मौत का मंजर हर तरफ़

बीते दिनो पाकिस्तान के नियन्त्रण वाले कश्मीर और भारतीय नियन्त्रण वाले जम्मू कश्मीर मे भयानक भूकम्प आया, जिसमे लगभग ४०,००० लोग मारे गये और लाखों लोग बेघर हो गये। क्या आपने कभी ध्यान दिया है, स्थान बदल जाते है, त्रासदी बदल जाती है, लोग बदल जाते है, लेकिन लोगों के चेहरे पर दिखता दर्द वही रहता है। अपनो को खोने का गम वही रहता है।क्या सूनामी, क्या कैटरीना और क्या कश्मीर। अपने देश मे ही देखें तो लातूर, गुजरात,उत्तरांचल का भूकम्प क्या कम था जो प्रकृति ने यह भयावह रुप दिखाया। इस त्रासदी ने सीमा पर बसे कस्बों पर सबसे ज्यादा कहर बरपाया है। सीमा पर बसे गाँव जिसमे एक भाई सीमा के इस तरफ़ है तो दूसरा सरहद के उस पार।कंही नदियां नाले सीमा बनाते है तो कंही ऊँचे पहाड़ और कंही कंटीली बाड़। कई सालों तो दोनो तरफ़ के परिवार एक तरफ़ से मिलने से तरसते रहे, बातचीत तक भी नही हो सकती थी, लेकिन पिछले दिनो शुरु हुई श्रीनगर मुजफ़्फ़राबाद बस सेवा ने बिछड़े दिलो और परिवारो को मिलाया। ना जाने कितनो ने बरसो बाद अपने परिचितों को देखा, घाटी मे अमन चैन का एक नया अध्याय शुरु हुआ।लेकिन कुदरत के इस भयानक रुप ने फ़िर इन परिवारों को उजाड़ दिया है। मुजफ़्फ़राबाद जो सरहद पार का श्रीनगर कहलाता है, पूरी तरह से बरबाद हो गया है। सबसे ज्यादा जान माल का नुकसान मुजफ़्फ़राबाद को पहुँचा है। सबसे ज्यादा दु:ख तो इस बात का है मरने वालों मे बच्चों की तादाद सबसे ज्यादा है। स्कूल के स्कूल इस भूकम्प मे ढह गये, और सैकड़ो हजारो स्कूली छात्र छात्राये इस भूकम्प मे गुजर गये। मुजफ़्फ़राबाद मे शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जिसने इस त्रासदी को ना झेला हो। अभी भी कई लोग दूरदराज के इलाको मे फ़ंसे हुए है और मौसम फ़िर खराब हो चला है। ऐसे कई इलाके है जहाँ पाकिस्तान की तरफ़ से पहुँचने मे कई कई दिन लग सकते है और जहाँ से भारत की तरह घन्टों मे पहुँचा जा सकता है।

इस संकट की घड़ी मे भारत ने एक अच्छे पड़ोसी होने का फ़र्ज निभाते हुए सीमा पार जाकर पीडितो की मदद करने का प्रस्ताव किया। जिसे बहुत ही सीमित रुप मे स्वीकार किया गया। सवाल ये है, क्या इस त्रासदी के वक्त मे दोनो देशो की सीमाये (कुछ सीमित समय के लिये) खोल दी जानी चाहिये? इसके समर्थन और विरोध मे काफ़ी मत है।

विरोध करने वाले बोलते है।यह एक बहुत ही जोखिम भरा और साहसपूर्ण कदम होगा। इससे आंतकवादियों को सीमा पार करने मे आसानी होगी और जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ जायेगा।लेकिन क्या आतंकवाद के डर से हम मरते लोगों को ना बचायें? वैसे भी सीमा पार आतंकवादियों के लिये कोई भी सीमा बेमानी है वे घाटी मे घुसने के लिये कोई ना कोई रास्ता तो तलाश ही लेते है।यह एक मानवीय कार्य होगा और इससे लोगो को लोगो से जोड़ने मे मदद मिलेगी।

इसका समर्थन वालों मे प्रमुख पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री सरदार सिकंदर हयात ख़ान ने पाकिस्तान सरकार से कहा है कि भूकंप के इस मुश्किल समय में भारत प्रशासित कश्मीर से लगी सीमा खोलने के बारे में अगर कोई शंका है तो उसे छोड़कर सीमा खोल दी जाए।”

इस काम में थोड़ी हिम्मत की बात है, पहल करने की बात है और इन्हीं दिनों ये काम करने की बात है कि अगर हम लोगों को इजाज़त दें एक दूसरे की मदद करने की -सिकंदर हयात ख़ान, प्रधानमंत्री, पाकिस्तानी कश्मीर

इधर पीडीपी की प्रेसीडेन्ट महबूबा मुफ़्ती भी इसका समर्थन करती है महबूबा मुफ़्ती का कहना था कि वह उड़कर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में पहुँचना चाहती हैं. उन्होंने कहा,

“कोई रास्ता बताइए किस तरह आप अपनी पाकिस्तान की सरकार को समझा सकते हैं. हम भी कोशिश करेंगे भारत सरकार से बात करने की जिससे इस मुश्किल के वक़्त एक दूसरे की मदद की जा सके.”

आपका क्या कहना है इस बारे में?

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