उसके एप्लीकेशन होते है। एंड्राइड मार्केट मे ढेर सारे फ्री एप्लीकेशन उपलब्ध है। देखा जाए तो पूरी दुनिया मे कोई भी एप्लीकेशन अब या तो आईफोन पर उपलब्ध है अथवा एंड्राइड पर। इसलिए एप्लीकेशन पर कोई पंगा नही है।

मैने इसे क्यों चुना?
वैसे तो मै अपने नोकिया E71 से काफी खुश था, लेकिन अब जमाना बदल रहा है। हर तरफ़ एंड्राइड की धूम है, एंड्राइड पर यह सबसे अच्छे उपलब्ध फोन मे से एक है, इसलिए इसको चुना गया।

हिन्दी सपोर्ट

आइए इस सबसे संवेदनशील विषय पर बात कर ली जाए। हिन्दी के चाहने वालों के लिए बुरी खबर यह है कि एंड्राइड अभी हिन्दी सपोर्ट नही करता, अब ये क्यों नही करता, इसका जवाब सिर्फ़ गूगल ही दे सकता है। कुछ एप्लीकेशन हिन्दी दिखाते है, लेकिन जीमेल वगैरहा मे हिन्दी लिखावट डब्बे जैसी दिखाई देगी, वैसी ही जैसी विंडोज 95/98 मे दिखती थी। वैसे कुछ जुगाड़ है जिनके द्वारा आप अपने फोन पर हिन्दी चला सकते है। लेकिन ऐसे जुगाड़ आपके फोन की वारंटी खत्म करा सकते है, इसलिए इन्हे अपने रिस्क पर ट्राई करें।

कीमत
भारत मे इस फोन की कीमत लगभग Indian rupee 27,000 से Indian rupee 30,000 के बीच है। यदि आपका कोई मित्र अमरीका/कनाडा से आ रहा है तो उससे मंगवाएं, वहाँ पर यह काफी सस्ता है।

संक्षेप मे
फीचर्स को देखा जाए तो फोन अपने आप मे सम्पूर्ण है। मुझे एंड्राइड पर उपलब्ध फोन मे से यह सबसे अच्छा लगा, हालांकि एंड्राइड का 2.1 संस्करण अखरता है। यदि आप फीचर्स के दीवाने है तो यह फोन आपके ही लिए है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का सपोर्ट ना होने के कारण अभी काफी लोग इस फोन से दूर रहेंगे, इसमे कोई शक नही। सभी फीचर्स को ध्यान मे रखते हुए, मै इस फोन को दस मे से आठ (8/10) की रेटिंग देता हूँ।

इस फोन के सारे तकनीकी स्पेसीफ़िकेशन्स यहाँ पर उपलब्ध है। सैमसंग गैलेक्सी एस की आधिकारिक साइट का पता ये रहा। तो फिर तब तक आते रहिए और पढते रहिए आपका पसंदीदा ब्लॉग आप सभी का पन्ना।

नोट: इस फोन पर लेखक के यह अपने विचार है, आप फोन खरीदने से पहले अपनी आवश्यकताओं और इसके फीचर्स का तुलनात्मक अध्ययन अवश्य करें।

नया मोबाइल : सैमसंग गैलेक्सी एस

वैसे तो मै नोकिया का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। लेकिन क्या करूं, जिधर भी देखो गूगल के एंड्राइड आपरेटिंग सिस्टम का ही बोलबाला है। इसी के मद्देनज़र मोबाइल बदलने का फैसला हुआ। अब मसला था कि फोन कौन सा लें, उसके पहले यह देखना था कि कौन सा मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम लिया जाए। तो हमारी खोज शुरु हुई

कहानी फोन ऑपरेटिंग सिस्टम की।

शुरु के समय मे मोबाइल फोन जावा वाले सिस्टम पर ही आधारित हुआ करते थे, फिर नोकिया ने अपना सिम्बियन ऑपरेटिंग सिस्टम निकाला, जिसको जनता ने हाथो हाथ लिया। इसी बीच दूसरी कम्पनियां इसको टक्कर देने के लिए अपना अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने मे जुट गयी। नतीजा एंड्राइड आया, जिसको गूगल ने विकसित किया और ओपेन सोर्स ने इसको सही दशा दी। उधर एप्पल के अपना आईफोन निकाला जो उसके अपने ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित था। इसको भी काफी सफ़लता मिली। फिर एक और कम्पनी ने ब्लैकबैरी निकाला। जो काफी लोकप्रिय हुआ।  अपने बिल्लू भैया भी पीछे काहे रहते, वे भी विंडोज 7 पर आधारित मोबाइल आपरेटिंग सिस्टम ले आए, ये बात और है, पीसी पर विंडोज से हाथ जलाए हुए लोग, मोबाइल पर इसको नही देखना चाहते। इसके अलावा भी कुछ गिने चुने ऑपरेटिंग सिस्टम थे, लेकिन वो उतने उल्लेखनीय नही है। इन सभी के बीच जो ऑपरेटिंग सिस्टम उभर कर आए वो आईफोन और एंड्राइड ही है। आज भी दुनिया भर मे जितने भी मोबाइल एप्लीकेशन्स मिलेंगे, वो इन दोनो पर जरुर मिलेंगे। इस तरह अंतत: एंड्राइड को ही फाइनल किया गया।

Image Courtesy :louisvolant Caroline et Louis VOLANT (at Flickr)

समस्या थी, फोन कौन सा लें?
अब बारी थी फोन पसंद करने की। जिससे पूछो वो अपने अपने विचार बताता। सबके अपने अपने तर्क वितर्क थे। जो समस्या को समाधान की जगह और कनफ्यूजन कर देते। हमने अमितवे से पूछा तो वो एचटीसी की बात करता, कोई भारतीय कम्पनिययों के फोन लेने की वकालत करता, कोई आईफोन/ब्लैकबैरी की वकालत करता। हमने भी काफी सोच विचार किया और् आखिरी मे सैमसंग गैलेक्सी एस को फाइनल किया गया। कल ही ये फोन मेरे हाथ मे पहुँचा है, इसको इस्तेमाल करने के चक्कर में वीकेंड के बाकी काम करने से परहेज किया गया। फिर जनाब कल से लेकर आज तक, लगे पड़े है इस फोन को इस्तेमाल करने में। अभी तो फोन के सारे फीचर्स चैक किए जा रहे है। धीरे धीरे इसमे पारंगत भी हो जाएंगे।इस फोन के बारे मे विस्तृत समीक्षा अगली पोस्ट मे कर रहा हूँ।

जब तक आप लोग ये पोस्ट पढेंगे, तब तक मै इस फोन की समीक्षा लिख लेता हूँ। तो फिर तब तक आते रहिए और पढते रहिए आपका पसंदीदा ब्लॉग आप सभी का पन्ना।

चमत्कारी चक्री की महिमा

जैसा कि आप सभी जानते है कि मै भी शेयर मार्केट मे काफी निवेश करता हूँ। शेयर मार्केट के बारे मे काफी जानकारी इकट्ठा करता हूँ। शेयर मार्केट से सम्बंधित मेरे लेख आपने पढे ही होंगे। शेयर मार्केट पर नज़र रखने इसके लिए अपने आपको रोज़ाना अपडेट करना पड़ता है इसके लिए ढेर सारा मैटेरियल पढना पड़ता है।

मुझसे काफी लोग पूछते है कि शेयर मार्केट के बारे मे ढेर सारे लोग लिखते है कौन अच्छा है? किस पर विश्वास किया जाए। भई इस सवाल का जवाब काफी सीधा साधा है, पढो सभी को, समझो सबके विचार, लेकिन करो अपने मन की। मै काफी लोगों को पढता हूँ ऑनलाइन भी ऑफलाइन भी। एक अनजान शख्सियत है जो शेयर मार्केट पर काफी अच्छा लिखता/लिखती है। अनजान इसलिए कि इन्होने अपनी जानकारी सार्वजनिक नही की है। इन्होने अपने बारे मे लिखा है :

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

जी हाँ मै चमत्कारी चक्री की बात कर रहा हूँ। चक्री के लेख काफी रोचक और जानकारी से भरे होते है। मै चक्री को तब से पढ रहा हूँ जब ये अंग्रेजी मे लिखते थे (अभी भी लिखते है), अब इनके लेख हिन्दी मे भी उपलब्ध है। आजकल मेरे दिन की शुरुवात चक्री के लेख पढकर ही होती है। तो फिर आप भी पढिए चमत्कारी चक्री को प्राप्त कीजिए ढेर सारी जानकारी। चक्री के लिख पढने के लिए आप इस लिंक पर जा सकते है। मै फिर कहूँगा, पढिए सभी को, करिए अपने मन की।

समय की कमी के कारण, लम्बे लम्बे लेख नही लिखे जाते, इसलिए छोटे छोटे लेखों से काम चलाइए। तो फिर मिलते है थोड़े अंतराल के बाद, तब तक आते रहिए और पढते रहिए आपका पसंदीदा ब्लॉग आप सभी का पन्ना।

जन्मदिन पर कुछ गपशप

अभी पिछले दिनो राहुल गाँधी की एक सभा मे चप्पल पहनने वालो को बाहर रोका गया था, काहे? अरे पता नही क्या? इन दिनो राजनेताओं पर जूते चप्पलों से हमला हो रहा है। सबसे पहले जार्जबुश, फिर जरदारी, ब्लेयर, उमर अब्दुल्ला, चिदम्बरम और ना जाने कौन कौन। आजकल तो अगर अपनी सभा को सुर्खियों मे लाना हो बस किराए पर जुते चप्पल उछालने वालों को बुलवा लो। बिना कुछ ज्यादा खर्चा किए, बुश और ब्लेयर की बराबरी मे आ जाओगे। हमे भी लगता है अगली ब्लॉगर मीटिंग मे जूते चप्पलें उछलवा दें, लेकिन दिक्कत ये है कि उछालेगा कौन, फिर कोई धकाड़ ब्लॉगर भी तो चाहिए, जिसके ऊपर चप्पलें उछले फिर भी वो मुस्कराएं, समीर लाल से बात करके देखते है।   माशा अल्लाह बॉडी भी काफी अच्छी है, चाहे जित्ते जूते चप्पल उछलें, मजाल है कि चेहरे से मुस्कान गायब हो, अपनी टिप्पणी मशीन के साथ दन्न से धन्यवाद की टिप्पणी टिका देंगे, चप्पल उछालने वाले को। और हाँ ब्लॉग लिखने का मशवरा भी दे डालेंगे। लेकिन समीर लाल तो विदेश मे है, आने जाने का बिल टिका दिया तो ब्लॉगर कमिटी कर्जे मे डूब जाएगी। चलो फुरसतिया से बात करके देखते है। लेकिन वो तो अभी बादल और बाढ की समस्या मे उलझे हुए है।

बाढ और बादल से तो दिल्ली भी जूझ रही है। ऊपर से ट्रैफिक जाम की समस्या है सो अलग। कॉमनवेल्थ से वेल्थ तो कलमाडी पहले ही लेकर निकल चुके है, जो बचा है वो बस कॉमन सा ही है। अब तो लगता है कॉमनवेल्थ के ऊपर संकट के बादल मँडराने लगे है। अब तो लोग ढेर सारी बाते करने लगे है, लगता है ये कॉमनवेल्थ वाला किस्सा यहीं थमेगा नही। नेता तो नेता, खिलाड़ी भी सकते में है। आधे डेंगू से बीमार, आधे कोई बैन दवा खाकर टुन्न। लो अब करा लो कॉमवेल्थ। अमां अगर दवा खानी तो ऐसी खाते जो पकड़ी ना जाती, वैसे भी मैडल शैडल तो जीतते नही, दवा खाकर देश की बदनामी करे हो सो अलग।

बदनामी अकेले एथलीटों ने कराई हो ऐसा नही है, पाकिस्तानियों से पूछो, उनके क्रिकेट खिलाड़ियों ने तो उन्हे कंही का नही छोड़ा। अब बताओ, नो बॉल फेंकने के भी कोई पैसे लेता है? इत्ता टुच्चा आरोप, हमारे खिलाड़ी तो बिना पैसे लिए ही नोबॉल फेंकते है। श्रीलंका का रणवीर तो बेचारा इसी गम मे बावंरा हो गया है, कि अगर तीन नोबॉल के दस हजार पाउंड मिलते है, उसने तो सैकड़ो नोबॉल बिना पैसे लिए फेंकी, इत्ता नुकसान? बताओ जब पैसे बँट रहे थे तो ये कहाँ सो रहा था?

सोने से याद आया, मैंगलोर विमान हादसा कुछ याद आया? जब प्लेन मैंगलोर हवाई अड्डे के रनवे पर लैंड करते करते, बगल मे एक खाई मे गिर गया था, काफी लोग मरे थे, अब पता चला है कि एक पाइलट उस समय सो रहा था। अमां ये भी कोई सोने का वक्त था? ड्यूटी पर सोना ऑलाउड नही है, ड्यूटी पर सिर्फ़ नेता लोग सोते है, ना मानो तो लोकसभा/राज्यसभा का चैनल देख लो। या तो नेता सोते मिलेंगे या फिर लड़ते हुए। उनको देखते हुए आप ना सोने लगो तो कहना। मै तो सरकार से दरख्वास्त करुंगा कि इस चैनल की लाइव रिकार्डिंग रात को भी दिखाएं, ताकि थके हारे देशवासी लोरी की जगह ये चैनल देखकर सकून से सो सकें। लेकिन इस रिकार्डिंग को प्रायोजित कौन सी कम्पनी करेगी? प्रायोजक तो क्रिकेट और फिल्म वालों के आसपास ही टहलते रहते है, नेताओं को कौन पूछे?

फिल्म से याद आया, दो खबरें, एक तो ब्रिटनी स्पियर्स के बॉडीगार्ड ने आरोप लगाया है कि ब्रिटनी उसको रात के समय अपने बैडरुम मे बुलाती थी। क्या कहा? ऐसा? नही यार! ऐसा नही हो सकता? लेकिन इसमे आरोप कहाँ है?  ये तो इन्वीटेशन हुआ? अब इस बांवरे बॉडीगार्ड को कौन समझाए, इंवीटेशन और आरोप मे फर्क। लगता है कंफ़्यूजन हो गया इसको। ऐसा ही एक आरोप एक्टर शाइनी आहूजा की नौकरानी ने लगाया था कि शाइनी आहूजा ने उसके साथ रेप किया है। अब आरोप तो आरोप, शाइनी दन्न से जेल के अंदर। शाइनी बोलता रहा, कि सबकुछ रजामंदी से होता था। लेकिन पुलिस वाले क्यों माने? बड़ी हस्ती अगर जेल जाएगी तो कैदियों का भी मनोरंजन होगा, यही सोचकर बुक कर दिया। अब इत्ते दिनो बाद, नौकरानी को याद आया कि रेप तो हुआ ही नही था।  इसे कहते है कंफ़्यूजन का शिकार , अमां जब रेप नही हुआ था तो शाइनी को जेल मे बंद काहे करवाया? उस बेचारे को इत्ते दिन पुराने कैदियों के मनोरंजन का शिकार होना पड़ा ना। कहने वाले लोग तो यहाँ तक कह रहे है कि नौकरानी का रेप हुआ हो या ना हुआ हो, शाइनी का जेल मे…….अब हम काहे कुछ कहें। आप खुद ही समझदार हो। अब आप खुद ही डिसीजन लें।

डिसीजन तो हमने भी ले लिया है, एक ठो नही दो दो। अव्वल कि आज (9 सितम्बर को) हमारा जन्मदिन है(अब ये डिसीजन नही है, आगे पढो) लेकिन हम मनाएंगे नही। सुबह से फोन अटैंड करते करते, और दोस्तों को सफाई देते देते थक गए है कि हमारे आज पैदा होने मे हमारी कोई गलती नही थी, लेकिन कोई माने तब ना। बिना कुछ खिलाए पिलाए काम बनेगा नही। लेकिन हम भी अडिग है पार्टी ना देंगे, अगर दोस्त यार आकर पार्टी (बिना बिल टिकाए) दे जाएं तो अलग बात है। दूसरा डिसीजन कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारिया देखने हम स्वयं दिल्ली आ रहे है, अगले हफ़्ते। जिनको भी मिलना मिलाना हो तो इमेल से सम्पर्क करें। पूरे पंद्रह दिन दिल्ली मे डटे रहेंगे। देखते है, गेम्स की तैयारियां कैसे नही पूरी होती है। अच्छा भैया अब हम दुकान बढाते है, बहुत हो गया, बीबीजी की आवाज आयी है, नहा लो, सुबह से ऐसे ही बैठे हो। आदमी ब्लॉग और बाहर की दुनिया मे जाहे जित्ता बड़ा शेर हो, घर मे चूहा ही होता है।

चलते चलते :
ईश्वर की माया भी अजीब है। चूहा बिल्ली से डरता है, बिल्ली कुत्ते से, कुत्ता शेर से, शेर आदमी से, आदमी बीबी से और बीबी चूहे से।

तो फिर आते रहिए, पढते रहिए, आपका पसंदीदा ब्लॉग, अगली पोस्ट तक के लिए नमस्कार।


मेरा पन्ना की छठवीं वर्षगांठ

इसी सप्ताह मेरा पन्ना को शुरु हुए ६ साल हो गए। इसका मतलब ये साल मेरा पन्ना अपनी छठवीं वर्षगाँठ मना रहा है। अगर दूसरे शब्दों मे कहा जाए तो छठी। मै अपने सभी पाठकों, साथी चिट्ठाकारों, परिवार के सदस्यों एवम अन्य मित्रो का धन्यवाद करना चाहता हूँ जिनकी प्रेरणा से आज मेरा पन्ना इस मुकाम तक पहुँच सका है। साथ ही मै भ्रष्ट राजनेताओं, बिके हुए क्रिकेटरों, पकाऊ न्यूज चैनलों का भी धन्यवाद करना चाहूँगा कि जिन्होने बड़ी शिद्दत के साथ मुझे ब्लॉग लिखने का भरपूर मसाला प्रदान किया। उम्मीद है ये लोग इसी तरह से अपने दु:ष्कर्म करते रहेंगे और मुझे लिखने की ऊर्जा प्रदान करते रहेंगे।

छठी पर याद आया कि पहले चार साल तो बड़े अच्छे बीते, लगातार लिखता रहा, पाँचवे साल मे कुछ परेशानी हुई, लेकिन कभी कभार लिखने का समय निकाल ही लेता था। लेकिन छठे साल मे तो बाकायदा छठी का दूध याद आया। पढने का ही समय नही मिल पाता था, इसलिए लिखने का समय निकालना तो और मुश्किल था। अब स्थितियां थोड़ी सुधरी है, देखते है, ये साल कैसा निकलता है।

From MeraPannaPhoto

चित्र सौजन्य : बैंगानी बंधु

आइए कुछ आँकड़ों की बात भी कर लें। मेरा पन्ना पर प्रतिदिन आने वाले लोगों की औसत संख्या 1000 से ऊपर हो गयी है। आने वाले अधिकांश लोग गूगल के मार्फत ही आते है। बाकी सर्च इंजन मे सिर्फ़ बिंग ही कुछ पाठक भेजता है। देशों के हिसाब से भारत से 80%, बाकी अमरीका, कुवैत और बाकी देशों से। हमारे पाठकों मे 26% IE6 से(पुराना चावल है, इत्ती जल्दी हार नही मानने वाला), 17% फायरफाक्स से, 17% IE8, 6.5% ओपेरा, 6.5% गूगल क्रोम से प्रयोग करते है। कुल मिलाकर अभी भी IE की बादशाहत कायम है। सबसे बड़ी खास बात, मोबाइल द्वारा साइट पर आने वाले लोगों की संख्या निरंतर बढ रही है। ट्विटर, फेसबुक और अन्य वैबसाइटों द्वारा भी मेरा पन्ना पर पाठकों को भेजे जाने की संख्या मे निरन्तर बढोत्तरी हो रही है। हिन्दी मे सर्च बढ रही है, पाठक मुख्यता चुटकुले, शायरी, प्यार, यूट्यूब, रामायण, न्यूज चैनल, समाचार पत्र, शेयर बाजार जैसे कीवर्ड ढूंढते हुए आते है। गूगल पर jitu.info/merapanna ढूंढने पर अब लगभग 47000 सर्च मिल जाती है, ये पहले एक या दो सर्च का ही हुआ करता था। वैल्यू माई साइट ने मेरा पन्ना की 5 डालर प्रतिदिन की विज्ञापन आय के अनुसार, इसकी कीमत लगभग 4000 डालर लगायी है (अब कीमत लगाने वाले को मना तो कर नही सकते, लगा लो, हम कौन सा बेचने वाले है। ) यहाँ पर गूगल भैया  ये प्वाइंट नोट करें कि मै अपनी प्रतिदिन की विज्ञापन की आय का खुलासा नही कर रहा।

पोस्ट को यहीं पर समाप्त करता हूँ, अगली पोस्ट तक के लिए इज़ाज़त चाहता हूँ। तो फिर आते रहिए और टिप्पणी करते रहिए अपने पसंदीदा ब्लॉग पर।

जीवन, काँच की बरनी और दो कप चाय

अभी कुछ दिन पहले एक पुराने मित्र का फोन आया, मुझसे हालचाल पूछा, मैने बोला यार बहुत व्यस्त हूँ, मित्र ने उस समय तो कुछ ज्यादा नही कहा, लेकिन थोड़ी देर मे ही उसने एक इमेल फारवर्ड की, जिसको मै आपके साथ शेयर कर रहा हूँ, इस इमेल को पढकर मुझे जीवन को समझने का एक अलग नजरिया मिला। ( नोट: इस इमेल पर मेरा कोई कॉपीराइट नही है।)

काँच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की   बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ … आवाज आई … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई   है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

  • इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….
  • टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
  • छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
  • रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में   सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी …

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है …. यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा … मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने   बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ … टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है … पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच   ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये.

आपका क्या सोचना है इस बारे में?

एक प्रवासी का दर्द

आज रवीश का लेख “मै प्रवासी हूँ” पढकर फिर से एक प्रवासी होने के दर्द को महसूस किया। रवीश ने अच्छा लेख लिखा है जरुर देखिएगा। कई साल पहले मैने भी इस बारे मे कुछ लिखा था

प्रवासी एक सामाजिक प्रक्रिया है, इसे रोका नही जा सकता। देखा जाए तो दिल्ली भी प्रवासियों ने ही आबाद किया, पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने ही दिल्ली, सही मायने मे आर्थिक रुप से समृद्द दिल्ली बनाया। जब भारत एक देश है तो उसमे गैर इलाकाई लोग प्रवासी कैसे हुए? मुम्बई मे सभी लोगों के लिए समान अवसर थे, बाहर के लोगों ने आकर मुम्बई को आर्थिक राजधानी बनाया, अब वो प्रवासी हो गए? ये राज ठाकरे जैसे लोग, इन मराठी अस्मिता जैसे  मुद्दों मे अपनी राजनीतिक जमीन खोज रहे है, जहाँ उनको जमीन मिल गयी, फिर वो भी चुप बैठ जाएंगे। राजनीतिक बेरोजगारी बहुत बड़ी चीज होती है।

तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, हर शहर के विकास की कुछ सीमाएं होती है। शहर की आबादी भी उसी अनुसार होनी चाहिए। जहाँ तक दिल्ली की बात है, दिल्ली एनसीआर क्षेत्र काफी विस्तृत हो चुका है, उसका विकास भी सही ढंग से नही हो पा रहा है, ऊपर बढती आबादी, आखिर कब तक मौजूदा इंफ़्रास्ट्रक्चर, इस बढते बोझ को सम्भालेगा। सरकार को विकास की नयी योजनाएं बनानी चाहिए और उन पर ईमानदारी से अमल करना चाहिए। तभी इन समस्याओं से निजात मिलेगी।

दूसरी तरफ़ गाँवों से शहरों की ओर पलायन अभी भी नही रुक रहा। गाँव देहात में रोजगार के अवसर बढ नही रहे, यही मूल समस्या है। इसका समाधान किया जाना है।

मै भी एक प्रवासी हूँ, दूसरे देश मे रहता हूँ, एक प्रवासी का दर्द समझता हूँ। आज भी तीज त्योहारों मे अपना घर, अपना शहर याद आता है। उन्ही यादों के साये मे ब्लॉग लिखे जा रहे है। हम जब अपने देश भारत जाते है तो लोग नान रिलायबल इंडियन (या Not Required Indians) समझते है, विदेश मे भले ही यहाँ के लोग भले ही  पेशेवरों को इज्जत दें, लेकिन समझते तो बाहर वाला ही है। हम तो दोनो जगह ही मन से नही स्वीकारे जाते। यहाँ पर कई कई बार तो बाहर के लोगों को हटाकर स्थानीय लोगों को रखने की बात चली, हर बार लगता था अबकि तो नौकरी पक्का जाएगी। लेकिन हर बार तकनीकी लोगों को छोड़ दिया जाता। देखो कब तक चलता है ऐसा। खैर अपने दर्द अपने है। बदलते वक्त के साथ इनको झेलने की क्षमता भी बढ गयी है। आप भी किसी ऐसी स्थिति से दो चार हुए होंगे, तो लिख दीजिए अपने विचार, बताइए दूसरों को इस बारे में।

बाकी भारत के नागरिक, अपने ही देश मे प्रवासी कैसे हुए? लगता है प्रवासी की परिभाषाएं बदलने लगी है। आपका क्या कहना है इस बारे में?

मदनू…..एक खूबसूरत गीत

कभी कभी कुछ गीत दिल को छू जाते है, ऐसा ही एक फिल्मी गीत है, आने वाली फिल्म लम्हा से। इस गीत के बोल इतने अच्छे है कि बार बार सुनने को जी करता है। इसे गाया भी उतनी खूबसूरती से गया है। इस गीत को गाया है चिन्मय और क्षितिज ने और संगीतबद्द किया है मिथुन ने। क्षितिज की आवाज मे एक कशिश है, इस गीत मे सुर भी अच्छे लगे है। मुझे कभी कभी क्षितिज और मिथुन की आवाज एक सी लगती है। क्या कहाँ, मिथुन को नही जानते? मिथुन एक बहुत ही होनहार संगीत निर्देशक है, पिछले कुछ गीतों (मौला मेरे मौला (अनवर), बीते लम्हे (The Train) मे उसने ये साबित भी कर दिखाया है। हालांकि अभी वो इतनी लाइमलाइट मे नही आया है। उम्मीद है लम्हा के गीत उसको पर्याप्त मशहूरी दिलाएंगे। आप भी इस गीत को सुनिए, मेरी तरह याद कीजिए अपने किसी बिछड़े साथी को और मजा लीजिए इस खूबसूरत गीत का।



है दिल को तेरी आरजू, पर मै तुझे ना पा सकूं
है दिल को तेरी जुस्तज़ू, पर मै तुझे ना पा सकूं

मै हूँ शब तू सुबह, दोनो जुड़ के जुदा
मै हूँ लब तू दुआ, दोनो जुड़ के जुदा
मदनू, माशकू, दिलबरु…मदनू रे

है दिल को तेरी आरजू, पर मै तुझे ना पा सकूं
है दिल को तेरी जुस्तज़ू, पर मै तुझे ना पा सकूं

मै हूँ शब तू सुबह, दोनो जुड़ के जुदा
मै हूँ लब तू दुआ, दोनो जुड़ के जुदा
मदनू, माशकू, दिलबरु…मदनू रे

कई ख्वाब दिल तुझको लेकर सजाए
पर खौफ़ ये भी कंही पर सताए
गर ये भी टूटे तो फिर होगा क्या रे
मुझे रास आती है खुशियाँ कहाँ रे
क्यूं दिल को दुखाना बेवजह…..मदनू रे
क्यूं दिल को दुखाना बेवजह……
फिर आँसू बहाना, इक दफ़ा
फिर आँसू बहाना, इक दफ़ा…..

मै हूँ शब तू सुबह, दोनो जुड़ के जुदा
मै हूँ लब तू दुआ, दोनो जुड़ के जुदा
मदनू, माशकू, दिलबरु…मदनू रे

तू ही तो हर पल बंधा है
लम्हों की इन जंजीरो में
तू ही तो हर दम रहा है
ख्वाबों की हर ताबीरों में
तू ही तो हर दिन दिखा है
धुंधली या उजली तस्वीरों मे.

तेरी ही तो है खुशबू मुझमे मे हाँ, मदनू रे
तेरी ही तो हो खुशबू मुझमे मे हाँ
अब तू ही तो हर सू हर जगह
अब तू ही तो हर सू हर जगह

(कश्मीरी में)
बेह चु शब चे सुबह, मीलथ दसवयई जुदा
बेह चु लब चे दुआ, मीलथ दसवयई जुदा
मदनू, माशकू, दिलबरु…मदनू रे

हाँ तेरा साया तो मै हूँ, पर संग तेरे ना रह सकूं
हाँ इस सफ़र मे तो मै हूँ,पर संग तेरे ना रुक सकूं

मै हूँ शब तू सुबह, दोनो जुड़ के जुदा
मै हूँ लब तू दुआ, दोनो जुड़ के जुदा
मदनू, माशकू, दिलबरु…मदनू रे

माहिया वे….माहिया वे….
माहिया वे….माहिया वे….


फिल्म : लम्हा (2010)
संगीत निर्देशक : मिथुन
गायक : चिन्मय और क्षितिज
गीतकार : सईद क़ादरी

इस गीत का एक और संस्करण ’साजना’ भी है, जिसमे क्षितिज की जगह मीका सिंह की आवाज है। विश्वास नही होता, मीका ने इसे इतनी खूबसूरती से गाया है। मीका अब एक परिपक्व गायक के रुप मे उभरे है। यदि मौका लगे तो उसको भी जरुर सुनिएगा।

भागादौड़ी वाली भारत यात्रा

आप सभी लोगो से काफी दिनो बहुत बाद मुखातिब हो रहा हूँ, क्या करुं मसरुफियत इस कदर बढ गयी है कि ब्लॉगिंग से लगभग दूर सा हो गया हूँ। फिर भी जैसे ही मौका मिलता है ब्लॉगिंग करने की कोशिश करता हूँ। अभी कल ही भारत यात्रा से लौटा हूँ, इस बार भी भारत यात्रा काफी थकाने वाली रही, क्योंकि समय कम था, और नाते रिश्तेदारों मे मिलने मिलाने की खींचतान ज्यादा थी। फिर भी अपने लिए कुछ समय निकाल ही लिया।

इस बार भारत यात्रा के दो मकसद थे, पहला मुम्बई(या आसपास) मे अपने लिए एक आशियाना तलाशना और दूसरा मेरी PMP की पढाई और इम्तिहान। मुम्बई में आशियाने तो कई देखे लेकिन कुछ समझ मे नही आया। अभी तलाश जारी है। सबसे बढी परेशानी हम नार्थ वालों को ये होती है कि दिल्ली के फ़्लैट देखने ने बाद मुम्बई के फ़्लैट काफी छोटे लगते है। इसलिए सबसे पहले तो माइंडसैट (मानसिकता) बदलनी होगी। पुणे के दोस्तो से पहले से ही क्षमा मांगता हूँ कि वादा करके भी नही आ सका। इस बार समय कम था इसलिए पुणे का चक्कर नही लगा सका, लेकिन ये पक्का है अगली यात्रा मे पुणे जरुर जाऊंगा। मेरे को पुणे के पास तलेगाँव वाला एरिया निवेश के लिहाज से काफी अच्छा दिख रहा हूँ। खैर देखते है कि क्या हो सकता है।

मुम्बई मे कुछ ब्लॉगर दोस्तों से मुलाकात हुई काफी अच्छा लगा। सबसे पहले तो उन सभी साथियों को धन्यवाद जो अपनी रविवार की सुबह(बहुत अच्छी नींद आती है यार) को खराब करके भी मुझसे मिलने पहुँचे। काफी अच्छी बातचीत हुई, मजा आया। इस तरह की ब्लॉगर्स मीट होती रहनी चाहिए। इस मीटिंग की पूरी जानकारी यहाँ पर देखी जा सकती है।

From BloggerMeet

मुम्बई के बाद मेरा अगला पड़ाव था दिल्ली जहाँ पर मुझे अपना PMP का कोर्स करना था। काफी अच्छा लगा, बहुत सारे नए मित्रों से मुलाकात हुई। दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के साफ़्टवेयर वाले लोगो से नाता लगभग टूट ही चुका था, इस मुलाकात मे काफी नए मित्र बने, जिनसे काफी सारी जानकारी का आदान प्रदान हुआ। तीन दिन की ट्रेनिंग के बाद अब बारी थी, व्यक्तिगत कामों की जिनको निबटाते निबटाते टाइम कब निकल गया पता ही नही चला। इस बार दिल्ली मे ब्लॉगर्स साथियों से नही मिल सका, इसका मुझे मलाल रहेगा। क्या करुं दिल्ली मे पैर टिक ही नही पा रहे थे, कभी रुड़की कभी ग्वालियर, कुल मिलाकर बहुत भागदौड़ का समय बीता। आशा है दिल्ली के ब्लॉगर्स साथी मेरी समस्या को समझेंगे। उम्मीद है अगली यात्रा मे उनसे मुलाकात जरुर होगी।

इस भागदौड़ के बीच मैने एक दिन की छोटी यात्रा उत्तरांखण्ड के कौडियाला की करी। रिवर राफ़्टिंग और दूसरे जोखिम भरे खेलो मे मुझे हमेशा से ही आनन्द आता है, इस बार कौड़ियाला और शिवपुरी मे जी भर कर रिवर राफ़्टिंग की गयी। हालांकि पानी कुछ ज्यादा था इसलिए राफ़्टिंग मे वो मजा नही आया जो पिछली यात्रा में मनाली के पास की गयी राफ़्टिंग मे आया। फोटो इस बार ज्यादा खींचे नही थे, इसलिए पिछले वाले फोटो से ही काम चलाइए।

From IndiaTrip2009

अभी कल ही लौटा हूँ इसलिए आज आफिस आने की इच्छा ही नही हो रही थी। लेकिन अगर ऑफिस नही आता तो कहाँ जाता? घर पर भी आजकल सन्नाटा है। फैमिली भारत यात्रा पर है, इसलिए हमारी स्थिति फोर्स्ड बैचलर (जबरन कुँवारे) वाली है। ये जबरन कुँवारे पर भी एक पोस्ट लिखी थी, मौका लगे तो पढ लीजिएगा। अच्छा भई, अभी ऑफिस का थोड़ा काम काज निबटा लिया जाए। फिर मौका मिलते ही आपसे दोबारा मुखातिब होता हूँ।