कहानी एक मन्दिर की

ये कहानी है एक मन्दिर की जो दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद हरियाणा में है नाम है “श्रीकृष्ण परमधाम मन्दिर“।
इस मन्दिर के महन्त पर आरोप है कि उन्होने छ: बच्चों (जिसमे दो या तीन लड़कियाँ भी हैं) को सन्यास लेने के लिये प्रेरित किया और बच्चे अपना घर छोड़ कर पिछले एक साल से मन्दिर मे आकर रह रहे हैं। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक ठाक ही दिखता है। बच्चों के घर वालों ने पुलिस से शिकायत की, काफ़ी कोर्ट कचहरी हुई। बच्चों ने (जो अभी अभी बालिग हुए हैं) ने पुलिस को बताया कि वे मन्दिर में अपनी मर्जी से रह रहे है और उन्हे यहाँ कोई भी शिकायत नही। अब पुलिस भी क्या करती, बेबस थे बेचारे, लेकिन घर वालो ने हार नही मानी, लगे रहे, रोज़ाना मन्दिर के बन्द दरवाजे पर पहुँच जाते और फ़िर वही गाली गलौच और छीछालेदर।

भारतवर्ष मे ऐसे सैकड़ो मन्दिर होंगे जहाँ ऐसे हजारो बच्चों को धर्म के नाम पर मन्दिर की सेवा मे लगा दिया जाता है। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक ठाक ही दिखता है, जब तक हिन्दी न्यूज चैनल स्टार न्यूज अपनी टांग बीच मे ना अड़ाता। लेकिन अपने स्टार न्यूज चैनल, जो आजकल खबरों का चैनल कम और मनोहर कहानियाँ का वीडियो एडीशन ज्यादा लगता है, को चैन कहाँ। उसको समझ मे आ गया टीआरपी बढाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा। जुट गये, सारा दिन लाइव और एक्सक्लुसिव टेलीकास्ट दिखाया। “मन्दिर का रहस्य” सच पूछो तो काफ़ी चाटू किस्म का कवरेज था। पूरा दिन खराब कर दिया। चलो ये भी झिलाऊ था, झेल लिया गया, लेकिन शाम होते होते, कवरेज के चलते ही, मिर्जा और स्वामी दोनो अवतरित हुए, एक साथ? पासिबिल ही नही है। लेकिन हुआ लगभग कुछ ऐसा ही। दर असल मिर्जा और स्वामी दोनो अपने अपने घरों पर बैठकर ये लाइव कवरेज देख रहे थे। स्वामी ने ना जाने क्या किस पिनक मे मिर्जा को फ़ोन कर दिया, बस फ़िर क्या था, दोनो को बहस का मुद्दा चाहिये था, जो मिल गया, तब से लगे हुए थे,दोनो ने खूब जमकर फ़ोन पर बहसबाजी की। अब यहाँ कुवैत मे लोकल काल फ़्री है, इसलिये समय की कोई पाबन्दी नही थी। समझो ये बहस टेलीफ़ोन विभाग से स्पान्सर्ड थी। खूब गाली गलौच का आदान प्रदान हुआ, स्वामी को जब गुस्सा आता है तो वो हिन्दी से पहले अंगरेजी और फ़िर धीरे धीरे तमिल और दूसरी साउथ इन्डिन भाषाओं मे उतर आता है। जैसे ही उसने भाषा की ट्रेन बदली तो मिर्जा ने उसे आमने सामने वाद विवाद करने का चैलेन्ज कर दिया। अब मिर्जा तो स्वामी के घर जायेगा नही, और ना ही स्वामी मिर्जा के घर। तो जनाब बचा मै गरीब, इन दोनो को झेलेने के लिये। ना जाने किस मनहूस घड़ी मे, हमारे घर मे बहस के लिये राजी हो गये।

मैने अभी चाय का प्याला शुरु ही किया था कि दोनो टपके। मैने माहौल की नजाकत को देखते हुए, जल्दी जल्दी चाय खतम की। ना जाने इनके झगड़े के चक्कर मे दोबारा चाय नसीब भी होती कि नही। अब मै अकेला क्यों झेलूं,
आप भी झेलिये दोनो का वाद विवाद, इसमे वाद तो कंही नही, सिर्फ़ विवाद ही विवाद है। स्वामी बच्चों के पक्ष मे है और मिर्जा बच्चों के घरवालो की तरफ़। जो जनाब पेश है सारे वाद विवाद का एडीटेड वर्जन:

खैर सबसे पहले तो मैने मन ही मन स्टार न्यूज वालों को जमकर गालियां निकाली, कि सालों को लेना एक नही दो, खांमखा मे मेरी शाम खराब करवा दी।फ़िर इन दोनो की तरफ़ मुखातिब हुआ। सबसे पहले स्वामी बोला “चौधरी भाई, आप ही बताओ, अगर कोई बालिग है और वो अपनी मर्जी से कंही जाता है तो कोई क्योंकर उसे मना करेगा? काहे बन्दिशे लगायी जाय, फ़िर ये तो धरम का स्थान है, कोई @#$$घर तो है नही, जहाँ जाना गलत कहलाए। फ़िर बच्चे जब वहाँ खुश है, तो घरवालों को काहे की परेशानी,वगैरहा वगैरहा।।।।” अब मै क्या कहता, मै तो अभी मामले को समझने की कोशिश कर रहा था।

मिर्जा जो अबतक किचन मे जाकर, हमारी बेगम को चाय पकौड़ो का इन्तजाम करने के लिये सैट कर आया था(मिर्जा का ये आर्ट मेरे को आजतक नही समझ मे आया, हम घर पर पकौड़ो के लिये बोल दे तो बवाल हो जाता है, और ना जाने क्या क्या घी,तेल,कोलेस्ट्रोल,ब्लडप्रेशर जैसी हजार बाते सुननी पड़ती है, और ये साला मिर्जा,जिसकी एक टांग कब्र मे है को पता नही कैसे, कुछ नही कहा जाता) खैर मिर्जा वापस आ गया था, उसने अपना तर्क रखा। मिर्जा बोला “देखो बरखुरदार! ये साला स्वामी तो ठहरा अमरीकी, इसको क्या पता भारतीय संस्कृति। अबे ये इन्डिया है, यहाँ अमरीका की तरह बच्चों जवान होते ही लात मारकर घर से नही निकाल दिया जाता, बल्कि कलेजे से लगाकर रखा जाता है, तब तक जब तक माँ बाप को ये पक्का यकीन ना हो जाय कि बच्चे को दुनियादारी,ऊँच नीच और व्यापार की समझ आ गयी है। फ़िर बच्चों ने अभी दुनिया देखी ही कहाँ है? ये साला महन्त जिसने पचपन साठ की उमर मे सन्यास लिया होगा, सारी मौज लेने के बाद, वो इन बच्चों को इस कच्ची उमर मे सन्यास के लिये प्रेरित क्यों कर रहा है? फ़िर माँ बाप तो इसी उम्मीद मे बच्चों को बड़ा करते है ना कि बच्चा बड़ा होकर उनका नाम रोशन करे और उनके बुढापे मे उनका सहारा बने। यही हमारी संस्कृति कहती है। फ़िर धर्म मे ये कंही नही लिखा कि अपने कर्तव्यों की अनदेखी करके धर्म के अनुयायी बनो। सांसारिक कर्तव्य पहले हैं फ़िर कुछ और। दोनो मेरे को जबरद्स्त तर्क कुतर्क करके पकाते रहे और मै दोनो को झेलता रहा। कई कई बार तो दोनो के बीच गाली गलौच और मार कुटाई की नौबत तक आ गयी थी, वैसे ये सीन अक्सर क्रियेट होता था, जब मै रेफ़री बनता था और ये दोनो WWF के पहलवान। चाय नाश्ता डकारने और काफ़ी देर झगड़ा करने के बाद, दोनो को याद आया कि मेरी राय तो किसी ने ली ही नही। अब मरता ना क्या करता, इधर कुँआ उधर खाई, मैने भी किसी तरह से अपनी ये राय दी।

  1. अव्व्ल तो बच्चे ऐसे बैकग्राउन्ड से आये है, जहाँ वे अपने अपने घरो मे मां बाप द्वारा परेशान किये गये थे या फ़िर बचपन से ही ईश्वर के प्रति बहुत ज्यादा आसक्त थे।
  2. अल्हड़पन मे विचारो को प्रभावित कर लेना कोई बहुत बड़ी बात नही, अक्सर इस उम्र मे बच्चे बहुत जिद्दी और विद्रोही हो जाते है।
  3. बच्चों का जमकर ब्रेन वाश हुआ है और हो सकता है इनको कोई नशा वगैरहा भी दिया जा रहा हो
  4. दरअसल ये मैरिज आफ़ कन्वेनियन्स दिख रही है, जहाँ मन्दिर वालो को देखभाल के लिये कुछ बन्दे और बच्चों को रहने के लिये ठिकाना चाहिये, लेकिन ये सब धरम के नाम पर हो रहा है जो वाजिब नही
  5. घर वालों को चाहिये कि अपनी गलतियां माने और बच्चो को प्रेम पूर्वक घर लिवा ले जाय, बिना कोई प्रश्न पूछे और बिना महन्त को बुरा भला कहे।
  6. स्टार न्यूज वालों को चाहिये कि इस मसले को अपने टीआरपी से जोड़कर ना देखे, बल्कि इसे मानवीय नजर से देखे, ये एक सामाजिक प्रोबलम है, इसे दोनो पक्षों को तरीके से निबटने दिया जाय। बिना लाइव कवरेज किये।
  7. रूपर्ट मरडोक (स्टार न्यूज ग्रुप के मालिक) को चाहिये कि इस चैनल को बन्द करवा कर भारतीय जनता पर उपकार करें, नही तो ऐसे चलता रहा तो कुछ साल मे वैसे ही इस चैनल का दिवाला निकल जायेगा।
  8. सरकार को चाहिये ऐसे महन्तों और मठाधीशो पर कड़ी नजर रखे, ये मठ नही बल्कि उसके नाम पर अपना व्यापर चला रहे हैं। इनकी गतिविधियों पर निगाह रखे और दोषी पाये जाने पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाय।
  9. स्वामी और मिर्जा को चाहिये कि ऐसे मसले डिसकस ना करे, ना तो स्वामी अभी भारतीय क्रिकेटरो से फ़्री हुए है और ना मिर्जा अभी राजनीतिज्ञों के कारनामो से। इसलिये इस मसले को छोड़कर अपने अपने काम मे लगें। मेरी कीमती वीकेन्ड की शाम खराब करने के एवज मे ये दोनो मिलकर मुझे एक अच्छे रेस्टोरेन्ट मे डिनर करवायें।
  10. और पाठको को चाहिये कि इतना झेल लिया, अब जाते जाते टिप्पणी द्वारा अपनी राय भी व्यक्त करें

यूं ही आते रहिये और पढते रहिए, मेरा पन्ना

2 Responses to “कहानी एक मन्दिर की”

  1. दिल्ली से फरीदाबाद सटेगा तो कुछ तो गड़बड़ होगा ही। तुम्हारे मिर्जा
    स्वामी काम से लगे हैं देख के लगरहा है मामला पटरी पर बैठ रहा है
    तुम्हारे लिखने का। बधाई!

  2. पता नही प्रसार माध्यमो को क्या हो गया है ? ये अकेला किस्सा नही है, जहा देखो वहां अपनी टांग अडाते नजर आ जायेंगे. “गुडिया” का किस्सा ज्यादा पूराना नही हुवा है.

    और रही मन्दिर-मठ की बात, ये तो बने ही लोगो के विश्वास का दुरूपयोग करेने के लिये. भगवान तो मन्दिर मे पहली घन्टी बजते साथ ही भाग खडे हुवे थे. इसिलिये दुनिया भर के उल्टे सीधे काम मंदिर -मठ मे होते है.

    आशीष