अनुगूँज 14: हिन्दी जाल जगत: आगे क्या?

अनुगूँज 14: हिन्दी जाल जगत: आगे क्या? Akshargram Anugunj

सबसे पहले तो आलोक भाई को धन्यवाद, कि वे अनूगूँज के आयोजन के लिये आगे आये. आलोक भाई ने विषय भी बहुत शानदार चुना है. मै अपने विचारो को आसान तरीके से प्रकट करने की कोशिश करूंगा. अब जब हिन्दी की बात आती है तो मुझे एक शेर याद आता है और शायद हिन्दी के लिये यही मुफ़ीद बैठता है:


दिल के फ़फ़ोले जल उठे, सीने के दाग से
इस घर को आग लग गयी, घर के चिराग से

हिन्दी,कम्प्यूटर और इन्टरनैट: अतीत का सच और वर्तमान का दर्द.

सामान्यत: जब भी कम्प्यूटर और इन्टरनैट की बात आती है तो लोग प्राय: अंग्रेजी को ही सबकुछ मानते है, उसका प्रमुख कारण है, सब कुछ अंग्रेजी मे ही उपलब्ध है, हिन्दी का तो कोई नामलेवा ही नही. लेकिन इसके जिम्मेदार सभी है हमारी सरकार और हमारे लोग. कोई हिन्दी मे पढना ही नही चाहता.कमप्यूटर पर हिन्दी, एक ऐसा विषय जिसके बारे मे किसी ने भी इस ओर नही सोचा. दरअसल जिनको सोचना चाहिये था, उन्होने तो हमेशा तिरस्कार ही किया, और जिन्होने सोचा भी, तो उन्होने अपने लाभ के लिये ही सोचा. जी हाँ, मै बात कर रहा हूँ, हिन्दी फ़ोन्ट्स की. आपको हिन्दी के सैकड़ो फ़ोन्ट्स मिल जायेंगे, लेकिन सभी फ़ोन्ट किसी ना किसी के बाप की बपौती होंगे. आपको फ़ोन्ट स्वामी से बाकायदा अनुमति लेनी होगी, पचास और झमेले वगैरहा वगैरहा. क्यों? क्योंकि सरकार ने कभी कोई मानक स्थापित ही नही किया और तो और, सभी भाई लोगो ने, अपनी अपनी साइट तक डिजाइन कर ली,कोई सुषा का दीवाना कोई कृति का मस्ताना और कोई दुनिया से बेगाना. यानि हरेक की अपनी डफ़ली अपना राग. अखबार भी कहाँ पीछे रहते, दूसरो से अलग दिखने की चाह मे उन्होने भी अपना अपना फ़ोन्ट डिजाइन करवाया, जितने हिन्दी के अखबार उतने हिन्दी के फ़ोन्ट और सरकार…वो क्या करती..सारा समय हाथ पे हाथ धरे बैठी रहती और साल मे एक बार खानपूरी के लिये हिन्दी दिवस मनाती. नेताजी खूब जमकर भाषण देते, इस साल हिन्दी को उसका उचित स्थान दिलाकर ही रहेंगे, अबे दिलओगे तब, जब कुछ करोगे. भाषण देने से फ़ुर्सत मिले तब तो कुछ करोगे ना. नेताजी का भाषण हो या सरकारी कार्यालय के अझेल डाक्यूमेन्ट, ऐसी हिन्दी लिखी जाती है कि अच्छी से अच्छी हिन्दी पढने वाला भी बोले, मेरे बाप, अंग़्रेजी मे बोलने का क्या लोगे?

अब किसी ने कोशिश की, सामान्य बोलचाल की हिन्दी, स्थापित करने की, तो एक से एक सूरमा, हिन्दी को बचाने की गुहार करने लगे. यानि कि जब हिन्दी मर रही थी , तो कोई आगे नही आया, लेकिन अगर कोई उसको नया जीवन देने की कोशिश करे तो सबको मिर्ची लगनी शुरु. अब हिन्दी के साहित्यकारों को ही ले लीजिये, खुद अंगरेजी पढेंगे, उसका गुणगान करेंगे, उसके पिछलग्गू बने रहेंगे लेकिन भाषण मे हिन्दी का रोना जरूर रोयेंगे. और हाँ, यदि किसी दूसरे ने हिन्दी मे लिखने को कोशिश करी तो उसकी व्याकरण, हिज्जे और दूसरी गलतियां पकड़ने मे पीछे नही रहेंगे. उसके काम मे टंगड़ी जरूर लगायेंगे.यानि कि हम तो करेंगे नही और तुमको भी नही करने देंगे.

अभी कुछ समय पहले सरकार की तरफ़ से एक सकारात्मक पहल शुरु हुई है, हिन्दी टूल्स प्रदान करने की. पहल भले ही आधे अधूरे मन से हो,पर पहल तो हुई ही है. देर से ही, सरकार जागी तो सही.यूनीकोड के आने से मानक भी स्थापित हो ही रहे है. हिन्दी चिट्ठाकारों के छोटे से समूह ने ही सही, लेकिन हिन्दी को वैब पर पापुलर बनाने मे कोई कसर नही छोड़ी. तो वर्तमान मे कहा जाय तो कुछ तो सुधार दिखता है. लेकिन ये तो बस एक शुरुवात है, एक पहल. मन्जिल तो बहुत दूर है अभी. हिन्दी का उत्थान तभी हो सकता है जब सामान्य जन साधारण हिन्दी प्रयोग करे, वो प्रयोग तभी करेंगे जब हिन्दी लिखना, बोलना और कम्यूटर पर प्रयोग करना आसान होगा. पहले मुझे इक्का दुक्का इमेल मिलती थी, हिन्दी मे लिखने से सम्बंधित सहायता के लिये, लेकिन आजकल तो इस तरह की इमेल्स की तो जैसे बाढ ही आ गयी है. ये तो था अतीत का सच और वर्तमान का दर्द.

अब आगे क्या?

  1. भारत मे यूनीकोड हिन्दी फ़ोन्ट्स को कम्प्यूटर के साथ अनिवार्य रुप से दिया जाय.
  2. दुनिया भर की अच्छी अच्छी साइट्स का हिन्दी अनुवाद किया जाय.
  3. हिन्दी ब्लागिंग को बढावा मिले
  4. सभी अयूनिकोडित हिन्दी साइट्स का नवीनीकरण रोक दिया जाय
  5. हिन्दी साहित्य और अन्य सामग्री यूनीकोडित रूप मे उपलब्ध हो.
  6. जनता हिन्दी मे लिखना पढना शुरु करे,लोग जागेंगे तो गूगल,याहू और एमएसएन को हिन्दी साइट बनाने मे कतई समय नही लगेगा.
  7. हिन्दी मे कन्टेन्ट ज्यादा से ज्यादा उपलब्ध हो, वो भी साधारण हिन्दी मे, क्लिष्ठ नही
  8. सभी सरकारी काम की वैब सर्विसेस हिन्दी मे भी उपलब्ध हो
  9. हिन्दुस्तान मे नयी वैबसाइट का यूनीकोडिट होना अनिवार्य कर दिया जाय
  10. सभी न्यूज साइट्स को यूनिकोडित होना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये
  11. सभी सरकारी और गैर सरकारी कम्पनियों को यूनिकोडिट हिन्दी मे साइट बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये.
  12. हिन्दी ब्लागजगत के बाशिन्दो को चाहिये कि एक कम्पनी बनायें जो नो प्रोफ़िट नो लोस पर हिन्दी कन्टेन्ट, हिन्दी वैब डिजाइन, दूसरी भाषाओं से हिन्दी मे अनुवाद और हिन्दी समस्या समाधान के क्षेत्र मे काम करें.
  13. हिन्दी लिखने से सम्बंधित परेशानियों से निबटने के लिये हैल्प डेस्क स्थापित की जानी चाहिये. जहाँ आन-लाइन और आफ़-लाइन सुविधाये उपलब्ध हों.

याद रखियेगे, हिन्दी मे जितना ज्यादा कन्टेन्ट इन्टरनैट पर उपलब्ध होगा, उतना ज्यादा लोग पढेंगे, जितना ज्यादा लोग पढेंगे, उतना ज्यादा बहुराष्ट्रीय इन्टरनैट कम्पनियां हिन्दी को और आकर्षित होगी और उसी से वैब पर हिन्दी का विस्तार होगा. हिन्दी के वैब पर विस्तार के साथ ही हिन्दी दूसरी भाषाओं जैसे फ़्रेन्च,जर्मन,चीनी,हिब्रू और पर्शियन की तरह इन्टरनैट पर राज करेगी. अन्त मे मै आप सभी से बस इतना ही निवेदन करना चाहूँगा कि:


हिन्दी

One Response to “अनुगूँज 14: हिन्दी जाल जगत: आगे क्या?”

  1. वैसे तो ” अब आगे क्या ? ” में लिखी हर राय दमदार है , किन्तु अन्तिम अनुच्छेद सबसे दमदार है , सनातन-सत्य है , और हरेक विकास (इवोलूशन) का मूल-मन्त्र है ।