मिर्जा का मचलना

छुट्टी वाले दिन सुबह सुबह जब मै चाय की चुस्किया ले रहा था, अचानक फोन की घंटी बजी, वैसे तो अक्सर मै ही फोन उठाता हूँ, लेकिन छुट्टी वाले दिन(शुक्रवार और शनिवार) यह पुनीत कार्य मै अनावश्यक कार्यो की लिस्ट मे मानता हूँ, खैर जनाब पत्नी जी ने फोन उठाया, बात की, और मेरे को आवाज दी, और बड़े ही अनमने भाव से, फोन हमे टिका दिया.एक तो पत्नी का तमतमाया चेहरा ऊपर से छुट्टी वाले दिन सुबह सुबह फोन, मै किसी आशंका से भयभीत हो उठा, फिर भी हिम्मत करके फोन का चोंगा उठाया, दूसरी तरफ मिर्जा साहब थे. मै पहले इनका परिचय करवा दूँ, मिर्जा जी, का पूरा नाम तो शायद ही किसी को मालूम हो, अपने हिन्दुस्तान से है, और नवाबो के शहर लखनऊ से वास्ता रखते है.अब चूँकि हिन्दुस्तान मे लखनऊ कानपुर के सबसे नजदीक पड़ता है,इसलिये मिर्जा कुवैत मे मेरे को अपना ज्यादा करीबी मानते है और शायद इसलिये मै ही इनका हर बार विक्टम बनता हूँ,मिर्जा साहब की पत्नी तो बच्चो की पढाई का बहाना टिकाकर कनाडा प्रस्थान कर गयी है,और मिर्जा नाम की मुसीबत हमारे लिये छोड़ गयी है.हमारे ग्रुप मे मिर्जा जी का शुमार टाइम वेस्टिंग व्यक्तियो मे होता है,लिहाजा इनका फोन लेने से पहले हम दस बार सोचते है, सारे काम निबटाने के बाद फोन लेते है, क्योंकि बाद मे तो समय बचता ही नही है.हमने कुछ जरूरी खाने पीने का सामान उठाया,फोन के पास रखा,दिल मजबूत किया,पत्नी से आँखो ही आँखो मे मजबूरी जताई और फोन उठाया. हाँ एक बात और, कुवैत मे लोकल काल फ्री है, इसलिये मिर्जाजी के हाथ जो लगा, वो तो खैर गया बारह के भाव. खैर जनाब, वक्त का तकाजा कहै,अवधी तहजीब का लिहाज या फिर किस्मत का खेल, आज हमारी बारी थी, सो हमे फोन रिसीव करना पड़ा.

“अमा मिया ये फोन उठाने ने देरी कैसी,अभी तक सो रहे हो क्या?” मिर्जा जी ने दनदनाते हूए, सवाल दे मारा. मै बोला बस जरा, दूसरे कमरे मे था, माफी मांगकर,फोन पर ही मैने सलाम वाले कुम ठोका, जवाब नही मिला शायद मिर्जा साहब किसी दूसरे ही मूड मे ही थे, बोले “सुना आपने गजब हो गया, क्या जमाना आ गया है,ये तो आजतक नही हुआ,हद है शराफत की, “, मै चहका. “क्या? कहाँ?” , अब तो हमारी भी उत्सुकता बढ गयी थी, हालांकि हमारा पिछला अनुभव बताता है, कि मिर्जा साहब, हर बात मे इसी तरह से उत्सुकता पैदा करते थे, ताकि सामने वाला फोन रखने की जहमत ना उठाये. वैसे भी फालतू की गपशप मे समय व्यर्थ करना हम सबका जन्मसिद्द अधिकार है, सो हम भी लटके रहे,इसी उम्मीद मे शायद कुछ काम की बात हो. मिर्जा साहब बोलते रहे. क्या जमाना आ गया है, अपने गांगुली,तेदुलकर,द्रविद और दूसरे लड़के, जिनको अपने बच्चो से ज्यादा प्यार करते थे,जान छिड़कते थे,हम समझते थे, कि वो देश के लिये खेलते है, इत्ते सालो बाद पता चला कि वो तो एक किसी कम्पनी (BCCI) के लिये खेलते है.हम लोग खांमखा ही हर मैच पर टीवी पर टकटकी लगाये, उल्लुओ की तरह से देखते रहे…और.हारने जीतने पर पाकिस्तानियो से पंगे लेते रहे, क्या जरुरत थी?” अब जब सवाल दग ही चुका था तो, हमे जवाब की उम्मीद भी उनसे ही थी, यूँ भी जब मिर्जा साहब बोलते थे, तो किसी की मजाल है जो बीच मे बोल जाये, यह तो बातचीत का पहला सिद्दान्त था कि पूरा समय मिर्जा साहब ही बोलेंगे.खैर जनाब इस बार मै फंसा था, तो मेरे ऊपर ही शब्दो की बौछार हो रही थी.

अब धीरे धीरे बात साफ हो रही थी,अब जाकर मेरी समझ मे आया कि मिर्जा साहब क्यो तनतनाये हुए थे,बोले अभी आज ही अखबार मे पढा कि BCCI ने अदालत मे हलफनामा दिया है कि वो सरकार के अधीन नही है,और जो क्रिकेट खिलाड़ी मैच खेलते है, वो भारत के लिये नही, बल्कि BCCI के लिये खेलते है.इस विषय पर मिर्जा साहब लगभग बीस मिनट तक बोलते रहे, अनवरत, जैसे बच्चे गाय पर निबन्ध बोलते है.

अब जब मेरी बोलने की बारी आई,मैने मिर्जा को समझाया कि ये सब तकनीकी बाते है, आप इन पर ध्यान मत दो, मिर्जा इमोशनल हो गये, फैल गये,बोले आपको अपने देश की परवाह तो है नही , लेकिन मेरे को है, वगैरहा वगैरहा…….फिर मुगले आजम अकबर की तरह से ऐलान किया,इसलिये मैने डिसाइड किया है, कि मै BCCI पर मुकदमा दायर करूंगा, आप मेरा साथ देंगे या नही? मैने सवाल को इग्नोर मारा, उनको ठन्डा करने की कोशिश की,फिर लगा समझाने.

मै बोला, कि देखिये वैसे ही BCCI की मुश्किले कम नही हो रही है, अभी जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए है महिन्द्रा को काम सम्भाले हुए, काम सम्भालते ही, कुछ पुराने खिलाड़ियो ने कमेन्ट पास करना शुरू कर दिया है, ऊपर से कोर्ट कचहरी का मामला चल रहा है सो अलग.आस्ट्रेलिया बोर्ड भी हत्थे से उखड़ा हुआ है,ICC भी चढा पड़ा है, और धमकिया दे रहा है.जहाँ तक कोर्ट कचहरी की बात है तो हर ऐरा गैरा केस ठोके दे रहा है, जी टीवी और स्टार वालो का मामला अभी सलटा ही नही था, कि प्रसार भारती ने भी केस ठोक दिया है.बेचारे डालमिया पर भी कुछ लोगो ने केस ठोक रखा है, सो अलग से. अब ये BCCI ना हो गयी, सड़क पर पड़ी फुटबाल,….. हर आने जाने वाला लात मार रहा है

मैने मिर्जा को समझाया, अगर आप भी केस ठोक देंगे तो बोर्ड पर क्या फर्क पड़ेगा, जहा इतने केस वहाँ एक और सही.और फिर आप कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे तो हो नही, आपकी भी कोई क्लास है, कोई इज्जत है.वगैरहा वगैरहा….

दरअसल मेरे को ना तो BCCI से कुछ लेना देना था, ना ही मिर्जा से, लेकिन अगर मिर्जा को इस तरह यंही पर नही रोकते, तो एक आध घन्टा उनको और झेलना पड़ता.सो मैने बिस्कुट को मुंहँ के हवाले करते हुँए,बातचीत को अन्त की तरफ बढाया और उनको समझाया, कि ये सब बाते दिल पर मत लिया करे, इन सब बातो मे कुछ भी नही रखा है.इसलिये केस करने का ख्याल दिमाग से निकाल दे.शायद मेरी राय मिर्जा की समझ मे ठीक तरीके से नही आई, वे भड़क उठे मेरे को उन्होने BCCI का एजेन्ट बोला,बुरा भला कहा, मा सलामा (अरबी मे Good Bye) किया,फोन रखा और शायद किसी दूसरे मुर्गे की तलाश मे निकल गये. ये मेरा टाइम टैस्टेड नुस्खा था, मिर्जा से पीछा छुड़ाने का, वैसे भी मिर्जा साहब से सभी की बातचीत अक्सर इसी नोट पर समाप्त होती थी.

मैने मिर्जा को तो समझा दिया लेकिन बोर्ड़ का हलफनामा मेरे दिल को भी विचलित कर गया…… क्या सचमुच अपने खिलाड़ी देश के लिये नही खेलते..आपका क्या सोचना है इस बारे मे.

5 Responses to “मिर्जा का मचलना”

  1. बैठकर देखने मे भी शर्म आती है. बकौल मिर्जा साहब “इनकी सारी कवायद न्यूज चैन […]

  2. bhai kya aap jaante hain BCCI not chaapne ki machine ho chuki hai, mirza sahib ne sahi gussa zahir kiya

  3. […] ५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं. अपनी खाली पासबुक और भरी चैकबुक। हीही… । रजनीश की किताबें, उडियो पंख पसार मुझे बहुत पसन्द आयी। शिव खेड़ा की लिविंग विद ऑनर मुझे अच्छी लगी। लेकिन बार बार नही पढता, आजकल समय ही नही मिलता। आफिस, चिट्ठाकारी और घर के बाद समय बचता ही कहाँ है। ऊपर से मिर्जा के यहाँ शाम की हुक्केबाजी, किरकिट स्वामी की घिटपिट समय ही कहाँ है। हाँ सफर करते समय मै काफी पढता हूँ, अक्सर पढता हूँ। कई कई बार मन मे ख्याल आता है कि अपनी मनपसन्द किताबे उठाकर किसी सुनसान द्वीप पर चला जाऊं, जहाँ समुन्दर की लहरें हो और साथ मे मेरी मनपसन्द किताबें (How unromantic?) । लेकिन शायद ये ख्बाव, ख्बाब ही रहेगा, हकीकत नही बन सकता। लेकिन क्या पता….भविष्य किसने देखा है। […]

  4. […] विश्वकप क्रिकेट के शुरुवाती मैच मे ही जिस तरह का शर्मनाक प्रदर्शन भारतीय टीम ने किया है वो लाखो क्रिकेट प्रेमियों को निराश कर गया है। कम से कम बांग्लादेश की टीम से तो मैच ना हारते। कहाँ विश्वकप जीतने की आस और कहाँ ला पटका इन पंद्रह जोकरों की टीम ने। गलती इनकी भी नही है, हम लोगों ने ही इनको सिर पर बैठा रखा है। हजारो जगह यज्ञ हवन हुए, ना जाने किस किस तरह का नाटक हुआ, लोग नाक के बल बजरंग बली के द्वारे गए, सैकड़ो लोगों ने बाल कटवाए, हजारों लोगो ने बीबीयों से लड़ झगड़कर टीवी के रिमोट को हथिआया, नतीजा? अरे वही जो होना था। हमने अपने (हरफनमौला) एक्सपर्ट मिर्जा साहब से पूछा आइए उनकी प्रतिक्रिया को जैसा का तैसा आपके सामने परोसते है: मै : मिर्जा साहब, टीम इन्डिया तो पहले ही मैच मे लुड़क गयी, बुरी तरह, क्या कहेंगे? […]

  5. […] अब कर्नाटक वाले ऐसे नेता को कैसे झेलेंगे? और बीजेपी का क्या जिसकी किस्मत मे दक्षिण का दरवाजा खुलना ही नही लिखा। बहुत नाइन्साफ़ी है ये। हमने मिर्जा को ढूंढा और उनसे पूछा तो मिर्जा बोले : अमां यार! ये देवगौड़ा एंड फैमिली बहुत बड़े एक्टर है। ये लोग इत्ता नाटक करते है कि क्या बताएं। पहले नही देखे, जब बेटे ने बीजेपी के साथ जाने का मन बनाया था तो पिताजी ने कैसे कैसे ड्रामे किए थे। अब समर्थन ना देने के फैसले का मतलब तो बहुत साफ़ है। सारा मामला खाने पीने का है। ज्यादा माल वाले मंत्रालय उसके हवाले कर दो, सारे घपलों पर आंखे बन्द करके चुप करके बैठे रहो, फिर देखो, अभी दौड़ते हुए पलटी मारेगा। लेकिन इत्ते बड़े नेता (पूर्व प्रधानमंत्री) को ये सब शोभा नही देता है? अब बीजेपी के सामने एक ही रास्ता है कि जनता के बीच जाए और उनको जेडी्यू के बारे खुलकर बताए। अब हमारे हिसाब से तो कभी भी जेडीयू सत्ता मे नही आएगी। कांग्रेस के पास अच्छा मौका है अब, जेडीयू के विधायकों के पाला बदली कराने का। […]