अब जब कविताओं का दौर चल ही रहा है, क्यो ना हम भी बहती गंगा मे हाथ धो ले.
हमने भी अल्हड़पन मे कविता लिखने की असफल कोशिश की थी…..
एक छुटकी हाजिर है.
अश्क आखिर अश्क है, शबनम नही
दर्द आखिर दर्द है सरगम नही,
उम्र के त्यौहार मे रोना मना है,
जिन्दगी है जिन्दगी मातम नही
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on बुधवार, अक्तुबर 13th, 2004 at 6:23 am and is filed under Uncategorized.
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