अहले वतन
साथियों मुझे आप सभी को अपने एक नये मित्र से मिलाते हुए बहुत खुशी हो रही है. इनका नाम है भाई उमेश शर्मा जी, उमेश भाई कुवैत के ही निवासी है, पेशे से इन्जीनियर है, साहित्यकार है. इनकी कविताओ का एक संग्रह “ये आशियां” छप चुका है, जिसमे इनकी कविताओं और ग़जलो का संग्रह था. मै आजकल इनका संग्रह पढ रहा हूँ. उमेश भाई हिन्दुस्तान मे उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर से है, और मजे की बात ये है, इनसे मेरी मुलाकात मेरे ब्लाग “मेरा पन्ना” के मार्फत हुई. उमेश भाई यहाँ कुवैत मे “राइटर्स एसोशियेशन” के जनरल सेक्रेट्री भी है. इस फोरम मे कुवैत मे रह रहे भारतीय भाषाओं के सभी लेखको को जोड़ने का प्रयास किया जाता है. जाहिर है कि मै भी अब इस लेखक समूह का हिस्सा हूँ. इस समुह के बारे मे फिर कभी बताऊंगा. अभी तो आप उमेश भाई की लिखी एक कविता पढियें, जो मेरे को बहुत अच्छी लगी. और हाँ, उमेश भाई का हिन्दी ब्लाग भी आप जल्द ही देखेंगे.

अहले वतन
यूं तो बहुत दूर, बहुत दूर चला आया हूँ
पर तुझे अहले वतन भूल कहाँ पाया हूँ
मेरी हर सांस की रफ्तार मे पोशीदा है तू
कतरा ए-खूं मे निहां है तेरी खुशबू
करके महफूज तुझे दिल मे छिपा लाया हूँ
पर तुझे अहले वतन………..
तेरे आँचल के तले बहती है गंगा जमुना
और लगता है हिमालय तेरा सर ताज बना
उन नजारों पे मै दिल अपना लुटा आया हूँ
पर तुझे अहले वतन……….
जब कोई जश्न तेरी याद मे होता है कंही
और तेरे नाम पर लहराता तिरंगा है कंही
एक नन्हा सा दिया दिल मे जला लाता हूँ
पर तुझे अहले वतन….
भूल कहाँ पाया हूँ……वाकई दिल को छूने वाली कविता है।
मुजे ये कविता बहुत अच्छी लगी. क्यां मे ईसे अपने गुजराती ब्लोगमे प्रसिद्द्ध कर
शकता हू?
सिद्धार्थ शाह
कविता पढ कर स्कूल के जमाने में लिखी अपनी कविता की पन्क्तिया अचानक ही याद हो आयी.
मन तिरगां
तन तिरगां
हर रगं तिरगां हो गया,
मैं, यार तिरगां हो गया.
वैसे भाई उमेश शर्मा जी जैसा कवि तो नही हूं पर यह पन्क्तिया उनकी कविता कि प्रशंसा में उनके नाम.
suzuki marauder
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