अतीत के गलियारे से
मुझ पर अक्सर अंगुलियाँ उठायी जाती है कि चौधरी साहब अक्सर अतीत की यादों मे खोए रहते है, अक्सर नॉस्टलजियाते रहते है। हमेशा मोहल्ला पुराण झिलाए रहते है। अरे भई, इस उमर मे पहुँचने के बाद हम रोमांटिक बाते तो करेंगे नही,बच्चों को ज्ञान देते है तो हाय तौबा मच जाती है। फिर हम फुरसतिया की तरह झिलाऊ कवि भी नही, कि यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ से शब्दों को खींच खांच कर उन्हे पकड़ पकड़ और तरोड़ मरोड़ कर, उनसे कविता की रचना करें। कुछ और करने से पहले हमे(चौधरी साहब को) अपनी औकात भी तो देखनी होती है, कवि हम बन नही सकते, ताजा समाचारों के इत्ते चैनेल और वैब साइट है, हास्य व्यंग का कापीराइट फुरसतिया के पास पहले से ही है, तकनीकी विषय पर रवि से अच्छा कोई नही लिखता, फिर बचा क्या? अतीत की यादें और क्या। वैसे भी आजकल एक्सपर्टाइज का जमाना है, कम से कम एक विषय पर तो कब्जा जमाया जाए, है ना?
अब हमसे अक्सर एक सवाल पूछा जाता है कि हम इत्ता सारा अतीत के बारे मे काहे लिखते है? इसका जवाब भी देंगे, पहले एक कहानी सुनो, हो सकता है इसी कहानी मे आपको जवाब मिल जाए।
एक कस्बे मे एक छोटा सा चर्च था। वहाँ का पादरी बहुत अच्छा इन्सान था। हर रविवार को प्रार्थना सभा के बाद वह अपने कन्फ़ेशन बॉक्स मे जाकर बैठता, जहाँ पर तरह तरह के लोग आते और अपने पापों के बारे मे ब्योरा देते और कन्फ़ेशन करते। पादरी उन सभी को सांत्वना देता और लोग अपने मन से पाप का बोझ उतार कर खुशी खुशी अपने घर चले जाते। ये रूटीन हो गया था, पादरी को भी सुनने मे मजा आता। सब कुछ अच्छा चलता रहा। लेकिन एक रविवार सब कुछ बदल गया। एक साठ साल की बूढी औरत आयी और अपने पापों के बारे मे कन्फ़ेशन करने लगी। यहाँ तक तो ठीक था, लेकिन वो औरत हर रविवार को आती और अपने उन्ही पापों का दोबारा कन्फ़ेशन करती, उन्ही पापों का जो उसने अपने अल्हड़पन और जवानी मे किए थे। पादरी के लिए अब इस औरत का हर रविवार को आना, पकाऊ सा लगने लगा। उसे लगा कि यह औरत काहे बार बार वही स्टोरी सुनाती है, काहे बार बार कन्फ़ेशन करती है। बहुत दिन झिलने के बाद एक रविवार पादरी ने उससे पूछ ही लिया। अरे भई जो हो गया सो हो गया, तुम क्यों बार बार वही कन्फ़ेशन करके अपना और मेरा अपना समय बरबाद करती हो। एक ही बात को बार बार कन्फ़ेस करने से क्या फ़ायदा?
उस बूढी औरत ने कहा, आप नही समझेंगे, जो पाप मैने अपनी जवानी मे किया, उस पाप को बार बार याद करके मै स्फ़ूर्ति से भर उठती हूँ। मै जब उस घटना को दोबारा याद करती हूँ तो मेरा रोम रोम जवान हो उठता है। जो घटना मेरे साथ घटी, उस घटना की याद मेरे पुरानी यादों को ताजा कर देती है। कुछ ऐसा लगता है कि मै फिर से उस पुराने समय मे लौट गयी हूँ। उस पुरानी बात को याद करके, मेरी वीरान जिन्दगी मे ना जाने कौन सी ताजगी भर जाती है जिससे मै पूरा हफ़्ता तरोताजा रहती हूँ, लेकिन जैसे जैसे शनिवार, रविवार करीब आता है, मुझमे एनर्जी की कमी महसूस होने लगती है। मन करता है कि फिर से उन बातों को याद करूं। आपके सामने कन्फ़ेशन के बहाने मै उन पुरानी सुहानी यादों को ताजा करती हूँ और पूरे हफ़्ते के लिए फिर से ऊर्जा, स्फ़ूर्ति और ताजगी से भरकर अपने घर को लौटती हूँ। पाप पुण्य वगैरहा तो गया तेल लेने, जो हो गया सो हो गया, कन्फ़ेशन तो सिर्फ़ बहाना है, मै तो यहाँ अपनी एनर्जी पाने आती हूँ।
अब भई, हम जवानी की बातें तो आपके साथ शेयर नही करते है, लेकिन हाँ बचपन के किस्से जरुर बताते है| ऐसा भी नही कि हम हर बार वही किस्से सुनाते हो, इत्ते सारे तरह तरह के किस्से सुनाए है आपको। इन किस्सों को बताते बताते हम भी मौजूदा परेशानियों को दर-किनार करते हुए जा पहुँचते है अतीत की जानी पहचानी गलियों में, उन गलियारों मे जहाँ ना कोई चिन्ता थी, ना कोई परेशानी। ना कोई डेडलाइन, ना कोई जिम्मेदारी। बिन्दास, बेफ़िक्र, आजाद जिन्दगी। उन्ही दिनो को याद करके हम एनर्जी पा जाते है। अब आप ही हमारे पादरी हो, आपको नही सुनाएंगे तो किसे सुनाएंगे? तो भई, आपको अपने सवाल का जवाब मिला कि नही? क्या कहा? नही। अमां ट्यूबलाइट हो क्या? जिन लोगों को अब भी समझ मे नही आया उनके लिए कोई दूसरी आसान सी कहानी ढूंढनी पड़ेगी, उसके लिए इन्तज़ार करिए और पढते रहिए, मेरा पन्ना, नही नही…… आप सभी का पन्ना।
हास्य-व्यंग्य का कापीराइट फुरसतिया के पास है लेकिन ‘पायरेटेट कापी’ धड़ल्ले से चौधरी जी बेच रहे हैं और जमकर बेच रहे हैं! अतीत के किस्से से जवानी खींचनी जारी रखो या नये जुगाड़ लगाओ लेकिन लिखना जारी रखो! यह भी बहुत रोमांचक अनुभव है कि बहुत दिन बाद मेरा पन्ना पर टिप्पणी कर पा रहे हैं! इतने दिनों तक तुम इसे पता नहीं कैसे बंद रखे रहे!
लिखिये ना पुराने किस्से, हम हैं ना पढ़ने के लिये। लिखते रहिये….। थीम बहुत अच्छा है 🙂
अब अगर एनर्जी पा गये हो, तो आगे सुनाओ!! इंतजार है. 🙂