मिर्जा की फरमाइश

‍हमारे मिर्जा साहब की स्पेशल फरमाइशो पर इन्हे भी देखियें…..

मै रोया परदेस मे भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आंखो भर आकाश है बाहों भर संसार
निदा फाजली
पूरा यहाँ पढिये http://www.geocities.com/sumankghai/nida22.html

नज्म उलझी हुई है सीने मे
मिसरे अटके हुए है होठों पर
उड़ते फिरते है तितलियों की तरह
लफ्ज कागज पर बैठते ही नही
कब से बैठा हूँ मै जानम
सादे कागज पे लिख के नाम तेरा
बस नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी

-गुलजार साहब

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नही छोड़ा करते
वक्त की शाख से लम्हे नही तोड़ा करते
जिसकी आवाज मे सिल्वट हो, निगाहो मे शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालो के लिये दिल नही थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रूख नही मोड़ा करते
गुलजार साहब

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3 Responses to “मिर्जा की फरमाइश”

  1. valium 5

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  3. […] हर कथाकार अपने कुछ खास चरित्र बनाते हैं। जीतेंद्र ने भी मिर्जा,छुट्टन,पप्पू,बउआ,छोटू आदि को अपने गैंग में शामिल किया। आजकल दिख नहीं रहे हैं वे ,लगता है कि दोनों में खटपट चल रही है। जीतेंद्र बताते हैं कि छुट्टन के कारण लोग उनको कहते हैं कि किन लोगों का साथ है तुम्हारा। उधर छुट्टन का रोना यह है कि भइया पेट के लिये आदमी को सब कुछ करना पड़ता है,जिस जगह हम अपनी मर्जी से जाना नहीं चाहते वहाँ उछलना कूदना पड़ता है। […]