बड़े दिनो बाद

बहुत दिनो बाद लिख रहा हूँ, दरअसल आजकल भारत यात्रा पर हूँ, हर शहर मे ठिकाना एक या दो दिनो से ज्यादा होता नही, इसलिए लिख नही सका। आजकल रुड़की मे हूँ, थोड़ा समय मिला और कम्प्यूटर भी तो सोचा चलो कुछ अपनी कहें और कुछ आपकी सुनें। ये मेरे विचार, कुछ कड़वे जरुर है, लेकिन इनको शान्ति से सुने और आप अपने आपको मेरी स्थिति पर रखकर मनन करें।

पिछले कुछ दिनो मे काफी बाते कही सुनी गयी, कई आरोप प्रत्यारोप लगाए गए, नारद को गालियां दी गयी, बुरा भला भी कहा गया। लोकतन्त्र की दुहाई दी गयी, नारद टीम के सदस्यों के खिलाफ़ छींटाकंशी की गयी। सिर्फ़ इसलिए कि हम लोगों ने एक चिट्ठाकार को नारद से बाहर का रास्ता दिखाया था, क्योकि उसने नारद के नियमों की अवहेलना करते हुए दूसरे ब्लॉगर के विरुद्द गलत शब्दों का प्रयोग किया था। इस अनुशासनात्मक कार्यवाही से हमारे कुछ साथी तो इस कदर खफ़ा हुए कि उन्होने अपना ब्लॉग नारद से हटाने की गुहार कर दी, एक ने तो अपना ब्लॉग ही डिलीट कर दिया, ये सब किस लिए? ये एक त्रिपक्षीय मुद्दा था, दूसरे लोग इसमे काहे कूदे? जिसने संजय को बुरा भला कहा, वो आज भी अनर्गल लिख रहा है, उसको अपने किए पर कोई पश्चाताप नही। उसका साथ देने वाले अब कहाँ है?

मै चुपचाप यह सब होता देख रहा था, किसी से कुछ कह नही रहा था, क्योंकि मै अपनी ट्रिप खराब नही करना चाहता था, लेकिन आज रहा नही जा रहा, मै आप सभी से पूछता हूँ, क्या हम यहाँ सभी की गालियां खाने के लिए बैठे है? क्या हमारा घर परिवार नही है? क्या हमें कभी गुस्सा नही आ सकता? हम यहाँ पर एक साथ सिर्फ़ इन्टरनैट पर हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए है, अपनापन और दोस्ताना बन गया है ये अच्छी बात है, लेकिन क्या इन्टरनैट पर हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए हमारी बेइज्जती की जाएगी? बात बात पर हमे गालियां दी जाएगी? ये सही संकेत नही है। आज एक पक्ष ने बदतमीजी की है, कल को दूसरे पक्ष के ब्लॉगर का ब्लॉग हटाया जाएगा तो वो लोग भी यही करेंगे? क्या यही है परिवार की मर्यादा? यदि ऐसी ही मर्यादा है तो बेहतर है कि हम सब संगठित होने की बात को एक किनारे रखकर, अकेले अकेले कार्य करें। हिंदी सेवा करने के हजार और तरीके है।

मै इतने सालों से चिट्ठाजगत मे हूँ, सभी से मेरा दोस्ताना और अपनापन है। लेकिन आस पास कुछ लोग, मुद्दों पर राजनीति की रोटियां सेक रहे है। इतने दिनो मे कभी भी मेरा दिल नही दुखा जितना आसपास के दिनो मे हुआ है। शायद आप लोगों को पता ना हो, लेकिन मै यहाँ पर यह बात क्लियर कर देना चाहता हूँ कि नारद पर कार्य करने वाले सभी साथी अपनी अपनी पारिवारिक और व्यवसायिक जिम्मेदारियो को निभाते हुए और उनसे टाइम चुराते हुए नारद का कार्य देखते है। उसके बाद भी यदि वे लोग गालियां खाते तो नही चाहिए ऐसा काम। नही खानी हमे गालियां। हिन्दी की सेवा हम हजार तरीके से कर लेंगे, नारद पर ना तो हमारा व्यवसायिक हित है और ना ही हम किसी भी प्रतिफल की इच्छा रखते है, लेकिन हम यह जरुर चाहेंगे कि आप हमारे काम को भले ही मत सराहो, मत तारीफ़ करो, लेकिन गालियां मत दो। हम निर्विकार भाव से हिन्दी सेवा मे लगे हुए है सिर्फ़ इसीलिए यहाँ पर डटे है। इसलिए मेरा निवेदन है कि नारद और टीम नारद को गरियाने मे भाषा की मर्यादा रखें। नारद पर जो भी काम होगा वह नियमानुसार ही होगा, ये मेरा वादा है, पिछला बैन पहला और आखिरी नही होगा, जब भी हमे लगेगा कि कोई साथी, दूसरे साथी के साथ बदतमीजी कर रहा है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने मे देर नही की जाएगी, भले ही वो कोई भी हो। नही चाहिए हम ऐसी भाषा वाले लोग। हिन्दी साहित्यकारों वाली राजनीति हमे यहां पर नही चाहिए।

एक दो साथियों ने नारद से अपने ब्लॉग हटाने की अर्जी दी थी, उनकी अर्जियां हमारे पास पेंडिंग है, अभी नारदमुनि छुट्टी पर है, समय मिलते ही उनपर विचार किया जाएगा, उनको भी पुनर्विचार का वक्त दिया जा रहा है वे दोबारा सोच लें और २० जुलाई तक अपनी अर्जियां वापस ले अथवा हम उन पर विचार करें।

नारद अब एक एग्रीगेटर से ज्यादा सोशल नैटवर्किंग का स्थान बन गया है, इसलिए भाषा की मर्यादा सभी को बनाकर रखनी है, इन सभी मे आपका सहयोग चाहिए। नए एग्रीगेटर आने से इन्टरनैट पर हिन्दी और समृद्द होगी, नए एग्रीगेटर नए पाठक लाएंगे और नए चिट्ठाकार भी, यह हिन्दी के हित मे है। हम चाहेंगे कि और ज्यादा से ज्यादा हिन्दी मे वैब साइट्स आएं, ताकि इन्टरनैट पर हिन्दी अपने सही मुकाम तक पहुँचे।

मेरा एक विशेष निवेदन है कि इस पोस्ट पर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला ना शुरु किया जाए।

पुनश्च : मलेशिया की यात्रा विवरण अगली पोस्ट मे।

28 Responses to “बड़े दिनो बाद”

  1. जीतूजी,
    इतने दिनों के बाद आपकी पोस्ट पढकर बहुत अच्छा लगा । आशा करता हूँ कि आपकी भारत यात्रा मजे में चल रही होगी । पोस्ट पर आरोप प्रत्यारोप नहीं लेकिन एक गुजारिश तो की ही जा सकती है कि आप फ़टाफ़ट अपनी भारतयात्रा के कुछ छायाचित्र सभी चिट्ठाकार बन्धुओं के लिये प्रकाशित करें । आखिर हमें भी तो पता चले कि कैसी चल रही हैं आपकी छुट्टियाँ ।

    अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा ।

  2. कर्मण्ये वाधिकारस्ते, मा फलेसु कदाचन….
    फिर क्या किसी से खुशी और क्या नाराजगी.
    नारद का स्वरूप जननी का है इसलिए उसे सबको स्थान देना चाहिए. मां कभी नाराज होती है बच्चे की गलती पर. हम सब उस दिन का इंतजार करें जब गलती करनेवाला देखते-देखते खत्म हो जाएगा. क्या मैं, क्या वो और क्या कोई? नियति से बड़ा खेल कोई कर सकता है क्या?

  3. सही कहा जीतू भाई, अब ये सब बन्द होना चाहिये, ब्लॉग लेखन किसी वैचारिक, तकनीकी या हास्य-व्यंग्य पर हो तो मजा आता है, बेमतलब की थुक्का-फ़जीहत या जूतमपैजार का क्या मतलब… हो सकता है कि आपकी इस पोस्ट को पढकर “स्वयंभू महान चिठ्ठाकारों” को कुछ अकल आ जाये…। दिक्कत ये होती है कि जब एक बार कोई कीचड़ उछालने लगता है तो उसे सूअर न मानकर हम भी उसी कीचड़ मे लोटने लग जाते हैं और स्थिति बिगड़ जाती है… सबसे मुश्किल काम है “इग्नोर” करना खासकर ललकारे जाने की स्थिति में… और जो लोग नारद को गाली दे रहे हैं, वे “फ़्रस्ट्रेटेड” हैं.. बस और क्या कहूँ…

  4. कालिया तो कहता था कि फ़ोतो शोटो भी हैं…

    वो कब दिखेंगे??

  5. अरे कहां छुट्टियों मा इ सब टेंशन लेके बैठ गए भैय्या , घुमो फ़िरो( नैनसुख लो), खाओ( भौजी की डांट) पियो( जो मिल जाए) बस !!
    इस सब लफ़ड़ा को छुट्टियन के बाद ही सोचना!
    अगली पोस्ट के इंतजार में!
    शुभकामनाएं

  6. you are doing a great job with your team
    and its not fair to write such a big post about all those who are fouling there are few or many who are praising you . some words for them will sweetn the bitterness

  7. ज्ञानदत्त पाण्डॆय on जुलाई 5th, 2007 at 11:54 am

    लेख में मुझे यह पसन्द आया:

    ” पिछला बैन पहला और आखिरी नही होगा, जब भी हमे लगेगा कि कोई साथी, दूसरे साथी के साथ बदतमीजी कर रहा है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने मे देर नही की जाएगी, भले ही वो कोई भी हो। नही चाहिए हम ऐसी भाषा वाले लोग। हिन्दी साहित्यकारों वाली राजनीति हमे यहां पर नही चाहिए।”

    मैं काफी बाद में उपयोग कर्ता बना, पर इस पर कोई पुरनिया सज्जन लिखें कि नारद एग्रीगेटर से ज्यादा सोशल नैटवर्किंग का स्थान कैसे बन पाया? इसपर पहले से लिखा गया हो तो उसका लिंक चाहिये.

  8. ये लिंक देखें जीतू साहब. आपको अपने फ़ैसले पर गर्व होगा. और प्लीज़ इस लिंक को सुरक्षित भी रख लें, यदि भगवान न करे किसी को छह इंच छोटा करने की मूरख कोशिश की जाती है.

  9. माफ़ कीजिए लिंक ये रहा-
    http://bajaar1.blogspot.com/2007/07/blog-post_03.html

  10. जितेन्द्र जी आप अपना मन कडुवा न करें ! और 14 को मोलकर बात कर्त्ये हैं इस बारे में

  11. बच्चा जब कंप्यूटर पर उचक रहा हो तो लिखने की जिद को त्याग देना चाहिए 😉 अत: उपरोक्त टिप्पणी को ऎसे पढें—मिलकर बात करते

  12. आपकी बात पर अमल किया जा जा रहा है।

  13. बहुत दिनों बाद लिक्खै ताऊ, अच्छा लगा पढ़कर। आप इस सब की टेंशन न लो और मौज करो। १९ को मिलते हैं न। 🙂

    @ज्ञानदत्त जी,
    नारद के सोशल नैटवर्किंग का स्थान बनने की कहानी ‘नारद-पुराण’ में है, लिंक यहाँ रहे। 🙂

  14. नारद पर कार्य करने वाले सभी साथी अपनी अपनी पारिवारिक और व्यवसायिक जिम्मेदारियो को निभाते हुए और उनसे टाइम चुराते हुए नारद का कार्य देखते है।

    और घर मे डाँट भी खाते हैं 🙂 🙂

  15. पिछला बैन पहला और आखिरी नही होगा, जब भी हमे लगेगा कि कोई साथी, दूसरे साथी के साथ बदतमीजी कर रहा है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने मे देर नही की जाएगी, भले ही वो कोई भी हो। नही चाहिए हम ऐसी भाषा वाले लोग। हिन्दी साहित्यकारों वाली राजनीति हमे यहां पर नही चाहिए।
    जीतेंद्र, आप इतने तैश मत खाइए। हमने व्‍यक्तिगत रूप से मेल किया था, हमें बाहर कीजिए। नारद की अपनी किटी पार्टी को अपने पास रखिए। आप जैसों की समझ में समाज कभी नहीं आएगा। जितना समझ आता है आपको, उसमें यही लगता है कि समाज का कोई दादा होना चाहिए- जैसे आप खुद को नारद का दादा समझना-कहलाना पसंद करते हैं।

  16. …और… अर्जी वापस लेने की धमकी न दें। हमें आपकी ज़रूरत नहीं। आप जैसों के साथ पंगत में बैठना हमें भी अच्‍छा नहीं लगेगा।

  17. कुवैत मे रहकर हिंदी और हिंदीभाषियों की सच्चाई नही जानी जा सकती है(हिंदी भाषी के अलावा भी , किसी की भी हकीकत देश के बाहर रहने वाले कितना जानते हैं वो नारद की कड़ी कार्यवाही से पता चल जाता है ) और आपके पास जो स्रोत हैं उन्हें सूचनाये कैसे मिलती हैं और कैसे बनती हैं , इसको मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। जीतू जी , नारद के पुष्पक विमान मे बैठकर सतही चीज़े जान लेना और एक अवधारणा बना लेना एक बात है और जमीन पर रहकर काम करना दूसरी बात। खैर आपसे और क्या कहू , आप तो खुद ही पलायन वादी हैं तभी देश छोड़कर बाहर बैठे हुए हैं और देशभक्ति का सिला जमीनी आवाजों को दबाकर दे रहे हैं। लेकिन अगर ये सोचते हैं कि नारद की इस अहमकाना हरकत से मैं भी पलायन वादी बन जाऊंगा और मेरा चिठ्ठा बंद हो जाएगा तो ये सिर्फ नारद की खामख्याली है , और कुछ नही। आप जिस हिंदी की बात कर रहे हैं , जरा इमानदारी से बताइए कि कितने लोग उस हिंदी मे बात करते हैं ? और आप जिस हिंदी की बात कर रहे हैं , जरा बता दीजिए कितने लोग उससे प्रभावित होते हैं ? हाँ , संघ या संघी अगर गालियों (तेल लगाओ डाबर का – %^*& मारो बाबर का , सन ९२ ) मे भी कुछ कहते हैं तो आप जैसे कुछ लोगो का वह नारा बन जाता है । उस पर कोई भी बैन लगाने की बात नही करता । बल्कि उस naare साथ देने वालों के लिए दूसरों की अभिव्यक्ति मुह मे बैन का डंडा डाल kar बंद kar दीं जाती hai। uske baad अगर कोई उन जैसे लोगो से उन्ही की जबान मे बात करता है तो आप उसे बुरा कहते हैं और उसके खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। ये (नारद और उसके (कु)कर्म ) हिंदी की सेवा नही जीतू जी । ये जान बूझ कर पूरी दुनिया से एक ही विचारधारा के लोगों को एक साथ करके इण्टरनेट जैसे माध्यम से फैलायी जा रही साम्प्रदायिक साजिश है , जो मेरे ब्लोग पर बैन लगाने के बाद पूरी दुनिया मे नंगी हो चुकी है। अब ये खेल खुल कर सामने आ गया है । अगर आप हिंदी के अनन्य सेवक या भक्त (जो भी आप अपने आप को कहते हैं ) होते तो आप कम से कम यह तो न लिखते
    एक दो साथियों ने नारद से अपने ब्लॉग हटाने की अर्जी दी थी, उनकी अर्जियां हमारे पास पेंडिंग है, अभी नारदमुनि छुट्टी पर है, समय मिलते ही उनपर विचार किया जाएगा, उनको भी पुनर्विचार का वक्त दिया जा रहा है वे दोबारा सोच लें और २० जुलाई तक अपनी अर्जियां वापस ले अथवा हम उन पर विचार करें।

    इसका क्या अर्थ लगाया जाय ? आप समझते क्या हैं नारद को ? अब वो जमाना गया जीतू जी कि जब नारद इकलौता फीड गेटर था । ये बाजार है और रोज़ लोग आते रहते हैं। न ! न ! ये मत कहियेगा कि आप निष्काम भाव से हिंदी की सेवा कर रहे हैं । विचारो के भी बाजार होते हैं जीतू जी और विचारो की इस जंग मे चुंकि ताकत आपके पास थी और आपने उसका भरपूर उपयोग किया। अगर आप हिंदी के इतने ही अन्य सेवक होते तो ऊपर दीं गई बाते कभी न लिखते , बल्कि ऐसा कोई विचार आपके मन मे आता ही नही । लेकिन क्योंकि आपके मन मे पहले से ही धर्म निरपेक्षता की बात करने वालो के लिए “जहर ” भरा हुआ है , तो हम ये मान लेते हैं कि ये उसी जहर का असर बोल रहा है। कभी कभी मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे मैं इतने जहरीले माहौल मे रह गया और वो भी इतने दिन तक । मुझे बहुत पहले ही नारद से किनारा कर लेना चाहिऐ था। खैर चलिये , देर आये दुरुस्त आये। आपके पास जो दो तीन लोगों की ब्लोग हटाने की अर्ज़िया पडी हुई हैं , उसी मे मेरी भी शामिल कर लीजिये। क्योंकि बेईमानी मुझसे होती नही और गलत बात मैं बर्दाश्त नही करता । छूटते ही गलियां देता हूँ । क्या पता , अभी बजार पर अवैध अतिक्रमण को बैन किया है , कल को बजार पर भी आपके हिसाब से कुछ उल्टा सीधा छप गया तो आप उसपर भी बैन लगा देंगे । और उसके बाद बाक़ी के नारदिये बंदरो की तरह कूद कूद के खौखियाने लगेंगे , कि वो मारा , बहुत अच्छे मारा।

  18. इन बातों से आप लोगों के जीवन में जो दर्द हुआ उसके बारें में हम सब को बता कर आप ने अच्छा किया. परिवार के साथ दर्द बांटने से वह हलका हो जाता है, एवं परिवार के हरेक सदस्य को अपना अपना व्यवहार जांचनेपरखने का एक अवसर भी मिल जाता है

  19. अब जरा इस लिंक पर जा कर एक स्वच्छ सुन्दर परिवार की हरकत देखिए ..
    http://bajaar.blogspot.com/2007/07/blog-post_05.html

  20. लगा था कि कुछ घूमने फिरने का ब्‍योंरा स्‍यौरा मिलेगा- उम्‍मीद से आए पर वही मिला जिसे ईस्‍वामी कहते हैं- कि ट्राल है- तो चलो इसे तो इगनोर किया- अब मौज मजे की बात कहें-

    बाकी बातें दो दिल्‍ली में करेंगे ही।

  21. @अविनाश
    इतना तैश मत खाओ दोस्त। मैने धमकी नही दी, बल्कि धमकी तो आप दे रहे हो। यदि आप यहाँ नही रहना चाहते तो ना सही, जैसी आपकी इच्छा।

    बाकी सभी से माफ़ी कि इतने दिनो बाद आते ही, यह सब लिखा, अगली पोस्ट मौज मस्ती भरी होगी।

  22. इतने दिनो बाद पढ़ कर अच्छा लग रहा है.
    दिल्ली मुलाकात का बेशब्री से इंतजार है.
    हाँ वहाँ हमारा कद 6 इंच कम होता है या कुछ बढ़ जाता है यह देखने वाली बात होगी 🙂
    भ्रमण का विवरण जल्द दें.

  23. अपने व्यवसाय के बाद भी, इस तरह का काम कर पाना मुश्किल है। आप हिन्दी के लिये अच्छा काम कर रहें, करते रहें।
    समाज में हर तरह के लोग हैं। दिल छोटा न करें।

  24. @राहुल
    मित्र तुम्हारे लिए कुछ कहना भी बेकार है, तुम्हारी जितनी समझ है तुम उतना ही बोलोगे। हम लोगों ने जो किया वो इतिहास था, अब तुम्हारी बारी थी, जो तुमने किया वो भी लोग याद रखेंगे, लेकिन होगा, बस फर्क सिर्फ़ इतना होगा कि तुम्हारा किया शर्मनाक ही कहलाएगा।

    तुम्हारे चिट्ठे पर गन्दी टिप्पणियां तुमको माडरेट करनी चाहिए थी, ऐसी टिप्पणियां शर्मनाक है, ये जितने भी की है, वो मानसिक रुप से दिवालिया हो चुका है।

  25. एक गैरजरूरी पोस्ट 🙂 आगे लिखो।

  26. bahar bhaag gaye logo kee samajh shayad bharat aur hindi ke baare me kuch jyada hi badh jaati hai. tabhi to log desh chorkar chale jaate hain. agar bahar gaye logo kee samajh aisee hi hai ya jitu bhaai , aapke jaisee hai to main na-samjh hi achcha hoon. kam se kam jhoothe sapno me to nahi jeeta. aapko fens ka apna kinara mubarak ho.

  27. Please, यह सब बन्द करिए…

    इन उछलकुद मचाने वालों के लिए अब भडास नामक समाज उपयोगी स्थल है ना! कृपया वहीं से अपना सामाजिक उत्तर दायित्व निभाइए.

  28. aur benagani bandhu to apna sara samajik dayitv gujrat me rahkar modi ko mansik khurak dekar nibha to rahe hi hain. baaki inki uchal kood se agar koi musalmaan maaraa jaataa hai to isme in becharo ka kya dosh !!