जनादेश 2009 : समीक्षा

चुनावों मे भारतीय जनता ने अपना जनादेश दे दिया है। कुल 543 सीटों मे से कांग्रेस का यूपीए गठबंधन 260+ सीटें लेकर सबसे बड़े गठबंधन के रुप मे उभरा है। दूसरी तरफ़ भाजपा का एनडीए गठबंधन कुल 158 सीटें पाकर दूसरे नम्बर पर रहा। कांग्रेस की व्यक्तिगत सीटें (205 सीटें) भी एनडीए गठबंधन (158 सीटें) से लगभग 50 सीटें अधिक है। कांग्रेस ने पिछले 18 सालों मे इतना अच्छा प्रदर्शन नही किया। तो आखिरकार इस मुद्दाविहीन चुनाव में कांग्रेस की इस अप्रत्याशित सफलता का राज क्या था? आइए इस जनादेश के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओ को समझें:

  • एक बात तो साफ़ है कि जनता ने स्थायित्व को वोट दिया। मतदाता काफी परिपक्व हो गए है, क्षेत्रीय पार्टियों की ब्लैकमेलिंग से वो भी चिंतित थे। जनता गठबंधन राजनीति से थक चुकी थी। जाहिर है, बीजेपी और कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टियां है। वोट इन्ही मे बँटा। । इस बार का जनादेश स्पष्ट था, काम करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों(उड़ीसा,बिहार) को वोट मिले, अन्यथा राष्ट्रीय पार्टियों के पक्ष में वोट डाले गए।
  • राजनीति मे सक्रिय गुंडा माफिया नेताओं का सफाया हुआ। इस चुनाव में एक भी माफिया जीत नही सका। यह एक अच्छी पहल है। राजनीतिक पार्टियां जनता के इस संकेत को समझें।
  • कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश और बिहार मे, क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखियों का सहारा नही लिया। यह एक साहसी निर्णय था, किस्मत से यूपी मे दांव चल गया, बिहार मे नही चल सका।
  • कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार डा.मनमोहन सिंह की साफ सुधरी छवि, विरोधियों पर भारी पड़ी।
  • युवा मतदाताओं ने नए नेतृत्व (राहुल गांधी) पर विश्वास व्यक्त किया।
  • पश्चिम बंगाल और केरल के मतदाताओं ने वामपंथियों को उनकी गलतियों का सबक सिखाया।
  • बीजेपी ने पिछली गलती फिर दोहरायी, अति आत्मविश्वास फिर ले डूबा। जाने क्यों बीजेपी नेतृत्व हर बार आत्मविश्वास की वजह से मार खाता है।
  • चुनावो के दौरान जुटने वाली भीड़, वोट देने वालो मे नही बदल सकी। वोट प्रतिशत कम रहा। गर्मी भी एक वजह रही।
  • बीजेपी मुद्दों को जनता के सामने ठीक तरह से पेश नही कर सकी। महंगाई एक बहुत अच्छा मुद्दा था, लेकिन बीजेपी नेतृत्व इसको सही तरह से भुना नही सका।
  • कई राज्यों (राजस्थान, उत्तराखंड) मे बीजेपी की अंदरुनी गुटबाजी उसे ले डूबी।
  • वरुण गांधी की गैरजरुरी टिप्पणियां और उस पर बीजेपी का अस्पष्ट रुख, यूपी मे मुस्लिम वोटों का एकतरफ़ा धृवीकरण का कारण बना। जाहिर है, फायदा बीजेपी को नही, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को पहुँचा।

राजनीतिक पार्टियों का आत्ममंथन

बीजेपी

  • बीजेपी को अपनी दिशा और दशा निर्धारित करनी होगी। अभी से ही विजन 2014 पर काम शुरु करना होगा।
  • बीजेपी को गलतियों से सबक सीखना होगा। नेतृत्व युवा हाथों मे देना होगा। यही समय की मांग है।
  • पूरे भारत मे बीजेपी को अपनी स्वयं की पहचान बनानी होगी। खासकर पूर्वी राज्यों और दक्षिण के राज्यों मे। गठबंधन के भरोसे बैठना ठीक नही।
  • राजस्थान और उत्तराखंड की बीजेपी इकाइयों के आंतरिक कलह का समाधान करना होगा।
  • उत्तरप्रदेश मे बीजेपी को सक्रिय विपक्ष की भूमिका निभानी होगी, मुलायम/माया के आगे पीछे घूमकर बीजेपी ने अपना वोट बैंक ही खोया है।
  • मंदिर मस्जिद के मुद्दे कोर्ट के हवाले करके, अपना ध्यान बेरोजगारी, राष्ट्रवाद, आतंकवाद, महंगाई,बिजली-सड़क-पानी और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों की तरफ़ ले जाना चाहिए। जनता के लिए मंदिर मस्जिद से कंही ज्यादा जरुरी ये मुद्दे है।

कांग्रेस

  • उत्तरप्रदेश मे कांग्रेस का पासा सीधा पड़ गया। सभी राहुल बाबा की जय हो, बोल रहे है, यदि कांग्रेस को 5 सीटे मिलती तो? होता क्या हमेशा की तरह राज्य के प्रभारी (इस समय दिग्विजय सिंह) को बलि का बकरा बनाया जाता। कांग्रेस मे हमेशा से ही होता आया है, जीत का श्रेय गांधी परिवार को और हार का ठीकरा राज्य प्रभारी।
  • कांग्रेस के कुछ सहयोगियों जैसे तृणमूल कांग्रेस, डीएमके ने अप्रत्याशित सफ़लता दर्ज की।
  • कांग्रेस के ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी है, मेरे हिसाब से कांग्रेस का टेस्ट अब होना है।
  • देशहित मे कठोर निर्णय भी लेने पड़े तो सत्ताधारी पक्ष को उस पर अमल करना चाहिए। हालांकि कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय सहमति आवश्यक है।
  • महंगाई और आतंकवाद महत्वपूर्ण मुद्दे है, चुनाव जीतने का मतलब यह कतई नही कि जनता इन मुद्दों को भूल गयी है। जनता ने कांग्रेस को वोट सशक्त विपक्ष के अभाव मे दिया है, अच्छे काम के लिए नही।
  • बूढे कांग्रेसियों के रिटायरमेंट का वक्त आ गया है। उन्हे नए नेतृत्व के लिए जगह खाली करनी ही पड़ेगी।
  • कांग्रेस को सभी तरफ़ से ध्यान हटाकर, वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर, विकास के मॉडल पर काम करना होगा। जनादेश विकास के लिए है।

वामपंथी

  • आगे बढकर अपनी गलतियां स्वीकारें।
  • अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करें।
  • दुनिया भर मे वामपंथ खात्मे पर है, भारत मे भी वही ना दोहराया जाए।
  • सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाएं।

क्षेत्रीय पार्टियां

  • ये चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों के लिए कड़ा संदेश है, सिर्फ़ बातों से काम नही चलेगा, काम भी करके दिखाना होगा।
  • क्षेत्रीय विकास के नाम पर चुनावी ब्लैकमेलिंग बन्द करनी होगी।
  • हर चुनाव मे पालाबद्ल करना जनता को रास नही आ रहा।

लेख का अंत एक अंग्रेजी कहावत से करना चाहूंगा :
Success has many fathers, while failure is an orphan
(सफ़लता मे हिस्सा बँटाने के लिए सैकड़ो आगे आते है, जबकि असफलता मिलने पर लोग अकेला छोड़ देते है।)

यही हाल कांग्रेस और बीजेपी का है। आप खुद देख लीजिएगा, यूपीए को सपोर्ट देने के लिए हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा बड़े बड़े भाई, कहता हुआ आगे आएगा। बीजेपी के नेता अकेले मे ही बैठकर गम गलत करेंगे।आपका क्या विचार इस बारे में? अपने विचार लिखना मत भूलिएगा।

5 Responses to “जनादेश 2009 : समीक्षा”

  1. बी जे पी ने जिस तरह एक negative केंपेन की वो भी उसके खिलाफ गया…
    कथनी और करनी का विरोधा भास भी उसे मतदाताओ से दूर रखता है..
    केवल नारों और स्लोगन से आप वोट नहीं ले सकते, ये पब्लिक है सब जानती है..
    जनाधारवाले नेताओं को एक एक कर पार्टी से बाहर करना भी लम्बे समय में नुकसानदायक साबित हो रहा है..

    रंजन’s last blog post..पहला कदम – खास ताऊ की फरमाइश पर..

  2. बहुत ही सधी हुई बातें कहीं हैं जीतू भाई आपने. ऐसी समीक्षा समाचार पत्रों में पढने को कहाँ मिलती हैं आजकल के इस ब्रेकिंग न्यूज़ के समय में.

    राहुल बाबा से लोगों को बहुत आशाएं हैं – बी जे पी को आत्ममंथन की जरूरत है. मुस्लिम को अछूत मान के आप राजनीति नहीं कर सकते. आज लोग शान्ति चाहते हैं. नेत्रित्व में युवा आगे होने चाहिए.

    Neeraj Singh’s last blog post..धैर्य

  3. जीतू भाई सुधी मतदाताओ ने अपना निर्णय दे दिया है अब उस जनादेश की समिक्षा राजनैतिक पार्टोयो को ही करने दे तो ज्यादा अच्छा होगा । क्योकि किसी क्षेत्र मे काम किये बगैर पाँच सितारा सुविधाओ से युक्त जगह पर बैठ्कर उस फिल्ड की समिक्षा करना और फिर सलाह देना शायद बहुत आसान काम है । जीतू भाई यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई ब्लागिग का ABCD भी नही जानता हो और वह ब्लागरो को सलाह देने लगे ।

  4. पहली बात नीरज को, भाजपा के लिए नहीं मुस्लिम के लिए भाजपा अछूत है. क्यों? समझ से बाहर है. आखिर कई राज्यों में भाजपा का शासन है, वहाँ के मुसलमानों के हालत पर सोच कर देखना चाहिए.

    सफलता के सौ बाप. अतः कॉग्रेस की जीत के बहुत से कारण बताए जाएंगे. मगर हुआ है क्रिकेट जैसा, मतदान में जो चल गया. परिस्थितियाँ अनुकूल होती गई. राहूल बहुत हर बार फेल हुए है. अब सारा श्रेय उन्हे दिया जा रहा है 🙂

    संजय बेंगाणी’s last blog post..यह तो भारतीय लोकतंत्र का चमत्कार है

  5. राहुल वाले विषय को छोड़कर, पूरा विश्लेषण एकदम सही है। जनता में राहुल ने भरोसा दिखाया यह ठीक नहिं होगा। मेरा मानना है कमजोर भाजपा के चलते उ.प्र में कॉंग्रेस जीती है। दिग्विजय सिंह जहां जहां भी प्रभारी रहे हैं वहां कॉंग्रेस सफल ही रही है।
    राहुल जी के मामले में तो बिल्ली के भाग से छींका टूटा कह सकते हैं।

    सागर नाहर’s last blog post..अब पता चला बच्चू!