मलेशिया : सचमुच बहुत सुन्दर

साथियो,
अभी दो दिन पहले ही कुवैत लौटा हूँ, अभी फैमिली इन्डिया मे है, इसलिए बैचलर लाइफ़ का मजा ले रहा हूँ, यानि आफिस के साथ साथ घर और किचेन का भी काम देख रहा हूँ। वादे के मुताबिक मै पेश हूँ अपनी मलेशिया, सिंगापुर, इन्डोनेशिया और श्रीलंका यात्रा के विवरण के साथ। अब चूंकि यात्रा कई दिनो की थी, इसलिए पोस्ट भी टुकड़ो टुकड़ो मे ही लिखी जाएगी, उम्मीद है आप इसका बुरा नही मानेंगे। तो जनाब आइए शुरु करते है, यात्रा की तैयारियों के साथ। इस साल हमारी कम्पनी ने छुट्टियां देने मे बहुत ढिलाई बरती, आप कहेंगे कि कम्पनी ने बहुत अच्छा काम किया, नही जी, कम्पनी के ऊपर बड़ा भारी दबाव था, पर्यावरण और ऊर्जा संचयन ।(Environment and Energy Saving) मंत्रालय का, जिसने एक सामूहिक आदेश जारी करके कहा कि किसी भी स्टाफ़ को उसकी मन मुताबिक छुट्टियां दो, ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा समय कुवैत से बाहर रहे तो कुछ एनर्जी बचायी जा सके। लेकिन कम्पनी ने यहाँ भी डांडी मार दी, हमारी लम्बी पेन्डिंग छुट्टियों को दो हिस्सों मे बाँट दिया, एक तिहाई हमे जून-जुलाई मे खर्च करना है बाकी का दिसम्बर में। अब हम ठहरे संतोषी आदमी, जो भी मिला खुशी से स्वीकार किया और प्लान बना डाला सुदूर पूर्व की यात्रा का लौटते समय भारत की ट्रिप भी बनायी गयी। इसमे अमितवे की भेजी किताब ने बहुत काम किया। थोड़ी बहुत रिसर्च के बाद हमने श्रीलंकन एयरवेज से टिकट और एसओटीसी से अपना ११ दिन का सुदूर पूर्व का का टूर बुक करा दिया। वीजा की औपचारिकताए पूरे करते करते शुरुवाती दिन निकल गए, देखते ही देखते यात्रा पर निकलने की तारीख सामने आ गयी।

श्रीलंकन एयरवेज के विमान काफी आरामदायक है और सर्विस भी काफी अच्छी है। ना ना, ये प्रायोजित लेख नही है, ना ही उन्होने हमे कुछ माल ताल दिया, अलबत्ता हमे पिला पिला कर टुन्न जरुर कर दिया। हम जहाज मे बैठते ही टुन्न होने की कवायद मे जुट गए थे। अन्दर पहुँचते ही हमने खूबसूरत एयरहोस्टेज से सबसे पहले स्क्रूड्राइवर की डिमान्ड कर दी, बीबी जी ने कोहनी मारी, बोली अभी कुवैत से निकले भी नही, और तुम शुरु हो गए, एयरहोस्टेज मुस्करायी और समझ गयी, कुवैत के ड्राइ एरिया का मारा लगता है, इसलिए झट से एक नही दो दो स्क्रूड्राइवर कॉकटेल बना लायी। अब ये स्क्रूड्राइवर क्या होता है ये उड़नतश्तरी वाले भाई समीर लाल बताएंगे, बताएंगे क्या जी, दिखाएंगे हमारे फूड ब्लॉग पर, है ना समीर भाई? खैर जी, हमने एक को तो गटाक से उदरस्थ किया और दूसरे को सामने रख लिया। अब कहते है ना, हवाई जहाज मे लोग अपनी सीट का खाना पीना कम और दूसरे की सीट का ज्यादा देखते है। कतार की दूसरी तरफ़ बैठा बन्दा लगातार हमारे गिलास की तरफ़ झांके जा रहा था, उससे रहा नही गया, पूछ ही लिया, भाईसाहब, ये स्क्रूड्राइवर क्या होता है? हमने कहा, कुछ नही जी, मौसम्मी का जूस होता है, हमारी देखादेखी उन्होने भी एयरहोस्टेज को आदेश किया और उन जनाब को भी स्क्रूड्राइवर मिला, लेकिन उन पर ये ’पेचकस’ बहुत भारी पड़ा, वो बेचारे थोड़ी देर मे ही सो गए, हमने भी चैन की सांस ली, कि चलो दूसरी कॉकटेल के बारे मे पूछने वाला तो नही रहा। पीने पिलाने मे हम स्कॉच से ज्यादा कॉकटेल पसन्द करते है, बीयर और वाइन का शौंक तो खैर जगजाहिर है।

कुवैत से कोलम्बो का सफ़र यूं ही पीते पाते निकल गया, सुबह सबेरे हमारा जहाज कोलम्बो के भंडारनायके एयरपोर्ट पर उतरा, अच्छा खासा अन्धेरा था इसलिए बाहर से एयरपोर्ट का जायजा ठीक से नही लिया जा सका। हमारी अगली फ़्लाइट एक घन्टे बाद थी, लेकिन लैंडिंग करने और दूसरे गेट तक पहुँचने मे समय निकल गया, भागते भागते दूसरी फ़्लाइट तक पहुँचे। तब तक बाहर उजाला फैल चुका था। कोलम्बो एयरपोर्ट के आसपास काफी हरियाली है। ये एयरपोर्ट कोलम्बो के काफी दूर एक दूसरे ही कस्बे निगम्बो मे बसा है। आसपास इतनी हरियाली है बस जी, जी खुश हो गया। हमारी फ़्लाइट जैसे ही उड़ी, निगम्बो का शानदार नज़ारा दिखा, समुन्दर के बीच मे बसा एक विशालकाय द्वीप, यदि आपको कभी मौका मिले तो जरुर विजिट करिएगा।
श्रीलंका सच मे काफी सुन्दर जगह है, खैर श्रीलंका के बारे मे आगे के लेख मे बात करेंगे।

हमारी फ़्लाइट मलेशिया की राजधानी क्वालालमपुर जिसे संक्षेप मे KL कहा जाता है मे उतरी। हमने तो बहुत सुन रखा था कि मलेशिया मे बहुत गर्मी होगी, काफी उमस होगी, लेकिन हमारे उतरते ही बारिश ने आगे बढकर हमारा स्वागत किया। गर्मी और उमस का तो कंही नामोनिशान तक नही था। वायुयान की खिड़की से एयरपोर्ट बहुत दु:खी दिख रहा था, लेकिन जैसे ही हमने अन्दर प्रवेश किया तो जनाब, इतना अच्छा एयरपोर्ट कि पूछो मत। किसी भी एयरपोर्ट के अन्दर इतनी हरियाली मैने कभी नही देखी। ड्यूटी फ्री शापिंग का बहुत बड़ा एरिया, इतना साफ़ सुथरा कि दुबई एयरपोर्ट भी उसके सामने शरमा जाए। एयरपोर्ट काफी बड़ा है, और कई कई बिल्डिंग (शेड) मे बँटा है, लेकिन हर शेड से दूसरे शेड मे जाने के लिए ट्रेन है। पूरे एयरपोर्ट पर जगह जगह सहायता के लिए लोग खड़े हुए थे। हरियाली को भी भरपूर स्थान दिया गया था। एयरपोर्ट बिल्डिंग मे एशिया की झलक दिखायी पड़ती है। वो किसी ने कहा है ना, फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन। अपन तो दिल्ली एयरपोर्ट से जैसे ही बाहर निकलते तो लगता है किसी भूतहा खंडहर से बाहर निकल रहे है। जबकि KL का एयरपोर्ट सही मायने मे विश्वस्तरीय है। ऐसा नही है कि हमने बाकी एयरपोर्ट नही देखे, हमे हीथ्रो, फ़्रेंकफर्ट और दुबई एयरपोर्ट सबसे ज्यादा पसन्द है, अमरीका की तरफ़ जाना नही हुआ, इसलिए वहाँ का नही पता। साफ़ सफ़ाई हो या साज सज्जा, ड्यूटी फ्री शाप हो या फूड कोर्ट, मलेशिया का एयरपोर्ट किसी भी मायने मे इन तीनो एयरपोर्ट के कमतर नही था।
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इमीग्रेशन की बिल्डिंग एराइवल लाउन्ज से दूर है, वहाँ तक जाने के लिए हमे ट्रेन मे जाना था, जो लगभग पाँच से सात मिनट लेती है, इसी से आप समझ लीजिए कि एयरपोर्ट कितना बड़ा रहा होगा। इमीग्रेशन के लिए भी अलग अलग लाइने थी, फैमिली के लिए अलग, वर्कर वाले वीजा वालों के लिए अलग, टूरिस्ट के लिए अलग, बैचलर्स के लिए अलग। लगभग ६० काउन्टार तो रहे ही होंगे, बाकी हमने गिनने की कोशिश ही नही की, ऊ का है न कि हमारी गणित बहुत कमजोर थी, मास्साब हमारी पढाई अधर मे छोड़कर यमुनानगर चले गए थे ना इसलिए। इमीग्रेशन से बाहर निकलते ही, एसओटीसी वाले प्रतिनिधि ने स्वागत किया, वो हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे, हमने थोड़े से पैसे खुल्ले कराए,काहे? अमां कोल्डड्रिंक के लिए आपसे उधार मांगते का? ड्राइवर भाईसाहब गाड़ी भी बहुत शानदार लाए थे, टोएटा की बड़ी सी वैन थी, तबियत खुश हो गयी, नही तो दिल्ली एयरपोर्ट के बाहर, सरदारजी की खटारा एम्बेसटर वाली टैक्सी मे बैठते बैठते उकता गए थे। ये जनाब, ड्राइवर मलेशिया के ही रहने वाले थे, और हम ठहरे बातूनी, तो हम आगे की सीट पर इनसे बतियाने को लपक लिए। बाकी की फैमिली, पीछे की सीटों पर चौड़ी हो गयी। हमने ड्राइवर से पूछा होटल पहुँचने मे कित्ती देर लगेगी? बोले पैतालीस मिनट से लेकर एक घन्टा तक। हम हैरान रह गए, कि भाई इत्ती दूर एयरपोर्ट काहे बनाए है। बन्दा धीरे से मुस्करा दिया और गाड़ी KL की तरफ़ फुर्ती से दौड़ने लगी। सड़के साफ़ सुथरी थी, बाहर ताजी ताजी बारिश की सौंधी सी महक थी, हमने तो बीबीजी बात को अनसुना करते हुए, खिड़की खोल ली और बाहर की ठन्डी हवा का आनन्द लेते रहे। हमने ड्राइवर से पूछा कि भाई, काहे इत्ती दूर एयरपोर्ट बनाया गया है तो उसने बताया कि KL मे पाँच एयरपोर्ट है, दो शहर के अन्दर है, दो शहर के बाहर, और एक अभी नवीनीकरण के दौर मे है। ये वाला एयरपोर्ट चार शहरों के बीचो बीच है। क्वालालमपुर शहर के अन्दर वाला एक एयरपोर्ट मिलेट्री के पास है और दूसरा शौंकिया उड़ान करने वाले लोगो के लिए (इस बारे मे आगे डिटेल मे बताएंगे, जहाँ हमने भी छोटा हवाई जहाज उड़ाया)। बाहर हरियाली और साफ़ सुथरी सड़के देखकर दिल बाग बाग हो रहा था। वैसे तो हमारे कुवैत मे भी काफी हरियाली है और सड़के भी साफ़ सुथरी है, लेकिन वो कहते है ना घर की मुर्गी दाल बराबर होती है, इसलिए हम बाहर की दाल को मुर्गी की नजर से देख रहे थे।

सड़कों पर ट्रेफिक नाममात्र का था, यह इसलिए था क्योंकि शुक्रवार का दिन था, यहाँ कुछ जगह शुक्रवार को और कुछ जगह रविवार को मार्केट बन्द रहता है। KL तक पहुँचने के लिए हमे एक और शहर पुतराज्या को पार करना पड़ा, जो मलेशिया की राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र है। सारे सरकारी दफ़्तर यहीं पर है, पुतराज्या एक प्लान्ड सिटी है। क्वालालम्पुर पहुँचने से पहले हमें टोलटैक्स वाले ब्रिज से गुजरना पड़ा, शहर मे ट्रेफिक काफी दिखा, यहाँ पर चार पहिया और दुपहिया वाहन बहुतायत मे दिखे। और हाँ एक अजीब से बात दिखी, दोपहिया वाहन दिन मे भी अपनी हैडलाइट जलाए हुए थे। ड्राइवर ने बताया कि यह ट्रेफिक नियमो के अनुसार जरुरी है। अजीब सा लगा, लेकिन भाई नियम है तो है, हम और आप क्या कर सकते है।

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लगभग ४५ मिनट मे हमारी कार होटल तक पहुँच, जहाँ मलेशिया के ट्रेडीशनल तरीके से हमारा स्वागत हुआ और वैलकम ड्रिंक पेश की गयी। मलेशिया एक मुस्लिम देश है, लेकिन दकियानूसी टाइप का नही बहुत ही प्रोग्रेसिव। होटल मे हमारे टूर मैनेजर मिले जिन्होने हमे मलेशिया के बारे मे थोड़ा बताया और हमारे रुम की चाभी…..ना ना कार्ड हमे दिया। होटल मे लिफ़्ट से लेकर कमरे तक, स्वीमिंग पूल से लेकर जिम तक, हर जगह कार्ड चलता है। ना चाभी जा झंझट ना सम्भालने की खिचखिच, दो कार्ड मिले थे, एक तो हमने अपने पर्स के हवाले किया और निकल पड़े अपने उन्नीसवी मंजिल वाले सुइट की तरफ़। कमरे की खिड़की से क्वालालमपुर के मशहूर ट्विन टावर दिख रहे थे। सफ़र की थकान काफी थी, इसलिए शावर लेने के बाद मैडम और बिटिया तो बिस्तर मे दुबक गए, लेकिन हम यहाँ सोने थोड़े ही आए थे। निकाली अपनी हवाई चप्पल/सैन्डल, टांगा बैकपैक और निकल शहर के सफ़र पर। मलेशिया, नाम सुनते ही एक ऐसे देश की याद आती है जो बेहद गर्म देश हुआ करता था और जो रबड़ और टिन के एक्सपोर्ट मे अव्वल था। तीस साल पहले तक इस देश को कोई टूरिस्ट स्थल नही मानता था, यकायक ये एक ऐसे देश के रुप मे उभरा जो एशिया की सही तस्वीर पेश करता है। मलेशिया का यह बदलाव वाकई मे काबिले तारीफ़ है। हम इन छोटे देशों से सबक क्यों नही लेते? मलेशिया मे मुख्यता तीन तरह की जातियां रहती है, मलय, चीनी और हिन्दू, मुस्लिम देश होने के बावजूद भी एक दूसरे के धर्म का बहुत सम्मान किया जाता है। आज तक इन जातियों मे कभी भी लड़ाई झगड़ा नही हुआ। इस बारे मे बात करते है लेकिन अगली पोस्ट मे तब तक इन्तज़ार करिए…..और पढते रहिए आपका अपना पन्ना।

अभी जारी है अगले अंक मे………..

14 Responses to “मलेशिया : सचमुच बहुत सुन्दर”

  1. ज़रा जल्दी-जल्दी लिखिएगा. हमें जानने की बेताबी रहेगी.

  2. विवरण रोचक है, अन्दाज़ और भाषा भी सुपाच्य! प्रतीक्षा है तो इस श्रृंखला की अन्य कड़ियों की – और साथ ही वर्णन की पुष्टि करते सजीव चित्रों की भी।

  3. बढ़िया विवरण, शुक्रिया हमें शाब्दिक रुप में मलेशिया घुमाने का, प्रतीक्षा है अगली किश्तों की!

  4. बहुत बेहतरीन विवरण. बाकि भी जल्दी जल्दी लाओ.

    अब आदेश हुआ तो आपको पिलवाते है एक बेहतरीन स्क्रू ड्राईवर-अरे, एयर होस्टेस क्या बनायेगी हम जैसी बनाते हैं, बस पेश करने में अदाकारी और काया के मारे १९ पडेगी बाकि स्वाद में तो २५. 🙂

  5. पहली लैन पढ़ कर सोचा कि कौन सा बोल्ट ढीला हो गया जो प्लेन पर सवार होते ही सक्रूड्राईवर की जरूरत आन पड़ी। ये मदिरा सेवन वालों का अच्छा है यार इशारों इशारों में समझ जाते हैं 🙂

  6. बढ़िया शुरुआत की है. तस्वीर चिपकाने में कंजूसी नहीं करें. यात्रा-वृतांत तस्वीरों के चलते कुछ ज़्यादा ही रोचक हो जाता है.

  7. हे हे हम भी आपके स‌्क्रूड्राइवर को नहीं स‌मझ पाए थे।

    बढ़िया विवरण, अगली कड़ी का इंतजार है। 😛

  8. वाह श्रीमान जी, बेहद रोचक प्रस्तुतीकरण । लेख पढते-2 पक्का इरादा कर लिया हैं कि जीवन में एक बार मलेशिया घूमने का आनंद अवश्य लेंगे । आपके यात्रा वृतांत ही हमारे पर्यटक गाईड होंगे इसलिये यात्रा वृतांत संक्षेप में मत लिखना । एक बात और जानना चाहूंगा कि 30 सालों में इतनी उन्नति ?

  9. बढिया. आगे का इंतजार है.

  10. स्क्रूडायवर !!
    कमाल के नाम है. 🙂

    विवरण जल्दी जल्दी देते रहें.

  11. डा. रमा द्विवेदी on जुलाई 23rd, 2007 at 8:48 am

    बहुत ही सुन्दर और रोचक वर्णन….’स्क्रूड्राइवर’ 🙂 नई जानकारी से ज्ञान वृद्धि के लिए शुक्रिया…अगली कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी…

  12. सही है। आगे लिखा जाये। स्क्रूड्राइवर का भी उपयोग किया जा सकता है। नट-बोल्ट जहां के ढालें हों वहां के कसने में।

  13. बहुत बढिया!!! स्क्रू ड्राइवर ने अपुन के सारे स्क्रू ठीक कर दिए…आपके शब्द चित्रों से मलेशिया यात्रा का मजा आ गया, जल्दी से आगे की यात्रा भी करा दीजिए, please…

  14. जितेन्द्र चौधरी। आपको काम धाम नही है ? क्यूं वक्त बर्बाद करते हैं दूसरों का ? अब आप मलेसिया घूमे या लंका सारा आदमी को बाटने का क्या मतलब है ? जहाज मी गया लिखाने क्या क्य मतलब है ?
    फाल्तू बाट मत कारीए।