बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया

हाय! हाय! जे कैसा कलजुग! भरी दोपहरिया, बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया। दिन दहाड़े डकैती। वो भी हिन्दी चिट्ठाकारों पर।

आजकल बहुत लूटपाट होने लगी है, लोग दूसरे के लेख उठा उठा कर चैंप देते है, पत्रिका के रुप मे छाप देते है। अब इन हिन्दी कैफ़े वाले साहबान को ही लें, सारे हिन्दी चिट्ठाकारों के लेख, बिना पूर्वानुमति के चैंप दिए है। हाँ ईमानदारी तो इतनी दिखायी है कि लेखकों के नाम वही रखे है, अब बदलने का समय नही था, ये इनको ईमानदारी चोरी ही पसन्द है, ये तो हमे नही मालूम। लेकिन हम इत्ता जरुर कहेंगे कि इनको सम्बंधित लेखकों से पूर्वानुमति जरुर लेनी चाहिए थी, भले ही मौखिक रुप से ही। अभी तो ये सीधा सीधा चोरी चपाटी का मामला बनता है।


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हमने दरोगा जी से पूछा कि क्या किया जा सकता है, तो वो बोले कि सबसे पहले तो पता लगाओ कि ये श्रीमान कौन है, हमने पता लगाया कि कोई मैथली गुप्ता ( अरे वो महान कवि मैथिली शरण गुप्त नही, वो तो अब नही रहे) दिल्ली मे ईस्ट आफ कैलाश मे पाए जाते है। अब चिट्ठाकारों को इस पर क्या एक्शन लेना है वे सम्बंधित चिट्ठाकार डिसाइड करें, हमारी रचनाएं तो इन्होने छापने लायक समझी नही। खैर! अपनी अपनी लूट की रिपोर्ट यहाँ टिप्पणी मे दर्ज कराएं।

20 Responses to “बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया”

  1. भागो ताऊ भागो अपने अपने चिट्ठों को जल्दी से छिपा दो… डकैतीयाँ शुरू हो गई है।

    लो ब्रेकिंग न्यूज़: एक और डकैती

    http://www.lyspick.com

  2. एक और चोरी की दुकान का पता चला है, http://www.lyspick.com
    इन लोगों ने चिट्ठाकारों की मेहनत को बड़ी आसानी से भुना लेने का तरीका अपनाया है, किसी से अनुमति लेने की जहमत भी नहीं उठाई। कुछ करना पड़ेगा, भाई।

  3. ये दोनों चोरी के माल की दुकानें एक ही साहब की जान पड़ती हैं, क्योंकि दोनों की डि‍ज़ाइन काफ़ी-कुछ मिलती-जुलती हैं। सबसे पहले तो इन श्रीमान जी को चेतावनी दी जानी चाहिए। न मानने की दशा में चिट्ठाकारों को गंभीरतापूर्वक विचार करना पड़ेगा कि क्या किया जा सकता है।

  4. Yeh dono sites ek hi jaisi hein aur ek hi bande ki hein. Whois se ye pata chala:

    http://www.lyspick.com/ ke karta dharta hein:
    Maithily Saran Gupta HUF (cyril@maithily.com)
    Address: A-22 Sector 34, NOIDA – 201301. (UP)
    Tel No. 011 – 26486289

    http://www.cafehindi.com/ ke karta dharta hein:
    Maithily S Gupta
    Indian CompuTrade News (psl@nde.vsnl.net.in)
    AddressL 263, Sant Nagar, East of Kailash, New Delhi 110065.
    Tel No. 11- 26486289

    Bachav ka ek tarika to yeh hei ki inko email likhein agar aapko apna content inki site per nahi dikhana hai aur doosra apni Feed mein “Full” ki jagah “Summary” posts publish karein, halanki isse aapke anya pathakon ko asuvidha hogi.

    In dodno sites mein ek antar yeh hai ki ek mein summary post kar post ki kadi di gayi hai aur doosre mein puri post “sabhar” ke nam per chaapi gayi hai. Bina anumati liye ye karna galat hai. Aflatoon ji ka kehna hai ki unko mail likh kar permission maangi gayi hai per weh izazat nahi dene waale.

  5. इसका त्वरित समाधान तो यह है कि अपने चिट्ठे की पोस्ट मे दूसरे चिट्ठाकारों के लिंक दीजिए, जहाँ भी हो सके, दूसरे के नाम के प्रयोग के साथ साथ लिंक जरुर दीजिए, ऐसी साइट्स बनाने वालों को पका पकाया खाने का शौंक होता है, वे लिंक को संपादित करने की जहमत नही उठाएंगे।

    सभी लोगों से निवेदन है कि अपनी पोस्ट की शेयरिंग की पालिसी अपने चिट्ठे पर प्रदर्शित करें। ताकि बाद मे कोई एक्शन लेते समय काम आए।

    दूसरा, इस तरह की स्थिति आने पर, सभी लोग सामूहिक रुप से विरोध दर्ज कराएं। सभी अपनी आँखे खुली रखें, और ध्यान दें।

  6. ये दोनों एक ही व्यक्ति की दुकानें हैं, अलग-अलग पते से रजिस्टर्ड हैं। दूसरी वाली नोएडा के पते पर रजिस्टर्ड है। सारा पता-ठिकाना मालूम कर लिया है, अब बताओ करना क्या है?
    आपलोगों की क्या राय है?

  7. इन लोगों का कहना है कि इनका प्रयोजन लाभ कमाना नहीं है। तो भइये, ये दुकानें क्यों खोली हैं? ये सारे लेख तो पहले से ही वेब पर हैं और नारद के जरिए सबको उपलब्ध हैं।
    हमलोग पहले से ही महाब्लॉग जैसी परियोजना पर काम कर रहे थे जिसमें चिट्ठाकारों की चुनिंदा पोस्टों को पत्रिका के रूप में प्रकाशित करने की योजना थी। इस संबंध में चिट्ठाकारों के बीच कई दौर की बैठक भी हुई थी। फिर ये लोग कहाँ से टपक पड़े?
    ये अनधिकार चेष्टा है, इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

  8. अईयो, इसने तो मेरी दो दो दुकानो पर डाका डाला है। अच्छा तो यही होगा कि पहले इस भाई(या बहन) को चेतावनी दे दें, उसके बाद कोई दूसरा तरिका अपनाया जा सकता है।

  9. मुझे भी कुछ दिनों पहले ऐसे ही एक चिट्ठे का पता चला था, मेरे इनकमिंग्स लिंक्स में एक पता “जाड़े की धुप” आया तो मैं वहाँ पहुँचा। वहाँ पहुँचकर देखता हूँ कि मेरे अलावा कवि राजीव रंजन प्रसाद, कवि मनिष वन्देमातरम, कवि शैलेश भारतवासी की कविताएँ भी पुन: प्रकाशित हो चुकी है और कईंयो में तो कविता के रचियता का नाम भी नहीं दिया गया है।

    लिंक यह रहा – http://prashantmalik.wordpress.com/

    मगर मैने सोचा कि कोई हल तो है नहीं तो क्यों हाय-तौबा मचाई जाये, इसलिए चुप रहा।

  10. मैं आप से सहमत हूँ और मैथिल गुप्त जी के इस कार्य का विरोध करता हूँ, गुप्त जी ने यह कार्य पूछ कर किया होता तो कितना अच्छा होता।

  11. मैथिली शरण गुप्त जी से टेलीफोन पर मेरी बात हुई है और मैंने उनसे दरियाफ्त किया है। उनका कहना है कि वह इसे बगैर किसी कमर्शियल इंटरेस्ट के शुरू करना चाह रहे हैं। अभी ट्रायल के रूप में शुरू किया है। कुछ लोगों से सहमति ली है। रवि रतलामी जी का नाम खास तौर पर लिया। अपने बारे में बताया कि इन्होंने कृति देव और हिन्दी के कुछ पुराने लोकप्रिय फोण्ट आदि बनाए हैं। ये मुझे मेल भेज रहे हैं। इनकी बातें सुन लेते हैं और आपलोगों को भी सूचित करते हैं। फिर जो सबकी राय होगी, किया जाएगा।

  12. सर्वप्रथम नमस्कार एवं अभिनन्दन. मैंने अधिकांश चिट्ठाकारों को ई-मेल पर अनुमति मांगी है. कई बन्धुओं की अनुमति मुझे मिल चुकी है. अनेकों ने मेरे इस प्रयास को सराहा है. मै इस वेबसाईट को बिना किसी व्यावसायिक उद्देश्य के चलाना चाहता हूं. मैंने ढेरों ई-मेल अनुमति के लिये भेजी थीं तब तक मैने इसकी रूप रेखा बना रहा हूं. मेरा उद्देश्य यही है कि यह लेख आम पाठक तक पहुचें.

    जीतू जी, मैनें हर लेख में साईट का लिंक एव आभार प्रगट किया है. आपके लेख के लिये भी आभारी हूं.

    मुझे आप सबके उत्तर का इन्तजार है.
    मैथिली

  13. मेरी रचनाओं के प्रकाशन बाबत् गुप्त जी ने पूर्व सहमति ली थी.

    वैसे भी रचनाओं को वे साभार, कड़ी सहित तथा रचनाकारों के नाम समेत पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं – जो संभवतः चोरी की श्रेणी में नहीं आता है. चोरी तब होती है जब हमारे माल को वे अपने फ़ायदे के लिए अपने नाम से इस्तेमाल करें जैसा कि डस्क डायरी में मेरे अंग्रेज़ी चिट्ठे का हो रहा था और अभी भी अन्य दूसरे अंग्रेज़ी चिट्ठों का हो रहा है.

    फिर भी, मैथिली गुप्त जी से आग्रह है कि वे किसी भी रचना के पुनः प्रकाशन से पूर्व अनुमति तो ले ही लें. और यदि बगैर अनुमति प्रकाशित करना ही है तो सार छापें, आगे की पूरी रचना पढ़ने हेतु लिंक मूल चिट्ठे का दें.

  14. हम भी जरुर रिपोर्ट लिखवाते मगर हमारी रचनाएं तो इन्होने छापने लायक समझी ही नही। कोई तो छापो यार, तीन तीन ठो दुकानें खुली हैं, कोई तो कुछ पारखी होगा हीरे का. सब छपे बस हम और जीतु रह गये, बड़ा अकेला अकेला और तन्हा महसूस कर रहा हूँ, जीतु अगर साथ न होते तो समझो, शर्म से आज तो आत्महत्या टाईप कुछ करने का मौसम बन जाता. साधुवाद जीतु भाई, साथ निभाने के लिये.

    🙁

  15. वैसे मैंने भी कल इसे देखा था, मैं सोचा कोई चिट्ठाकार ही शायद कोई प्रयोग कर रहा है, मैं भी आज इसे चीट्ठाकार ग्रुप में उठाने वाला था 🙁

  16. मैंने चिट्ठाकारों की तरफ से मैथिली गुप्त को अपना पक्ष रखने के लिए लिखा था। उनका उत्तर आया है, जो निम्नानुसार है:

    ……………
    “सर्वप्रथम नमस्कार एवं अभिनन्दन. मैंने अधिकांश चिट्ठाकारों को ई-मेल पर अनुमति मांगी है. कई बन्धुओं की अनुमति मुझे मिल चुकी है. अनेकों ने मेरे इस प्रयास को सराहा है. मै इस वेबसाईट को बिना किसी व्यावसायिक उद्देश्य के चलाना चाहता हूं. मैंने ढेरों ई-मेल अनुमति के लिये भेजी थीं तब तक मैने इसकी रूप रेखा बना रहा हूं. मेरा उद्देश्य यही है कि यह लेख आम पाठक तक पहुचें.

    मुझे आप सबके उत्तर का इन्तजार है”.
    मैथिली
    …………

    अब चिट्ठाकार साथीगण, बताएँ कि क्या करना है, आपलोगों की क्या सलाह है? क्या इन्हें अपना कारोबार करने दें या इन्हें बगैर अनुमति वाले लेख हटाने के लिए कहें?

  17. इसकी क्या गारंटी है कि बाद में जाकर ये लोग इससे कमाई नहीं ही करेंगे ? या बाद में साईट किसी और को बेच भी सकते हैं। लेख हटाने और साईट बंद करने के लिये ही कहा जाना चाहिये। दिल्ली में मैं इस बंदे से जाकर मिलने को तैयार हूं, एक भाई कोई और साथ चले तो बेहतर है।

  18. शिल्पीजी

    आपकी उनसे हुई बातचित और मेल से लगता है कि कार्य अनुचित था मगर विचार उचित
    उनसे कहें कि वो मूल लेख की बजाय सार छापें और पूरा लेख पढ़ने के लिए पाठक को चिट्ठे पर भेजे
    इससे पाठक जो रूचिकर आलेख होगा उसे पढ़ने चिट्ठे पर आएगा और अरूचिकर लगेगा उसे सार पढ़कर ही चल देगा…

  19. सरे आम यह क्या हो रहा है…भाई आप लोग सावधानी के तरीके बताएँ…ऐसे ही डाका पड़ता रहा तो हमारी मेहनत खाली पड़ जाएगी!!

  20. हम सभी इस मुद्दे पर किसी एक स्थल पर चर्चा करें। अक्षरग्राम पर यह चर्चा चल रही है, जिसमें मैथिली गुप्त जी ने भी अपना पक्ष खुद टिप्पणी करके रखा है। आइए, हमलोग वहीं चर्चा करते हैं इस मुद्दे पर।

    http://www.akshargram.com/2007/01/31/586