आओ भइया भिखारियों की गिनती करें
आओ भइया भिखारियों की गिनती करें
उत्तर प्रदेश सरकार के जारी एक नये फरमान के तहत, सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिये गये है कि वे अपने अपने एरिया मे भिखारियों की गिनती करें और उसका ब्योरा राज्य सरकार को जल्द से जल्द भेजें. अब ये फरमान क्यों जारी किया गया? अमां यार इतना भी नही समझते?
दरअसल सरकार ने जगह जगह भिक्षुक गृह खोले हुए है, लेकिन वे खाली पड़े है, और सड़कों पर भिखारियों की तो जैसे लाइन ही लगी पड़ी है. किसी धार्मिक स्थल जैसे इलाहाबाद, वाराणसी जैसी जगहो पर तो भिखारियों का जैसे हुजूम ही लगा रहता है. लेकिन भिखारी भिक्षुक गृह मे क्यों नही रहते?
दरअसल आजकल भिखारी भी बड़े चूजी हो गये है, वे जहाँ अपना फायदा देखेंगे वंही तो जायेंगे ना, भिक्षुक गृह मे क्या मिलेगा, दो वक्त का खाना, सड़कों पर तो उनकी ऐश है, कभी कभी तो लाटरी ही लग जाती है, खाने पीने की कोई परेशानी नही, ऊपर से अगर कोई दिलदार बन्दा मिल गया तो पीने पाने का भी जुगाड़ हो जाता है.वैसे तो भीख मांगना अपराध है, लेकिन मजबूर भिखारी करें तो क्या करें, मिले बन्द होती जा रही है, बेरोजगारी बढती जा रही है, योजनायें है कि फाइलों से बाहर निकल ही नही पाती, निकलती भी है तो कोई धन्ना सेठ, कागजों पर भिखारी बनकर, सारी की सारी योजनाओं की धनराशि हड़प लेते है. बेचारी पुलिस भी विवश है, वो इन भिखारियों का करे तो क्या करे……जेल भेजेंगे तो वहाँ भी कैदी ज्यादा है जगह कम? और न्यायालयों की हालत तो आपने देखी ही है, पता नही कब उनके केस की सुनवायी होगी? और विचारधीन कैदी, उनकी तो पहले से ही लाइन लगी हुई है. कुल मिलाकर स्थिति विचित्र है.
खैर देखो, भिखारियों की गिनती करने के बाद, सरकार क्या योजना बनाती है, पहले गिनती तो पूरी हो.
आपके इस लेख में रोचकता के साथ एक बड़ा सत्य भी है।उत्तर प्रदेश के इस ‘फरमान’
के बाद क्या होगा? – वही होगा जो अन्य योजनाओं के साथ होता रहा है। कागज़ रंगे
जायेंगे, ठेकेदारों और नेताओं के पौबारे होंगे। भिखारी का वही फैला हुआ हाथ आपके
सामने और दूसरा पेट पर, दैन्यावस्था, रिरियाती हुई आवाज़ और आपका हाथ जेब
में होगा।
एक बात अवश्य कहूंगा। सब भिखारियों की तो बात नहीं कहता किन्तु कुछ ऐसे भी
मिलेंगे जिनको काम भी दे दीजिये पर उन पर कोई असर नहीं होगा – कारण, भीख
में मुफ्त का खाना उनके मुंह लगा होता है। यहां लन्दन जैसे शहर में यदि नौकरी
ना भी मिले, तो रहने का, खाने का, चिकित्सा और दवाईयों का, बीवी-बच्चों का सारा
खर्च आदि सरकार दे देती है। फिर भी आप अन्डरग्राउण्ड स्टेशनों और अन्य स्थानों
पर भिखारी देख सकते हैं – बस! ‘हड्डियों में हराम बस गया है।’ सरकार अभी तक
इस पर काबू नहीं पा सकी। इस प्रकार के लोगों से सुहानुभूति तो अब भी है क्योंकि
ऐसे लोग ‘भीख की बीमारी’ में रोग-ग्रस्त हैं- उन्हें मनोवैज्ञानिक-चिकित्सा की
आवश्यकता है पर बात यहीं समाप्त हो जाती है कि यह तो ‘हवाई किलों’ की सी बात है।
( आपके सारे ही लेख बड़े रोचक और सन्देश लिये होते हैं। )
महावीर
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…और जो पड़ोसी और कुलीग का चोगा ओढ़े रहते हैं उनकी गिनती का क्या