समयाभाव और नारद की जिम्मेदारी
आज दिल व्यथित है, बहुत ज्यादा। कुछ चिट्ठेकारों द्वारा नारद संचालकों की निन्दा किए जाने और अनर्गल आरोप लगाने के बाद और कुछ लोगों द्वारा उसको बढावा दिए जाने के बाद। आज मै आत्मचिन्तन करने पर मजबूर हो गया हूँ, कि आखिर हम इतना सब किसके लिए कर रहे है, ऐसे लोगों के लिए, जिन्हे इतनी समझ नही कि वे अपनी मनमानी ना होने पर, किसी की भी बेइज्जती करने से ना चूकें या उनके लिए जो इन लोगों को परोक्ष रुप से उकसा रहे है या फिर उनके लिए जो मूकदर्शक बने सब कुछ देख रहे है। सवाल तो कई है, लेकिन जवाब अभी नही मिल सके है। ये खुला पत्र बहुत बेतरतीब लिख रहा हूँ, शायद मै शब्द ही नही ढूंढ पा रहा हूँ।
हमने जब नारद शुरु किया था तब लोगों ने विश्वास की भावना थी, लोगो ने काम करने की लगन थी, एक दूसरे की इज्जत थी और सबसे बड़ी बात आपसी समझ थी। किसी भी मुद्दे पर हम खुलकर सामने आते थे। कई बातों पर हम सहमत नही भी होते, लेकिन सामूहिक बात पर हमेशा एक दूसरे का साथ देते। नारद की साइट बनाकर और सफलतापूर्वक चलाकर, हमने दिखा दिया कि हाँ ऐसे सामूहिक प्रोजेक्ट भी सफ़ल हो सकते है। अपने दिन का चैन और रातों की नींद, घर परिवार की लानते पाकर भी टीम नारद ने इस प्रोजेक्ट को बनाया। क्या यह साइट बनाने मे किसी एक व्यक्ति या टीम का हित था?
नारद हमेशा सही निर्णय करे ये सम्भव नही। एक अकेले व्यक्ति का निर्णय कभी कभी गलत भी हो सकता है, इसी वजह से मै हमेशा सामूहिकता का पक्षधर रहा हूँ। इसी वजह से मै निर्णयों मे सभी को शामिल करने की वकालत करता रहा हूँ। हमने कोशिश की भी। नारद के निर्णयों से कोई जरुरी नही कि नारद सभी सहमत हो, लेकिन यदि आलोचना की भी एक सीमा होती है। और पक्षपात का आरोप तो कतई सहन नही किया जाएगा।
आज के माहौल मे मुझे नही लगता कि सामूहिकता नाम की कोई चीज बची है। हर व्यक्ति के मन मे जो आता है बोल देता है, बिना कुछ आगा पीछा सोचे। मेरे विचार से, अपनी निजी व्यस्तताओं के बावजूद, नारद पर मैने सबसे बहुत ज्यादा समय दिया है। लेकिन इन सब बातों को नए लोगों को कोई सरोकार नही। हमने अपना काम कर दिया है, आगे भविष्य के कर्णधार आकर दिखाए कि उनमे कितना माद्दा है।
आज मै बहुत गम्भीरता पूर्वक नारद और अक्षरग्राम से सम्बंधित दूसरे प्रोजेक्ट्स से हटने की सोच रहा हूँ।
आत्म मंथन जारी है…….जल्द ही किसी निर्णय पर पहुँचता हूँ।
ओह ! यह क्या कर रहे हैं आप। ज़रा थमिये।
आत्म मंथन के बाद दोगुनी ऊर्जा के साथ लौटिए। अपनी बात आपने चिट्ठे पर लिख दी है शायद लोग समझ सकेंगे।
एक बहस इस पर भी हो जानी चाहिए.
लड़ने भीड़ने में मैं भी कभी पीछे नहीं रहा, मगर अनर्गल प्रलाप सहन नहीं होता.
आपकी यह पोस्ट पढ़कर दुख हुआ और आपके दुख का अंदाज़ा भी .
मेरे मन में आपकी छवि एक सच्चे और उत्साही इंसान की रही है . मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप गलती नहीं कर सकते पर आपमें हमेशा उस गलती को सुधारने का साहस रहा है.
पर यह गलती — नारद और अक्षरग्राम से हटने की — यदि आपने की तो फिर सुधार नहीं हो सकेगा यह याद रखियेगा .
कुछ लोग यदि नारद के संचालकों की निन्दा कर रहे हैं तो उससे भी बड़ी तादात में लोग नारद के संचालकों पर ‘अनकंडीशनल’ भरोसा व्यक्त कर रहे हैं यह तथ्य मत भूलिएगा .
बड़े और दीर्घकालिक लक्ष्य पर ध्यान दीजिए, तात्कालिक आलोचनाओं पर नहीं. मित्रों पर भरोसा कीजिए. जल्दबाज़ी में किसी गलत फ़ैसले पर मत पहुंच जाइएगा. आपका यह फ़ैसला अब सिर्फ़ एक निजी फ़ैसला नहीं होगा इसके दूरगामी परिणाम होंगे . समर्थन में हाथ उठाए खड़ा हूं .
जीतू भैया.. आप का धैर्य और सहिष्णुता नारद की शक्ति है.. यदि आप पीछे हट गये तो बात बदल जाएगी.. मेरा निवेदन है आप बनें रहें.. किसी एक के प्रलाप और आक्षेप को इतना महत्व मत दें.. दूसरों के आग्रह पर भी विचार करें..
यदि इशारा मेरे द्वारा की गई टिप्पणियों के संदर्भ में है, तो मेरे आक्षेप नारद सेवा के संदर्भ में नहीं, खुद को नारद का पर्याय बताने वाले और अपनी चूकों की जवाबदेही लेने के बजाय नारद की सत्ता का अहंकार जताने वालों पर है। छोड़ कर कौन जा रहा है, नारद को? वह तो केवल यह जानने के लिए कहा गया था कि ये किस हद तक जा सकते हैं मोहल्ले के पक्ष में। और वह अच्छी तरह से पता चल गया है। ख़ैर, विस्तार से अपनी पोस्ट में समय मिलते ही लिखूंगा। जीतू भाई शहीदाना अंदाज में पोस्ट किए हैं, पहले जितनी सहानुभूति बटोरना चाहें, बटोर लें।
हमें तुमसे इस तरह की पोस्ट लिखकर उनके ही हाथ मजबूत कर रहे हो जिनकी बुनियाद ही विरोध करने पर टिकी है। कभी इसका विरोध कभी उसका। कभी किसी को निकालने की धमकी,
कभी खुद को हटाने का प्रस्ताव! उन्हीं लोगों की पोस्टों से आहत होकर तुम यह सब कर रहे तो यह उन लोगों के साथ तुम्हारा विश्वासघात है जो उन से कई गुना ज्यादा हैं और जो नारद पर इस तरह की हरकतें नहीं देखना चाहते।
इस तरह तुम उनको अपनी हंसी उड़वाने का मौका भी सुलभ करा रहे हो जो हमेशा शंका ग्रस्त रहते हैं कि सारी दुनिया के पास उनका विरोध करने के अलावा कोई काम नहीं है।
तुम शायद भूल गये हो लेकिन तुमको हम याद दिला दें कि नारद के लिये पचास हजार से ज्यादा रुपये उन आम ब्लागर साथियों , तकनीकी गैरतकनीकी लोगों ने दिये हैं जो नारद से जुड़े लोगों पर भरोसा करते हैं। उन लोगों में से शायद किसी एक ने भी नारद की मंशा पर सवाल नहीं उठाया। उनके साथ विश्वास घात करने का हक तुमको किससे दिया बालक! तुम इतने कमजोर पड़ गये कि यह भी भूल गये कि तुम उन लोगों के प्रति जवाबदेह हो जिन्होंने तुम्हारे और नारद से जुड़े लोगों पर भरोसा किया। न कि उन लोगों के प्रति जो केवल और केवल विरोध करने के लिये बने हैं। सैकड़ों लोगों के विश्वास से ज्यादा बड़ी चीज तुम्हारे लिये दो-चार लोगों का अविश्वास हो गया?
तुम कोई खुदा नहीं हो बालक! और जब खुदा के विरोध के लिये भी लोग तर्क गढ़ लेते हैं, तलवारें भांजते हैं तो तुम कौन चीज हो जो बिना छीछालेदर झेले अपना काम कर लोगे?
जो विरोध में हैं उनसे कहो कि वे केवल विरोध करने के बजाय इससे बेहतर काम करके दिखायें। किसी लकीर को काट के छोटा करने का प्रयास करने की बजाय बड़ी लकीर खींच के दिखायें। ये तो बहुत आसान होता है कहना कि नारद यह नहीं कर रहा है, वह नहीं कर रहा लेकिन जो कह रहे हैं वे वैसा करके दिखायें।
चाहे जितना बड़ा तकनीकी सिद्द हो, चाहे कितना बड़ा समर्थ हो उसको ऊलजलूल आरोप लगाने का अधिकार उसकी बुद्दि भले दे लेकिन हम मानते हैं कि उसकी कूबत तब पता चलेगी जब वह अपनी काबिलियत और क्षमता का मुजाहिरा इससे बेहतर काम करके दिखाये।
हनुमान जी की तरह सबके सामने सीना फाड़ के मत खड़ा हुआ करो। जो तुम कर रहे हो वह अपने मन से करो। जो ठीक समझो करो। ये तुम्हारा फुल टाइम काम नहीं है। बीबी-बच्चों, यार-दोस्तों से समय चुराकर जितना कर पाऒ करो, कर ही रहे हो। ये देखोगे कि कौन क्या कह रहा है तो चकरघिन्नी बन जाओगे।
सबसे जरूरी बात यह कि किसी भी आरोप की गरिमा देखो कि आरोप कौन लगा रहा है। उसकी सोच क्या है? वो खुद क्या हरकतें कर रहा है?
यह बताने का कोई मतलब नहीं है कि नारद पर कोई भेदभाव नहीं है। लोग किसी न किसी तरह खोज ही लेंगे कि ऐसे हमारे साथ अन्याय किया नारद के लोगों ने।
लोगों को सोचना चाहिये कि क्यों उनकी लोगों को भड़काने वाली पोस्ट दुबारा पोस्ट होती है बहुत लोग पढ़ते हैं फिर भी कोई इस लायक नहीं समझता उसे कि उस पर कमेंट करे।
बातें बहुत हैं जीतू भाई! सब कहां तक लिखें? लेकिन अनुरोध है कि इस तरह की बातें अपने को
उनकी हरकतों में मत उलझाया करो जो ऐसा ही चाहते हैं।
हमारा समर्थन हमेशा है नारद के साथ। बिना शर्त! तब भी रहेगा। जब कभी मैं किन्ही कारणॊं बस लिखना कम/बन्द कर दूं। तब भी जब शायद मुझ अकेले को नारद की बातें कुछ नागवार लगें। अकेले से समूह हमेशा महत्वपूर्ण होता है। व्यक्ति से समाज हमेशा बड़ा होता है!
नारद के बारे में अगर कोई निर्णय करना ही है तो उन सभी लोगों से पूछकर करो जिन लोगों ने इसके लिये पैसे दिये। (मैंने अभी तक नहीं दिये)।जिन लोगों ने तुम पर भरोसा करके इसमें सहयोग दिया उनसे पूछे बिना रणछोड़दास बनने का तुम्हें कोई हक नहीं। तुम्हें अकेले न निर्णय लेने का अधिकार है न इसे छोड़ने का!
मेरा पूरा समर्थन तुम्हारे साथ है। अगर कुछ बुरा लगा हो तो बुरा मान लेना और हमारी किसी और चैट दोस्त के बारे में लोगों को बता देना!
कौन होते है नारद या अक्षरग्राम या उसके संचालको पर आरोप लगाने वाले ?
नारद कोई व्यव्सायिक या किसी व्यक्तिगत लाभ के लिये किया गया कार्य नही है जो इससे जुड़े लोगो के बारे मे अनर्गल प्रलाप किया जाये। हां स्वस्थ आलोचना को मै बूरा नही मानता!
जीतु भाई, आप आलोचना या इन अनर्गल प्रलापो से हटे अच्छा नही लगता, आप डटे रहीये !
गलत बात जीतू भाई, यह पलायन क्यों?
आप बात को इस नज़रिये से भी देखें कि लोग नारद की आलोचना इसलिए भी कर रहे होंगे कि नारद उनके मनमुताबिक कार्य नहीं कर रहा तो क्या ऐसी आलोचनाओं से व्यथित होकर नारद का प्रभार छोड़कर पलायन उचित होगा या फ़िर नारद का अपनी जवाबदेही के अनुसार कार्य करते रहना ही उचित होगा।
वैसे भी एक हिंदी गाना यही कहता है कि ” कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना”।
मेरी सलाह है कि आप दो-तीन दिन के लिए नारद और चिट्ठों से दूर होकर ठंडे दिमाग से सोचें। शायद तब आप नतीजे में यही पायेंगे कि पलायन उचित नही हैं।
जितू भाई,
इसके आगे अब कोई विचार-विचार करने की जरूरत नहीं है। अनूप भाई ने ठीक कहा है, कुछ लोग भयानक रूप से नकारात्मक होते हैं (जथा उलूकहिं तम पर नेहा) , उनके कुत्सित प्रयासों को नजरअन्दाज किया जाय।
नारद किसी व्यक्तिगत लाभ के लिये नहीं किया जा रहा । हिंदी चिट्ठाकारी आज जिस मुकाम पर है उसमें नारद का क्या योगदान है ये भी सर्वविदित है ।
आप अपने कीमती वक्त से समय निकाल कर जो कर रहे हैं ये शायद सबके बूते की बात नहीं ।
कुछ लोग “कुछ” कह रहे हैं और बहुत से लोग आपके साथ हैं , आपके किये गये नारद के काम को सराह रहे हैं , फिर संशय कैसा ?
डटे रहिये ।
जीतू भाई ये क्या मन्थन वन्थन कर रहे है, अभी के अभी बन्द कीजिये और शुक्ल जी की बातों पर ध्यान दीजिये। नारद की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाले स्वयं को देखें कि वे कितने विश्वसनीय और निष्पक्ष हो सकते हैं।
माँ : रसोई घर में कौन है ?
बेटा : मैंने केला नहीं खाया ।
अरे, महाराज.. आप तो भारी देह और बड़ी मूंछों वाले सिपाही हैं.. ब्लॉग की दुनिया आगे फैलेगी फिर जो तमाशा आगे होगा सो होगा, आप इतने पर छिनकने लगे?.. ऐसे न रूठें, सरकार! सबके भैया हैं आप फिर बीच बारात में खड़े होकर क्या ऐसे रोना-बिसुरना?.. चलिये, पोंछिये आंसू, और एक मुस्की मारिये..
लो जी आपकी कमी थी, हो गए शुरू.
अब आप भी सेंटी हो लिए…
हम सब जानते हैं कोई कहीं नहीं जाने वाला. आप जाना चाहें तो भी नारद आपको जाने देगा नहीं. एकबार दिल से पूछकर देख लीजिए. 🙂
मैं तो गीता की पंक्ति याद रखता हुँ.. कर्म किए जा बस… नारद से एक चीज मिलती है, आत्मसंतुष्टि. बस वही सारी जमापूंजी है.
छोडिए यह सब अब… क्या खालीपीली टेंशन ले रहे हो, और किसके लिए????
दो चार अंट शंट ठोक दो… मन हल्का हो जाएगा. 🙂
आत्मालोचना मैंने शुरू किया है… थोड़े दिन तक तो इसे मेरे पास रहने दें जीतू भैया…
यार ये “मैं छोड़ के जा रहा हूँ, उसने मेरे को ये कहा” वाला फ़ार्मूला बड़े काम की चीज़ है!! टिप्पणियों की संख्या और साइज़ यकायक बढ़ जाता है!! 😉 पर जीतू भाई, आपको ई फ़ार्मूला आजमाने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? आपका साइबर दौलतखाना तो वैसे ही बड़ा लोकप्रिय है!! ऐसे नुस्ख़े तो हम जैसों के लिए ही हैं जिनको अपने गरीबख़ाने पर अक्सर मौजूद खालीपन को दूर करने की ज़रूरत महसूस होती है!! 😉 😀
खैर, अब थोड़ी संजीदगी से बात करें तो मसला ये है कि कुछ लोग-बाग़ कुछ कहते हैं जो कि माकूल नहीं, लेकिन मियां टेन्शन क्यों लेते हो? यह कोई नई बात नहीं है, दुनिया का दस्तूर है। जब भी कोई चीज़ शुरु होती है तो उसको शुरु करने वाले आपस में सहयोग करते हैं और कारवां बढ़ता रहता है, लेकिन बढ़ते कारवां में कुछ न कुछ लोग ऐसे आ ही जाते हैं जिनको शुरुआती दौर में लोगों का किया हुए काम की मालूमात नहीं और वे बदअमनी फैलाने लगते हैं, ज़िम्मेदार लोगों के काम उनको गैर-ज़िम्मेदाराना लगते हैं। मेरा तो यही कहना है कि यह कुदरत का नियम है, कोई नई बात नहीं, इसलिए ऐसे लोग जो कहते हैं कहने दो, हमें अपना काम करना है।
यदि इन लोगों में किसी और बात का दम होता तो अपने असंतोष को वाजिब ठहराते हुए ये दूसरा नारद खड़ा कर अपनी क्षमता का परिचय देते। लेकिन वो बस में नहीं तो इसलिए सिर्फ़ ज़ुबान और बद-मज़े/वाहियात शब्दों से काम चलाते हैं।
इन लोगों में और हममें यह फर्क है कि ये अपना समय खामखा दूसरों की बुराई करने में खराब करते हैं और हम अपने समय का सही इस्तेमाल करते हुए रचनात्मक कार्यों में लगाते हैं जिससे हमें ही नहीं दूसरों को और उन विरोधी लोगों को भी लाभ होता है। यह फर्क है और यह फर्क रहेगा। 🙂
और, जो लोग चुप हैं उन्हें अपने से अलग न समझिए। वे आपके साथ हो भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन जो आपके साथ वाले चुप हैं उनको कायर न समझें। उनकी चुप्पी का एक कारण यह भी हो सकता है कि इस तरह के वाहियात विवाद में अपना समय खराब करने से बेहतर वे किसी माकूल कार्य में अपना समय लगाना पसंद करते हैं। 🙂
मुझे विश्वास है आप नहीं जायेंगे…..भावुकता की बात नहीं….अक्लमंदी की है….और आप बेवकूफ नहीं हैं।
अनिवार्य तो कोई भी कहीं भी नहीं है…..आप गये तो किसी और तरीके से कोई संभाल ही लेगा….पर क्या पलायन आपकी प्रवृति है?
आज आपके पास एक अपना सचमुच का मुद्दा है…क्या आप इसे सही समाधान की तरफ ले जाने में सक्षम हैं?
हम तो आपको मार्गदर्शक की तरह देख रहे थे…क्या आपको मार्ग नहीं दिखाई दे रहा?
या भावनाओं ने उसे भी धुँधला कर दिया है?
जीतू भैय्या;
किसी भी प्रोजेक्ट को पैदा करना और उसे बड़ा करना प्रसव पीड़ा से कम नहीं है. इस व्यथा को सिर्फ़ प्रोजेक्ट बनाने बाले ही जान कसते हैं.
आपने अपने रोजाना का रिजक कमाने का काम करते हुये अपनी पत्नी एवं बच्चों के समय में से चुराकर नारद को दिया है. यह हम सभी दिल से समझते एवं जानते हैं.
मैं आपके इस कदम का विरोध करता हूं. दोस्त, मुस्कुराओ, और सारा गुस्सा झटक दो.
ना दैन्यम, न पलायनम.
जे सब नहीं चलेगा अरे जब मोहल्ले में से हाथी निकलता है तो कुत्ते तो भोंकते ही हैं आप नाहक ही परेशान हो रहे हैं आप तो आम के बगिया के वो माली हैं जो फ़ल कौन खायेगा, की चिंता किये बिना बगीचा लगा रहे हैं अरे किसी के कहने से बगीचे की सुन्दरता खत्म थोड़े ही हो जायेगी। आप तो बस आगे की पीढ़ी का ख्याल करो।
धन्यवाद, आगे से ऐसा न सोचने के लिये ….
प्रिय भाई ये क्या कर रहे हैं आप व्यथित होने से अच्छा है मिल बैठकर चीजों को संभाल लिया जायेगा । और हां । हिंदी जगत में ऐसे आरोपों प्रत्यारोपों और विवादों का दौर सदा सर्वदा से चलता रहा है । वृहद् उद्देश्य की सोचिए । त्वरित फैसला मत कीजिए । थोड़ा समय लीजिये, आप पायेंगे कि आपका गुस्सा स्वयं ही समाप्त हो गया है । हम सब आपके साथ हैं ।
आलोचना उसी की होती है जो सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस आलोचना से विचलित न हों। आत्म मंथन के बाद दुगने जोश से वापस आयें।
आत्ममंथन खत्म करें और वापस हो लें. लेकिन कुछ ऐसा करना भी जरूरी है कि ऐसी स्थितियां निर्मित न हों
नौकरी के जमाने में हम लोगों के बीच (अफसरशाही बहुत थी) एक जुमला चला करता था –
वन हू गाट ब्रैग्ड मोस्ट वर्क्ड मोस्ट
यानी अफ़सरों की सबसे ज्यादा गाली खाने वाला व्यक्ति ही सबसे ज्यादा काम करके देना वाला व्यक्ति होता है.
अब आप गाली के भय से काम करना छोड़ दें तो ये दूसरी बात है 🙂
यार , टोटल ५ घंटे सोता हूँ, वो भी न सोऊँ क्या? इतनी सी देर में कितना कुछ घटवा दिये. अब सभी तो वही समझाये हैं, जो हम कहते. हम तो सोते ही रह गये और सब लोग हमारी दिल की बात लिख गये. रायल्टी लूँगा सबसे. 🙂
वैसे घटना क्रम पढ़ कर लगता है कि लोगों की बातें सुन कर पहले आप को गुस्सा आया होगा, फिर आप उदास हुए होंगे. यही उदासी जब आत्म चिंतन की तरफ ले जाये और सब कुछ किया धरा बेकार होता नजर आये. लगे कि सब व्यर्थ है, तब आप उस अवस्था को प्राप्त होते हैं जिसे विद्वानों ने हिन्दी में डिप्रेशन की संज्ञा दी है. यह सेहत के लिए अति हानिकारक बताया गया है. इस अवस्था से तुरंत उबर जाना चाहिये. हंसते खेलते दिन बिताओ यार. कहाँ के लफड़ों पर नजर गड़ाये हो. हम सभी तो तुम्हारे साथ हैं. देखो, कितने सारे तो यहीं दरवाजे पर खड़े हैं. 🙂
कैसे भारतीय हो यार?? चार लोगों ने कुछ अगड़म बगड़म लिख दिया और तुम चले सब छोड़ छाड़ कर. बिना किसी गल्ती के. ये भी कोई बात हुई हम भारतियों के लिये. हम लोगों का रिवाज ऐसा नहीं है, चाहे खेल में हो या राजनिति में. एक तो वो गल्ती करते हैं और फिर सारा देश चिल्ला चिल्ला कर विरोध करता है, तब भी वो हैं कि छोड़ कर जाने तैयार ही नहीं, डटे हैं. आप उल्टा किये दे रहे हैं सारे नियम. एक तो इतना बढ़िया सकारात्मक कार्य कर रहें हैं, जो सबके बस की बात नहीं. दो चार को छोड़कर सब आपके साथ हैं और आप हैं कि छोड़ कर जाने का मानस बना रहे हैं. ऐसा नियम नहीं है, बॉस, यूँ नहीं जाने मिलेगा. 🙂
चलो, अब कोई बढ़िया हंसती खिलखिलाती पोस्ट हो जाये. 🙂
यूं तो हम अभी ज्यादा कुछ कह नही सकते इस बारे मे क्यूंकि हम अभी बहुत नए है पर हम सिर्फ यही कहेंगे की समस्या से भागना समस्या का हल नही है।
हा हा हा
हम तो समीरजी से भी लेट हो गए। रहा सहा भी वे लिख मारे, अब क्या खाक मौलिक होंगे।
पर देखो हम कल ही लिखे थे ऐसा वैसा कि हम क्या करें…तो ये ऊपर वाले समीरजी ने चिढ़ाया कि कौन कहता है कुछ करो…ब हू हू हू 🙁
पर अच्छा अब नारद नहीं, चिट्ठा नहीं, तो क्या करोगे…अब इस उम्र में क्या खाक मुसलमॉं होगे। करते रहिए मिंया जो सबसे बेहतर आता है आपको, ओर वो आप कर ही रहे हैं….
या एक काम और कर सकते हैं…इस सबके अलावा, जो भटके मित्र (पता नही क्यों मुझे वो भी शत्रु नहीं लगते) यह सब कह रहे हैं उन्हें प्रस्ताव दिया जाए कि मित्र एक और अपने सपने का एग्रीगेटर खड़ा करें, विकल्प बनें और ऐसा करने में हमारा जो साथ चाहिए..जितना बस में है देते हैं। कुल मिलाकर हिंदी के ही लिए करेंगे ना..इससे अच्छा क्या है।
रही व्यक्तिगत स्तर पर टीस होने की बात…तो बुरा न मानो..ये दु:खदायी तो है पर नहीं सह पा रहे हो तो लौट ही जाओं क्योंकि बंधु आप से बेहतर कौन जानेगा कि इस राह पर तो यही सब मिलेगा। कोई फूल नहीं इस राह पर। और फिर चूंकि इस पेशेवर हिंदी वालों की दुनिया हूँ इसलिए कह रहा हूँ अभी जब ये लोग पहुँचेंगे असली आरोप-राजनीति तो तब देखना….
अरे पहुँचने तो दो राजेंद्र यादवों को यहॉं…
अरे भाई, किसने आरोप लगा दिया, क्या आरोप लगा दिया. मैंने एक सुझाव दिया है, कुछ गड़बड़ दिखी थी, कहीं मुझसे नाराज़ नहीं हैं आप? भाई, नारद आपका है, आपने खड़ा किया है, बाद में मेरे जैसे लोग आ गए हैं जो उसे प्यार से अपना समझने लगे हैं, कुछ दिखा तो बता दिया तपाक से लेकिन बुरा न मानिए. किसी की नीयत पर शक थोड़े किया है….
सुधार –
पढें
और फिर चूंकि इस पेशेवर हिंदी वालों की दुनिया से हूँ इसलिए कह रहा हूँ अभी प्रचार शुरू हुआ है जब ये पेशेवर लोग पहुँचेंगे असली आरोप-राजनीति तो तब देखना….
अरे पहुँचने तो दो राजेंद्र यादवों को यहॉं…
किसी धोबी ने सीता के बारे में कुछ बक दिया, तो भगवान राम ने अग्निपरीक्षित, गर्भवती, परमप्रिय सीता को भी त्याग कर वन में भेज दिया था।
दूसरी ओर भगवान कृष्ण ने जब नरकासुर का वध करके उसके हरम में सर्वहारा 9 लाख 16 हजार नारियों को मुक्त कराया। संसार को कोई भी दूसरा पुरुष उन्हें अपनाने को तैयार नहीं हुआ। कहाँ जाती बेचारी। अनन्तः कृष्ण ने लोकलाज की परवाह न करके सबको अपनी पटरानी के गरिमामय पद पर विराजमान कर ‘पतितों’ को पावन बना दिया।
भारतीय पुराणों में वर्णित इन दोनों आख्यानों में से चुनना है कि राम बनें या कृष्ण? लोग क्या कहेंगे? दुनिया को अपनी अंगुलियों के इशारों पर नचाना चाहेंगे या दुनिया के इशारों पर अपना सिर नोंचते नोंचते अधमरे होना?
पहली बार जीतू भाई का दुःख भरा लेख पढा
नारद पर पिछले चंद लेखों पर मुझे अफसोस है।
जीतू भाई पर मेरा यही कहना है किः आप वक्त निकाल कर नारद के लिए जो कुछ भी किया है
जीतू भाई को स्लाम करता हूं।
अब आखिर में मेरे कहने की बारी है न
कब अपने विद्रोही मन ने स्वीकारा
कटी आस्था टूटी मर्यादा ओढ़ें
हम झरने से जिधर हुआ मन बढ़ जाते
कभी न अपना मित्र ! हठी संबल छोड़ें
आंधी बरसातों से यह मन डिगे नहीं
तूफ़ानों से कोई निश्चय झुके नहीं
बेचा करते हैं सौदागर भावुकता
हम जो बेचेण्गें, खरीद खुद ही लेंगें
नारद की मदभरी हवा के झोंके से
सौरभमय हो रहे आज कितने मधुवन
नहीं कभी पनिहारिन से गागर बिछुड़ी
नहीं कभी बादल से सागर बिछेड़े हैं
जैसे राधा का है रहा कन्हाई से
नारद से है मित्र तुम्हारा अनुबन्धन
आपने दिल का दर्द लिख मारा… सांत्वना भी मिल गई… जिन्हें हँसना था, हँस लिये… जिन्हें समझाना था, समझा गये… बढ़िया है।
अब जब आत्मचिंतन कर ही रहें हो तो अपनी इस पोस्ट के बारें में भी कर लेना… रोना हमेशा कमजोर रोते है… और कोई भी कमजोर सिपाही नारद टीम का कर्णधार बना रहे, नारद प्रशंसको को बर्दाश्त नहीं… यह समझ लें।
फटा-फट आँसू पोंछो और काम पर लगो, गलतफहमियाँ हो जाया करती है, चलता है।
एक बात और, नारद ना तो कभी व्यक्तिगत सोच था और ना ही कभी होगा, आप जाना चाहें, बेशक जायें मगर यह ख्याल रखें कि जितना पसीना आपने बहाया है, उतना बहाने वाला कोई विकल्प हो, क्या है?
एक बात और स्पष्ट रूप से समझ लें, आपने नारद को जो समय दिया है, वह किसी और के लिये नहीं, बल्कि अपने लिये दिया है। आपकी अपनी व्यक्तिगत रूचि के चलते दिया है, इसलिये रोना रोकर हास्य का पात्र ना बनें।
हो सकता है मेरा लिखा आपको कटू लगे, मगर विचार करेंगे तो निश्चित रूप से अपनी इस पोस्ट पर आपको हँसी आयेगी।
भाई जीतू यह तो तय हो चुका है कि मै बडा भाई हू मानते हो ना तो बस अब यहा कुछ नही कहूगा सुबह होने दो मत करो जिद वो भी उलटी आ जाओ चुपचाप वापस सच मे धमका रहा हू वरना पंगा अब तुमसे क्या लूगा यार बडा हू न अब मान भी जाओ
जीतू भाई, नारद पर जो काम आप लोगों ने अब तक मिल कर किया है उसकी मिसाल ढ़ूंढ़ना मुश्किल है। सारा हिंदी चिट्ठा जगत सदैव से आपका ॠणि रहा है । ये सबका आपका और आपकी टीम के प्रति विश्वास का ही नतीजा था कि नारदकोश के लिए इतने उत्साह से सबने मिलकर हाथ बँटाया । समय समय पर जब हम नारद के बारे में ,उसकी कमियों के बारे कहते हैं तो ये मानकर कि ये अपना फोरम है और जो दिक्कतें पेश आ रही हैं उनसे नारद टीम को अवगत कराते रहें ।
इतनी टिप्पणियाँ ये स्पष्ट दर्शाती हैं कि लोगों के मन में आपके लिए वही स्नेह है जो हमेशा से रहा है ।
जीतू जी ,इतने सारे लोग नए और पुराने, इतना कुछ कह गए हैं आपके व नारद के बारे में । सबने यही कहा कि आपकी व नारद की हमें जरूरत है । यदि यह नारद न होता तो क्या हम सब यहाँ इकट्ठे होते ? यदि आप व आपके कुछ साथी इतनी लगन से काम न करते तो क्या नारद होता ? अब क्योंकि नारद है सो कुछ लोगों को उससे शिकायत भी है । जो काम करते हैं उन्हीं के काम में मीन मेख निकाले जाते हैं, जो काम नहीं करते उन्हें कोई क्या बोलेगा ?
मैं तो इतना जानती हूँ कि नारद ने मुझे एक नया जीवन दिया है, मुझे फिर से अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर दिया है ।
आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हममें से अधिकतर को नारद व नारद के जन्मदाताओं से स्नेह है । मैं जानती हूँ कि नारद का निर्माण आपने हमारा आभार पाने को नहीं किया था । अत आभार प्रकट नहीं करूँगी , किन्तु आप यह भी जानते हैं कि हममें से अधिकतर आपका आदर करते हैं । आप एक बार कहते हैं तो अधिकतर हम सब आपकी सलाह मान लेते हैं, फिर बाद में चाहे आपसे तर्क वितर्क करें ।
मनुष्य उम्र से नहीं अपने कामों से आदर पाता है जो मुझ जैसे अधिक उम्र के लोग भी आपको देते हैं । कुछ बनाने में अधिक मेहनत लगती है तोड़ने में बहुत कम । आप एक बार फिर सोचिए कि क्या आपको इतना परेशान होने की आवश्यकता है ? यदि आपको विवाद असह्य लगता है तो सोचिये क्या विवाद होना अस्वाभाविक है ? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि नारद असभ्य भाषा व गालियों पर प्रतिबन्ध लगा दे ?
घुघूती बासूती
जीतू भाई,
कुवैत में लगता है कि पारा बहुत ऊपर है।
कुछ आराम करो, पर और ऊर्जा के लिये और इस निश्चय से कि नारद को ऊर्जारहित नहीं करोगे। अरे आने दो कोई और एग्रीगेटर, क्या नारद का महत्व इससे कम होगा? यदि ऐसा हो भी और वह नारद से भी अधिक तकनीकी रूप से समृद्ध हो तब तो और भी अच्छा है पर इससे भी नारद के योगदान (योगदान ही नहीं बल्कि अपने रूप के एकाकी और प्रथम प्रयास) का महत्व नहीं कम होगा, आखिर यह तो नींव के समन है। आने दो और एग्रीगेटर को? यह तो नाराज़गी का कारण नहीं हो सकता।
उदाहरण के लिये क्या आज जो Sun Solaris, BSD, और Linux का रूप ह, उसमें AT&T के Unix के योगदान को नज़रंदाज़ किया जा सकता है? क्या Unix ने कभी कोई आलोचना नहीं झेली होगी?
मुझे नहीँ पता कि किसने क्या कहा, पर क्या फ़र्क पड़ता है? अपना विवेक और धैर्य मत खो और जैसा शुकुल जी ने लिखा, कि मन से यथाशक्ति इसमें समय दो, जब मन भर जाये तब एक और पोस्ट लिख दो।
क्या और भी कहना पड़ेगा? अरे तुम तो स्वयं गीता के रहस्य को जानते हो, फिर यह क्लांत मुख कैसा!
काश सब लोग नारद के पीछे की भावना समझ पाते। कुछ लोग नारद को बुरा भला कहते हुए यह भूल जाते हैं कि नारद एक मुफ्त सेवा है, इससे इसके कर्ताधर्ताओं को मोई व्यावसायिक लाभ नहीं है। सब कुछ हिन्दी सेवा के लिए किया जा रहा है।
ऐसे लोगों से मेरा कहना है कि भाई नारद को अपना समझोगे तो वो आप का ही है, पराया समझो तो पराया ही लगेगा उसमें क्या किया जा सकता है।
ऊपर प्रियंकर जी की टिप्पणी से सहमत हूँ:
५ आदमी नारद की बुराई कर रहे हैं तो ५०० आपके साथ खड़े हैं।
बाकी जो लोग नारद की बुराई कर रहे हैं, उसमें कमियाँ ढूँढ रहे हैं वो अपना खुद का एग्रीगेटर काहे नहीं खड़ा करते उस पर जो मर्जी आए कीजिएगा। हमें कतई कोई शिकायत नहीं होगी।
जीतू भाई ये जो इतने सारे चिट्ठाकार कल से इक्कठे है इन्हे भूखा क्यू मार रहो हो भाई जरा उट वूट जॊ भी चाहो जरा जल्दी से बना लो यार
जीतू भाई टिप्पणी पाने का निराला ढंग निकाला है
हर एक से पूछता है, नारद को किसने मार डाला है।
मजाक कर रिया हूँ, लेकिन अब सीरियस बात भाई भारत की तरह डेमोक्रेसी चलाओगे तो ऐसे ही होगा लोग पहले पान खाकर थूकेंगे फिर कहेंगे कि बहुत ही गंदगी रहती है। आप नीचे बताये गये तीन में से कम से कम एक काम करो –
१. नारद पर एग्रीगेटर कुछ हफ्तों के लिये बंद कर दो, चक्का जाम टाईप
या
२. सीधे सीधे घोषित कर दो, नारद ४-५ लोगों के द्वारा चलाया जा रहा है और ये इन्हीं लोगों की पसंद से चलेगा, जिसे मंजूर है वो हमारे साथ आये, जिसे नही वो किनारे कट ले और अपना पिटारा खुद खोल ले।
या
३. मानसिक तौर पर अपने को और मजबूत करिये जैसे जैसे संख्या बढेगी ऐसे वाक्ये भी बड़ते जायेंगे।
जीतू भाई टाईम जिसका जाता है वो ही जानता है, फ्री की मिठाई खाने वाले को उसकी कीमत कहाँ मालूम होती है, हम समझ सकते हैं आपका दुख।
कितनी बार आ के देखना होगा कि आपका कुछ जवाब आया कि नहीं.. ?
जेंहि समाज बैंठे मुनि जाई। हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई।।
तहँ बैठ महेस गन दोऊ। बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ।।
करहिं कूटि नारदहि सुनाई। नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई।।
रीझहि राजकुअँरि छबि देखी। इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी।।… …
अस कहि दोउ भागे भयँ भारी। बदन दीख मुनि बारि निहारी।।
बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा। तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा।।
दो0-होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ।
हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ।।135।। – रामायण बालकाण्ड
ब्लॉगर भाई-बहनो! नारद जी को नाराज कर कभी उनके अभिशाप के हकदार नहीं बनो! भगवान विष्णु भी नहीं बच पाए!
साथियों, आप सभी की टिप्पणियों का शुक्रिया। विश्वास मानिए, टिप्पणी और हिट्स की मेरे को कभी भी कमी नही रही और ये सब मैने हिट्स के लिए नही किया था और ना ही किसी प्रकार की सहानुभूति पाने के लिए। ये तो दिल के उदगार थे, कुछ दर्द और टीस थी, जो जुबां पर आ गयी। नारद मेरे लिए एक बच्चे के समान है, जिसे मैने पैदा तो नही किया, लेकिन उसे पाला पोसा और बड़ा किया, उसको छोड़ना मेरे लिए भी बहुत बड़ा कठोर निर्णय है। आप सभी का स्नेह, आदर सम्मान देखकर आँखे भर आयी। आप मे से कई लोग मेरे से उम्र मे बड़ें है, इस तरह का प्यार और स्नेह विरले ही प्राप्त करते है।
नारद को हमने एक विचार की तरह खड़ा किया है, यह व्यक्ति आधारित नही है, अलबत्ता कुछ नाम सामने जरुर आते है कि इसने ये किया उसने वो किया। लेकिन सच मानिए, नारद पूर्णत: विचार आधारित है। व्यक्ति रहे या ना रहे, विचार जिन्दा रहेगा। यही हमारा ध्येय है।
नारद पर कार्य पूर्ववत चल रहा है, उसके संचालन और परिचालन मे किसी भी तरह का व्यवधान नही है ना आएगा।
हाँ जीतू, आप सभी के प्यार, स्नेह, आदर और सम्मान को देखकर नतमस्तक है और अपने फैसले पर फिर से गौर करने के लिए मजबूर हुआ है। आशा है फैसला बहुमत के हक मे ही होगा। एक बार फिर से आप सभी की टिप्पणियों, सुझाव, आलोचनाओं के लिए धन्यवाद।
तरुण जी की बात
“सीधे सीधे घोषित कर दो, नारद ४-५ लोगों के द्वारा चलाया जा रहा है और ये इन्हीं लोगों की पसंद से चलेगा, जिसे मंजूर है वो हमारे साथ आये, जिसे नही वो किनारे कट ले और अपना पिटारा खुद खोल ले।”
पूरी तरह सहमत हूँ।
ब्लाग अग्रगेट करने से पहले कुछ टर्म्स और कण्डीशन ऐक्सेप्ट करवायें….।
जाने किस मर्दूद की नज़र लगी है हमारे हंसते-खेलते, आपस में दुख:सुख के साथी रहे इस साइबेरिया समाज को। नकारात्मकता का इतना प्रवाह जाने किस ओर से आकर फिज़ा में घुल गया। मुझे तो ये नकारात्मकता गर्मी के मौसम में उठने वाले अंधड़ से फैलने वाले गर्द मालूम पड़ते हैं जो सकारात्मक विचारों की पहली बारिस में अपना वजुद खो देंगे। जीतू भाई की निष्ठा पर शक़ करना नारद नामक सामुहिक विचार में आस्था रखने वालों पर शक़ करना है।
जीतू भाई, शब्दों में बड़ी ताकत है। शब्दों के बनाये हमारे आपसी रिश्तों की दुहाई देते हुए आपसे दो बातें कहूंगा…
पहली बात कि मैं अनूप भैया के सारे शब्द उधार ले रहा हूं और उन्हें मेरे शब्द मानकर आप उन्हें एक बार फिर से बांचो।
और दूसरी बात,
एक विनती करता हूं कि आप एक हफ्ते की छूट्टी ले लो (मेरा मतलब कुवैती कंपनी से छूट्टी नहीं नारद नामक एनजीओ से)। छूट्टी मतलब पूरी छूट्टी… एकदम झांकना भी मत नारद की ओर… मेरा पन्ना पर कुछ मत लिखना… और न ही किसी का चिट्ठा पढ़ना… दिमाग से बोझ हल्का करो… और फिर जब आठवें दिन आप लौटोगे तो मुझे पूरा यकीन है आप चौगुने उत्साह के साथ लौटोगे।
जीतू जी, व्यक्तिगत तौर पर इस फ़ैसले से व्यथित हूं. आत्मचिंतन की बात सही है और यह की जानी चाहिए वह भी तब जब आलोचना के स्वर तीव्र हों. अंतर्जाल पर आपके योगदान को नकारा नहीं जा सकता. आपने ही कहा कि नारद को बच्चे की तरह पाला-पोसा है. अब बच्चा बड़ा हो रहा है. किशोरावस्था है. विद्रोही तेवर होते हैं. खिट-पिट करता है. खीज उतारता है. यह स्वाभाविक है. इसे खुले आसमां में उड़ने दें. निम्न सुझाव आप पहले ही विचार चुके होंगे किंतु अनुरोध है कि इसे अमलीजामा पहनाएं. बाक़ी आप वरिष्ठजन जो निर्णय लें. मैं व्यक्तिगत तौर पर नारद ही नहीं बल्कि पूरे चिट्ठाकार जगत का हितैषी हूं. किसी तरह के व्यक्तिगत दुराव की कोई आशंका मैं नहीं देखता. मेरे लिए सदा ही सब भाई-बंधु रहे हैं. हमेशा रहेंगे.
मेरा सुझाव है कि नारद कार्यकारिणी बनाई जाए और पुराने नए सभी विवादित मामलों पर वह अपना फ़ैसला दे. व्यक्तिगत रूप से अब मैं अपनी राय रखना चाहता हूं-
1. सभी चिट्ठाकारों के ब्लाग वापस जोड़े जाएं. यदि कोई नहीं आना चाहे तो यह उसकी राय है किंतु नारद उवाच इसे सार्वजनिक कर दे. जब आना चाहे तब आए.
2. मोहल्ला पर बैन, इग्नोरेंस वगैरह का कोई तुक नहीं है. यह नकारात्मक प्रवृति है. लोकतंत्र के ख़िलाफ़. यदि कोई चिट्ठाकार ग़ैरक़ानूनी कृत्य भी करता है तो भी यह उसका स्वविवेक हैं और सीधे तौर पर वही ज़िम्मेदार है. नारद स्पष्ट कर दे कि फीड एग्रीगेटर का सामग्री से कोई लेना-देना नहीं है.
3. नारद कार्यकारिणी सभी निर्णय सामूहिक तौर पर ले. सदस्यसंख्या विषम हो ताकि बहुमत के आधार पर फैसले हो सकें.
हिन्दी चिट्ठाकार एक बड़े लक्ष्य को लेकर चले हैं जो मूर्त रूप में अब भी अपने साकार होने की प्रतीक्षा कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को वैश्विक भाषा का दर्ज़ा दिलाना. क्या हम विवादों में फंसकर, या पीड़ा देकर-पाकर लक्ष्य से नहीं भटक रहे हैं?
कर्मण्येवाधिकारस्ते…
sir hamare bharat desh me purn loktantr hai purn aajadi hai ,aap to sirf bhagawan buddh ke raste par chaliye aapko kisi ne kuchh kaha aap lijiye mt ap jab kisi chij ko lenge nahi to wah chij usi ke pas rh jayegi aap befikr ho kar apne kam me lage rahiye hathi apne raste masti se chala jata hai kutte bhau bhau karate rahate hai .
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