शिक्षक दिवस पर विशेष
शिक्षक दिवस पर आज फिर अपने गुरुओं को याद करके उनका शत शत नमन करता हूँ और उन्हे धन्यवाद करता हूँ कि उन्होने मेरे को इस लायक बनाया कि मै आप लोगों के लिए कुछ लिख सकूं। यदि उन्होने मेरे को अक्षरमाला ही ना सिखायी होती तो यह लेखन कतई सम्भव नही था। शिक्षक दिवस पर यह प्रविष्टि समर्पित है उन सभी शिक्षको कों जो निस्वार्थ अपने शिष्यों को ज्ञान बाँटते रहते है। उनको जीवन मे संघर्ष की प्रेरणा देते है, अच्छे बुरे को पहचानना सिखाते है मेरा पन्ना की तरफ़ से सभी गुरुओ को शत शत नमन।
जीतू भैया के इस लेख में मेरा भी भाव शामिल किया जाए. ब्लॉग पर आई तकनीकी दिक्कतों और समयाभाव के चलते मैं अपनी भावनाओं को यही प्रकट कर रहा हूं.
गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय. (कबीर)
प्राथमिक स्तर पर भिलाई (छत्तीसगढ़) के सेक्टर चार के सरस्वती शिशु मंदिर की मेरी आचार्या श्रीमती कणिकदले जी, माध्यमिक स्तर पर दुर्ग राष्ट्रीय विद्यालय के श्री शुक्ला सर, राजनांदगांव के श्री केएन दुबे और पत्रकारिता में मेरे गुरू रमेश नैयर जी (पूर्व संपादक डेली ट्रिब्यून और दैनिक भास्कर) तथा मेरे बड़े भाई और वरिष्ठ पत्रकार श्री राजकुमार सोनी जी का स्मरण करते हुए मुझे कृतज्ञता का अनुभव हो रहा है. इनमें मेरे जीजाजी श्री रविंद्र सिंह चौहान का भी अहम योगदान है जिन्होंने मुझे वैचारिक स्तर पर बहुत प्रभावित किया है.
हिन्दी चिट्ठाजगत के सभी भाइयों ने भी कई दफ़ा गुरू की भांति ही मार्गदर्शन किया है. इनमें रवि रतलामी जी और जितेंद्र चौधरी जी अहम हैं.
संसार का हर विचारवान व्यक्ति हमेशा छात्र होता है. ज्ञान ग्रहण करने की ललक ही उसे नित नए संदेश देती है, नए अनुभव देती है.
मैं अपने गुरूओं को शत शत नमन करता हूं.
गुरूओं को शत शत नमन!