कल चौदहवीं की रात थी….
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हंस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तेरा
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटी महफ़िलें
हर शख्स़ तेरा नाम ले हर शख्स़ दीवाना तेरा
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर
जंगल तेरे पर्बत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा
तू बेवफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बद-गुमां
हम ने तो पूछा था ज़रा ये वक़्त क्यूं ठहरा तेरा
हम पर ये सख्त़ी की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा
हां हां तेरी सूरत हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इस शख्स़ के अशार से शोहरा हुआ क्या क्या तेरा
बेशक उसी का दोश है कहता नहीं ख़ामोश है
तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़जल
आशिक़ तेरा स्र्स्वा तेरा शायर तेरा ‘इन्शा’ तेरा
-इब्ने इन्शा
na yu kar khamosh hoto ko
aa chum loo aaj tere hoto ko
hai to marna hi kaun jita hai
muhabbat hai aapse kahne do hoto ko
jitu bhai charan sparsh
aap kaise ho,aapko to sayad time hi nahi milta hoga mujhe yaad karne ka. par hum aapko hamesha yaad karte hai.aasha karta hoon. aap bhi mujhe yaad rakhege.
aapka anuj : jitendra pratap singh
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