कहीं दूर जब दिन ढल जाए…

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चित्र सौजन्य :(फ़्लिकर से)

कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए,
साँझ की दुलहन बदन चुराए, चुपके से आए..
मेरे ख़यालों के आँगन में,
कोई सपनों के, दीप जलाए, दीप जलाए..

कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए,
साँझ की दुलहन बदन चुराए, चुपके से आए..

कभी यूहीं जब हुईं बोझल साँसें,
भर आईं बैठे-बैठे, जब यूहीं आँख़ें..
तभी मचलके, प्‍यार से चलके,
छुए कोई मुझे, पर नज़र ना आए, नज़र ना आए..

कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए..
साँझ की दुलहन बदन चुराए, चुपके से आए..

कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते,
कहीं पे निकल आएँ जनमों के नाते..
है मीठी उलझन, बैरी अपना मन,
अपना ही होके सहे, दर्द पराए, दर्द पराए..

कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए..
साँझ की दुलहन बदन चुराए, चुपके से आए..
मेरे ख़यालों के आँगन में,
कोई सपनों के, दीप जलाए, दीप जलाए..

फिल्म : आनंद (1970)
गायक : मुकेश

मुझे यह गीत बहुत अच्छा लगता है, अक्सर जब कभी अकेला होता हूँ तो इसे सुनना पसन्द करता हूँ। कभी कभी यदि किसी सूर्यास्त के वक्त, समुंदर के किनारे टहलने जाता हूँ तो बेसाख्ता ही ये गीत गुनगुनाने लगता हूँ। आप भी इसे सुनिए, यदि आपको इसका वीडियो देखना है तो नीचे क्लिक करिए:

13 Responses to “कहीं दूर जब दिन ढल जाए…”

  1. भइया गाना तो अभी सुनते हैं पर आज आपके ही ब्लॉग से पता चला कि याहू वीडियो भी आ गया है।

    बकिया गाना अच्छा है, कभी पुरानी यादें वगैरा आ रही हों तो गुनगुनाना अच्छा लगता है। 🙂

  2. अरे ऊपर वाली टिप्पणी पर मेरी फोटो भी आ गई। लगता है वर्डप्रैस ने ग्रावतार इण्टीग्रेट कर दिया है। अमित सुन रहे हो न?

  3. जीतू भाई मै तो किसी दिन आपकी सभी फोटो चुरा ही लूंगी…आज भी बेहद खूबसूरत फोटो के साथ मेरा पसंदीदा गीत है…बहुत अच्छा लगा…:)

  4. मीनाक्षी on अक्तुबर 28th, 2007 at 2:21 pm

    आपके बारे मे पढा है लेकिन आज आपकी पसंद का यह गीत सुनकर उंगलियाँ भी थिरकने लगी टिप्पणी देने को ..

  5. यह गीत मुझे भी बहुत प्रिय है मित्र।

  6. ये मेरा भी मनपसन्द गीत है,
    विडियो दिखाने के लिये धन्यवाद।

    श्रीश के लिये:

    १. याहू विडियोज मै फ़रवरी २००७ से प्रयोग कर रहा हूँ।
    २.वर्डप्रेस ने अवतार या आपको तसवीर लगाने/दिखाने की सुविधा अप्रैल या मई से ही दे रखी है।
    🙂 🙂

  7. कृपया शीर्षक मे को से बदल दें।
    धन्यवाद।

  8. “कंही” को “कहीं” से ।

  9. सभी मित्रों का टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
    इस गीत के बारें मे हम सबकी पसंद कितनी मिलती है।
    @शानू, अरे भई चुराते तो उसे हो जहाँ पर ताला लगा हो, आप जो चाहे वो फोटो ले लीजिए, अलबत्ता मेरे को बताएंगे तो मै आपको ओरिजनल साइज (हाई रिसोल्यूशन) मे प्रदान करा दूंगा। BTW ये ऊपर वाला फोटो मेरे द्वारा खींचा नही है।

    @मीनाक्षी, आपका स्वागत है, उम्मीद है ये आप लगातार टिप्पणी करती रहेंगी।
    @मिसिरा जी, भूल सुधार कर दिया गया है, लगातार टिपियाते रहिए। और हाँ दोनो सेवाएं कोई नयी नही है, याहू वीडियो काफी समय से काम कर रहा है। वैसे भी हमने सबसे पहले, सबसे तेज का क्लेम नही ठोका है, ये सिर्फ़ सारी जनता की जानकारी के लिए लिखा है, सनद रहे और वक्त जरुरत काम आए।

  10. यह गीत मुझे भी बहुत प्रिय है .

    पर इसे एक समय में एकाधिक बार नहीं सुनना चाहिए . गौधूलि वेला में किसी पराई जगह पर अपने अकेलेपन में इसे सुनने से एक अज़ीब किस्म का अवसाद घेर लेता है . यह नश्वर संसार पराया-पराया सा लगने लगता है और कुछ पारलौकिक किस्म के खयाल मन में आने लगते हैं .

    अच्छा संगीत उदास क्यों करता है ? मन रोने-रोने जैसा क्यों होने लगता है ?

  11. पहले तो मुझे लगा कि अब कविता करने लगे हो..बाद में स्थितियाँ साफ हुई. 🙂

  12. apna blog kaise kholte hai bataye

  13. गजब हो गया भाई. अभी मैं यही गीत गुऩगुनाते हुए ब्लाग खोल ही रहा था कि आपके ब्लाग पर यह दीख भी गया.

    धन्यवाद
    अतुल