इमराना के साथ नाइंसाफी

कुछ दिनो पहली घटी इस घटना ने मेरे दिल को झंकझोर दिया और मुझे लिखने पर मजबूर किया,

घटना कुछ इस प्रकार की है….पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे मुजफ्फरनगर के चरथावल कस्बें मे रहने वाली एक ३५ वर्षीय इमराना के साथ उसके ससुर ने, जबरन बलात्कार किया, जब इमराना ने यह बात अपने पति को बताई तो पति ने अपने बाप को कुछ कहने से इन्कार कर दिया, बेचारी बेबस इमराना ने अपने पति को छोड़कर अपने भाई के घर रहने का निश्चय किया. यहाँ तक तो बात बहुत सामान्य सी दिखती है, क्योंकि भारत मे रोज ही सैकड़ों बलात्कार होते रहते है. खैर जनाब, कस्बे की अन्सारी पंचायत को जब इसका पता चला, तो वो भी आ गये अपनी रोटियाँ सेकने के लिये. पंचायत बुलवाई गयी और पंचो ने शरीयत का हवाला देते हुए फैसला दिया

“अब चूँकि इमराना के साथ उसके ससुर ने शारीरिक सम्बंध बना लिये है लिहाजा इमराना का पति अब इमराना के लिये बेटे समान है, इसलिये इमराना का पति, इमराना को तलाक दे”

मजे की बात ये है कि पंचायत ने इमराना के सुसुर के खिलाफ कोई भी प्रस्ताव पारित नही किया, क्या इसका मतलब यह है कि पंचायत ने एक तरह से हिन्दुस्तान के सारे सुसुरों को बहु के साथ बलात्कार करने के लिये ग्रीन सिगनल दिया……ऐसे पंचो को तो सरेआम गंजा करके जूते मारने चाहिये.

मामला तो यंही रफादफा हो जाता, अगर राष्ट्रीय महिला आयोग या दूसरे मानवाधिकार संगठन बीच मे ना पड़ते. उनकी वजह से ही पुलिस ने अपनी चुप्पी तोड़ी और इमराना के ससुर के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज किया. ताजा समाचार मिलने तक इमराना का ससुर फरार है.

इस तरह की घटनायें हमे सोचने पर मजबूर करती है, कि

  1. अब घटना मे इमराना का क्या दोष था?
  2. सजा तो उसके ससुर को मिलनी चाहिये थी, उसे क्यों मिली?
  3. धार्मिक संगठन इस पर चुप्पी क्यों साधे हुए है?
  4. पंचायत के लोग कौन होते है ये डिसाइड करने वाले, यदि होते भी है, तो ये पुराने जमाने के विकृत नियम क्यों लागू करवाना चाहते है?
  5. एक लोकतांत्रिक देश मे, अभी भी शरीयत के नियमों को तरजीह क्यों दी जाती है, एक देश एक कानून क्यों नही है?
  6. ये तो चलो एक इमराना का केस था जिसने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की. ना जाने कितनी इमराना सिसक सिसक पर दम तोड़ देती होंगी. क्या हम रोक पायेंगे उनपर होने वाले जुल्मों को?
  7. क्या हमारा कोई फर्ज नही बनता समाज मे फैली विसंगतियों के खिलाफ आवाज उठाने मे?

सवाल तो कई है, जवाब शायद हमारे पास नही है, क्या राजनेताओं के पास है इसके जवाब?

6 Responses to “इमराना के साथ नाइंसाफी”

  1. अनुनाद on जून 18th, 2005 at 4:56 pm

    अगर शरियत का यही न्याय है, तो शरियत का स्थान कूडेदान से कम नही है । रही बात अंसारी पंचायत की , तो उन पन्चों से पूछा जाना चाहिये कि यदि यही दुष्कृत्य उनकी अपनी बेटियों के साथ हुआ होता तो भी क्या यही फ़ैसला देते ?

    प्रसंगबस जरा महाभारतकार की धर्म की परिभाषा पर ध्यान दीजिये :

    ” धर्म का सार सूनो और सुनकर उसका अनुवर्तन करो (उस पर चलो) । (धर्म का सार यह है कि ) जो अपने प्रतिकूल हो , वैसा (आचरण) दूसरे के साथ नही करना करना चाहिये ।”

    श्रूयताम धर्म सर्वस्वम , श्रूत्वा चैव अनुवर्त्यताम ।
    आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषाम न समाचरेत ॥

    क्या धर्म की ऐसी परिभाषा से किसी को आपत्ति हो सकती है ?

    अनुनाद

  2. अनुनाद जी, ये नया ताज़ा मामला उसी महाभारत का हवाला है जिसके दम पर एक ससुर ने अपनी बहू से शारीरिक संबंध की पेशकश की है. लिहाज़ा ये वेद पुराण कुरानों को नज़र अंदाज़ करनी ही ठीक होगा. हुआ यूं कि कानपुर के एक डाक्टर ससुर ने अपनी बहू को पत्र लिखकर ये कहा है कि वो वंश बढाने के लिये शारीरिक संबंध कायम करना चाहता है. ससुर ने महाभारत काल की मत्स्यगन्धा और कुंती का हवाला दिया है जिनके साथ ऐसा ही हुआ था. डाक्टर का बेटा चुप है लेकिन बहू ने राज्य महिला आयोग को गुहार लगायी है. पुलिस मामले की जांच कर रही है. अमर उजाला के १९ तारीख के अंक में इस समाचार को पढा जा सकता है.

  3. भढूच गुजरात मैं एक महिला अधिवक्ता से एक वरिष्ठ सरकारी वकील ने शारीरिक संबंध की पेशकश की है. ये मामला राज्य महिला आयोग और पुलिस तक जा पहुंचा है. पुलिस ने मामले को दबाने कि कोशिश की तो राज्य के महिला संगठनों ने इसके विरोध में मोर्चा संभाल लिया है. अधिक जानकारी के लिये अमर उजाला के २२ जून २००५ के अंक का अवलोकन किया जा सकता है.

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