मृत आत्मा की प्रशंसा

अभी पिछले दिनो हमारे कांशी राम गुजर गए। कांशी राम ने पिछड़ों के उत्थान के लिए काफी काम किया था। अपनी पार्टी बहुजन समाज पार्टी से पिछड़ों को सत्ता सुख का स्वाद चखाने वाले, कांशीराम काफी समय से बीमार चल रहे थे और पार्टी का काम काम “बहनजी” मायावती देख रही थी। इस पोस्ट का मकसद कांशीराम की जीवनी लिखना नही है। दर असल इस पोस्ट का आइडिया तब आया जब कांशीराम की अंत्येष्टि के अवसर पर विभिन्न पार्टी के लोगों ने (जिन्होने जीवन भर कांशी राम को जी भर कर कोसा) कांशी राम की तारीफ़ मे कसीदे पढे । उदाहरण कांशीराम मसीहा थे, उन्होने ये किया, वो किया, वगैरहा वगैरहा। वाह री रंग रगीली दुनिया। जीते जी, घास नही डाली, गुजरने पर आँसू की गंगा बहायी। कांशी राम के केस को दर किनार करिए, हमारा समाज ऐसा क्यो करता है कि जीते जी, इन्सान को सीरीयसली नही लेते, या उलाहने देते रहते है, लेकिन जैसे ही वो राम बोलो हो जाता है तो घड़याली आंसू बहाते हुए, उसकी शान मे कसीदे पढते है। हम इतने विरोधाभासी क्यों है? अभी पिछले दिनो, अचानक आचार्य रजनीश की एक ” उड़ियो पंख पसार” दोबारा (शायद तिबारा) पढने को मिली। उसमे भी एक ऐसा ही सवाल आचार्य रजनीश से पूछा गया, उन्होने भी बहुत सही जवाब दिया। मै ज्यों का त्यों आपके समक्ष प्रस्तुत कर देता हूँ। हो सकता है कि इसमे कुछ विचारों से आप सहमत ना हों :

सवाल : व्यक्ति के मर जाने पर क्यों सभी लोग प्रशंसा करते है, वे भी जो कि जीवन भर उसकी निंदा करते रहे। इसका राज क्या है?

कुछ खास नही, कोई राज नही। बात सीधी और साफ है कि अब बेचारा मर ही गया, अब मरे हुए को क्या मारना। जब तक जिंदा था तब तक उसके पीछे पड़े थे। उससे स्पर्धा थी, संघर्ष था। अब जब वो ही नही रहा तो काहे का संघर्ष और कैसी स्पर्धा। फ्रांस का एक बड़ा विचारक बोल्तेयर मरा, तो उसके घोर विरोधी रूसो को जब इसकी खबर लगी तो उसने कहा “यदि उसके मरने की खबर सच्ची है तो मै कहूंगा कि बोल्तेयर एक महान व्यक्ति था और यदि यह खबर गलत है तो मै अपने यह शब्द वापस लेता हूँ, टक्कर जिन्दगी भर चलेगी। अगर अब वो मर ही गया तो मरे को क्या मारना, मुर्दे से कौन लड़े!।

मुर्दे से कौन लड़े! जाने अन्जाने कितनी बड़ी बात कह गया रूसो। मुर्दो से लोग डरते है, भूत हो जाए, प्रेत हो जाए, कुछ तो होंगे ही। जो भी मर गया उसको हम कहते है स्वर्गीय हो गया। हालांकि सौ मे से निन्यानबे स्वर्गीय नही हो सकते, मगर हम किसी को नही कहते कि नारकीय हो गये। जो मरता है स्वर्गीय हो गया। प्रभु को प्यारा हो गया। प्रभु ने उसे इतना चाहा कि उसे उठा लिया। क्यों? सदियो पुराना एक भय है कि आदमी मर गया तो पता नही भूत बने कि प्रेत। तो उससे क्यों पंगा लें, क्या पता, फिर हमे सताए, परेशान करे। हम डरते है, भयभीत होते है, घबड़ाते है।

अक्सर हम यह घबड़ाहट, यह भय हम समादर मे छिपाते है। तुम्हे ये पता है कि हम खाते बही शुरु करते समय बिल्कुल प्रारम्भ मे लिखते है “श्री गणेशाय नम:” क्यों? शायद तुम्हे पता ना हो, गणेश बिल्कुल प्रारम्भ मे बहुत उपद्रवी थे,बिध्नकारक थे। कंही भी अच्छा काम हो रहा हो तो उनसे देखा नही जाता था। बिगाड़ देते थे, उपद्रव मचा देते थे। पुराने शास्त्रों मे इसका उल्लेख है कि वे पहले व्यवधान और उपद्रव करने वाले देवता थे। तो क्या उपाय था उनसे बचने का, एक ही उपाय था, सबसे पहले इनका स्मरण कर लो कि भैया कृपा करना बाकी सबसे तो हम निबट लेंगे। तो श्री गणेशाय नम:। अगर इनको किसी और देवता के बाद लिखो तो क्या पता नाराज हो जाएं, उपद्रव मचा दें। मै भी स्कूल मे बहुत शरारती था। जिस क्लास मे रहा वहाँ पर कैप्टन बनाया गया, इसलिए नही कि मेरे अन्दर नेतृत्व क्षमता थी, बल्कि इसलिए, कि यदि नही बनाया तो उपद्रव करूंगा। तो इसलिए शिक्षक यह सोचकर बना देते थे, इसको कैप्टन बना दिया तो कम से कम सबसे ज्यादा उपद्रवी से तो छुटकारा मिला, यानि श्री गणेशाय नम:। अब तुम पूछ रहे हो मरने वाले की प्रशंसा क्यों करते है?

एक राजनेता मरा, लाखों की भीड़ इकट्टी हुई। राजनेता था, भीड़ मे उसकी सदा उत्सुकता थी। भीड़ देखकर उसकी आत्मा छाती पीट पीटकर रोने लगी। एक दूसरी आत्मा ने नेता की आत्मा से पूछा, क्यों भाई, क्यों ऐसी छाती पीट पीट कर रो रहे हो, तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि इतने लोग तुमको विदा करने आएं है। राजनेता की आत्मा बोली ” अरे भई, इसलिए तो रो रहा हूँ कि अगर ये दुष्ट पहले से ही बता देते कि इतना मेरे प्रति प्रेम है तो मै मरता ही क्यों? अरे जिन्दगी मे आए होते तो मजा आ गया होता। अब आएं है क्या फायदा?” । दूसरी आत्मा ने मुस्काराते हुए कहा “तुम समझे नही, ये सब खुशी मना रहे है, ये सब प्रसन्न हो रहे है चलो झंझट मिटी एक और स्वर्गीय हुए। चलो इनको भी राजघाट पहुँचा दें।” अब समझे?
रजनीश की पुस्तक “उड़ियो पंख पसार” का संपादित अंश

तो भई ये तो थी रजनीश की बात, हो सकता है आप रजनीश की बातों से पूरी/आंशिक रुप से सहमत/असहमत हो। लेकिन मुझे जानने की उत्सुकता रहेगी कि आपका इस बारे क्या विचार है?

5 Responses to “मृत आत्मा की प्रशंसा”

  1. ”तमाम उम्र ग़ुरबत मे गुज़रती है.. बाद मरने के यहां ताजमहल बनते हैं.”

    ओशो ने तो हास्य-व्यंग्य में समाज में मृत्योपरांत व्यक्ति की महिमागान का मर्म समझा दिया. किंतु कांशीराम जी के संदर्भ में कहूं तो यही कि वे जीवनभर आलोचना का केंद्र बने रहे. वे समाज के उस वर्ग की प्रतिक्रिया की आवाज़ थे जो अपने हक़ों के लिए लड़ रही थी. ये बात अलग है कि उन्होंने हक़ की इस लड़ाई में जातीय समरसता को भी जातीय संघर्ष की आग में झोंक दिया. राजनीति कुत्ती चीज़ है.. यहां उत्कृष्ट उद्देश्य भी निकृष्ट तरीक़ों से हथियाए जाने की कोशिश की जाती है. परिणाम उल्टा होता है. जनता को माया मिलती है ना राम.. यानी ना मायावती और ना ही काशीराम..

  2. ये तो होना ही था। मरने के बाद भी शान्ति से नही रहने देते है।

  3. पोस्ट संजीदा है पर कहना बस ये था कि ये नयी थीम मज़ेदार है, वाह!

  4. मरने के बाद हर किसी का “स्वर्गवासी” कहलाना ठीक ही है, “नरकवासी” कहना कुछ सुहाएगा नहीं… अटपटा-सा लगेगा 🙂

  5. मरने के बाद “नरकवासी” कहना कुछ जमता नहीं है… नहीं? 🙂