किस्सा ए़ टेलीविजन धारावाहिक

क्या आपने टेलीवजन पर हिन्दी धारावाहिक देखे है, देख कर दिमाग का दही हो जाता है. पता नही क्या सोच कर ये सीरियल बनाये जाते है.जरा बानगी देखिये….

एक की पत्नी दूसरे के साथ चक्कर चला रही है,दूसरी क्यो पीछे रहे वो पहली के पति और ससूर दोनो के साथ,एक ही समय पर, चक्कर चला रही है.
किसी पात्र को नही पता उसका असली बाप कौन है?
जो पात्र १ साल पहले मर गया था,और फिर पिछले महीने जिन्दा हो गया था, अब आखिरकार इस हफ्ते मर गया. कोई गारन्टी नही कल फिर लौट आये. (बोलो बालाजी टेलि फिल्मस वाली एकता माता की जय)
अगर आपने २ या ३ हफ्ते सीरियल नही देखा, तो आप पहचान ही नही पायेंगे कि कौन किसका बाप है.
जहाँ TRP गिरी नही कि कहानी बीस साल आगे खिसक जाती है…..दर्शको को समझ आये ना आये उनकी बला से.

मै क्या कोई भी नही समझ पा रहा है कि ये सीरियल वाले दिखाना क्या चाहते है,उनको भारतीय संस्कृति से कुछ लेना देना नही..चैनल वालो को तो बस क्रीम तेल साबुन के विज्ञापनो से मतलब है,सीरियल वालो को सस्ती लोकप्रियता से,कलाकारो को मेहनताने से, और दर्शक.. वो जाये भाड़ मे…. अवैध रिश्ते दिखाने के लिये कहानी की मा..बहन… की जा रही है, उनको तोड़ा मरोड़ा जा रहा है.कहानी लिखने वाले भी न जाने कौन सा धतूरा खा कर लिखते है, कहानी है कि च्युन्ग‍-गम की तरह खिंचती ही जा रही है.

मेरे एक अध्यापक मित्र ,जो एक स्कूल मे पढाते है,बढे परेशान दिखे बोले..कल उन्होने क्लास मे दो बच्चो की बातचीत को सुना, जो पिछली रात के सीरियल के बारे मे बात कर रहे थे.जो शब्द बच्चो ने प्रयोग किये, यदि मै यहाँ लिखूंगा तो ये ब्लाग अश्लील साहित्य की श्रेणी मे आ जायेगा.लेकिन हम किसे दोष दे? उन मासूम बच्चो को जो दर्पण के समान है.. या उनके माता पिता को? …सीरियल बनाने वालो को ? …. या टी.वी.चैनल वालो को ?

टी.वी.चैनल वाले बोलते है की जो सीरियल निर्माता बनाते है, हम वही दिखाते है.. निर्माता बोलते है, जो जनता पसन्द करती है,हम वही दिखाते है… जनता कहती है कि हम लोग खुद परेशान है.. आखिर कितनी बार चैनल बदले..हर जगह यही सब दिखाया जा रहा है, फिर मनोरंजन का कोई और साधन भी तो नही है

हर व्यक्ति अपना पल्ला झाड़ रहा है,कोई भी नही सोचता जो बच्चे स्कूल मे बात कर रहे थे, वो आपके बच्चे भी हो सकते है.

आप क्या सोचते है इस बारे मे ?

2 Responses to “किस्सा ए़ टेलीविजन धारावाहिक”

  1. snort valium

    snort valium

  2. नीरज दीवान on जून 5th, 2006 at 10:48 pm

    जीतू भाई, मैं तो बस सुनते ही आया हूं कि इन सीरियल्स में ऐसा-वैसा होता है. जब कोई सुंदर कन्या दिख जाती है. कुछ देर निहार लेता हूं. आपने जैसा बताया वैसा ही होगा. अगर ऐसा है तो ये चिंताजनक है. परंपरा और आधुनिकता के मसलों पर हम लोग बीच भंवर में जी रहे हैं.